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आखिर लोकतंत्र कहां है? - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
चैतन्य प्रकाश मैक्स ईस्टमैन ने 1922 में कहा था ”मैं कभी ऐसा अनुभव करता हूं कि पूंजीवादी और साम्यवादी तथा प्रत्येक व्यवस्था एक दैत्याकार यंत्र बनती जा रही है, जिसमें जीवन मूल्यों की मृत्यु हो रही है”। लैंग के विचार में इस भौतिकवादी संसार में सफलता का मूल्य हमें स्वत्व…