दुनिया को क्यों है योग की ज़रूरत

yogमो. अनीस उर रहमान खान

 

आधुनिक युग ने मनुष्य को इतना प्रायौगिक बना दिया है कि वह हर चीज़ को वैज्ञानिक दृष्टि से परखने की कोशिश करता है। अगर उसका मस्तिष्क उस बात को मान लेता है तो वह उसे अपने जीवन में उतारने की कोशिश करता है। अगर ऐसा नहीं हो पाता तो वह अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल करके वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए उसका हल निकालने का प्रयत्न करता है। विज्ञान के कामयाब सफर ने आज मनुष्य की जिंदगी को आसान और खुबसूरत बना दिया है। यही वजह है कि आज जीवन के हर रंग और रूप में हर स्तर पर आपको विज्ञान की झलक देखने को मिल जाएगी। आज हम कह सकते हैं कि आज का युग वैज्ञानिक युग है। आज विज्ञान ने हर क्षेत्र में तेज़ी से विकास किया है। बात चाहे कंप्यूटर साइंस की हो या मेडिकल साइंस की, विज्ञान ने हर क्षेत्र में चमत्कार कर दिखाया है। विज्ञान ने आज वह कर दिखाया है जिसकी कल्पना शायद दुनिया ने नहीं की थी। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी विज्ञान की उपलब्धियों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। आज हमारा देश कंप्यूटर साइंस और मेडिकल साइंस में इतना आगे बढ़ चुका है जिसकी कल्पना शायद दुनिया के दूसरों देशों ने नहीं की थी। यही वजह कि पड़ोसी देशों पकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और दूसरे अफ्रीकी देशों से बहुत से लोग इलाज के लिए भारत का रूख करने लगे हैं। इसका कारण यह है कि आज भारत जैसा सस्ता और अच्छा इलाज और कहीं उपलब्ध नहीं है।

 

हमारा देश सदियों से ऋषि मुनियों, सूफी संतों और ज्ञानियों का देश रहा है। यही कारण है कि हमारे देश का नाम भारत है। भारत दो शब्दों से मिलकर बना है। एक ‘‘भा’’ जिसका अर्थ है ज्ञान और दूसरा ‘‘रत’’ जिसका अर्थ है लगे रहना अर्थात् भारत का अर्थ हुआ ज़मीन का वह भाग जिसकी जनता हमेशा ज्ञान की प्राप्ति के लिए लगी रहती है। वास्तव में आयुर्वेद के मैदान में भारत ने एक ज़माने से न सिर्फ अपने घरेलू इलाज और नुस्खों पर विश्वास किया है बल्कि ईश्वर ने भी इसको भौगोलिक दृष्टि से इस तरह रचा है कि यहां वह सारी जड़ी बूटियां उपलब्ध जो लगभग सारी बीमारियों के इलाज में सहायक हैं। यही वजह है कि यहां ऋषि मुनियों और सूफी संतों ने सुनसान जंगलों में रहते हुए अपने को स्वस्थ रखने के लिए इसी इलाज को अपनाया था जिनमें से एक ‘‘योग’’ भी है।

 

इसमें कोई संदेह नहीं कि योग विशेष तौर पर हमारे देश की ही देन है। मगर प्रश्न यह पैदा होता है कि इसका इतिहास क्या है? श्वसन क्रिया से होने वाले फायदों का जि़क्र पुराणों में भी मिलता है। ऋषि मुनियों ,साधुओं, सूफी संतों ने अपनी अंतरआत्मा को वश में रखने के लिए अपनी श्वास पर काबू पाने के लिए तरह तरह के यत्न किए हैं। ५०० से १००० ईसा पूर्व से ही वैदिक काल के ग्रन्थों में कुछ तथ्य इसकी ओर इशारा करते हैं। इसी तरह हड़प्पा सभ्यता में भी योग का इशारा मिलता है। क्योंकि खुदाई के समय निकलने वाली कुछ मूर्तियां उन अवस्थाओं में मिली हैं जैसे कोई व्यक्ति योग की मुद्रा में नज़र आता है। पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ और वैज्ञानिक ग्रीग्री पोस सहल के अनुसार-‘‘ यह मूर्तियां योग की धार्मिक सभ्यता से संबंधित हैं। बावजूद इसके इस बात का कोई सही प्रमाण नहीं है कि भारतीय योग का संबंध हड़प्पा सभ्यता से ही है। फिर भी कई ज्ञानियों का यह मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता और योग एक दूसरे से संबंधित है जिसका प्रमाण योग की अवस्था में पाई जाने वाली खुदाई के दौरान मिली मूर्तियां हैं।’’ बुद्ध मत के धार्मिक ग्रंथों में भी योग की अवस्थाओं का उल्लेख किया गया है। वास्तव में हमारे देश में सदियों से धर्म को महत्व दिया गया है, योग इसी कारण से भारतीय धर्मों से संबंधित कर दिया गया। ताकि लोग इसके महत्त्व को न केवल समझ सकें बल्कि उसको अपने व्यावहारिक जीवन में उतारते हुए अपने आप को स्वस्थ रख सकें। यही कारण है कि जब इस्लाम धर्म के मानने वाले सूफी संत हमारे देश में आए तो उन्होंने योग को अपनाकर अपने शिष्यों(मुरीदों) के लिए इसे प्रशिक्षण का हिस्सा बनाया जो आज भी भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में विद्यमान है।

शरीर और हृदय को संतुलित रखने का नाम योग है। क्योंकि शरीर को बदलने से हृदय बदलेगा और हृदय बदलने से विवेक में वृध्दि होगी। विवेक से ज्ञानता में वृध्दि होगी जिससे आत्मा को संतुष्टि मिलेगी। आज पानी पर सर्फिंग के लिए उपयोग होने वाले बोर्ड पर भी योग किया जा रहा है। फिटनेस विशेषज्ञ के अनुसार पैडल बोर्ड पर योग करने से संतुलन अच्छा रहता है और जिन्हें भीड़ भाड़ वाले स्टूडियों में योग करने का दिल नहीं चाहता वह इसकी ओर आकर्षित होते हैं। बोर्ड रेसर और योग का प्रशिक्षण देने वाली जैलीन जर्बी कहती हैं कि-‘‘ लोग मुझे कहते हैं कि यह पानी पर चलने जैसा है। वह आगे कहती हैं कि पहली बार ऐसा करने वालों को सूखी ज़मीन पर चलने का प्रशिक्षण दिया जाता है। बोर्ड पर सब कुछ धीमी गति से होता है। क्योकि संतुलन बनाने में समय लगता है। जर्बी, नदी, दरिया और सागर में भी केवल लकड़ी के सहारे योग करने में सक्षम हैं। लेकिन वह आमतौर पर ठहरे हुए पानी पर ही योग सीखाती हैं। वह यह कहती हैं कि यह संतुलन बनाए रखने में बहुत काम आता है। उसमें पूरा शरीर व्यस्त रहता है। जर्बी के ग्राहक कनाडा, स्विट्जरलैंड, दक्षिण अफ्रीका और न्यज़ीलैंड तक से आते हैं।

हमारे प्रधानमंत्री ने गत वर्ष दुनिया को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र के मंच से योग के महत्व पर प्रकाश डाला था। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने इसके महत्व को स्वीकारते हुए २१ जून को हर साल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा कर दी। यह सारे भारतीयों के लिए गर्व की बात है कि दुनिया में पहली बार २१ जून को योग दिवस मनाया जा रहा है। वास्तव में योग का आधार ही इस बात पर है कि मैं खुद को बदलने के तैयार हंू। योग जिंदगी के हर पहलू पर प्रकाश डालता है और मनुष्य की जिंदगी को बेहतर बनाने में आज भी उतना ही सार्थक है जितना कि अपने प्रारंभिक दौर में था।

आजकल ज़्यादातर लोग अपने अपने कमरों में बंद होकर अपने कंप्यूटर से चिपके रहते हैं। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि लोग कभी कमर में दर्द तो कभी पीठ की तकलीफ से परेशान हो रहे हैं। योग इन परिस्थितियों में काफी कारगर है। अपने घर पर नियमित योग करने से इन परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है। आजकल बीमारियां मनुष्यों के साथ साए की तरह पीछा करती हैं। समय समय पर जाने अनजाने में हानिकारक वस्तुओं का सेवन भी हमारी आदत बन चुका है जो स्वस्थ्य को खराब करने में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। इन सबसे से मुक्ति हासिल करने का एक अच्छा तरीका योग भी है। योग करने वाले मनुष्य अपने लालन-पालन पर बहुत ध्यान देते हैं इसलिए ज़्यादातर योग करने वाले व्यक्ति स्वस्थ्य होते हैं। योग में भिन्न भिन्न प्रकार की बीमारियों को खत्म करने और स्वस्थ रहने के लिए अलग-अलग योग के तरीके बताए गए हैं। योग के साथ-साथ यदि आयुर्वेद का भी सेवन किया जाए तो यह न केवल जल्दी लाभदायक होगा बल्कि देर तक कायम भी रहेगा। आयुर्वेद और योगा के मामले में भारत दुनिया में अपना लोहा मनवा चुका है। संयुक्त राष्ट्र ने जब योग के महत्व को मान लिया है तो इससे न सिर्फ मेडिकल साइंस की उन्नति होगी बल्कि विश्व भर से रोगी हमारे देश का रूख करेंगे ताकि सस्ते इलाज से स्वस्थ होकर जा सकें। हमारा देश भारत आज साइंस में ही नहीं बल्कि योग में भी दुनिया को राह दिखाने के लिए तैयार है। इसलिए हम कह सकते हैं कि मेडिकल और योग की मंजि़ल एक ही है मगर रास्ते अलग अलग हैं। अंतर यह है कि आयुर्वेद और योगा के द्वारा इलाज सस्ता और टिकाऊ होता है जबकि मेडिकल साइंस के इलाज करने का तरीका काफी महंगा और अस्थायी है।

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