चांद पे बुढ़िया रहती क्यों है

चांद युवाओं की बस्ती है

चांद पे बुढ़िया क्यों रहती है

पता नहीं युवकों की पीढ़ी

यह गुस्ताखी सहती क्यों है |

पूर्ण चंद्र पर जाने कब से

डाल रखा है उसने डेरा

सदियों सदियों से देखा है

जग ने उसका वहीं बसेरा

जाये तपस्या करने वन में

वहां पड़ी वह रहती क्यों है |

किस्से इश्क मोहब्बत के सब

इसी चांद से तो जन्मे हैं

लिखे प्यार की हर पुस्तक में

इस पर ढेर ढेर नगमें हैं

वृद्दों का क्या काम वहां पर

बुढ़िया नहीं समझती क्यों है |

इश्क प्यार करने वालों को

यह अतिक्रमण हटाना होगा

किसी तरह से भी बुढ़िया को

स. सम्मान हटाना होगा

दिलवालों की नगरपालिका

शीघ्र नहीं कुछ करती क्यों है |

प्रतिदिन चक्की पीस पीस कर

कितना आटा रोज गिराया

गिरा चांदनी बनकर आटा

जिसमें सारा विश्व् नहाया

आटा बनती यही चांदनी

सोचो झर झर झरती क्यों है |

 

Previous articleहम रिश्वत न खायेंगे
Next articleचुहिया रानी
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here