ये मनमोहन से छुट्टी व राहुल की ताजपोशी की चाल तो नहीं

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तेजवानी गिरधर

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति पद के लिए अचानक तीन नाम सुझा कर पिछले एक पखवाड़े से वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी पर हो रही सहमति की अटकलों को नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। हालांकि उनके इस पैंतरे को कांग्रेस की रणनीति व सोनिया गांधी के प्रणब के प्रस्ताव को झटका दिए जाने के रूप में ही देखा जा रहा है, मगर राजनीति के कुछ जानकारों को इसमें गहरी चाल नजर आती है, जिस पर किसी की नजर एकाएक नहीं पड़ रही। वो ये है कि एक ओर सोनिया गांधी कमजोर व बेबस स्थापित हो चुके मनमोहन सिंह से छुट्टी पाना चाहती हैं, दूसरा आगामी चुनाव से पहले राहुल गांधी का रास्ता साफ करना चाहती हैं।

हालांकि कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद के लिए अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की थी, मगर पिछले तकरीबन एक पखवाड़े से पूरा मीडिया चिल्ला-चिल्ला कर यही कहता रहा कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी दौड़ में सबसे आगे निकल गए हैं और उन्हीं पर सहमति होने की पूरी संभावना है। हालांकि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी. ए. संगमा, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, मौजूदा उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी सरीखे और नाम भी अबाबीलों की तरह आसमान में तैर रहे थे, मगर सभी की नजर प्रणब पर ही टिकी हुई थी। हालत ये हो गई थी कि मीडिया भी उनको सबसे उपयुक्त व पात्र राष्ट्रपति के रूप में स्थापित करने में जुट गया था और उनकी विशेषताओं का बखान इस रूप में कर रहा था कि मानो वे राष्ट्रपति बन ही गए हैं। ऐसे में यदि ममता बनर्जी दिल्ली जा कर मुलायम के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर प्रणब व हामिद अंसारी के नामों को खारिज करते हुए तीन नए नामों अब्दुल कलाम, डॉ. मनमोहन सिंह व सोमनाथ चटर्जी का प्रस्ताव रखा तो मानो भूचाल ही आ गया। कांग्रेस व सोनिया चारों खाने चित्त हुई हो या नहीं, मीडिया को जरूर झटका लग गया। यह झटका संभाले नहीं संभल रहा था, तो उसमें कई पेचों पर अटकलबाजियां शुरू कर दीं। प्रचारित यही किया गया कि दीदी ने सोनिया के दादा के प्रस्ताव को नकार कर बहुत बड़ा झटका दे दिया है, मगर सवाल ये है कि जब कांग्रेस ने प्रणब का नाम घोषित किया ही नहीं था तो झटका कैसा? ये झटका इस अर्थ में जरूर माना जा सकता है कि ममता ने ही खुलासा कर दिया कि सोनिया की नजर में प्रणब और अंसारी उपयुक्त हैं, मगर उनकी पसंद कुछ और है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि दो बड़े दिग्गजों की मुलाकात यूं ही हवा में नहीं होती, उससे पहले धरातल पर सब कुछ तय किया जाता है। मुलाकात तो औपचारिक ही होती है। ऐसे में यह बात गले नहीं उतरती कि सोनिया ने ममता को यूं ही बुला कर अपने नामों पर फजीहत जानबूझ कर करवाई होगी। जरूर इसके पीछे कोई राज है। वो इसलिए भी कि सोनिया से मुलाकात के बाद ममता यकायक मुलायम सिंह के पास गईं और मंत्रणा करने के बाद बाहर आ कर प्रेस कांफ्रेंस कर डाली। ऐसा लगता नहीं कि यह सारा घटनाक्रम बिना सोचे समझे हो गया होगा। इसकी खिचड़ी पहले से ही पक रही होगी। प्रेस कांफ्रेंस में ममता व मुलायम की बाडी लेंग्वेज ही बता रही थी कि वे किसी गहरी चाल का हिस्सा हैं, वरना राष्ट्रपति जैसे गरिमापूर्ण पद के लिए नामों को इस प्रकार खारिज करने और नए नामों को उछालने की हरकत बचकानी ही है।

बहरहाल, ताजा घटनाक्रम का ये अर्थ भी निकाला जा रहा है कि सोनिया गांधी एक तीर से दो निशाने करना चाहती थीं। एक तो ये कि लोकसभा चुनाव से कुछ पहले मनमोहन सिंह से किनारा करना बेहद जरूरी हो गया था। आपको याद होगा कि पिछली बार भाजपा ने मनमोहन सिंह को कमजोर और लाल कृष्ण आडवाणी को लोहपुरुष बता कर चुनाव लड़ा था और चाहे विपक्ष की फूट या चाहे कांगे्रस की जुटता अथवा मनमोहन सिंह की साफ सुथरी छवि के कारण भाजपा की चाल कामयाब नहीं हो पाई। मगर इस बार मनमोहन सिंह का अब तक कार्यकाल रहा ही ऐसा कि वे अब तक के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित हो चुके हैं। अब उसके लिए विपक्ष को अपनी ओर से ऐसा प्रोजेक्ट करने की जरूरत भी नहीं रह गई है। हालांकि आगामी चुनाव में कांग्रेस की वापसी की संभावना कम ही है, मगर ऐसे कमजोर प्रधानमंत्री के बूते पर तो कम से कम कांग्रेस दाव खेलना नहीं चाहती। जाहिर है दूसरा नाम आगे लाना होगा, तो सोनिया कभी नहीं चाहेंगी कि राहुल को छोड़ कर फिर प्रणब दा सरीखे किसी सीनियर के चेहरे पर वोट मांगे जाएं। आखिर राहुल को ताजपोशी के लिए फिर नए पांच साल इंतजार थोड़े ही करवाया जाएगा, तब तक तो वे पूरी तरह से खारिज टोटा हो जाएंगे। खारिज भले ही अब भी हो जाएं, मगर कम से कम चुनाव लड़ कर तो शहीद होंगे। खाट पर पड़े पड़े शहीद करवाने से तो ये बेहतर होगा। शहीद हो भी जाएं, मगर कम से कांग्रेस की कमान तो उनके हाथों में सौंप दी जाएगी। ऐसे में सोनिया के लिए बेहतर यही था वे प्रणब अथवा मनमोहन सिंह में से किसी को राष्ट्रपति बनवा दें। सोची समझी चाल के तहत पहले प्रणब को निबटाने की रणनीति बनाई गई होगी और जिसे निबटाना होता है, उसी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। चुनाव आते आते उसकी पूरी कार सेवा हो जाती है। आखिर हो ही गई, ममता व मुलायम के हाथों। वैसे भी वे कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में वोट दिलाने लायक नहीं रहे, जहां कि ममता ने कब्जा कर लिया है। मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाने पर कम से कम पंजाबी बिरादरी का तो साथ मिल ही सकता है। रहा सवाल मनमोहन से छुटकारा पाने का तो वैसे भी आगामी चुनाव उनके नेतृत्व में न लड़े जाने का घोषित निर्णय ही यह साबित कर देगा कि विपक्ष उनके बारे में सही ही कह रहा था कि वे नकारा प्रधानमंत्री थे। तब तो वोट मांगना और भी कठिन हो जाएगा। तो सवाल ये कि मनमोहन सिंह से छुटकारा कैसे पाया जाए? इसका सबसे आसान तरीका ये हो सकता है कि उन्हें राष्ट्रपति बना दिया जाए, ताकि उनकी फजीहत भी न हो और राहुल की राह भी आसान हो जाए। एक बात और गौर करने लायक है, वो ये कि प्रणब को राष्ट्रपति बनाने पर एक तो सरकार के सबसे बड़े संकटमोचक से हाथ धोना पड़ता है और दूसरा ये कि मनमोहन सिंह से छुटकारा पाने का मौका हाथ से जाता है।

अब सवाल आता है प्रणब की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी और आगामी चुनाव में उनके नेतृत्व में चुनाव लडऩे का तो उसमें सबसे बड़ा फच्चर ममता ही लगा देने वाली हैं। जो ममता प्रणब को राष्ट्रपति बनाने को तैयार नहीं हैं, क्या वे उन्हें प्रधानमंत्री बनाने पर राजी हो जायंगी? तो फिर प्रधानमंत्री कौन होगा? जाहिर सी बात है राहुल का नाम आगे कर दिया जाएगा। जहां तक कलाम, मनमोहन सिंह व चटर्जी के नामों का सवाल है, जाहिर तौर पर कांग्रेस कलाम व चटर्जी के लिए कत्तई सहमत नहीं होगी।

ताजा-ताजा समीकरणों से तो यही लगता है कि प्रणव के राष्ट्रपति बनने की संभावना लगभग खत्म हो गई है। सोनिया गांधी वामपंथियों को पटा कर मुलायम-ममता को हाशिये पर डालने की जोखिम उठाए तो और बात है। देखने वाली बात ये भी होगी कि कहीं प्रणब, अंसारी, कलाम, मनमोहन सिंह व चटर्जी के रूप में उभरे पांच दावेदारों के अलावा भी कोई नाम है, जो कि आखिरी वक्त में सामने आता है।

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