-सरफ़राज़ ख़ान
देश को स्वतंत्र हुए छह देशक से भी ज्यादा का समय हो गया है। हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फ़हराया जाता है। मगर क्या कभी किसी ने यह सोचा है कि 15 अगस्त, 1947 की रात को जब देश आजाद हुआ था, उस वक्त भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले पर जो तिरंगा लहराया फहराया था, वह कहां है?
इसकी सही जानकारी किसी को नहीं है। राष्ट्रीय ध्वज पूरे राष्ट्र के लिए एक ऐसा प्रतीक चिन्ह होता है जो पूरे देश की अस्मिता से जुड़ा होता है। यूं तो आज़ादी के बाद से हर बरस लाल किले पर फहरया जाने वाला तिरंगा देश की धरोहर है, लेकिन 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर फहराए राष्ट्रीय ध्वज का अपना अलग ही एक महत्व है।
कुछ लोगों का कहना है कि 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर लहराया गया तिरंगा नेहरू स्मारक में रखा गया है, जबकि स्मारक के अधिकारी इस बात से इंकार करते हैं। हैरत की बात तो यह भी है कि यह विशेष तिरंगा राष्ट्रीय अभिलेखागार में भी मौजूद नहीं है। इस अभिलेखागार में 1946 में नौसेना विद्रोह के दौरान बागी सैनिकों द्वारा फहराया गया ध्वज रखा हुआ है। बंबई में 1946 में नौसेना विद्रोह के वक्त तीन ध्वज फहराए गए थे। इनमें कांग्रेस का ध्वज, मुस्लिम लीग का ध्वज और कम्युनिस्ट पार्टी का ध्वज शामिल थे। इनमें से कांग्रेस का ध्वज अभिलेखागार में मौजूद है।
प्रथम स्वतंत्रता दिवस पर फहराया गया ध्वज राष्ट्रीय संग्रहालय में भी नहीं है। राष्ट्रीय संग्रहालय के एक पूर्व अधिकारी के मुताबिक आम तौर पर ऐतिहासिक महत्व की ऐसी धरोहर राष्ट्रीय संग्रहालय में रखने की बात हुई थी, लेकिन बाद में इसे भारतीय सेना को सौंप दिया गया था। इसके बाद इसे स्वतंत्रता दिवस तथा गणतंत्र दिवस के प्रबंध की देखरेख करने वाले केंद्रीय लोक निर्माण विभाग को सौंप दिया गा, लेकिन केंद्रीय लोक निर्माण विभाग तथा सर्च द फ्लैग मिशन के पास उस तिरंगे के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध है।
15 अगस्त 1947 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ऑल इंडिया रेडियो पर देश के नाम संदेश देने दिया था और शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां ने अपनी स्वर लहरियों से आज़ादी का स्वागत किया था। (स्टार न्यूज़ एजेंसी)
आप ने बेहद गंभीर लापरवाही को उजागर किया है.भारत सरकार को हम हिन्दुस्तानियों को यह जानकारी अवश्य उपलब्ध करानी चाहिए.
आजादी के ६३वी वर्ष गांठ पे आप सबको हार्दिक बधाई.
सप्रेम अब्दुल रशीद
यह छोटी ;मोटी बात नहीं ;गंभीर मसला है .हमारी उस गफलत को दर्शाता है की हम बार बार गुलाम कैसे हुए ?जब हम आज़ादी के पावन प्रतीकों को सहेजने में सक्षम नहीं तो आज़ादी का गुरुतर भार भी वहन कर पायेंगे -इसमें संदेह है .
देश का ध्याकर्षण हेतु सरफराज जी आपका शुक्रया .