अडानी कंपनी पर कार्रवाही क्यों जरूरी है

gautam_adaniडॉ. मयंक चतुर्वेदी
किसी भी व्यापार के पीछे का जो पहला उद्देश्य होता है, वह है लाभ कमाना, लेकिन इसके साथ कुछ ओर भी बातें जुड़ी होती हैं, उनमें सबसे अहम है यह लाभ किसी को नुकसान हुए बगैर होना चाहिए। उद्योगों के विकास और विस्तार के मामले में कहें तो उनसे कम से कम पर्यावरण को नुकसान हो, किसी भी प्रोजेक्ट के शुरू होने के पहले सरकारी एजेंसियां यह जरूर देखती हैं। किंतु जब देखा जाता है कि प्रोजेक्ट के धरातल पर आ जाने के बाद पर्यावरण के लिए यह नुकसानदायक साबित हो रहा है या उसके निर्माण के समय पर्यावरण हित से जुड़ी शर्तों का ध्यान नहीं रखा जा रहा है, तब जरूर कोई सरकारी संस्था या मंत्रालय अपने स्तर पर उसके विरुद्ध जुर्माने का प्रावधान करता है। जिससे कि कंपनी संचालक इस बात को गंभीरता से लें और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहते हुए अपने प्रोडक्ट का निर्माण करें। इस दृष्टि से कानून सभी के लिए समान हैं।
ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए कि जो सत्ता के नजदीक माने जाते हैं, उन्हें पर्यावरण को चोट पहुंचाने की छूट दे दी जाए। इस बात पर इसलिए भी गौर करना चाहिए, क्योंकि देश के प्रधानसेवक स्वयं ही पर्यावरण के प्रति अत्यधिक सचेत हैं। इतने अधिक जागृत कि दुनिया जब भी इस संबंध में उनके विचार जानती है, हर बार वह यह देख अभीभूत हो उठती है कि धन्य है भारत और भारतीय संस्कृति, जहां पृथ्वी और उसके पर्यावरण के विषय में इतना गंभीर चिंतन किया गया है। लेकिन भारत का एक सच यह भी है कि ज्यादातर मामलों में यहां मौखिक चिंता अधिक दिखाई देती है। जमीन पर जो प्रयत्न हो भी रहे हैं, उनमें अधिकांश में राजनीति होती है। अडानी कंपनी से जुड़ा ताजा मामला भी कुछ ऐसा ही है।
अडानी प्रोडक्ट्स एंड एसईजेड लिमिटेड (एसपीएसईजेडएल) पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का आरोप था, जिसकी वजह से पिछली सरकार ने 200 करोड़ रुपए का जुर्माना इस कंपनी पर लगाया था। तथ्य यह भी है कि यह जुर्माना अभी तक कंपनियों पर लगाए जुर्माने में सबसे अधिक था लेकिन अब केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अडाणी प्रोडक्ट्स एंड एसईजेड लिमिटेड (एसपीएसईजेडएल) पर लगे इस जुर्माने को हटा दिया है। इतना ही नहीं, सरकार ने जुर्माना हटाने के साथ ही कंपनी को मुंद्रा में तटीय विकास परियोजना को 2009 में दी गई पर्यावरण मंजूरी को भी आगे बढ़ा दिया है।
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, पूर्व सरकार ने यह भारीभरकम जुर्माना इसलिए लगाया था क्योंकि सैटेलाइट के जरिये ली गई तस्वीरों से यह साबित हुआ था कि अडाणी के प्रोजेक्ट से मैंग्रोव को नुकसान हुआ था। लेकिन अडानी की कंपनी इस बात को मानने को तैयार नहीं थी, कंपनी की ओर से कहा जा रहा था कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि अडाणी परियोजना के कारण पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है। पर्यावरण मंत्रालय ने इससे पहले कंपनी पर कई तरह की कड़ी शर्तें लगाई थीं और नोटिस भी जारी किए थे। ऐसे में यहां सभी के लिए यह समझना जरूरी है कि पर्यावरण में नुकसान हमारे कारण हो रहा है कि नहीं, इस बात को स्वयं कंपनी अपने स्तर पर कैसे तय कर सकती है। जब श्रीश्री रविशंकर पर दिल्ली में उनके संस्थान द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को लेकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगे थे, तब उन्होंने भी यही कहा था कि उनके आयोजन से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं हो रहा है। लेकिन मीडिया ने जो बताया और दिखाया, उससे साफ पता चलता था कि यमुना किनारे हो रहे इस आयोजन से वातावरण को क्या नुकसान हुआ है।
स्वयं प्रधानमंत्री उनके कार्यक्रम में शिरकत करते हैं, उसके बाद भी इस भव्य आयोजन को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में चुनौती दी गई और फिर एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली सरकार, (डीडीए) और आर्ट ऑफ लिविंग को इस बारे में नोटिस जारी किया था, जिसके बाद श्रीश्री की ओर से एनजीटी को पर्यावरण नुकसान की अदायगी बतौर भारी भरकम राशि जमा करवाई गई। यह तब है जब वे अपने कार्यक्रम के बाद जैवविविधतापूर्ण पार्क विकसित करके छोड़ गए। यानि कि अपने कार्यक्रम के बाद पर्यावरण की बेहतरी के लिए जो संभव हो सकता था वह करते हुए भी श्रीश्री ने सरकार को हर्जाना दिया। ऐसे में अडानी की कंपनी का यह दावा कितना जायज माना जाए कि उनके कारण कोई पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचा है। वास्तव में देखा जाए तो पिछली सरकार ने जैव विविधता और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने और नियमों के उल्लंघन करने पर कंपनी को पारिस्थितिकी बहाली कोष में यह राशि जमा करने को इसलिए कहा था, जिससे कि अडानी कंपनी आगे पर्यावरण के प्रति सचेत रहे।
यहां हमें एक बात ओर देखना चाहिए कि आज अडानी देश के इतने बड़े उद्योगपति हैं कि भारत के बाहर कई देशों में उनके प्रोजेक्ट चल रहे हैं। कई लोग उनके काम की प्रशंसा करते हैं, यहां तक कि कई कर्मचारी भी अपने मालिक के कार्य की सराहना करते नहीं थकते, पर क्या यह संपूर्ण देशभर की स्थिति है। कहा जाए तो बिल्कुल भी ऐसा नहीं है। पिछले साल महू-नीमच रोड पर भाटखेड़ा के पास स्थित अडानी विलमार लिमिटेड के ट्रीटमेंट प्लांट में पांच कर्मचारियों की मौत हो गई थी। यह हादसा दोपहर में प्लांट के टैंक की सफाई के दौरान हुआ था। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? जिला अस्पताल में मृतकों के परिजन ने मुआवजे की मांग को लेकर हंगामा मचाया। सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल तैनात किया गया।
यहां कहने का आशय है कि मुआवजा पाने के लिए आखिर क्यों परिजनों को हंगामा करना पड़ा। जब आडानी की छवि साफ-सुथरी है तो उनके प्रत्येक नियमित कर्मचारी या कंपनी में किसी भी रूप में अपनी सेवा दे रहे कर्मचारी के परिजनों को लगना चाहिए कि उनके साथ स्वप्न में भी अन्याय नहीं हो सकता है। वे श्री अडानी की कंपनी से जुड़े हैं। ऐसी ही एक अन्य घटना का जिक्र किया जा सकता है, पिछले वर्ष घटी यह घटना भी संयोगवश मध्यप्रदेश से जुड़ी है। टिमरनी समीपस्थ ग्राम बघवाड़ में अडानी ग्रुप द्वारा करोड़ों रुपए की लागत से गेहूं के संग्रहण के लिए बनाए जा रहे सायलो प्लांट की लाइट बिजली कंपनी ने बिल न भरने पर काट दी थी। यह घटनाएं कुछ छोटी-कुछ बड़ी हो सकती हैं, किंतु सीधे शब्दों में कहा जाए तो देशभर में अडानी कंपनियों से जुड़े ऐसे तमाम मामले मिल जाएंगे जिनसे सीधे तौर पर स्पष्ट होता है कि इस ग्रुप की कमियां कई स्तरों पर भी खोजी जाएं तो कुछ कम नहीं ज्यादा ही मिलेंगी, जिनकी कि दूर से कल्पनाभर करने से स्पष्ट हो जाता है कि अडानी कंपनी से पर्यावरण को अवश्य ही नुकसान पहुंचा होगा। जिसकी कि भरपाई उसे बिना किसी तर्क-वितर्क के करनी चाहिए थी, न कि अपने संबंधों का लाभ उठाकर 200 करोड़ रुपए का जुर्माना माफ कराने के लिए प्रयत्न करने चाहिए थे। यदि सरकार को अडानी कंपनी जुर्माना अदा करती तो देश की जनता में यहीं संदेश जाता कि श्री अडानी अपने रुपयों से ज्यादा देश को प्यार करते हैं। उनके लिए भी देश का पर्यावरण भारत के प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी की तरह कई मायनों में अहम है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here