‘डीटीसी’ को गर्त्त में क्यों धकेलना चाहती है केजरीवाल सरकार

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दिल्ली के नए उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार की डीटीसी बसों के किराए में कटौती की फाइल वापस लौटा दी है। दरअसल, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने डीटीसी बसों के किराए 75 फीसदी तक घटाने का प्रस्ताव दिया था। दिल्ली सरकार ने हर रूट पर एसी बसों का किराया 10 रुपये, नॉन एसी और कलस्टर बसों का किराया सभी रूट के लिए 5 रुपये करने का ऐलान किया था, वहीं नॉन एसी और एसी बसों के डेली पास एक महीने तक 20 रुपये में मिलने की बात भी कही थी। केजरीवाल सरकार के इस फसले पर बैजल ने एक बार फिर से विचार करने को कह दिया है। केजरीवाल पांच राज्यों में होने वाले चुनाव से पहले दिल्ली में यह किसी भी हालत में लागू करना चाहते थे, ताकि चुनाव प्रचार के दौरान वह इसका बखान कर सकें. जिस तरह उन्होंने दिल्ली की जनता को ठगा है वैसे ही गोवा और पंजाब की जनता को भी ठगने का मौका मिल सकें. अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिये वह दिल्ली को स्टेपनी की तरह उपयोग कर ही रहे है. यदि केजरीवाल ने डीटीसी के भविष्य के बारे में थोड़ा भी गंभीर होते तो ऐसा कदम नहीं उठाते. इस कदम से डीटीसी की आय में जबरदस्त कमी आ सकती है जिसका असर वहां काम करने वाले कर्मचारियों पर पड़ेगी. जिसे देखते हुये ही एलजी ने वित्त विभाग से फैसले से होने वाले आर्थिक नुकसान पर भी राय मांगी है. जिसपर दिल्ली के वित्त विभाग ने इस प्रस्ताव पर सवाल उठाए हैं। दिल्ली सरकार का कहना है कि यह कदम प्रदूषण की समस्या से लड़ने के लिए कारगर होगी। राजधानी में बढ़ते प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए सरकार ने बसों के किराए में कटौती का प्रस्ताव दिया था। डीटीसी के बेड़े में फिलहाल करीब 4000 बसें हैं और डीटीसी में रोजाना करीब 35 लाख लोग सफर करते हैं। ऐसे में केजरीवाल सरकार के इस बयान का क्या मतलब निकाला जाये कि उनका ऑड-ईवेन नाकाम रहा है? आखिर जनता भी जानना चाहेगी क्योंकी कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये दिल्ली सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किये थे। केजरीवाल सरकार को बताना होगा आखिर इसकी जरुरत क्यों पड़ी?  लगता है केजरीवाल सरकार धीरे धीरे डीटीसी को गर्त में धकेलना चाहती है, इसके लिये जरुरी है कि लोगों को मुफ्त की आदत लगाया जाये. जिसके कारण सरकार बदलने की सूरत में भी कोई सरकार दाम बढ़ाने से पहले दस बार सोचे और जिसका श्रेय केजरीवाल सरकार उठाती रहे. उदाहरण के रुप में हम दिल्ली मेट्रो को देख सकते है कि किस तरह घाटे में होने के बावजूद किराया में बढ़ोत्तरी नहीं किया जा रहा है। साल 2009 में किराया में आखिरी बार बढ़ोत्तरी हुआ था, जब यमुना बैंक से नोएडा सिटी सेंटर तक मेट्रो लाइन को बढ़ाया गया था. याद कीजिये, पिछले साल जब एप आधारित प्रीमियम बस सर्विस के घोटाले में घिरे गोपाल राय को दिल्ली के परिवहन मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था. कहीं केजरीवाल सरकार उसी घोटाले पर पर्दा डालने की कोशिश तो नहीं कर रही है. केजरीवाल सरकार डीटीसी के किराये में कमी करके दिल्ली में होने वाली एमसीडी में चुनाव में एक मुद्दा बनाना चाहती है. जिसका फायदा आम आदमी पार्टी क मिल सके। क्योंकि आप सरकार के पास दिखाने को कुछ नहीं है ऐसे में वह डीटीसी के किराये में कमी करके आम लोगों के बीच सहानुभति बटोरने का काम कर सकती थी. जिस पर एलजी ने फिलहाल पानी फेर दिया है. वैसे डीटीसी में घुसखोरी नई बात नहीं है. वह इसके लिये बदनाम रहा है. अब देखना यह है की केजरीवाल इसे बदनामी के दलदल में और अंदर तक ले जाती है या फिर बाहर निकालने का प्रयास भी करती है. हालांकि अनिल बैजल को भेजे फाइल के जरिये तो यहीं लग रहा है वह भी नहीं चाहते की डीटीसी घुसखोरी के दलदल से बाहर निकले।

रजनीश कुमार

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