लोक से दूर क्यों हुआ गणतंत्र दिवस

गणतंत्र दिवस पर विशेष

सुरेश हिन्दुस्थानी
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में आज का दिन राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। देश में कहने को दो ही राष्ट्रीय त्यौहारों को अधिकतर प्रचारित किया जाता है। सरकारी स्तर पर बहुत बड़े आयोजनों के माध्यम से इन विशेष दिवस पर अनेक प्रकार के कार्यक्रम किए जाते हैं। लेकिन यह भी देखने में आता है कि यह कार्यक्रम देश और प्रदेश की राजधानियों में जिस उत्साह के साथ सरकारों द्वारा मनाया जाता है, वैसा भारत की जनता की तरफ से उल्लास व्यक्त नहीं किया जाता। सच कहा जाए तो वर्तमान में गणतंत्र दिवस का त्यौहार केवल सरकारी त्यौहार ही ज्यादा लगता है। इन आयोजनों में लोक की भागीदारी का प्रतिशत निकाला जाए तो यह सत्यता पता चल जाएगी कि जनता इस पर्व के प्रति कितना लगाव रखती है। देश में जिस प्रकार से होली, दिवाली और रक्षाबंधन का त्यौहार हर परिवार से जुड़ा हुआ है, वैसी ख्याति हमारे इन राष्ट्रीय पर्वों को क्यों नहीं मिली। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। हमारे देश के नीति निर्धारकों ने इसे राष्ट्रीय त्यौहार का दर्जा दिया, लेकिन राष्ट्र्रीय का मतलब क्या होता है? इसका अर्थ भी हम सभी को समझना होगा। वास्तव में राष्ट्रीय का मतलब उस राष्ट्र में रहने वाले जन, उसकी संस्कृति, उसका साहित्य, परंपराएं, आस्था केन्द्र आदि होता है। जिस त्यौहार में यह सभी समाहित होते हैं, वे राष्ट्रीय त्यौहार माने जाते हैं। भारत की इस परंपरा का अध्ययन करना है तो हमें उस काल खंड का अध्ययन करना होगा, जो भारत की गुलामी से पूर्व का है। यानी अंगे्रजों और मुगलों के शासन से पहले का भारत ही असली भारत है। क्योंकि उस समय भारत की सीमाएं बहुत दूर तक फैलीं थीं। वर्तमान में भारत के आसपास जो देश दिखाई देते हैं, उसमें से कई देश भारत का हिस्सा थे। देश को सवतंत्रता मिलने के बाद हमें जो भारत मिला, वह विश्व गुरू भारत का स्वरूप नहीं है। देश को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत के जिस सांस्कृतिक स्वरूप को बनाने के लिए लड़ाई लड़ी, आज वह स्वरूप बहुत दूर दिखाई दे रहा है। आजादी मिलने के पश्चात हमारे नीति नियंताओं ने प्रजातंत्र की राह चुनी। हमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का निवासी होने का गौरव प्राप्त हुआ। लोकतंत्र का तात्पर्य- जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों का शासन है। जनता द्वारा चुनी गई सरकार जनता के कल्याणार्थ होती है, आजादी मिलने के लगभग 10-15 वर्षों तक सरकार में सम्मिलित नेता, मंत्री, अधिकारी एवं ठेकेदारों में देशप्रेम, देशसेवा, ईमानदारी, मानवीय मूल्य, नैतिकता एवं जन कल्याण करने की भावनाएं विद्यमान थीं।
हमारे कर्णधारों ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से राष्ट्र की प्रगति और विकास का खाका तैयार किया। इन परियोजनाओं में कृषि, ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, परिवहन आदि के विकास पर जोर दिया। आजादी के पूर्व जो विकास किया गया उसमें अंग्रेजों का स्वार्थ निहित था। उन्होंने भी सड़कें बनवाईं, रेल लाइनें बिछवाईं, तार, टेलीफोन, पोस्ट आफिस एवं शिक्षा का विस्तार किया, लेकिन वह सब अपनी प्रगति और सुविधा के लिए था। उनके द्वारा बनवाए गए रेलवे पुलों से आज भी रेलगाडिय़ां बेधड़क निकल रही हैं। सन 1947 ईसवी में डालर और रुपए की कीमत बराबर थी। महंगाई एवं भ्रष्टाचार नहीं था, गुंडागर्दी और अराजकता नहीं थी। बुजुर्ग लोग कहते हैं- लोकतंत्र से तो अच्छा अंग्रेजों का शासन था। भले ही लोग अनपढ़ थे, परन्तु दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, स्त्री प्रताडऩा हिंसा, बलात्कार, नक्सलवाद, आतंकवाद, बेरोजगारी, पारिवारिक विघटन जैसी समस्याएं नहीं थीं। प्रांतवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, धर्मवाद, नस्लवाद, जातिवाद जैसे दंश समाज को नहीं झेलने पड़ते थे। आज देश चौतरफा आंतरिक एवं बाह्य जगत की समस्याओं से घिरा हुआ है। सरकार जो कहती है, उसका उलटा हो जाता है। सरकार ने कहा- हम सौ दिन में महंगाई कम कर देंगे, लेकिन महंगाई कम तो नहीं हुई उलटे दिन दूनी रात चौगुनी छलांगे लगा रही है। सरकार ने भ्रष्टाचार और बेरोजगारी हटाने का नारा दिया था- तो इसमें भी बेतहासा वृद्धि होती जा रही है। दुष्कर्म मामलों में कड़ी सजा का प्रावधान करने की बात कही गई थी- तभी से दुष्कर्म करने के मामले और बढ़ते जा रहे हैं और दुष्कर्म करने वालों के होंसले बुलन्द होते जा रहे हैं। सन 1971 ईसवी में जहां 2487 दुष्कर्म हुए, वहीं 2011 में यह संख्या दस गुना बढ़कर 24206 हो गई। भारत में हर 20 मिनट में एक महिला दुष्कर्म की शिकार हो रही है। इसी प्रकार सन 2013 में 35565 महिलाओं का अपहरण हुआ। विदेशी महिलाओं के साथ भी दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इससे विश्व में हमारे देश की किरकिरी हो रही है। सन 1901 में प्रति हजार पुरुष पर जहां 972 महिलाएं थी, वहीं 2011 में यह संख्या मात्र 940 ही रह गई। जबकि इस बीच लोगों में साक्षरता का प्रतिशत बढ़ा है। इस समय देश में साक्षरता का प्रतिशत 74 है, जबकि सन 1941 में साक्षरता मात्र 16.70 प्रतिशत ही थी।
भारत हरित क्रांति और दुग्ध क्रांति में अग्रणी है, फिर भी आज देश के 26.10 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने को मजबूर हैं। यूएनएफएओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 23 करोड़ 30 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। देश में बाल श्रम कानूनन अवैध है फिर भी अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार यहां 25 करोड़ बाल श्रमिक हैं।
सन 1947 से आज तक हम 5 लाख 86 हजार गांवों में मात्र एक लाख चालीस हजार गांवों का ही विद्युतीकरण कर पाए हैं। खाद्य तेलों के उत्पादन में हम आज भी फिसड्डी हैं। हमें पैट्रोलियम पदार्थों, रक्षा उपकरणों की तरह ही खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है। सन 2012-13 में देश को 96.3 लाख टन खाद्य तेलों का आयात करना पड़ा। अंतरिक्ष, रक्षा, कृषि, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग आदि क्षेत्रों में देश ने प्रगति अवश्य की है, लेकिन यह गति बहुत धीमी रही है। हमारा राजकोषीय घाटा निरन्तर वृद्धि पर है। सन 1980-81 में यह 8299 करोड़ था और सन 2012-13 में यह बढ़कर 5,13,590 करोड़ हो गया। सन 2009 से 2013 तक जीडीपी में दो प्रतिशत की कमी आई है। अभी यह महज 8 प्रतिशत ही है। प्रति व्यक्ति आय में जरूर इजाफा हुआ है। सन 2001 में प्रति व्यक्ति आय 17295 रुपए थी और सन 2011 में यह आय 54151 रुपए तक पहुंच गई। अन्य देशों की अपेक्षा यह वृद्धि बहुत कम हैं। लेकिन इस बीच गरीब अपनी जमीन से वंचित भी हो रहे हैं। भूमिहीन खेतिहर मजदूरों की संख्या 2001 में अनुसूचित जाति में 36.9 प्रतिशत थी, जो 2011 में यह 44.5 प्रतिशत हो गई है। अनुसूचित जनजाति में यह प्रतिशत सन 2001 में 45.5 था, सन 2011 में यह बढ़कर 45.9 हो गया। सन 2001 में अनुसूचित जाति में कुटीर उद्योगों का प्रतिशत 3.9 था, सन 2011 में यह 3.2 ही रह गया। अनुसूचित जनजाति में यह 2.1 से 1.8 ही रह गया है।
इन सब आंकड़ों को दर्शाने का तात्पर्य यह है कि आजादी के 69 वर्षों बाद भी देश ने वह विकास नहीं किया जो इन वर्षों में अपेक्षित था। इन्हीं वर्षों में चीन, जापान, कोरिया और इजराइल जैसे देश हमसे बहुत आगे निकल गए। जबकि भारत युवा और प्रतिभाओं का देश माना जाता है। भारत देश प्रतिभाओं की ऐसी फैक्ट्री है जो प्रतिभाओं का उपयोग स्वयं नहीं कर पाती, मुफ्त में उन्हें बाहर के देशों में भेज देती है। भारतीय प्रतिभाओं का उपयोग कर अमेरिका दुनिया का सुपर पॉवर बना हुआ है। इन प्रतिभाओं के कारण ही ब्रिटेन, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे देश अपना भरपूर विकास कर रहे हैं।
देश के हितों को ध्यान में न रखकर अमेरिका को खुश करने के लिए निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण आदि को बढ़ावा देना रहा है। पश्चिमी देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियां निर्धन देशों को बेतहासा लूट रही हैं। भारत में विदेशी कंपनियां मात्र 5.6 प्रतिशत ही पूंजी लेकर आईं, शेष 94.4 इन्होंने घरेलू बाजार से प्राप्त की। कॉलगेट कम्पनी अपने निवेश का लगभग 18 गुना भाग अपने देश को भेज चुकी है। विकसित देश अपने हित की सोचते हैं न कि अन्य के हित की। उनका दृष्टि कोण मानवीय न होकर केवल बाजारू होता है। सन 1990 से हमने यह आत्मघाती कदम उठाया है, तभी से हम तबाही के कगार पर बैठ गए हैं। देश का सर्वस्व निजी हाथों में चला गया। इससे जनकल्याण के स्थान पर स्वकल्याण हाबी हो गया। कुटीर उद्योगों का सफाया हो गया। विकास ने किसानों को भूमिहीन कर दिया। मनरेगा के 100-150 दिनों के काम से उनकी गृहस्थी नहीं चल पा रही है। गांवों- कस्बों में सार्वजनिक शौचालय, मूत्रालय, शमशानघाट, स्कूल की इमारतें तक नहीं हैं, तालाब एवं सरकारी भूमि सरपंचों ने बेच डालीं। मनरेगा के कार्य कागजों पर चल रहे हैं। गांवों में स्वच्छ पेयजल भी नहीं है। उच्च शिक्षा एवं स्वास्थ्य की सुविधाएं नहीं हैं। इसलिए शहरों की ओर पलायन जारी है। हम गांधीजी के ग्रामीण विकास के सपनों को भूल गए हैं।
पश्चिमी शैली के प्रभाव में आकर हम भोगवादी संस्कृति की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। नैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण जारी है। छद्म धर्मनिरपेक्षता ने राष्ट्रीयता की भावना को विलोपित कर दिया। वोट की राजनीति ने लोगों में ईष्र्या द्वेष और वैमनश्यता को बढ़ावा देकर समरसता को समाप्त कर दिया। गलत आर्थिक नीतियों ने गरीबी को बढ़ावा दिया। भ्रष्टाचार ने रक्षा तैयारियों को आघात पहुंचाया। देश अब नए नेतृत्व की प्रतीक्षा में है, ताकि उसकी आकांक्षाएं पूरी हो सकें। सबकी नरेन्द्र मोदी जैसे कुशल प्रशासक और विकास पुरुष पर टिकी हैं। भारत ही नहीं अपितु विश्व की निगााहें उन पर हैं। 66 वे गणतंत्र दिवस पर देशवासियों को यह चिन्तन जरूर करना चाहिए कि इन वर्षों में हमने क्या खोआ और क्या पाया है। और आगे क्या क्या प्राप्त करना है। इसके लिए हमें क्या करना चाहिए

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