वे कौन हैं, जो नीरा राडिया की बातों को संदेह से नहीं देखते?

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अविनाश दास


नीरा राडिया के पूरे प्रकरण में हमारे कुछ मित्रों की दलील है कि वह जिस पेशे और भूमिका में थी, उसने वही किया, जो उसे करना चाहिए था। वह कंपनियों का जनसंचार संभालती थी और राजनेताओं से लेकर पत्रकारों तक से उसके रिश्‍ते थे। वह सबसे बात करती थी और अपनी कंपनी के हित में काम करवाती थी। इस पूरे कार्य-व्‍यापार में ऐसी कौन सी सनसनी है, जिस पर इतना हंगामा है। पीआर डिपार्टमेंट तो सरकारी विभागों के भी होते हैं, राजनीतिक पार्टियों के भी होते हैं। पीआर की पढ़ाई वाले संस्‍थान तक हैं – फिर राडिया की पीआरशिप को मोरल प्‍लैंक पर क्‍यों घेरा जा रहा है?

दूसरी दलील यह है कि मीडियाकर्मियों से उसकी बातचीत में मीडियाकर्मियों को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए – क्‍योंकि सिर्फ बातचीत के आधार पर किसी को आप विक्टिमाइज नहीं कर सकते। हम सब अपने जीवन में सैकड़ों लोगों से हजार तरह की बातें करते हैं और उन बातों में पड़ोसी से लेकर राजनीतिक दिग्‍गजों के बारे में पछाड़-उखाड़ के पहलू होते हैं। तो क्‍या हम सब करप्‍ट हैं और क्‍या उन बातों के आधार पर हमें हमारी पेशेवर जिम्‍मेदारियों से मुक्‍त हो जाना चाहिए?

हमारे मित्र तीसरी दलील नहीं देते बल्कि कहते हैं कि जिन मीडिया संस्‍थानों ने इस प्रकरण के टेप जारी किये हैं और इसमें मीडिया की भूमिका को लेकर अचंभित है और इसे मीडिया इतिहास का एक काला अध्‍याय बता रहे हैं – उनकी भूमिका पर सबसे पहले शक करना चाहिए। क्‍योंकि एक तो वे गिन-चुन कर ही टेप क्‍यों जारी कर रहे हैं, दूसरे जितने भी टेप सार्वजनिक किये जा रहे हैं, उनमें कांग्रेस नेताओं के नाम क्‍यों नहीं हैं और तीसरे ये कि उन मीडिया संस्‍थानों पर इसलिए भी शक किया जाना चाहिए, क्‍योंकि उनके मालिकानों के रिश्‍ते कांग्रेस से हैं।

ये सारे सवाल 2G Spectrum मामले की जद में चीजों को नहीं देखने और तमाम घटनाओं को अलग अलग आंकने की वजह से खड़े किये जा रहे हैं – साथ ही इसके पीछे यथास्थितिवाद को कायम रखने की समझदारी भी काम कर रही है। बहुत मामूली बात है कि नीरा राडिया के टेप के जरिये 2G Spectrum का जो मामला हमारे सामने है, वह यूपीए सरकार के कार्यकाल की उपलब्धि है और इससे कांग्रेस सहित उसके तमाम घटक दलों की साख संकट में है। भ्रष्‍टाचार के इस कलिकाल में तीसरी बार है, जब कांग्रेस बुरी तरह फंसी है। इमरजेंसी से पहले, बोफोर्स और अब 2G – ऐसे में खेल अब विपक्ष के पाले में है। खेल को यहां से देखने की कोशिश का कोई मतलब नहीं है कि टेप लीक कैस हुए और इतने ही टेप लीक क्‍यों हुए।

रही बात नीरा राडिया के कार्य-व्‍यापार की, तो जहां तक उनकी काम-कथा कंपनियों के हित में नीतियों को प्रभावित करने, खबरें छपवाने तक सीमित होगी, वहां तक तो कोई समस्‍या ही नहीं है और न ही कोई सवाल है। सवाल ये है कि वो सरकार में एक मंत्री को फिट करवाना चाहती हैं और अंतत: करवा लेती हैं। इस काम में वो पत्रकार की मदद लेती हैं और वे पत्रकार, जो नीरा से उनकी कंपनी और सरकारी नीतियों में उतार-चढ़ाव की खबरें शेयर करते होंगे, इस काम में टूल बनते हैं। भले बरखा दत्त ऑनस्‍क्रीन यह कहती हुई नजर आएं कि मैं तो नीरा को भरमा रही थी, झूठ बोल रही थी। आप बेशक झूठ बोल रही होंगी बरखा, लेकिन हम आपकी इस बात का भरोसा क्‍यों करें – जबकि कोइंसीडेंट में वो सारे खेल होते हुए दिख रहे हैं, जिसका व्‍यूह आपकी बातचीत में बनता हुआ दिख रहा था।

इस सवाल में भी कोई दम नहीं है कि ओपेन और आउटलुक के मालिक-मुख्‍तार कांग्रेस के करीबी हैं। हैं, होंगे – तब अगर कांग्रेस के नेतृत्‍व में चलने वाली सरकार के भ्रष्‍टाचार की पोलपट्टी वे खोल रहे हैं – तो इसकी व्‍याख्‍या आप कैसे करेंगे। व्‍याख्‍या कर भी लें और ओपेन और आउटलुक को कठघरे में खड़ा कर भी दें, तो आज लगभग सारे मीडिया हाउस किसी न किसी राजनीतिक पार्टी को लेकर अपनी अपनी प्रतिबद्धताओं के साथ मौजूद हैं। इसका मतलब तो यह हुआ कि मौजूदा मीडिया पूरी तरह से राजनीति और कॉरपोरेट्स के औजार के रूप में काम कर रहे हैं और हर खबर के पीछे खेल है। अगर ऐसा है, तो इस मीडिया को एक्‍सपोज हो जाना चाहिए और इसकी विश्‍वसनीयता को सड़क पर रेंगते हुए दिखना चाहिए।

अब आते हैं जेपीसी की बात पर। हमारे कुछ पत्रकार साथी यह दलील देते हैं कि जेपीसी पहले भी गठित हुए और उसका कोई खास परिणाम नहीं आया है। इसलिए विपक्ष के इस हंगामे का विरोध करना चाहिए और संसद को चलने देना चाहिए। तो सवाल ये नहीं है कि 2G Spectrum मामले में जेपीसी गठित होगी और वह कोई न्‍याय कर पाएगी और मामले का दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी। सवाल ये है कि जेपीसी के अलावा वह कौन सी दूसरी जांच प्रक्रिया होगी, जिसको लेकर हम इत्‍मीनान हों कि सरकार उसे प्रभावित नहीं करेगी। लगभग सारी जांच एजेंसियों का इस्‍तेमाल सरकार टूल की तरह करती है, यह कोई नयी बात नहीं है। जेपीसी में कम से कम इतना तो होगा ही कि प्रतिपक्ष को भी जांचदल में जगह मिलेगी और तब किसी तीसरे के संदेह को उतना महत्‍व नहीं दिया जा सकेगा कि जांच एकतरफा हो रही है।

खैर, उम्‍मीद है कि हमारे साथी कुछ और दलील लेकर आएंगे और हम अपनी बात को एक बार फिर साफ करने की कोशिश करेंगे।

संदर्भ लिंक्‍स : स्पेक्ट्रम घोटाले में OPEN की भूमिका संदिग्ध, सत्ता की दलाली के संकेत!
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  1. har lekh ke upar ye subscribe ka patti aa kar preshan karta hai ! jab tak ye hatta hai tab tak bahut galiyan de chuka hota hun.

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