कहां जांयें हम‌

भालू चीता शेर सियार सब,

रहने आये शहर में|

बोले’अब तो सभी रहेंगे,

यहीं आपके घर में|’

 

तरुवर सारे काट लिये हैं ,

नहीं बचे जंगल हैं|

जहाँ देखिये वहीं दिख रहे,

बंगले और महल हैं|

अब तो अपना नहीं ठिकाना,

लटके सभी अधर में|

भालू चीता शेर सियार सब,

रहने आये शहर में|

जगह जगह मैदान बन गये,

नहीं बची हरियाली|

जहाँ देखिये वहीं आदमी,

जगह नहीं है खाली|

अब तो हम हैं बिना सहारे,

भटके डगर डगर में|

भालू चीता शेर सियार सब,

रहने आये शहर में|

 

पता नहीं कैसा विकास का ,

घोड़ा यह दौड़ाया|

का‍ट छांट कर दिया,वनों का

ही संपूर्ण सफाया|

बोलो बोलो जांयं कहां अब,

गरमी भरी दोपहर में|

भालू चीता शेर सियार सब ,

रहने आये शहर में|

 

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