जो पकड़ा गया वह ‘चोर’ बाकी सब ‘सिकंदर’

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पुलिस विभाग का गठन वैसे तो आम जनता की सुरक्षा सुनिश्चत करने के उद्देश्य से किया गया था। परंतु अविवादित रूप से आज यह एक कटु सत्य बन चुका है कि देश का सबसे भ्रष्ट तथा रिश्वतखोर विभाग यदि कोई है तो वह है हमारे देश का पुलिस विभाग। यह बात और है कि देश के कुछ राज्यों में पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी की दर कुछ अधिक है तो कुछ राज्यों में कुछ कम। जाहिर है अपनी किसी नकारात्मक उपलब्धि के चलते वही राज्य चर्चा में भी प्रायः रहते हैं जिनकी पुलिस कुछ अधिक ही निर्भय होकर भ्रष्टाचार,रिश्वतखोरी तथा अन्य कई अनैतिक,अमर्यादित व गैर कानूनी कामों को अंजाम देत रहती है। दुर्भाग्यवश हरियाणा इस समय देश के ऐसे राज्यों में शामिल हो गया है जहां आए दिन पुलिस कर्मियों की ओर से कोई न कोई ऐसी घटना अंजाम दे दी जाती है जिसके चलते न केवल पुलिस विभाग बल्कि पूरा राज्य ही रुसवा व बदनाम होता है।

उदाहरण के तौर पर इन दिनों हरियाणा पुलिस के एक सहायक अधीक्षक तथा उसके कुछ सहयोगी पुलिस कर्मी डकैती तथा लूट जैसे गंभीर अपराधों में जेल की सलाखों के पीछे हैं। किसी अपराधी के साथ किया जाने वाला नार्को टेस्ट जैसा परीक्षण अब उस सहायक पुलिस अधीक्षक पर किए जाने का समाचार है। अशोक श्योरण नामक जिस पुलिस अधिकारी को इन दिनों लूट-खसोट के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है उसपर धीरे-धीरे और भी कई अन्य आरोप लगने के अलग-अलग स्थानों से समाचार प्राप्त हो रहे हैं। गोया यदि पानीपत का एक ज्यूलर्स अपनी हिम्मत का प्रदर्शन करते हुए श्योरण के लूट कांड का भंडा फोड न करता तो संभवतः वह अभी भी न केवल पुलिस क ी गिरफ्त से बाहर होता बल्कि डयूटी पर होते हुए अपनी ऐसी योजनाओं को पूर्ववत् कहीं और अंजाम दे रहा होता। यहां एक सवाल यह जरूर उठता है कि आखिर पुलिस विभाग पर बदनुमा दाग समझे जाने वाले ऐसे पुलिस अधिकारियों के प्रेरणास्त्रोत कौन लोग होते हैं। लूट-खसोट तथा पैसे को ही अपना धर्म ईमान तथा अपने जीवन की सबसे बडी कमाई समझने वाले ऐसे भ्रष्ट पुलिसकर्मी आखिर किन परिस्थितियों में पहुंच कर धनार्जन को ही अपने जीवन का तथा अपने सेवाकाल का एक मात्र लक्ष्य मानने लग जाते हैं। इस विषय पर गहन अध्ययन करने हेतु हमें कुछ ऐसी कडवी सच्चाईयों से रूबरू होना पडेगा जो न केवल अमिट सत्य है बल्कि संभवतः इनसे निजात पाना भी इतना आसान नजर नहीं आता।

पैसा आज हर एक व्यक्ति की केवल आवश्यकता ही नहीं बल्कि परम आवश्यकता बन चुका है। जाहिर है पुलिस वालों की भी। वर्दीधारी इस अनुशासित समझे जाने वाले विभाग में यदि कोई उच्चाधिकारी भ्रष्टाचार में सराबोर होता है तो उसके अधीनस्थ पुलिस कर्मी व पुलिस अधिकारी ही उसके भ्रष्ट नेटवर्क के कलपुर्जे होते हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि उस भ्रष्ट नेटवर्क में यदि सौभाग्यवश कोई ऐसा व्यक्ति है जो रिश्वत,भ्रष्टाचार या लूटमार के पैसों पर अपना अधिकार समझने के बजाए अपनी मेहनत की कमाई से मिलने वाली मासिक आय को ही अपने व अपने परिवार के खर्च के लिए उत्तम समझता है तो भ्रष्टाचारी नेटवर्क उस ईमानदार सदस्य को अक्षम,बेवकूफ,निकम्मा तथा अपने लूट-खसोट जैसे कार्यकलापों म अडंगा समझता है। प्रायः ऐसे ईमानदार पुलिस कर्मियों को भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों के रोष का भी किसी न किसी प्रकार सामना करना होता है।

शासकीय राज काज के संचालन में एक कथन बहुत प्रचलित है कि मातहत अपने प्रमुखों के स्वभाव व शैली को देखकर अपने काम करने के रंगढंग निर्धारित करते हैं। गोया मातहत कर्मियों को इस बात का भलीभंति ज्ञान होता है कि उनका बॉस क्या चाहता है। ‘कामञ या ‘दामञ। बात यहां पुलिस विभाग की हो रही है। कल्पना कीजिए कि यदि प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जैसी प्रदेश की एकमात्र एवं विभाग की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठा व्यक्ति भी भ्रष्ट हो तथा भ्रष्टाचार के नायाब फार्मूलों

पर अमल करते हुए मोटी धनराशि वसूल कर रहा हो तो उसके मातहत अन्य पुलिस अधिकारियों व कर्मियों से क्या उम्मीद की जा सकती है। आईए आपको हरियाणा राज्य के ही एक ऐसे पूर्व पुलिस महानिदेशक की एक ऐसी लीला सुनाते हैं जिसने रिश्वत तो खूब ली परंतु संभवतःउसपर रिश्वतखोरी का आरोप जनता की ओर से कभी नहीं लग सका। इसका कारण यह था कि उक्त डी जी पी ने अपने ‘ज्ञानञ व ‘सूझबूझञ का प्रयोग अपने पेशे के प्रति ईमानदारी बरतने की ओर करने के बजाए धनसंग्रह करने पर केंद्रित कर दिया था। इस डी जी पी का एक पुत्र पेशे से वकील था। जब राज्य के किसी जिले की पुलिस से संबंधित कोई समस्या उक्त डी जी पी के दरबार में पहुंचती तुरंत उस डीजी पी की ओर से कोई भी बिचौलिया व्यक्ति पीडित परिवार को डीजीपी के एडवोकेट पुत्र का रास्ता बता देता। उधर ‘वकील साहबञ अपनी कानूनी भाषा का प्रयोग करते हुए पीडित परिवार की ओर से कोई सिफारशाी पत्र अथवा नोटिस रूपी कोई चिट्ठी बना कर राज्य के संबंधित पुलिस अधीक्षक को पीडित परिवार के हाथों भेज देते। चिट्ठी देखते ही पुलिस अधीक्षक महोदय यह समझ जाते कि पीडित द्वारा डी जी पी के कार्यालय पर दस्तक दे दी गई है तभी उनके सुपुत्र ने चिट्ठी लिखने का कष्ट उठाया है। इस चिट्ठी के लिखने तथा इसे पीडित परिवार के सुपुर्द करने के बदले काम की गंभीरता व उसकी अहमियत के अनुरूप धनराशि का लेन देन ‘वकील की फीसञ के रूप में पहले ही कर लिया जाता था। अब जरा सोचिए कि जब किसी राज्य का डीजी पी ऐसे सुगम उपायों के माध्यम से धन ऐंठने लग जाए तो जाहिर है यही पैसा किसी और अधिकारी या पुलिस कर्मी को क्योंकर बुरा लगेगा।

ऐसे ही एक आई पी एस अधिकारी हरियाणा में ही तैनात थे जो अपने पुत्र को हरियाणा नहीं बल्कि पंजाब में सब इंस्पेक्टर भर्ती कराना चाहते थे। जब उनसे उनके मित्रों द्वारा यह पूछा जाता कि आप अपने बेटे को हरियाणा पुलिस के बजाए पंजाब पुलिस में क्यों भर्ती कराना चाहते हैं इसपर उनका दो टूक जवाब यह होता कि पंजाब में हरियाणा की तुलना में अधिक कमाई होती है। खबर है कि उक्त पुलिस अध्किारी का तो देहांत हो गया परंतु उसने अपने एक पुत्र को हरियाणा में ही सब इंस्पेक्टर बनवा दिया है। देखिए अपने पिता से रिश्वत खोरी की शिक्षा प्राप्त कर चुका उसका यह सब इंस्पेक्टर पुत्र आने वाले समय में क्या गुल खिलाएगा तथा हरियाणा पुलिस का नाम कितना रोशन करेगा। गौरतलब है कि इस पुलिस अधिकारी पर उसकी सेवाकाल के दौरान भ्रष्टाचार के कई मामले भी चल रहे थे।

इसी प्रकार एक और आई पी एस अधिकारी के एक हैरत अंगेज कारनामे ने पूरे देश की पुलिस की साख पर ही बट्टा लगाने का जबरदस्त प्रयास किया था। इस अधिकारी द्वारा महंगी ड्रग्स की एक बडी खेप अपराधियों व तस्करों के कब्जे से पकडी गई। इस अधिकारी ने पहले तो इस छापेमारी तथा नशीली सामग्री की बरामदगी का श्रेय लेकर खूब वाहवाही लूटी। इसके पश्चात इसी अधिकारी ने जब्त किए गए नशीले सामान की आधी से अधिक खेप नशीली वस्तुओं के बाजार में बेचने हेतु अपने ही विभागीय पुलिस कर्मी के हाथों मुंबई भेज दी। जब वह सिपाही इस नशीली सामग्री के साथ पुलिस के हत्थे चढा तब उसने अपनी जान बचाने हेतु अपने बॉस आई पी एस अधिकारी का नाम लिया तथा विस्तारपूर्वक सारा अपराध कुबूल किया। संभवतः वह आई पी एस अधिकारी भी अभी भी जेल की सलाखों के पीछे ही है।

अब रहा सवाल सब इंस्पेक्टर तथा थानेदार या सिपाहियों व हवलदारों की रिश्वतखोरी क ा,तो यह एक मामूली व आम बात कही जा सकती है। किसी पूर्व थानेदार या हवलदार अथवा निरीक्षक की उसकी सेवाकाल के दौरान अर्जित की गई धन संपत्ति,उसके भव्य आवास,प्लाट व मकान आदि को देखकर आसानी से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसने अपनी पुलिस सेवा के दौरान कितनी ‘सेवाञ जनता की की है तथा जनता ने कितनी ‘सेवाञ उस पुलिस कर्मी की की है। जो भी हो निचले स्तर पर पुलिस सुधार की बातें करने से पहले उच्च पुलिस अधिकारियों को नैतिकता,कर्तव्यपरायणता तथा ईमानदारी का पाठ पढाना जरूरी है। अन्यथा भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे इस विभाग में तो यही होता आ रहा है कि जो पकडा गया वह चोर बाकी सब सिकंदर।

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