कौन है कर्जमाफी में हुर्इ गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार

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loanनियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने भ्रष्टाचार के मामले में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (सप्रंग) सरकार को पुन: कठघरे में खड़ा कर दिया है। पूर्व में 2 जी स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लाक आवंटन के मुद्दे पर सीएजी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर हंगामा हो चुका है। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष, 2008 में 52260 करोड़ रुपये की कर्जमाफी योजना के कि्रयान्वयन में कुछ गड़बडि़याँ हुर्इ हैं। उल्लेखनीय है कि सप्रंग सरकार ने इस योजना के तहत 37.3 मिलियन किसानों को लाभ पहुँचाने का दावा किया था और अमूमन इसी वजह से सत्ता में वह दुबारा काबिज हो सकी थी। उक्त रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बैंकों के द्वारा वैसे किसानों का भी कर्ज माफ किया गया, जो वास्तव में उसके हकदार नहीं थे, वहीं कुछ पात्र किसानों का कर्ज माफ नहीं हो सका। सीएजी का मानना है कि इस मामले में बैंकों के द्वारा लापरवाही बरती गर्इ है। ज्ञातव्य है कि सीएजी ने कर्जमाफी वाले 22.32 प्रतिशत खातों की जाँच की और पाया कि उनमें से 8.5 प्रतिशत खातों में किसी न किसी स्तर पर गड़बडि़याँ हैं। बता दें कि सीएजी ने कर्जमाफी वाले 90576 खातों की जाँच की थी, जिसमें से 19900 खातों में गड़बड़ी पार्इ गर्इ। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में बैंककर्मियों पर दस्तावेज के साथ छेड़छाड़ करने, बेजा फायदा देने के लिए नकली दस्तावेज का उपयोग करने एवं कर्जमाफी के उपरांत प्रमाण पत्रों के वितरण में घालमेल करने का आरोप लगाया है। इस मामले में भारतीय स्टेट बैंक, आर्इसीआर्इसीआर्इ बैंक, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया, श्री गुरुसिद्धेष्वर बैंक, सिमशा सहकारी बैंक आदि में सबसे अधिक अनियमितता बरते जाने की बात सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कही है। इसके बरक्स यदि राज्यों की बात करें तो मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और मणिपुर में इस तरह की गडबड़ी बड़े पैमाने पर हुर्इ है।

बैंकों के अलावा सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कर्जमाफी प्रकि्रया की निगरानी रखने वाली संस्था वित्तीय सेवाओं का प्रभाग (डीएफएस) की महज आलोचना भर की है। सीएजी ने कहा है कि डीएएफएस ने कर्जदाताओं द्वारा कर्जमाफी के पात्र लाभुकों की सूची की अपने स्तर पर जाँच नहीं करवार्इ। डीएएफएस द्वारा मुकर्रर नोडल एजेंसियाँ मसलन, रिजर्व बैंक और नाबार्ड ने कर्जदाता संस्थानों द्वारा उपलब्ध करवाये गये प्रमाण पत्रों व आंकड़ों पर आँख मूँदकर भरोसा किया।

ध्यान देने योग्य बात है कि सहकारी बैंकों के मामले में सीएजी की आपत्तियाँ ज्यादा हैं, लेकिन इस मामले में रिजर्व बैंक, नाबार्ड और डीएएफएस की भूमिका भी संदेह से परे नहीं है। यह इससे भी साबित होता है कि सहकारी बैंकों के 335 करोड़ के दावे को रिजर्व बैंक, नाबार्ड और डीएएफएस ने बिना जाँच-पड़ताल के स्वीकार कर लिया। पुनष्च: इसी नक्षेकदम पर एक सूक्ष्म वित्तीय संस्थान (एमएफआर्इ) के 164 करोड़ रुपये के कर्ज को माफ कर दिया गया, जबकि इस तरह के दावे की सत्यता को परखना आव्यशयक था।

आज सीएजी के रिपोर्ट पर पूरे देश में जबर्दस्त बवाल मचा हुआ है। विपक्ष कर्जमाफी के कि्रयान्वयन में हुर्इ गलतियों के लिए सरकार को घेरने में लगा हुआ है। भाजपा, जदयू, वाम दल, बसपा, बीजद, षिव सेना, तेदपा, जनता दल (एस) एवं अन्यान्य विपक्षी पार्टियाँ इस मुद्दे पर एक साथ खड़ी हैं। सभी एक स्वर में इस कथित घोटाले के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवार्इ की माँग कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता श्री प्रकाश जावडे़कर ने अपने एक बयान में कहा कि कर्जमाफी के नाम पर करोडों रुपये का घोटाला हुआ है। भाजपा नेत्री श्रीमती सुषमा स्वराज का कहना है कि कर्जमाफी योजना के कि्रयान्वयन में गड़बड़ी करने वाले एवं उसे छुपाने वाले अंकेक्षकों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवार्इ करने की जरुरत है। भाजपा के ही नेता श्री रवि शंकर प्रसाद का कहना है कि यह स्पष्ट तौर पर घोटाला है, जो बैंकों ने बिचौलियों के साथ मिलकर किया है। विपक्ष के हमले के असर को कम करने के लिए प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने आष्वासन दिया है कि इस रिपोर्ट को लोक लेखा समिति (पीएसी) को सौंप दिया जाएगा, ताकि मामले की उचित जाँच हो और दोषियों के विरुद्ध कार्रवार्इ की जा सके। गौरतलब है कि कृषि मंत्री श्री शरद पवार प्रधानमंत्री श्री सिंह और विपक्ष के विचारों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। श्री पवार का मानना है कि कर्जमाफी योजना के मामले में कोर्इ गबन नहीं हुआ है। उनका मानना है कि गड़बड़ी सीएजी द्वारा किए गये अंकेक्षण के तौर-तरीकों में अंर्तनिहित है। इसलिए सीएजी को पूरे मामले की व्यापक पैमाने पर अंकेक्षण करने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए।

सीएजी की रिपोर्ट तो अब संसद के पटल पर रखी गर्इ है, लेकिन मैं विगत वर्षों में कर्जमाफी में हुर्इ गड़बड़ी का जिक्र अपने आलेखों में गाहे-बगाहे करता रहा हूँ। इसमें दो राय नहीं है कि कर्जमाफी योजना के कि्रयान्वयन में अनियमतता बरती गर्इ है।

भ्रष्ट बैंककर्मियों के द्वारा जानबूझ करके लाभार्थियों की सूची में हेर-फेर करने के कुछ मामले भी प्रकाश में आये हैं। परन्तु इस वास्तविकता के साथ यह भी सच है कि इस मामले में गड़बड़ी के लिए सिर्फ बैंककर्मियों को ही दोषी नहीं माना जा सकता। यहाँ पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि कर्जमाफी में हुए गड़बड़ी के लिए बैंककर्मियों के अलावा दूसरे दोषी कौन से लोग हैं?

इस बाबत मजेदार बात यह कि इससे जुड़े सभी लोग आज अपने दामन को बेदाग साबित करने की कवायद में लगे हैं और गड़बड़ी का ठीकरा केवल बैंक अधिकारियों पर फोड़ा जा रहा है। रिजर्व बैंक, नाबार्ड, डीएएफएस और वित्त मंत्रालय अपने को र्निदोश बता रहा है। यहाँ यह बताना जरुरी है कि कर्जमाफी की प्रकि्रया को अमलीजामा पहनाने के क्रम में किसी प्रकार की कोर्इ विसंगति न रहे इसकी जिम्मेवारी डीएफएस को दी गर्इ थी। पुनष्च: डीएफएस ने रिजर्व बैंक और नाबार्ड को नोडल एजेंसी बनाया था, जिसका काम था, कर्जमाफी की पूरी प्रकि्रया पर निगाह रखना। इन दोनों एजेंसियों को जुलार्इ, 2008 तक प्रतिदिन कर्जमाफी की प्रकि्रया का मूल्याकंन करना था और उसके बाद साप्ताहिक।

बैंकों द्वारा कर्जमाफी के लाभार्थियों की सूची से संबंधित आंकड़ों को जाँच हेतु नाबार्ड एवं रिजर्व बैंक के समक्ष रखा गया। अंकेक्षकों ने भी उसका अंकेक्षण किया। बावजूद इसके गड़बड़ी हुर्इ। ऐसे में नोडल एजेंसियों और डीएफएस को कैसे क्लीन चिट दिया जा सकता है? इसी क्रम में सप्रंग सरकार की भूमिका को भी पाक-साफ नहीं माना जा सकता है। सरकार का उद्देष्य किसानों का कल्याण करना नहीं था। वह तो महज कर्जमाफी के द्वारा 2009 में होने वाले आम चुनाव में फायदा उठाना चाहती थी। इसलिए उसकी प्राथमिकता थी योजना के आनन-फानन कि्रयान्वयन को सुनिषिचत करना। इस जल्दीबाजी में उसने इस पहलू पर गौर करना जरुरी नहीं समझा कि उसके तंत्र योजना को मूत्र्त रुप देने में सक्षम हंै या नहीं। अफरातफरी में हालात इतने बदतर हो गये कि वित्त मंत्रालय, डीएफएस और रिजर्व बैंक को योजना की शत्र्तों में कर्इ बार बदलाव करना पड़ा। परिणामस्वरुप रिजर्व बैंक को कर्जमाफी की शर्तों को अंतिम रुप से तय करने के क्रम में कर्इ बार संशोधित परिपत्र निकालने पर मजबूर होना पड़ा। इस वजह से बैंकों में कर्जमाफी से जुड़े अधिकारी अंतिम समय तक ऊहापोह में रहे। सही दिशा-निर्देश के अभाव में शाखा स्तर पर कनफ्यूजन का माहौल कायम रहा।

शाखा में कार्यरत बैंक अधिकारी एक तरफ अंतिम समय तक दूसरी शाखाओं एवं प्रशासनिक कार्यालयों से कर्जमाफी की शर्तों को समझने की कोशिश कर रहे थे, तो दूसरी तरफ बैंक के रुटीन कार्यों को भी कर रहे थे। रोज उन्हें देर रात तक शाखा में बैठकर काम करना पड़ रहा था। इस कसरत में दिन का चैन और रात की नींद हराम हो चुकी थी उनके लिए। शारारिक थकान एवं मानसिक दवाब की सिथति में कर्जमाफी के लाभुकों की सूची तैयार करने में मानवीय भूल का होना लाजिमी था। लिहाजा समग्र रुप से देखा जाये तो मानवीय भूल के मुकाबले जानबूझकर कर्जमाफी में की गर्इ गड़बडि़यों के मामले नगण्य हैं।

बीते सालों में सरकारी योजनाओं को लागू करवाने के चक्कर में बैंकों में काम का दवाब बहुत ज्यादा बढा है। मानव संसाधन और अन्यान्य आव्यशयक तंत्रों के अभाव में सभी सरकारी योजनाओं को सफलता पूर्वक लागू करने में बैंक असफल है। अगर अन्य सरकारी योजनाओं का भी कर्जमाफी योजना के तर्ज पर सीएजी द्वारा अंकेक्षण करवाया जाये तो कर्इ तरह की विसंगतियाँ हमारे सामने आयेंगी। सच कहा जाये तो आज बैंकों में मानव संसाधन की कमी के कारण बैंक अधिकारी बदतर जिंदगी जीने के लिए अभिशप्त हैं। वर्तमान परिवेश में बैंक में अधिकारी औसतन 12 घंटे काम कर रहे हैं, फिर भी उनका काम समाप्त नहीं हो पाता है। इस जद्दोजहद में परिवार एवं समाज से उनकी दूरी लगातार बढ़ती जा रही है।

सीएजी की रिपोर्ट आने के बाद वित्त मंत्रालय कर्जमाफी के 3.76 करोड़ लाभार्थियों के खातों का अंकेक्षण करवाने की बात कह रहा है। सभी खातों की विस्तृत रिपोर्ट देने के निर्देश बैंकों को दिये गये हैं। अपात्र किसानों का कर्जमाफ करने वाले मामलों में बैंकों को कहा गया है कि वे माफ की गर्इ राषि की वसूली करें, अन्यथा बैंक प्रमुख इसके लिए व्यकितगत रुप से जिम्मेदार होंगे। बैंकों को यह भी कहा गया है कि वे अपनी आंतरिक प्रणाली को मजबूत बनायें। सीएजी और डीएफएस मिलकर सभी खातों की समीक्षा करेंगे और इस पूरी प्रकि्रया को 6 महीनों के अंदर पूरा किया जाएगा। क्या वित्त मंत्रालय के ताजा निर्देश व्यवहारिकता की कसौटी पर खरे उतरने लायक हैं ? निषिचत तौर पर इसका उत्तर नहीं है, क्योंकि ऐसा करना मानवीय तौर पर कदापि संभव नहीं है। लगता है सरकार फिर से पहले वाली गलती दुहराने पर आमादा है।

इसके अलावा सरकार दोषी अंकेक्षकों पर कार्रवार्इ करने की तैयारी कर रही है। गड़बड़ी के लिए दोषी बैंककर्मियों पर एफआर्इआर दर्ज किया जाएगा। साथ ही, संबंधित बैंक की सर्विस नियमावली के तहत उनके खिलाफ कार्रवार्इ की जाएगी। नि:संदेह दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवार्इ किया जाना अति आव्यशयक है। बिना सबक सिखाये भ्रष्टाचारी सुधरने वाले नहीं हैं।

वैसे भारतीय स्टेट बैंक में इस योजना के लाभ से वंचित ऋणियों को आज भी उसका लाभ दिया जा रहा है। साथ ही, दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवार्इ भी की जा रही है। ध्यातव्य है कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत या शिकायत कोषांग के मंच पर उक्त योजना से वंचित ऋणी फरियाद कर रहे हैं और उनको न्याय भी मिल रहा है।

पड़ताल से स्पष्ट है कि बैंकों के द्वारा कर्जमाफी के लाभार्थियों की सूची तैयार करने में कुछ गलतियाँ हुर्इ हैं, पर इसके लिए बैंक अकेले जिम्मेदार नहीं हैं। इस सच्चार्इ की पुष्टि मोटे तौर पर केनरा बैंक, आर्इसीआर्इसीआर्इ बैंक, भूमि विकास बैंक सहित कर्इ अन्य बैंक भी करते हैं। इन तथ्यों से बैंकों ने सीएजी को भी अवगत कराया है। लिहाजा किसी के खिलाफ कार्रवार्इ करने से पहले सरकार को चाहिए कि वह वर्णित महत्वपूर्ण पहूलओं की अनदेखी न करे। आज जरुरत इस बात की है इन महत्वपूर्ण विषयो पर गंभीर बहस हो, क्योंकि सरकारी योजनाओं का नाकाम होना, केवल सरकारी प्रयास का असफल होना नहीं है, वरन आम जनता की गाढ़ी कमार्इ का बर्बाद होना भी है।

 

1 COMMENT

  1. हीं.इसमें भी मलाई रसूखदार ही खा गए आम आदमी हमेशा की तरह वंचित ही रह गया.,नित्य नए उजागर होते घोटाले, सरकार की छवि ख़राब करते हैं.इस बार नेता लोग फंसे नहीं लग रहे इस लिए सरकार संसद में चर्चा के लिए भी आसानी से तैयार हो गयी .भांडा बैंक करमचारियों के सर पड़ेगा,लेकिन इस काम को कितने कम समय में अंजाम देना था,न करने पर सजा का प्रावधान उन्हें सत रहा था,इस लिए यह सब तो होना ही था.सरकार ने तो अपने वोट कम कर दोबारा अपनी सरकार बना ली बेचारे जो वंचित रह गए उनको क्या मिला,उम्मीद में वोट भी दिए मिला भी कुछ न

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