कब पिलाओगे

राघवेन्द्र कुमार ”राघव”

 ” सैयाँ भए कोतवाल अब डर कहे का”

ऐसी कहावते अब पुरानी हो गयी हैं इसी को ध्यान में रखकर शीर्षस्थ लोग नई कहावते गढ़ने लगे हैं | ” सैयाँ जब सरकार मतलब पूरा भ्रष्टाचार ” कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की धर्म पत्नी ने इसे चरितार्थ किया है | करें भी क्यों न जब बहनोई का कुछ नही गया तो भाभी जी भी सलामत ही रहेंगी | पागल थे कलमाड़ी और राजा खुद माल उड़ा बैठे , अपनी पत्निओं , बच्चों , रिश्तेदारों और प्राइवेट लोगों से काम करवाना था | खुर्शीद साहब से सीखे नहीं , अरे अपने छोटे बड़े सभी मंत्रिओं से सलाह मशविरा करके ही माल लूटना चाहिए | ऐसे में फसने की गुंजाइश कम रहती है | अब खुर्शीद साहब तो कानून मंत्री , फिर उनसे ज्यादा कानून कौन जानेगा | पहले बड़ी-बड़ी डकैतियों में साथ दिया फिर बचा खुचा खुद भी चाटने लगे , पर हजम करने की कला वो गुरुओं से सीख नहीं पाए | ऊपर से वो नया हवालदार , अरे वही आर.टी.आई. वाला , सही समझा केजरीवाल , उसकी नजर से कुछ बचता ही नहीं | अब वो तो हवलदार से सीधे डी.आई.जी. बनना चाह रहे हैं तो सख्ती तो दिखाएंगे ही , भाई या तो वो जो चाहते हैं दे दो , नहीं तो भूखे रहो | सलमान तो खान बन रहे हैं , फिल्मों में जो होता है ज़रूरी है कि वह असल में भी हो जाए | खैर छोड़ते है ये तो सरकारी राज-काज हैं चलते ही रहेंगे | हमको क्या हम तो दाना चुंगने के आदी हैं , देखते है अबकी किस दाने पर झपटते हैं | सातवें वेतन आयोग पर या कर्ज माफ़ी के जूते पर |

अरे वो करोडो खाएं और हमको हजारों में समझाएं , अब ऐसा नहीं होगा अन्ना जी हमको जगा गए हैं | वो बात अलग है कि वो भी मौके पर धोखा देने वाले ही निकले लेकिन जितना बताया उतना भी बहुत ही है | अब यहाँ ही देखो उ.प्र. के फर्रुखाबाद से विकलांग दिल्ली तक आ गए , सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके नकली हाथ-पैरों पर लुईस खुर्शीद ने हाथ साफ़ कर दिया | अब किया मैडम खुर्शीद ने और घेरा जा रहा है बड़ी अम्मा को | हो भी क्यों न जब तक बड़ी अम्मा का हुक्म न मिल जाए मंत्री-संतरी छोटी मोती शंकाए भी साधे रहते है | अब ये रुतबे की ही बात है |अब कानून मंत्री का इस्तीफा माँगा जा रहा है , क्यों भाई ? वो क्यों दे इस्तीफा ? अब जीजा जी से दीदी वापस ली गयीं भला | फिर वो तो कानून के मंत्री हैं जीजा जी को बचाने में दिन रात एक किये हैं | अब उन पर बिजली गिर रही है सभी किनारा कर लें , नहीं ऐसा नहीं होगा | घर घेरने वाले कब तक बैठे रहेंगे फिर घर एक ही थोड़े न है | मंत्री बनने का यही सबसे बड़ा फायदा कुछ हो न हो घर चाहें जितने बनवा लो , सारी जमीन अपने बाप की ही है | गरीबों से तभी तो छीनी जाती है , गरीबों को ये समझ ही नहीं आता| वो तो कर्ज माफ़ी से ही खुश है |

करो भाई जो भी मन में हो तुम्हारी सरकार है ” घर की परोसने वाली अँधेरी रात ” जैसे मन हो खाओ | हम सब तो ठर्रा पीकर मस्त हैं | वही ठर्रा जो चुनाव के वक्त तुम लोगों ने पिलाया था | बड़ी मादकता होती है तुम्हारी शराब में , पांच साल इन्तेजार करते हैं तुम्हारा | कब आओगे….. और …..पिलाओगे !

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राघवेन्द्र कुमार 'राघव'
शिक्षा - बी. एससी. एल. एल. बी. (कानपुर विश्वविद्यालय) अध्ययनरत परास्नातक प्रसारण पत्रकारिता (माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय) २००९ से २०११ तक मासिक पत्रिका ''थिंकिंग मैटर'' का संपादन विभिन्न पत्र/पत्रिकाओं में २००४ से लेखन सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में २००४ में 'अखिल भारतीय मानवाधिकार संघ' के साथ कार्य, २००६ में ''ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी'' का गठन , अध्यक्ष के रूप में ६ वर्षों से कार्य कर रहा हूँ , पर्यावरण की दृष्टि से ''सई नदी'' पर २०१० से कार्य रहा हूँ, भ्रष्टाचार अन्वेषण उन्मूलन परिषद् के साथ नक़ल , दहेज़ ,नशाखोरी के खिलाफ कई आन्दोलन , कवि के रूप में पहचान |

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