मृत्युंजय दीक्षित
हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी की पैगंबर साहब पर कथित टिप्पणी को लेकर देश का मुस्लिम समाज बहुत नाराजगी के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहा है। हिंदू महासभा का कथित नेता आज जेल की सलाखों के पीछें पहंुच चुका है। आज देश में जिस प्रकार से उनके बयान की आढ़ में साम्प्रदायिक माहौल को खराब किया जा रहा है। वह बेहद निंदनीय दुर्भाग्यपूर्ण व पूर्णतः राजनीति से प्रेरित है। कमलेश तिवारी के बयान को लेकर देश के कई हिस्सो में मुस्लिम समाज की भीड़ ने पहले रैली निकाली और फिर उसके बाद सुनियोजित हिंसा को अंजाम दिया है। जिसमें सबसे जबर्दस्त हिंसा बंगाल के माल्दा और अब बिहार के पूर्णिया जिलें में हुई है। उप्र मंे तो एक मौलाना ने कमलेश तिवारी का सिर कलम करने के लिये 51 लाख का ईनाम घोषित कर रखा है। इस पूरे प्रकरण में आरोपी को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया है लेकिन यह बेहद आश्चर्यजनक तथ्य है कि उस बयान व नेता के नाम पर पूरे भारत में अभी भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। वहीं अब यह प्रदर्शन हिंसक रूप ले रहे हंै।
इस पूरे घटनाक्रम में यह तथ्य अत्यंत चिंता का विषय है कि सभी सेकुलर दलों ने मौन साध लिया है। हर घटना के बाद पीएम मोदी व राजग सरकार से सवाल पूछने वाले लोग गायब हो गये हैं। इन तथाकथित नेताआंे व दलों के लोगों ने अभी तक पश्चिम बंगाल के माल्दा व बिहार के पूर्णिया आदि हिंसा प्रभावित जिलांें का दौरा नहीं किया है । बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा को हराने के लिये यह सभी दल अपने वोटबैंक का तुष्टीकरण करने के लिए बड़े ही चैकस रहते थे।वहीं बंगाल केमाल्दा की घटना पर राजनीति भी शुरू हो गयी है। लेकिन इसका स्वरूप बदला हुआ है । बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिम समाज की तथाकथित धर्मांधता पर चुप्पी साध ली है।बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनजी का मुस्लिम प्रेम जगजाहिर है। बंगाल में अपनी सत्ता को बचाये रखने के लिये ममता बनर्जी ने मुस्लिमों को कई प्रकार की अनोखी सौगातें दे रखी हंै। यही कारण है आज की तारीख में बंगाल का मुस्लिम समाज इस प्रकार से एक बार फिर आक्रांत हो रहा है।
उसे यह समझ में आ गया है कि मुस्लिम वोटबैंक के चलते वह इस प्रांत में पूरी तरह से सेफजोन में है तथा संविधान और कानून के दायरे से ऊपर भी हैं। आज सोशल मीडिया व टी. वी. चैनलों के युग में माल्दा की घटना को सेकुलर दलों व उनके सहयोगी मीडिया पार्टनरों की ओर से माल्दा व पूर्णिया की घटनाओं को छुपाने का प्रयास किया गया। लेकिन वाकई आज भी ऊपरवाला सब देख रहा है। मुस्लिम समाज व वोटबैंक के लालची इन सेकुलर दलों के हथकंडे छिपाये नहीं छिप रहे।बंगाल में माल्दा की घटना को लेकर साम्प्रदायिक तनाव बढ़ रहा है। वहां पर इस साल मई में चुनाव होने जा रहे हंै। यही कारण है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनजी मुस्लिम समाज की हिंसा पर कोई कदम नहीं उठायेंगी और यहां तक कि ंिनंदा प्रस्ताव भी नहीं पास करेंगी क्योंकि उन्हंे वोट जो हासिल करनंे हैंै। वहीं दूसरी ओर भाजपा व हिंदूवादी संगठनों को माल्दा की घटना का पूरे राज्यभर में प्रचार- प्रसार करने और वातावरण को गर्म करने का पूरा अवसर मिल गया है। माल्दा की हिंसक घटना के बाद भाजपा के कई स्टार नेता माल्दा पहुंच चुकें हैं तथा रैली के बाद हिंसा भड़काने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग कर आंदोलन करके माहौल को गर्मा रहे हैं।
अब इस देश की जनता व प्रबुद्ध वर्ग को यह बात धीरे -धीरे समझ मंे आने लगी है कि सेकुलर दलों ने धर्मनिरपेक्षता का नकली मुखौटा लगा रखा है जो समय के हिसाब से परिवर्तित होता रहता है। यही कारण है कि आज इतना लम्बा समय बीत जाने के बाद भी माल्दा देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं के लिये पर्यटन स्थल नहीं बन पा रहा है। जबकि दादरी व हरियाणा में घटी घटनाआं के बाद इन सेकुलर धर्मनिरपेक्ष नेताओं ने उक्त स्थलो को अपना पर्यटन स्थल बना लिया था और मुआवजों की बाढ़ ला दी थी। यह साबित हो गया है कि यह सभी दल धर्मनिरपेक्षता के झूठे अलम्बरदार हैं। बंगाल के तृणमूल नेता टी. वी. की बहसों में अनर्गल आरोप लगा रहे हैं कि माल्दा की हिंसा वामपंथी और भाजपा के गठजोड़ के कारण हुई हैं जबकि सच्चाई कुछ और ही बया कर रही है। बंगाल के विधानसभा चुनावों में अब माल्दा व वहां की बिगड़ती हुई कानून व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा बनने जा रही हैं वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व उनके परिवार के लोगों पर सारदा चिटफंड का घोटाला एक बड़ा सिरदर्द बनने जा रहा है।माल्द की घटना से यह साबित हो गया है कि मुस्लिम साम्प्रादायिकता व हिंसा पर सेकुलर मौन होकर उनको अपना समर्थन दे देतें हैं और नजरअंदाज भी कर देते हैं। साथ ही असहनशीलता का नाटक भी खेलते हैं। वैसे भी इस प्रकार की घिनौनी व विकृत राजनीति से ही देश में विभाजन की समस्या पैदा होती है।