चांद पे बुढ़िया क्यों रहती है
पता नहीं युवकों की पीढ़ी
यह गुस्ताखी सहती क्यों है |
पूर्ण चंद्र पर जाने कब से
डाल रखा है उसने डेरा
सदियों सदियों से देखा है
जग ने उसका वहीं बसेरा
जाये तपस्या करने वन में
वहां पड़ी वह रहती क्यों है |
किस्से इश्क मोहब्बत के सब
इसी चांद से तो जन्मे हैं
लिखे प्यार की हर पुस्तक में
इस पर ढेर ढेर नगमें हैं
वृद्दों का क्या काम वहां पर
बुढ़िया नहीं समझती क्यों है |
इश्क प्यार करने वालों को
यह अतिक्रमण हटाना होगा
किसी तरह से भी बुढ़िया को
स. सम्मान हटाना होगा
दिलवालों की नगरपालिका
शीघ्र नहीं कुछ करती क्यों है |
प्रतिदिन चक्की पीस पीस कर
कितना आटा रोज गिराया
गिरा चांदनी बनकर आटा
जिसमें सारा विश्व् नहाया
आटा बनती यही चांदनी
सोचो झर झर झरती क्यों है |