केंद्र क्यों नहीं कर रहा महंगाई रोकने के विकल्पों की तलाश ?

-डॉ. मयंक चतुर्वेदी-

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अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव में उछाल का रुझान है। जब से बाजार में तेल कीमतों में वृद्धि होना शुरू हुआ है, तभी से लगातार भारत में भी अंतरराष्ट्रीय मार्केट के भरोसे छोड़े जा चुके तेल दामों में कुछ समय के अंतराल के बाद वृद्धि की जा रही है। यहां समझ में यह बात नहीं आ रही कि जो सरकार सबका साथ और सबका विकास के नारे तथा एक बार मोदी सरकार के वायदे के साथ सत्ता में आई है, वह उन मूलभूत बातों को क्यों नहीं गंभीरता से ले रही, जिससे कि भारत में कुछ समय काबू में रहने के बाद तेजी से बढ़ रही महंगाई पर अंकुश लगाया जा सकता।

निश्चित तौर पर आज इसे कोई नहीं नकार सकता कि देश के विकास में तेल का महत्व कहीं से भी कमतर है, किंतु यह भी उतना ही सत्य है कि देश की कुल पेट्रोलियम मांग पूरा करने के लिए लगभग 70 से 75 प्रतिशत तेल आयात करना पड़ता है, जिस पर बड़ी तादाद में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च होती है। इस वजह से स्थिति कई बार इतनी भयावह हो जाती है कि कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में जब भी उछाल आता है, देश की अर्थव्यवस्था डगमगाने लगती है। लगता है कि हम भले ही अंग्रेजों से मुक्त हो गए हों, किंतु एक अलग तरह से तेल-दासता के युग में जी रहे हैं।

पेट्रोल कीमतों में सिर्फ अप्रैल में इसके भाव तकरीबन 25 फीसदी तक बढ़े हैं। वैश्विक बाजार में पेट्रोलियम की कीमत 59.90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंची, जिसे हम पिछले पांच महीनों में सबसे ऊंचा स्तर कह सकते हैं। इसका स्वाभाविक प्रभाव घरेलू बाजार पर हुआ है। फिर पिछले कुछ दिनों से मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर दबाव में है। चूंकि कच्चे तेल का ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय कारोबार डॉलर में होता है, अत: डॉलर के सस्ता होने का सीधा मतलब पेट्रोलियम के दाम में इजाफा होना है। इसी समय ज्यादा तो नहीं, फिर भी डॉलर की तुलना में रुपया कमजोर पड़ा है। रुपए की कीमत गिरने से हर आयात महंगा हो जाता है। यानी पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत पुराने स्तर पर रहे, तब भी उन्हें देश में मंगाना महंगा हो जाता है। यह बातें ऐसा नहीं है कि सरकार नहीं जानती, किंतु हालात यह है कि पिछली कांग्रेस सरकारों की तरह भाजपा खासकर स्वदेशी पर बल देने वाले दल की सरकार ने भी देश की जनता को भगवान के भरोसे छोड़ दिया है, यही वस्तुत: आश्चर्य का विषय है।

अभी यमन संकट कितने दिनों और चलेगा, इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। ऐसे में निकट भविष्य में कच्चे तेल के भाव में बड़ी गिरावट की आशा नहीं है। हालांकि, यह सही है कि पिछले वर्ष अगस्त से लेकर इस साल फरवरी के बीच पेट्रोल के दाम में दस बार कटौती हुई। इस दौरान इसकी कीमत 17.11 रुपए प्रति लीटर घटी, जबकि पिछले अक्टूबर से इस वर्ष फरवरी तक डीजल के दाम में छह कटौतियां हुईं और यह 12.96 रुपए प्रति लीटर सस्ता हुआ। परन्तु इसका कारण भी सभी को विदित है। पेट्रोलियम का अंतरराष्ट्रीय बाजार बुरी तरह लुढक़ने से मई में कच्चा तेल 105 डॉलर प्रति बैरल था, जो एक समय 50 डॉलर से भी नीचे चला गया था। इससे उपभोक्ताओं और सरकारी खजाने दोनों को आंशिक लाभ हुआ, किंतु आज स्थिति हाथ से निकल रही है। अंतरराष्ट्रीय कीमतों के कारण सरकार भी अपने को असहाय मानती है, पर वह जो कुछ कर सकती है, वह भी नहीं कर रही है।

फिलहाल, पेट्रोलियम की मूल्यवृद्धि के दिन लौटते नजर आ रहे हैं, जिससे आम महंगाई बढऩे लगी है। खासकर डीजल महंगा होने का असर मारक होता है। आशंका है कि ताजा बढ़ोतरी से माल ढुलाई भाड़े में वृद्धि होगी और वहीं सार्वजनिक परिवहन पर भी इसका बोझ पडऩा तय माना जाए। इसके परिणामस्वरूप अभी से सब्जी, फल और दालें इत्यादि महंगी होना शुरू हो गया है, लेकिन सरकार के पास विकल्प होते हुए भी कोई हल नहीं है।

हां, पिछले साल सितम्बर तक जरूर कुछ सरकारी प्रयासों, कुछ भारतीय रिजर्व बैंक की सख्ती और कुछ संयोग का नतीजा रहा था कि महंगाई दर काबू में रही। सितम्बर में थोक भाव मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दर पांच साल के सबसे निचले स्तर (2.38 प्रतिशत) पर आ गई थी। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति की दर 6.46 फीसदी पर पर आकर सिमट गई थी। उस वक्त महंगाई दर के आंकड़े आने पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसका श्रेय केंद्र के कदमों को दिया था। यह बात आंशिक रूप से सच भी है। एनडीए सरकार ने खुले बाजार में बिक्री के लिए अपने भंडार से चावल और गेहूं की ज्यादा खेप जारी की, उपज के खरीद मूल्य को नियंत्रित रखा और राज्यों को प्रोत्साहित किया कि वे फसलों के समर्थन या खरीद मूल्य में ज्यादा बढ़ोतरी न करें। जिसका प्रभाव खाद्य पदार्थों के भावों पर पड़ा था। खाद्य पदार्थों की महंगाई दर 7.67 प्रतिशत पर आ गई, जबकि यह और पहले यह 12 फीसद तक जा पहुंची थी। लेकिन इस साल क्या हुआ, महंगाई यमन संकट के तेज होने के साथ ही धीरे-धीरे बढऩे लगी है। वित्त मंत्री ने संसद में जो बजट रखा, उसमें बहुत कुछ ऐसा है, जिसकी सर्वत्र आलोचना हुई है। भले ही फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा इसे अच्छे दिनों की आशा के अनुरूप बताने वाला दर्शाने का प्रयास किया गया हो, किंतु सच यही लगता है कि कुछ महंगाई खुद सरकार ने अपने हाथों स्वीकार कर रखी है, जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि जिस तरह के आरोप पिछली सरकारों पर लगते रहे हैं, उससे अब मोदी सरकार भी बचने वाली नहीं है।

वस्तुत: आज देश के सामने तमाम ऐसे विकल्प मौजूद हैं, जिनका उपयोग करते हुए ना केवल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया सकता है, बल्कि लम्बे समय तक महंगाई को भी काबू में रखा जाना संभव है। यहां यह बात याद आती है कि जब कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री डॉ. फारुक अब्दुल्ला ने लोकसभा में बताया था कि केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल के वैकल्पिक ईंधन के विकास पर काम कर रही है। अब्दुल्ला ने सतपाल महाराज के सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी देते हुए बताया था कि पेट्रोल और डीजल की आपूर्ति को पूरा करने की दृष्टि से बायो ईंधनों विशेष रूप से बायो इथेनॉल और बायो डीजल तथा हाइड्रोजन का उपयोग करने की संभावना का पता लगाने के लिए पहल की गई है। जिसमें कि दिसंबर 2009 में घोषित राष्ट्रीय बायो ईंधन नीति में वर्ष 2017 तक पेट्रोल के साथ बायो इथेनॉल और डीजल के साथ बायो डीजल के 20 फीसदी मिश्रण के लक्ष्य का प्रस्ताव किया गया है।

लेकिन, देखने में आज यह आ रहा है कि इस सरकार की ओर से इस प्रकार की कोई पहल की बात नहीं की जा रही, जो कि हमारी विदेशी तेल पर निर्भरता को कम कर सके। सरकार को देखना चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनों के रूप में धनी हमारे देश में कई ऐसे विकल्प मौजूद हैं, जिन्हें अपनाकर तेल के आयात को सार्थक रूप से कम किया जा सकता है, इनमें सबसे प्रमुख और सबसे ज्यादा संभावना वाला विकल्प इथेनॉल है।

इथेनॉल एक तरह का अल्कोहल है, जिसे पेट्रोल में मिलाकर मोटर वाहनों में ईंधन की तरह उपयोग में लाया जा सकता है। इथेनॉल का उत्पादन मुख्य रूप से गन्ने से किया जाता है, जिसकी हमारे देश में प्रचुरता है। इथेनॉल को गन्ने के अलावा शर्करा वाली अन्य फसलों से भी तैयार किया जा सकता है जिससे कृषि और पर्यावरण दोनों को लाभ होगा। भारत सरकार ने 2002 में गजट अधिसूचना जारी करके देश के नौ राज्यों और चार केन्द्र शासित क्षेत्रों में एक जनवरी 2003 से पांच प्रतिशत इथेनॉल मिला कर पेट्रोल बेचने की मंजूरी दे दी थी। इसे धीरे-धीरे बढ़ाते हुए पूरे देश में दस प्रतिशत के स्तर तक ले जाना था, लेकिन अनेक नीतिगत और आर्थिक समस्याओं के कारण यह लक्ष्य अब तक पूरा नहीं हो पाया है।

इसकी संभावनाओं के बावजूद भारत अभी तक इथेनॉल उपयोग में कई छोटे देशों से पीछे है। जबकि ब्राजील में लगभग 40 प्रतिशत कारें सौ प्रतिशत इथेनॉल पर दौड़ रही हैं और बाकी मोटर वाहन 24 प्रतिशत इथेनॉल मिला पेट्रोल इस्तेमाल करते हैं। स्वीडन जैसे छोटे देश ने अपने यहां 1980 से ही इथेनॉल इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था, जिसके बलबूते उसने कच्चे तेल के आयात में लगभग 35 प्रतिशत की कटौती कर ली है। कनाडा भी आज इथेनॉल के इस्तेमाल पर सब्सिडी भी प्रदान कर रहा है।

इथेनॉल जैसा ही एक अन्य कारगर विकल्प बायोडीजल है। कुछ पौधों के बीजों में ऐसा तेल पाया जाता है जिसे भोजन के उपयोग में तो नहीं लाया जा सकता परन्तु इसे मोटर वाहनों में ईंधन की तरह सफलता से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे पेट्रो-डीजल में आसानी से मिलाया जाना संभव है या डीजल इंजन में अकेले भी प्रयोग में लाया जा सकता है। देश के रतनजोत या जोजोबा, करंज, नागचंपा और रबर जैसे अनेक पौधों में बायोडीजल की संभावना मौजूद है। यह पौधे जंगली और बंजर भूमि पर आसानी से उगते हैं और इसे किसी विशेष देखभाल की जरूरत भी नहीं पड़ती। कुछ वर्ष पूर्व योजना आयोग ने जोजोबा की खेती और बायोडीजल के उत्पादन के लिए एक व्यापक योजना तैयार की थी जिसमें बायोडीजल की खरीद का प्रावधान था और किसानों को आर्थिक सहायता देने की सुविधा भी थी, परन्तु यह महत्वाकांक्षी योजना अब तक अपने लागू होने की बाट जोह रही है।

पेट्रोलियम के विकल्पों में प्राकृतिक गैस या सीएनजी जाना-पहचाना नाम है, जिसकी लोकप्रियता और उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। देश में प्राकृतिक गैस भंडारों की कोई कमी नहीं है। फिलहाल वर्तमान उत्पादन स्तर पर इतनी गैस मौजूद है कि वह देश की लगभग 30 वर्ष तक मांग पूरा कर सकती है। सीएनजी का उपयोग देश के लिए पर्यावरण के नजरिये से तो लाभकारी है ही, उपभोक्ता के नजरिये से भी कम कीमत के कारण आकर्षक है।

भारत सरकार ने हाइड्रोजन ऊर्जा के विकास और उपयोग को बढ़ावा देने के लिए समयबद्ध योजना तैयार की है जिस पर पूरी ईमानदारी के साथ आज अमल की जरूरत है। पेट्रोलियम के सभी विकल्पों पर मिशन के तौर पर आगे बढऩा होगा, साथ ही कार्बन उत्सर्जन को कम करना भी हमारा एक लक्ष्य होना चाहिए, तभी तेल-दासता से मुक्ति के द्वार खुलेंगे। इसके लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है, जिसकी फिलहाल हमारे देश में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद भी कमी दिखाई दे रही है।

1 COMMENT

  1. कॉरपोरेट घरानों की है सरकार !
    अभी 02-4-15 को समाचार आया था और वह भी केवल सोशल मीडिया पर कि दिल्ली सरकार ने एसीबी को रिलायंस के बारे में पुन: जाँच के अधिकार दे दिए हैं ज्ञातव्य हो कि 49 दिनों केआप के शासन के वक्त बनी एसीबी के पावर को जो रिलायंस पर जाँच के लिए बनाई गई थी वर्तमान केंद्र सरकार ने रिलायंस के दबाव में आकर उससे जाँच का अधिकार छीन लिया था इसीलिए बिजली कम्पनियों की ऑडिट और ‘ नीरा राडिया टेप ‘ पर सुप्रीम कोर्ट के जाँच आदेश को पूरा नहीं किया जा सका है फिर क्या था पूर्व की तरह भ्रष्टाचार रूपी बारूद में आग लगाने का काम हुआ : — –
    1) रिलायंस के पहले सेनापति दिल्ली के राज्यपाल अपनी रुहेली तलवार और बीजेपी की सेना लेकर केजरीवाल पर दौड़ पड़े…..
    2) दूसरी तरफ से कांग्रेस-बीजेपी नेताओं की रिश्तेदार जो महिला समितियों में बैठी हैं – पता नहीं कहाँ से एक महिला को लाकर कुमार विश्वास पर झूठा बलात्कार का आरोप लगाने की कोशिश कर दी हैं ……
    3) बिकाऊ मीडिया (18 चैनल्स को खरीदकर रिलायंस ने पत्रकारिता की अंतिम क्रिया कर दी है) जो नेपाल में पिट चुकी है उन्हें तीसरी तरफ से आम आदमी पार्टी पर हमले के लिए तैनात कर दिया गया है केजरीवाल अभिमन्यू की तरह चक्रव्यूह में घेर लिए गए हैं
    4) बिन्नी साजिया-किरणबेदी आदि पिटे-पिटाए मोहरों को भी अपनी बचीखुची ताकत बटोरकर पुन: हमला करने का फरमान रिलायंस ने जारी कर दिया है जिससे सच्चे देशभक्तों का ध्यान बँटा रहे ……
    5) किसान आंदोलन के नाम पर बीजेपी से लड़ाई का दिखावा कर रही कांग्रेस भी अपने तथाकथित सच्चरित्र नेता दिग्विजय सिंह को आप के खिलाफ मोर्चे पर लगा दिया है…
    – सहारा है तो दिल्ली के चौहान-तोमर वंशजों का ( देखना है इस नेकी-बदी के जंग में वे कबतक चुप रहते हैं)
    भारत के पहले आईएएस नेताजी सुभाष जी को तो इन भ्रष्टाचारियों ने खत्म ही करवा दिया है अब वर्तमान आईएएस कैडर के जननायक केजरीवाल के पीछे पड़े हैं ——
    लोकसभा चुनाव के बाद के जनादेश में आम-गरीब की जगह कौन कितने दमख़म से है इसका फैसला उद्योगपत्तियों का एक ‘ख़ास’ तबका कर रहा है। मतलब ये कि जो राजनीतिक दल रिलायंस जैसी कंपनियों के हित ज्यादा साधेंगे सिक्का उन्हीं का खनकेगा। यानी, धर्मोन्मादी पैदल सेनाएं (राजनीतिक दल) चाहे कुरूक्षेत्र में विजयी हो गई हैं, लेकिन असली जीत तो पाए हैं आधुनिक युग के तथाकथित प्रणेता मुकेश अंबानी।
    इंडिया इंक के विकल्प कोई अकेले नरेंद्र मोदी नहीं है और न राहुल गांधी हैं। ममता बनर्जी से लेकर मुलायम सिंह तक अनेक विकल्प हैं। सबको पूरे संसाधन दे रही है कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियां, विदेशी चंदे की सुनामी चला रहीं है। अब इंडिया इंक ‘ कंपनी क़ानून ’ में भी छूट का दबाव बना रही है। इंडिया इंक चाहती है कि किसी राजनीतिक दल को कितना चंदा दिया गया कंपनियों पर इसका खुलासा करने का दबाव न डाला जाए। एक तरह से भारत जैसे देश में जहां सत्ता समीकरण अक्सर बदलते रहते हैं वहां जनता-जनार्दन ने कोई अनचाहा फेरबदल कर दिया तो उनके कारोबारी हित सत्ता बदलने के बाद भी सुरक्षित रहें इसकी पूरी सुरक्षा की मांग की जा रहीं हैं। इंडिया इंक ने सरकार को संदेश दिया है कि प्रस्तावित नए कंपनी एक्ट में पॉलिटिक्ल फंडिंग के बारे में बताने का जो प्रावधान है उसे हटाया जाए। कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री(सीआईआई) ने सरकार को लिखकर गुहार लगाई है कि वह नए कंपनीज़ ऐक्ट के सेक्शन 182(3) में बदलाव करे।इस सेक्शन में कहा गया है कि कॉरपोरेट्स को उन पॉलिटिक्ल पार्टियों के नामों का खुलासा अपने प्रॉफिट ऐंड लॉस अकाउंट में करना होगा, जिन्हें वे चंदा देते हैं। इसके लिए रेप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल ऐक्ट,1951 के सेक्शन 29ए के तहत रजिस्टर्ड इकाइयों को पॉलिटिक्ल पार्टियों के तौर पर परिभाषित किया गया है।

    कॉरपोरेट घरानों के आगे सब नतमस्तक हैं
    खैर, मंच से दलितों, शोषितों, दबे-कुचले गरीब वर्ग की हिमायत में अपने महान नेताओं के भाषण सुन कर होश में आ पाएँ तो थोड़ा ध्यान यहां भी दे दीजिएगा। जो पूंजी इन्हें कुर्सी दिलवाने में सबसे अहम भूमिका निभाएगी बदले में अपना हिस्सा तो उसे लेना ही लेना है।यानी मंच से बेशक ये सारे नेता गरीबों के सबसे बड़े हमदर्द दिखते हो सच्चाई तो उनके सत्ता में आने के बाद फिर से हमारे सामने होगी। इस देश में सत्ता बनाने-बिगाड़ने के खेल में कॉरपोरेट घरानों की भूमिका को अभी भी आप नहीं समझे, तो आपको अपने अपने ईश्वर और अपने अपने अवतार मसीहा की भेड़ धंसान में निर्विकल्प अनंत समाधि मुबारक।
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    हमारी तकदीर अच्छी होगी तो आई ए एस कैडर के केजरीवाल भारत को प्रधानमंत्री के रूप में मिलेंगे – भारत के पहले आईएएस नेताजी को तो भ्रष्टाचारियों ने खत्म ही करवा दिया है अब केजरीवाल के पीछे पड़े हैं —
    रिलायंस जाम्नगर गुजरात में नवागाँव की महिला सरपंच झाला ज्योत्सना बा (9824236692) को 23-2-15 को अपने पूरे परिवार के साथ रिलायंस कम्पनी से प्रताड़ित होकर आत्महत्या का प्रयास करना पड़ता है, गुजरात पुलिस ने अभी तक रिपोर्ट नहीं लिखा है ,सरपंच का दोष ये है कि उन्होने अपने गायों के चराने का चरागाह रिलायंस को नहीं दिया है, आत्महत्या से पहले उन्होंने स्थानीय थाने से लेकर प्रधानमंत्री तक को पत्र भी लिखा था पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है ————–ये है मॉडल राज्य गुजरात के किसानों की और महिला कल्याण की सच्चाई ——— 18 चैनल्सको खरीदकर रिलायंस ने पत्रकारिता की अंतिम क्रिया कर दी है ———

    किसान बंदूक उठाये तो नक्सली, आत्महत्या करे तो कायर !
    सत्तातंत्र का फायर – किसान बंदूक उठाये तो नक्सली, आत्महत्या करे तो कायर गजेन्द्र की ख़ुदकुशी के बहाने ही सही मगर किसानों की मौत पर सवा…
    http://WWW.HASTAKSHEP.COM

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