हम होलिका की जय क्यों बोलते हैं ?

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होलिका की जय
होलिका की जय
होलिका की जय
होलिका की जय

होलिका दहन के समय पता नहीं क्यों हमारे यहाँ होलिका माता की जय बोली जाती है | लोग जलती हुई होली में जौ डालते जाते हैं और होली की परिक्रमा करते हुए उसकी जय बोलते हैं | एक राक्षसी जो भक्त प्रह्लाद को जीवित जलाने के लिए स्वयं आग में बैठी और हम उसकी जय जयकार करें ये बात मुझे हजम नहीं होती | साथ ही अगर हम भक्त प्रह्लाद को जलाने के लिए स्वयं जलने के लिए उद्यत होलिका की जय बोलते हैं तो उसे जलाने का आदेश देने वाले हिरण्यकशय्पु की क्यों नहीं ? खैर ये प्रश्न बचपन से मुझे परेशान करता रहा है | आज ये आपके सामने रख रहा हूँ |

हम सब जानते हैं कि हिरण्यकशय्पु एक शक्तिशाली राजा था | उसका राज्य स्वर्गलोक तक फैला था | जाहिर है उसमे थोड़ी बहुत बुद्धि भी होगी | इतना मूर्ख तो वो नहीं होगा कि वो अपनी बहन को आग में मात्र इसीलिए भेजे क्युकि होलिका प्रह्लाद को पकड़ सके | ये काम तो वो उसे किसी खम्बे से बांधकर और आस पास आग लगाकर भी कर सकता था | फिर उसने होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने का आदेश क्यों दिया ?

बहरहाल मेरे अनुसार हुआ ये होगा कि हिरण्यकशय्पु ने प्रहलाद को कहीं बांधकर जलाने की कोशिश की होगी | पहले होलिका अपने भाई के समर्थन में होगी | पर जैसे ही आग लगी होगी जलने के कारण भक्त प्रहलाद चीखे चिल्लाये होंगे | उन्होंने बचाने की गुहारें की होगी | उनकी कातर पुकार सुनकर उनकी बुआ होलिका का दिल पसीजा होगा | निश्चित ही उन्हें अपने भाई के कर्मो पर क्षोभ और उन्हें समर्थन देने के लिए स्वयं पर ग्लानि हुई होगी | और वो पश्चाताप की अग्नि में जल रही होगी | हो सकता है तभी उनका ह्रदय परिवर्तित हुआ हो और वो कोई कम्बल लेकर आग में प्रहलाद को बचाने के लिए आग में कूद गयी हों | स्वयं अग्नि में आहूत होकर हो सकता है उन्होंने भक्त प्रहलाद को बचाया हो | पर राक्षसी होने के कारण हम उसे इसका श्रेय न देते हों |

अब आते हैं होलिका के जादुई कम्बल पर | अपने भारत में चमत्कार को नमस्कार करने की परम्परा रही है | जिसने भी कोई अच्छा और अद्भुद काम किया हो उसका वर्णन हम ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर करते हैं | यदि कोई व्यक्ति खुद को आग लगा ले तो बचाने वाले उसे कम्बल से ही बचाते हैं | जैसा होलिका ने किया होगा | अब चूंकि प्रहलाद उस भीषण आग से जीवित बच गए तो लोगो ने उसे जादुई कम्बल का नाम दे दिया |

मैंने पहले भी अपने शिवजी वाले लेख में लिखा था कि लेखक लोग अपने लेख में अलंकारों का प्रयोग लेख की पठनीयता बढ़ाने के लिए करते हैं | जैसा कि उन्होंने शिवजी के लिए लिखा | पर पढने वालों ने अर्थ का अनर्थ करते हुए एक महायोगी को अज्ञान के अंधकार में नशे का देव बना दिया | हो सकता है होलिका की कहानी में भी कोई इसी तरह का पेच हो | हो सकता है कि होलिका की कहानी में भी उस ज़माने के लेखको ने अतिश्योक्ति का प्रयोग किया हो |

ये कहानिया हजारो साल पुरानी हैं | कालांतर में परिवर्तित होते होते, अपभ्रंश होते होते हो सकता है कि इनका स्वरूप बिगड़ गया हो | आज जरूरत इन कहानियों पर गौर करने की है | आज जरूरत फिर से सोचने की है | इस होली पर जब आप रंग बिरंगे पुत कर घर आये तो शॉवर लेते समय ये जरूर सोचे |

अनुज अग्रवाल

 

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