जिसने मुंह खोला, वही बेईमान

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डॉ0 आशीष वशिष्ठ 

भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना और रामदेव की मुहिम धीरे-धीरे ही सही अपना रंग दिखा रही है। लेकिन केंद्र सरकार जिस तरह से भ्रष्टाचार के विरूद्ध अलख जगाने वालों के खिलाफ प्रतिशोध और बदले की भावना से काम कर रही है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने खुद को दोषी मान लिया है। और जो भी सरकार और व्यवस्था के खिलाफ मुंह खोल रहा है, मशीनरी उसे बईमान और भ्रष्ट साबित करने में जुट गयी है। भ्रष्टाचार और कालेधन पर मुंह खोलने की सजा रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण झेल रहे हैं। रामदेव के बाद अब टीम अन्ना पर भ्रष्टाचार और तमाम दूसरे आरोप लगाकर उनकी छवि को मैला करने की कुत्सित कोशिशें जारी हैं। असल में नेताओं, मंत्रियों और जिम्मेदार ओहदों पर बैठे महानुभावों को अपनी करनी की बखूबी समझ और जानकारी है ऐसे में सरकार और उसकी मषीनरी कदापि ये नहीं चाहती है कि कोई उनके खिलाफ मुंह खोले और जनता को उनकी असलियत का पता चल पाये। असल में सरकार आत्मचिंतन के बजाय प्रतिशोध की भावना से काम कर रही है जो किसी भी तरीके से स्वस्थ प्रजातंत्र का लक्ष्ण नहीं है।

भ्रष्टाचार ने देश के जड़ों को भीतर तक खोखला कर दिया है इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है। ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार का बोलबाला और दबदबा है। आज भ्रष्टाचार सारी हदें पार कर चुका है। गरीब जनता के हक का पैसा स्विस बैंक के लॉकरों में जमा हो रहा है। इस खुली लूट के लिये व्यवस्था और उसके पहरेदार पूरी तरह से जिम्मेवार और कसूरवार हैं। देश की जनता को उसके अधिकार और सरकार की हकीकत बताने का बीड़ा अन्ना और रामदेव ने उठाया है। अन्ना भ्रष्टाचार पर प्रभावी रोक के लिये सशक्त जन लोकपाल कानून के लिये व्यवस्था से संघर्ष कर रहे हैं और सरकार उनकी आवाज को अनसुना करते हुये अन्ना और उनकी टीम की बुराईयां ढूंढने और उन्हें कानून के जाल में फंसाने का कुचक्र बुन रही है।

रामदेव के अनशन को लाठी-डंडों से तहस-नहस करके सरकार ये सोचने लगी थी लोकतंत्र को हांकने का फार्मूला उसके हाथ लग चुका है। रामदेव की तर्ज पर सरकार अन्ना के अनशन को भी डील कर रही थी लेकिन अन्ना ने सरकारी प्रयासों और कुचक्रों का जाल काटकर देष की जनता को अपने मिशन के साथ जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया। ऊपरी तौर पर जान छुड़ाने के लिये सरकार ने टीम अन्ना की बात मानकर अनषन तो खत्म करवा दिया लेकिन अब तक सरकार की मंशा साफ नहीं है। सरकार की नीयत और नीति से बखूबी वाकिफ अन्ना और उनकी टीम इन दिनों देशभर में घूम-घूमकर जनलोकपाल बिल के लिये समर्थन जुटा रही है। अन्ना से निपटने के दर्जनों हथियार फेल हो जाने के बाद सरकार ने सोची समझी साजिश और रणनीति के तहत टीम अन्ना पर व्यक्तिगत हमले और उन्हें किसी न किसी विवाद में घसीटने की नीति पर अमल में ला रही है। अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी पर जमकर कीचड़ उछाला जा चुका है। प्रषांत भूषण की पिटाई भी गंदी राजनीति का विकृत चेहरे से अधिक कुछ और नहीं है। आने वाले समय में टीम अन्ना के बाकी सदस्यों को भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ेगा इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। असल में सरकार खुद को पाक-साफ साबित करने की बजाय ये साबित करने में जुटी हुयी है कि हमारा दामन तो दागदार है ही लेकिन अन्ना और उनकी टीम भी कोई पाक साफ नहीं है।

ये बात दीगर है कि अन्ना और रामदेव या किसी और ने जब तक सरकार की कारगुजारियों का पर्दाफाश नहीं किया था, तब तक वो व्यवस्था की आंखों के तारे थे। लेकिन जैसे ही इन महानुभावों ने सरकार के मुखालफत की सरकारी मषीनरी उनके गढ़े मुर्दे उखाड़ने और उन्हें बईमान और भ्रष्ट साबित करने पर आमादा हो गयी। भ्रष्ट तंत्र और व्यवस्था का एक ही मूलमंत्र है कि आपकी सारी गलतियां, बुराईया और दोष तब तक माफ हैं जब तक आप हमारी हां में हां मिलाते रहेंगे और अगर आपने व्यवस्था के विरूद्व मुंह खोलने की हिमाकत भी की तो आपका तिया-पांचा कर दिया जाएगा। अन्ना और उनकी टीम में भी अच्छे और बुरे दोनों तरह के व्यक्ति शामिल हो सकते हैें। उसी तरह सरकार में भी अच्छे और बुरे दोनों तरह के महानुभावों का मिश्रण होगा। ऐसे में व्यक्तिगत तौर पर निशाने लगाने से किसी का भला होने वाला नहीं है। आज कांग्रेस को यह लगता है कि अन्ना और उनकी टीम उनके पीछे हाथ धोकर पड़ी हुयी है। असलियत यह है कि यूपीए सरकार का सबसे बड़ा घटक दल कांग्रेस पार्टी है। ऐसे में सारे किये धरे का ठीकरा स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस के माथे ही तो फूटेगा। दोषी दूसरे दल भी हैं लेकिन वर्तमान में केंद्र में कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर राज-काज देख रही है ऐसे में जनता को जवाब भी कांग्रेस को ही देना होगा। और कांग्रेस अपनी जवाबदेही से मुंह फेरकर अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को ही दबाने में सारी ताकत झोंके हुये है। आज अन्ना, रामदेव और कई दूसरे शख्स सरकार के खिलाफ देश और जनहित के लिये खड़े हुये हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश सरकार को ऐसा लगता है कि अन्ना और उनकी टीम उनको राजनैतिक तौर पर निशाना बनाकर उन्हें सत्ता से बाहर करना चाहती है। इतिहास साक्षी है कि बड़े से बड़े मसले और समस्याएं आपसी समझ और बातचीत से हल हो जाते हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी जिस तरह से अपनी कमियों को सुधारने और आत्मचिंतन के स्थान पर दूसरों पर कीचड़ उछाल रही है, वो कांग्रेस और देश दोनों के ही हित में नहीं है।

ये स्थापित सत्य है कि गलतियां उसी से होती हैं जो काम करता है ऐसे में सरकार या व्यवस्था से भी गलतियां होना स्वाभाविक है लेकिन अक्ल और समझदारी की बात यह है कि जब कोई उन कमियों और दोषों की ओर आपका ध्यान खींचे तो आपको धैर्यपूर्वक सुनना चाहिये और अपनी कमियों और दोषों को दूर करने का यत्न करना चाहिये। लेकिन वर्तमान व्यवस्था में तो ठीक इसके उलट हो रहा है अर्थात जो भी सच और ईमानदारी के साथ खड़ा होकर सरकार को उसकी कमिया बता रहा है सरकार उसकी आवाज को डंडे के जोर से दबाने या उसे बदनाम करने की घटिया हथकंडे अपना रही है। अन्ना ने हिसार उप चुनाव में कांग्रेस के विरूद्व जो बयानबाजी की है वो अन्ना को षोभा नहीं देता है। अन्ना गैर राजनीतिक संगठन का प्रतिनिधित्व करते हैं ऐसे में राजनीतिक उद्देष्यों के लिये की जा रही बयानबाजी से अन्ना और उनकी टीम पर भी उंगुलियां उठना लाजिमी है। वहीं अन्ना को देश की जनता को ये बताना और समझाना होगा कि वो किसी संगठन या राजनैतिक दल के इशारे या समर्थन से यूपीए सरकार पर हमलावर नहीं हुये हैं बल्कि केंद्र में जो भी सरकार होगी वो अपने उद्देष्यों के लिये उससे लोहा लेते रहेंगे।

वहीं अन्ना और उनकी टीम सरकार को भी यह समझा पाने में असफल रही है कि उन्हें व्यक्तिगत तौर न तो कांग्रेस के खिलाफ हैं और न ही वो भाजपा या किसी और पार्टी से उनका कोई गुप्त गठजोड़ है। दोनों पक्षों को थोड़ा-थोड़ा झुकना होगा तभी समस्या का हल निकल पाएगा। वहीं सरकार को संवैधानिक व नैतिक उत्तरदायित्व के तहत जनता की बात सुननी होगी अगर सरकार ये समझती है कि वो अपने खिलाफ मुंह खोलने वालों को बदनाम करके वो अपने कर्तव्यों से बच जाएगी तो ये उसकी नासमझी होगी। आज सरकार अन्ना और उनकी टीम के सदस्यों को किसी न किसी मामले में फंसाकर अपने खिलाफ उठ रही आवाज को शायद दबा भी लेगी लेकिन असली हिसाब-किताब तो देश की जनता को करना है। हिसार में कांग्रेस अपनी कारगुजारियों की वजह से हारी है, इस असलियत से कांग्रेस आलाकमान बखूबी वाकिफ है। यूपीए सरकार और जिम्मेदार ओहदों पर बैठे महानुभावों को वक्त रहते अपने विरूद्व उठने वाली आवाजों को बड़े ध्यान से सुनना चाहिये और अपनी कमियों और बुराईयों को समय रहते दूर करने का प्रयास करना चाहिये। क्योंकि लोकतंत्र में असली राजा जनता ही होती है और चुनावों के वक्त जन अदालत में ही नेताओं के कर्मों का हिसाब होगा।

2 COMMENTS

  1. चाहे राम कहो या रहीम कहो ,चाहे कृष्ण कहो या करीम कहो ,
    मेरा साईं है सभी में समाया ,सबमे उसकी माया
    साईं राम कृष्ण रहमान , साईं गीता ,वेद.कुरआन ||
    || ॐ साईं ॐ ||
    ****************************************************
    ओ दिग्विजय देश द्रोही …..अपने भ्रष्ट सरदार प्रधान मंत्री से बोल …..भारत की न्याय पालिका को अमेरिका को ठेके पर दे दे …..ताकि तुम सभी भ्रष्टाचारियो के भ्रष्टाचार को वो माफ़ कर दे…….वरना भारत की जनता तो तुम सबको छोड़ने वाली नहीं …सोनिया..मनमोहन..राहुल.. सिब्बल.. गुलाम…दिग्गी……आदि.सारे कांग्रेसियों, सेकुलरो और इनके पालतू पाकिस्तानी/बंगलादेशी आतंकी ,जेहादी गिदडो को .ऊपर से लेकर निचे तक को उनके परिवार ,हीत ,नात ,रिशतेदारो सहित पागल पागल कुत्तो की तरह सडको पर दौड़ा दौड़ाकर मारेगी ..जनता की अदालत में जेल और पेरोल की कोई गुन्जाईस नहीं है …सीधे पागल कुत्ते की मौत ही जनता का फैसला होगा….गद्दाफी कैसे अपने परिवार हित नात रिशतेदारो सहित कुत्ते पागल कुत्ते की मौत मरा था जान समझ कर ही आगे कदम उठाये….
    || देखते ही देखते मिट गए भ्रष्टो के राज ,काज,और वंश
    नहीं मानो तो जान कौरव,रावण और कंश ||
    सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार

  2. डाक्टर वशिष्ठ आपने बहुत अच्छा लिखा है और साफ़ साफ़ लिखा है है,पर यह बात इन नाली के कीड़ों के समझ में आये तब न.ऐसे प्रवक्ता की यह यह विशेषता है कि यहाँ बाबा राम देव और अन्ना हजारे को समर्थन देने वालों का एक समूह उसने जमा कर दिया है.पहले लोगों में थोड़ी ग़लतफ़हमी थी और वे अन्ना हजारे और बाबा रामदेव को अलग अलग देख रहे थे .अब यह ग़लतफ़हमी भी बहुत हद तक दूर हो चुकी है और इसके माध्यम से लोग एक स्वर में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने लगे हैं.यह एक स्वस्थ प्रतिक है.अगर यह सिलसिला यों ही जारी रहा तो प्रवक्ता का इस अभियान में यह बहुत बड़ा योगदान होगा.
    सच पूछिए तो जैसा आपने लिखा है,कांग्रेस अपने हाथों अपना कब्र खोदने में लगी हुई है.इसका कारण क्या है,यहं मेरे जैसे लोग समझ पाने में असमर्थ हैं. सामूहिक आत्महत्या के कारणों को समझना ऐसे भी आसान नहीं होता.हो सकता है कि कांग्रेसी यह सोचते हों कि उनके इस अभियान में अन्य राजनैतिक दलों का प्रत्यक्ष या परोक्ष में उन्हें सहयोग अवश्य मिलेगा,क्योंकि ले दे कर सब उसी गंदगी में प्रसन्नता पूर्बक रहने के आदी हो गए हैं.पता नहीं आपलोगों के इस तरह के लेखो पर उन लोगो की नजर पड़ती भी है या नही.इन लेखों को देखने से वे भी शायद कुछ सोचते या हो सकता है कि बकवास समझ कर रद्दी की टोकरी में डाल देते.

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