क्यों कहा जस्टिस काटजू ने ‘बेवक़ूफ़’ हैं 90 प्रतिशत भारतीय’

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तनवीर जाफ़री

अपनी तीखी व तल्ख़ टिप्पणी, स्पष्टवादिता तथा न्यायधीश रहते हुए कई मुकद्दमों में बेबाक व ऐतिहासिक निर्णय सुनाए जाने के लिए चर्चा में रहने वाले जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने पिछले दिनों भारतवासियों को आईना दिखाने की कोशिश करते हुए एक बार फिर अपनी इस बेबाक टिप्पणी से कोहराम पैदा कर दिया कि ‘90 प्रतिशत भारतीय बेवकूफ हैं’। तमाम लोगों को यह टिप्पणी बहुत बुरी लगी। तमाम लोगों ने जस्टिस काटजू की इस तल्ख़ टिप्पणी की आलोचना भी की। मुझे नहीं पता कि जस्टिस काटजू की इस तल्ख़ टिप्पणी पर आलोचनात्मक टिप्पणी करने वालों की अपनी पृष्ठभूमि क्या है? परंतु इतना तो ज़रूर कहूंगा कि मार्कंडेय काटजू की आलोचना करने वालों को कम से कम एक बार यह ज़रूर सोचना चाहिए कि जस्टिस काटजू की अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है, उनके परिवार का देश की आज़ादी से लेकर अब तक क्या योगदान है, उनकी व उनके परिवार की देश के प्रति क्या सेवाएं हैं और ऐसी पृष्ठभूमि रखने वाले व्यक्ति को आखिर किन परिस्थितियों में यह कहना पड़ा कि 90 प्रतिशत भारतीय बेवक़ूफ़ हैं।

कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से संबंध रखने वाले जस्टिस मार्कंडेय काटजू के दादा श्री कैलाशनाथ काटजू देश के एक जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी होने के अतिरिक्त मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं। इसके अतिरिक्त श्री कैलाशनाथ काटजू भारत सरकार के गृह, न्याय तथा रक्षा मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जि़म्मेदारी पंडित जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल में संभाल चुके हैं। वे कई भाषाओं के ज्ञानी भी रहे हैं। इनके पिता जस्टिस शिवनाथ काटजू इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज रह चुके हैं। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं अनेक बार जस्टिस शिवनाथ काटजू के संपर्क में रहा तथा उनके साथ मेरी इस्लामी मामलों, सामाजिक विषयों तथा देश के राजनैतिक मसलों पर प्राय: चर्चा होती रहती थी। जस्टिस मार्कंडेय काटजू की ही तरह वे भी निहायत स्पष्टवादी एवं बेकाक टिप्पणियां किया करते थे। मुझे याद है कि 70 के दशक में विश्व हिंदू परिषद ने उन्हें अपने संगठन का अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनोनीत किया था। उसी दौरान मेरे उनके घनिष्ठ संबंध भी थे। मेरे निवेदन पर वे एक बार इलाहाबाद में मोहर्रम संबंधी एक आयोजन में बड़ी ही प्रसन्नता के साथ तथा मुझ पर पूरा विश्वास व भरोसा जताते हुए अकेले सवयं अपनी कार चलाकर सिविल लाईन से दरियाबाद मोहल्ले में तशरीफ लाए थे। उन्होंने अपनी तकऱीर में जहां हज़रत इमाम हुसैन की शहादत पर रोशनी डाली थी वहीं उन्होंने अपनी तकऱीर का समापन इस वाक्य के साथ किया था कि ‘मैं विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष के नाते विश्व हिंदू परिषद की ओर से शहीद-ए-करबला हज़रत इमाम हुसैन को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं’। मैं नहीं समझता कि आज विश्व हिंदू परिषद का कोई नेता इस प्रकार के किसी आयोजन में जाने के लिए राज़ी होगा या वहां जाकर सामाजिक सद्भावना पैदा करने वाले ऐसे दो शब्द बोल सकेगा।

बहरहाल, जस्टिस मार्कंडेय काटजू उसी महान पिता की संतान हैं जो निश्चित रूप से अपने पिता व दादा की ही तरह अपने विवेक पर आधारित टिप्पणी करते हैं बिना यह सोचे-समझे हुए कि इसके फायदे व नुकसान क्या हो सकते हैं। जस्टिस मार्कंडेय काटजू स्वयं संस्कृत,उर्दू, इतिहास,विज्ञान, समाजशास्त्र तथा तर्कशास्त्र का गहन ज्ञान रखते हैं। वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायधीश रहने के अतिरिक्त इलाहाबद, मघ्यप्रदेश व दिल्ली जैसे उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायधीश के पदों को सुशोभित कर चुके हैं। देश के उच्चतम न्यायालय में भी वे एक विख्यात न्यायधीश के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इन्होंने 1967 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में वकालत में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। जस्टिस काटजू की अदालत देश में सबसे तेज़ $फैसले निपटाने वाली अदालतों में प्रथम थी। एक सप्ताह में सौ से अधिक मुक़द्दमों का निपटारा करने वाली अदालत के रूप में इनकी पहचान थी। आपने तमाम पुस्तकें भी लिखी हैं। इनके चाचा जस्टिस बी एन काटजू भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश रह चुके हैं। अब ज़रा $गौर कीजिए कि ऐसी शिक्षित व न्यायायिक पृष्ठभूमि रखने वाले परिवार के एक जि़म्मेदार सदस्य द्वारा आख़िर यह क्योंकर कहा गया कि 90 प्रतिशत भारतीय बेवक़ूफ़ हैं?

जस्टिस मार्कंडेय काटजू के अनुसार ‘अंग्रेज़ों ने पहले तो भारत में हिंदू व मुसलमान को आपस में बांटा और फिर पाकिस्तान के रूप में अलग देश बनवा दिया। लेकिन सबसे दु:खदायी बात यह है कि आज़ादी के बाद उनके ‘एजेंटों’ ने उनकी नीति को जारी रखा। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि अपना वोट बैंक बनाए रखने के लिए राजनेताओं ने अंग्रेज़ों द्वारा बोए गए ज़हर को समाज में और गहराई तक पेवस्त कर दिया’। अब ज़रा बताईए कि जस्टिस काटजू के इस कथन से कौन सा राष्ट्रवादी भारतीय नागरिक सहमत नहीं है? क्या भारतीय तथाकथित नेता अंग्रेज़ों द्वारा बनाई गई समाज को बांटो और राज करो की नीति का अनुसरण नहीं कर रहे हैं? और यह सब भलीभांति जानने के बावजूद क्या बार-बार यही भारतीय समाज इन्हीं अंग्रेज़ों की नीतियों का अनुसरण करने वाले नेताओं के हाथों की कठपुतली नहीं बन जाता? पिछले दिनों अलीगढ़ विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए जस्टिस काटजू ने एक बात यह भी कही कि सांप्रदायिकता को समाप्त किए बिना देश में खुशहाली नहीं लाई जा सकती। अब ज़रा महात्मा गांधी के उस कथन को याद कीजिए जिसमें उन्होंने हिंदू व मुसलमान दोनों क़ौमों को भारत माता की दो आंखों के रूप में वर्णित किया था। क्या ऐसा संभव है कि देश की लगभग चौथाई आबादी की अवहेलना, अपेक्षा या तिरस्कार कर देश को तरक्की की राह पर ले जाया जा सके? पंरतु हमारे देश के तमाम तथाकथित चतुर राजनेता आज अपने वोट बैंक की खातिर समाज में न जाने कैसे-कैसे सांप्रदायिकता के ज़हर मात्र अपनी सत्ता की $खातिर घोल रहे हैं।

अब यह फैसला तो हम को ही करना होगा कि हम अपने तथाकथित राजनेताओं की मंशा,उनकी साजि़श, चालबाज़ी तथा बदनीयती सब कुछ जानते व बूझते हुए भी बार-बार उनकी चालों का शिकार क्योंकर हो जाते हैं और उन्हें राष्ट्रविरोधी आचरण अपनाने के लिए बार-बार निर्वाचित करते जाते हैं। गोया मु_ीभर राजनेता या समाज को विभाजित करने की साजि़श रचने वाला गिरोह बड़ी आसानी से पूरे देश को विभिन्न वर्गों में विभाजित करने में कामयाब हो जाता है। आख़िर यह हमारी बेवकूफी की निशानी नहीं तो और क्या है? यहां एक और कड़वा सत्य उदाहरणार्थ प्रस्तुत है। अंगे्रज़ों ने जिस समय देश पर शासन किया उस समय उन्होंने चंद स्वाभिमानी राजघरानों को छोडक़र देश के अधिकांश राजघरानों, जागीरदारों व ज़मींदारों को अपने क़ाबू में रखने के लिए उन्हें तरह-तरह के एज़ाज़, अल्$काब, उपाधियों, जागीरों,संपत्तियों तथा ओहदों से नवाज़ा। गोया देश के इन शक्तिशाली लोगों को अपने $काबू में रखने के बाद अंग्रेज़ यह समझ लेते थे कि जब मुखिया ही हमारे नियंत्रण में है तो आम जनता तो अपने-आप हमारे काबू में आ ही जाएगी। इस प्रकार अंग्रेज़ों ने बड़ी आसानी से पूरे देश को अपना गुलाम बना लिया। क्या यह सच नहीं है कि कल तक अंग्रेज़ों की खुशामद, उनकी जीहुज़ूरी करने वाले, उनके आगे दुम हिलाने वाले व राष्ट्र का स्वाभिमान अंग्रेज़ों के चरणों में गिरवी रखने वाले लोग आज भी हमारे देश पर किसी न किसी रूप में राज कर रहे हैं? और यदि ऐसा है तो हम भारतीयों से बड़ा बेवक़ूफ़ आख़िर कौन हो सकता है?

जस्टिस मार्कंडेय काटजू द्वारा 90 प्रतिशत भारतीयों को बेवक़ूफ़ कहे जाने के उनके बयान के बाद एक समाचार यह सुनने को मिला कि उत्तर प्रदेश के दो बच्चों ने जस्टिस काटजू को उनके इस बयान के विरुद्ध कानूनी नोटिस भेजा है। इन बच्चों ने कहा है कि जस्टिस काटजू के वक्तव्य से दुनिया में देश की तौहीन हुई है। मेरे विचार से देश की तौहीन कड़वा सच बोलने से नहीं बल्कि देश के वर्तमान राजनैतिक व सामाजिक हालात के चलते हो रही है। देश का अपमान तब हेाता है जब दुनिया यह देखती है कि किस प्रकार भारत के लोग मंदिर-मस्जिद जैसी निरर्थक बातों के लिए एक-दूसरे का खून बहाने के लिए तैयार हो जाते हैं। देश का अपमान उस समय होता है जब दलितों को मंदिरों में प्रवेश करने तथा कुंए से पानी भरने या विवाह के समय घोड़ी पर सवार होने के लिए रोक दिया जाता है। देश का अपमान उस समय होता है जब चोर-उचक्के, मा$िफया तथा अपराधी प्रवृति के लोग जनता द्वारा चुनकर संसद व विधानसभाओं में भेज दिए जाते हैं। देश अपने-आप को अपमानित उस समय महसूस करता है जब देश की रक्षा का ढोंग करने वाले तथाकथित राजनेता देश को बेचने लूटने व देशवासियों का शोषण करने का दु:स्साहस करते हैं।

दुनिया में देश का अपमान उस समय होता है जबकि हमारे देश में सम्प्रदाय,धर्म,क्षेत्र,भाषा व जाति के आधार पर चुनाव संपन्न होते हैं तथा इसी आधार पर राजनीति के चतुर खिलाड़ी सत्ता हथिया लिया करते हैं। जब तक हमारा देश ऐसी सामाजिक व राजनैतिक दुर्भावनाओं का शिकार रहेगा तब तक जस्टिस मार्कंडेय काटजू जैसे राष्ट्रवादी सोच रखने वाले किसी भी व्यक्ति के कथन को झुठलाया नहीं जा सकेगा। बजाए इसके मैं तो यही कहूंगा कि जस्टिस काटजू ने दस प्रतिशत भारतीयों को छोडक़र भी बड़ी रियायत बरती है। क्योंकि 90 प्रतिशत भारतीय यदि मूर्ख हैं तो उन्हें नियंत्रित व संचालित करने वाले शेष 10 प्रतिशत लोग भी मूर्खाधिराज से कम नहीं।

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  1. ham rajneetik roop se to swatnatra hai par angrejon se kam chalbaj nahi hai. Justice Katjoo apni bebaki ke liye jane jate hai, unhe sadhuvad.Apko bhi iske liye shukria ada karna chahta hoon ki apne itna nipeksh aklan kiya.

  2. तनवीर जाफरी जी आपने ठीक कहा है की जस्टिस मारकंडे काटजू की टिप्पणी भारतियों को आईना दिखाने वाली है. आपने उनके पिता जस्टिस शिवनाथ काटजू जी का उलेख किया की उन्होंने विश्व हिन्दू परिषद् के उपाध्यक्ष के रूप में हजरत इमाम हुसैन की शहादत के लिए उन्हें श्रद्धांजलि दी थी.ये वो दौर था जब हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच दीवार को नेताओं ने आज की तरह मजबूत नहीं किया था. उसी समय में राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरूजी (माधव सदशिव गोलवलकर) की भेंट डॉ सैफुद्दीन जिलानी जी से भेंट वार्ता हुई थी जिसमे श्री गुरूजी ने स्पष्ट रूप से कहा था की भारत की विभिन्नता में एकता की परंपरा के अनुरूप मुस्लिमों को अपना व्यक्तिगत कानून अलग रखना उचित है.इमरजेंसी के दौरान जेलों में संघ व जमायते इस्लामी के लोग एक साथ जेलों में रहे और वहां आपस में कोई भेदभाव नहीं रहा. बाद में भी जब मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि संघ के सरसंघचालक व अन्य लोगों से मिलने आये तो नमाज का समय होने पर उन्हें वहीँ पर नमाज अदा करने की व्यवस्था संघ के लोगों ने की.महात्मा गाँधी ने हिन्दुओं और मुसलमानों को भारतमाता की दो आँखें कहा था. लेकिन अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सय्यद अहमद साहब ने अंग्रेजों का फेवर प्राप्त करने के लिए हिन्दुओं और मुस्लिमों को दो अलग कौमें बताया था और तारीख गवाह है की उसके बाद से अंग्रेजों ने हिन्दुओं और मुसलमानों में दरार बढाने के लिए षड्यंत्र चालू कर दिए थे जिनमे सर सय्यद अहमद ने पोर सहयोग दिया. यदि संदेह हो तो अशोक मेहता और अच्युत पटवर्धन की लिखी और १९४५ के आसपास प्रकाशित पुस्तक ” कम्युनल ट्राएंगल इन इण्डिया” पढ़ लें.इन दोनों लेखकों की पंथ निरपेक्षता पर शायद ही किसी को संदेह होगा.२००४ का एक निजी अनुभव बताना चाहूँगा. मार्च २००४ में मेरठ के मेरे परिचित एक मुस्लिम पावरलूम व्यापारी ने मुझसे कहा की उसे भाजपा में शामिल होना है क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी से अच्छा कोई नेता नहीं है.कुछ महीने बाद वो फिर मिले.तब तक मनमोहन सिंह की सर्कार आ चुकी थी. मेने पूछा की उनकी भाजपा की सदस्यता का क्या हुआ तो वो बोले की ” मुस्लमान एकबारगी सु… का गोश्त खा सकता है लेकिन भाजपा के साथ नहीं जा सकता”.मैं उनकी मौका परस्ती से दंग रह गया.ऐसे वातावरण में आपस में सामान्य व्यव्हार भी मुश्किल हो जाता है. और विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा आज के वातावरण में न्यायमूर्ति शिवनाथ काटजू जी के उदहारण का अनुसरण असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो गया है. इस दूरी को मिटने के लिए दोनों समुदायों को ही प्रयास करना होगा.मैंने हमेशा अपने मुस्लिम मित्रो को ईद की मुबारकबाद दी है.लेकिन उन्होंने कभी दीपावली या होली की शुभकामनायें देने की ‘औपचारिकता’ भी नहीं निभाई.जस्टिस मारकंडे काटजू जी ने जो कहा उसका समाचार मीडिया द्वारा प्रस्तुतीकरण गलत शीर्षकों से हुआ इसी कारन अचानक लोगों को गुस्सा आया. लेकिन बाद में पूरा वक्तव्य जानने के बाद ग़लतफ़हमी दूर हुई.

  3. तनवीर जाफरी जी, आप ठीक कहते हैं कि जस्टिस काटजू ने दस प्रतिशत भारतीयों को छोडक़र भी बड़ी रियायत बरती है। क्योंकि 90 प्रतिशत भारतीय यदि मूर्ख हैं तो उन्हें नियंत्रित व संचालित करने वाले शेष 10 प्रतिशत लोग भी मूर्खाधिराज से कम नहीं।

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