कहां ले जाएगा, ये रोग हमें आरक्षण का

विपिन किशोर सिन्हा

समाज का विभाजन अन्ततः भूमि के विभाजन में परिवर्तित हो जाता है। अंग्रेजों को इस भारत भूमि से तनिक भी स्वाभाविक लगाव नहीं था। उनका एकमात्र उद्देश्य था – अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए इस देश के संसाधनों का अधिकतम दोहन। बिना सत्ता में रहे यह संभव नहीं था। हिन्दुस्तान पर राज करने के लिए उन्होंने जिस नीति का सफलता पूर्वक संचालन किया, वह थी – फूट डालो, और राज करो। महात्मा गांधी का सत्‌प्रयास भी हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच अंग्रेजों द्वारा योजनाबद्ध ढ़ंग से निर्मित खाई को पाट नहीं सका। अंग्रेजों के समर्थन और प्रोत्साहन से फली-फूली मुस्लिम लीग की पृथक आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र की मांग, पृथक देश की मांग में कब बदल गई, कुछ पता ही नहीं चला। राष्ट्रवादी शक्तियों के प्रबल विरोध और महात्मा गांधी की अनिच्छा के बावजूद भी अंग्रेज कुछ कांग्रेसी नेताओं और जिन्ना के सहयोग से अपने षडयंत्र में सफल रहे – १९४७ में देश बंट ही गया, भारत माता खंडित हो ही गईं।

यह एक स्थापित सत्य है कि जो देश अपने इतिहास से सबक नहीं लेता है, उसका भूगोल बदल जाता है। भारत की सत्ताधारी कांग्रेस ने बार-बार देश का भूगोल बदला है। इस पार्टी को भारत के इतिहास से कोई सरोकार ही नहीं, अतः सबक लेने का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता। १९४७ में पाकिस्तान के निर्माण के साथ इस प्राचीनतम राष्ट्र के भूगोल से एक भयंकर छेड़छाड़ की गई। एक वर्ष भी नहीं बीता था, १९४८ में कश्मीर समस्या को पं. जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रसंघ में ले जाकर दूसरी बार देश का भूगोल बदला। सरदार पटेल हाथ मलते रह गए। तिब्बत पर चीनी आधिपत्य को मान्यता देकर तीसरी बार हमारे तात्कालीन प्रधान मंत्री पं. नेहरू ने १९६२ में भारत का भूगोल बदला। साम्राज्यवादी चीन से हमारी सीमा इतिहास के किसी कालखण्ड में नहीं मिलती थी। तिब्बत को चीन की झोली में डाल हमने उसे अपना पड़ोसी बना लिया और पड़ोसी ने नेफा-लद्दाख की हमारी ६०,००० वर्ग किलो मीटर धरती अपने कब्जे में कर ली।

नेहरू परिवार को न कभी भारत के भूगोल से प्रेम रहा है और न कभी भारत के इतिहास पर गर्व। इस परिवार ने सिर्फ इंडिया को जाना है और उसी पर राज किया है। इस परंपरा का निर्वाह करते हुए सोनिया जी ने मुस्लिम आरक्षण का जिन्न देश के सामने खड़ा कर दिया है। धर्म के आधार पर आरक्षण का हमारे संविधान में कहीं भी कोई प्रावधान नहीं है। मुस्लिम और ईसाई समाज स्वयं को जातिविहीन समाज होने का दावा करते हैं। उनके समाज में न कोई दलित जाति है, न कोई पिछड़ी जाति, फिर अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित वर्ग के कोटे में इन्हें आरक्षण देने का क्या औचित्य? दुर्भाग्य से हिन्दू समाज में अगड़े, पिछड़े और दलित वर्गों में सैकड़ों जातियां हैं। इसे संविधान ने भी स्वीकार किया है। इन जातियों में परस्पर सामाजिक विषमताएं पाटने के लिए संविधान में मात्र दस वर्षों के लिए आरक्षण की व्यवस्था थी। आज सोनिया और कांग्रेस हिन्दू दलितों और पिछड़ों के मुंह का निवाला छीन, मुसलमानों को देना चाहती है।

अब तो हद हो गई। सोनिया जी ने तुष्टीकरण की सारी सीमाएं तोड़ते हुए लोकपाल में भी मुस्लिम आरक्षण का प्रावधान कर दिया है। जब लोकपाल जैसी प्रमुख संस्था में धर्म के नाम पर आरक्षण दिया जा सकता है, तो सेना, पुलिस, लोकसभा, विधान सभा, चुनाव आयोग, सी.बी.आई., सी.ए.जी., सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, क्रिकेट टीम, हाकी टीम इत्यादि में क्यों नहीं दिया जा सकता? सत्ता और वोट के लिए कांग्रेस कुछ भी कर सकती है। खंडित भारत के अन्दर एक और पाकिस्तान के निर्माण की नींव पड़ चुकी है। अगर जनता नहीं चेती, तो चौथी बार भारत के भूगोल को परिवर्तित होने से कोई नहीं बचा सकता।

इस आरक्षण से यदि नेहरू परिवार का कोई सदस्य प्रभावित होता, तो आरक्षण की व्यवस्था कभी की समाप्त हो गई होती। क्या राहुल गांधी अपनी प्रतिभा के बल पर मनरेगा का जाब-कार्ड भी पा सकते हैं? किसी भी प्रतियोगिता में बैठकर एक क्लर्क की नौकरी भी हासिल करने की योग्यता है उनके पास? लेकिन वे प्रधान मंत्री पद के योग्य हैं, क्योंकि उस पद पर उनका खानदानी आरक्षण है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रतिभा का दमन सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। इसकी निगरानी कौन लोकपाल करेगा?

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