भाजपा सरकार सिख हत्याकांड के दोषियों को सज़ा क्यों नहीं देती

१९८४ के पीड़ितों को मुआवज़े से पहले इंसाफ़ की ज़रूरत है!

इक़बाल हिंदुस्तानी

केंद्र सरकार ने 1984 के सिख हत्याकांड के पीड़ितों को मिलने वाले मुआवजे़ की धनराशि तीन लाख से बढ़ाकर पांच लाख कर दी है। हालांकि चुनाव आयोग ने इस ऐलान पर सरकार से सवाल तलब किया है कि दिल्ली में उपचुनाव घोषित होने केे बाद मुआवजे़े में बढ़ोत्तरी का ऐलान क्यों किया गया? इसे आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन माना जा रहा है लेकिन सरकार का दावा है कि वह इस मामले में पहले ही नीतिगत निर्णय ले चुकी थी इसलिये इसके अब घोषित करने में चुनावी लाभ लेने की कोई मंशा नहीं थी। सन 84 के सिख हत्याकांड के पीड़ितों के लिये लगातार लड़ने वाले मानव अधिकार वादियों ने मुआवजा बढ़ाने का तो स्वागत किया है लेकिन वे भी इस बात पर निराश हैं कि पहले भी सत्ता में 6 साल रही राजग सरकार ने इस मामले में हत्याकांड के दोषियों को सज़ा दिलाने के लिये कोई खास काम नहीं किया और अब भाजपा की पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार भी इस मामले में केवल मुआवज़ा रााशि बढ़ाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री करना चाहती है।

इससे पहले दिल्ली में जब केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी तब इस हत्याकांड की जांच के लिये विशेष जांच टीम बनाई जा रही थी लेकिन यह टीम बनने से पहले ही उस अल्पमत सरकार को सपोर्ट कर रही कांग्रेस पार्टी सकते में आ गयी और लोकपाल के मुद्दे पर आप सरकार गिरा दी गयी। दंगा पीड़ितों का दुख मुआवज़ा राशि बढ़ाकर दूर नहीं किया जा सकता बल्कि उनको न्याय दिलाने की पहली ज़रूरत है। मुआवज़ा उनसे हमदर्दी जताने का सही तरीका नहीं हो सकता। पैसे से खाने की भूख तो मिटाई जा सकती है लेकिन जो आग दंगा पीड़ितों के दिलो दिमाग में 30 साल से जल रही है उसको तभी शांत किया जा सकेगा जब हत्याकांड के अपराधियों को जेल के सीखचों के पीछे या फांसी के तख़्ते पर चढ़ाकर सज़ा दी जाये।

दरअसल 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब बेकसूर सिखों का क़त्ल ए आम शुरू हुआ और उनकी जगह पीएम की शपथ ले चुके राजीव गांधी से इस उन्माद को लेकर सवाल पूछा गया तो उनका कहना था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। यह ठीक ऐसा ही जवाब था जैसे 2002 में गोधरा में रेल के डिब्बे में रामसेवकों के ज़िंदा जलाने के बाद पूरे गुजरात में फैले दंगे में मुसलमानोें के ज़्यादा मारे जाने पर तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है यह न्यूटन का सिध्दांत है। इसका नतीजा यह हुआ कि दंगे के बाद प्रशासनिक मशीनरी आरोपियों को सज़ा दिलाने में सुस्त हो गयी।

1984 के सिख हत्याकांड के बाद लंबे समय तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही या फिर उसके सपोर्ट से बनने वाली संयुक्त मोर्चा या जनता दल की सरकारें रहीं जिनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती थी कि वे उन आरोपी कांग्रेसियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करें जिन पर इंदिरा की हत्या का बदला निर्दोष सिखों से लेने का आरोप था। यही वजह रही कि दंगाइयों का नेतृत्व करने के आरोपी कांग्रेसी सांसद और मंत्री जगदीष टाइटलर और एच के एल भगत एक के बाद एक जांच होने के बावजूद लगातार शीर्ष सत्ता का संरक्षण मिलने से सज़ा पाने से बचते रहे। अब यह मामला इतना पुराना हो चुका है कि वे गवाह और सबूत भी लगभग नष्ट होने के कगार पर पहुंच चुके हैं जिनसे यह साबित हो सकता था कि बेकसूर सिखों का हत्यारा या उनको हत्या के लिये उकसाने वाला कौन कौन था?

इस हत्याकांड का एक सुखद पहलू यह रहा कि इसके बाद भी सिखों ने न तो हिंदुओं से हमेशा के लिये किनारा किया और न ही उनको इस नरसंहार का ज़िम्मेदार माना क्योेंकि वे इसके लिये चंद कांग्रेसी अपराधियों को कसूरवार मानते थे। इसी का नतीजा था कि सिखों ने न केवल पंजाब में इसके बाद भी कई बार कांग्रेस को सत्ता सौंपी बल्कि दिल्ली में भी कांग्रेस को जमकर वोट दिये। कांग्रेस ने हालांकि उनके साथ इंसाफ नहीं किया लेकिन उनके ज़ख़्मों पर मरहम लगाने को स्वर्ण मंदिर मेें सोनिया ने मत्था टेका और सिख समाज से गोल्डन टैंपल पर सैन्य कार्यवाही के लिये माफी मांगकर उनका दिल जीतने को सरदार मनमोहन सिंह को दो दो बार पीएम बनवाया।

एक बात यह भी नोट करने लायक है कि 84 के सिख हत्याकांड में एक भी बड़ा सिख यहां तक कि मंत्री, जज, उद्योगपति या सांसद तो दूर एमएलए या सिख वार्ड मेंबर भी नहीं मारा गया जिससे यह प्रभावशाली बनाम आम सिख वर्ग का मामला भी बन गया। भाजपा खुद को कांग्रेस से अलग पार्टी होने का दावा करती रही है। उसका यह भी कहना रहा है कि न्याय सबको, तुष्टिकरण किसी का नहीं। सवाल यह है कि जब वह कांग्रेसमुक्त भारत का नारा देकर सत्ता में आई है और एक के बाद एक राज्य से कांग्रेस का सफाया करने का बीड़ा उठा रखा है तो ऐसे में उन कांग्रेसी आरोपियों को सज़ा देने के लिये आगे क्यों नहीं आती जिन पर 84 के दंगों का आरोप है।

अगर वह एक प्रगतिशील और हिंदू समाज का ही अंग समझे जाने वाले सिख समाज को इसलिये न्याय नहीं दिला सकती कि उसके ऐसे किसी भी कदम से हिंदूवादी सोच को ध्क्का लगेगा और वह हिंदू समाज को किसी भी कीमत पर यह संदेश नहीं देना चाहती कि भाजपा जैसी पार्टी के सत्ता में रहते हिंदू समाज की तरफ से सिखों को ‘‘सबक’’ सिखाने वाले हिंदुओं को सज़ा दी जा रही है तो वह अपने परंपरागत विरोधी समझे जाने वाले मुस्लिम समाज को कैसे समान विकास और न्याय दिला सकती है?

ज़रूरत इस बात की है कि भाजपा की मोदी सरकार अपनी कथनी करनी एक साबित करने के लिये कालेधन से लेकर राबर्ट वाड्रा और 84 के सिख हत्याकांड के दोषियों को समय रहते सज़ा दिलाने का प्रयास करे नहीं तो उसका कार्यकाल पूरा होने के बाद बोफोर्स तोप दलाली के कसूरवार न तलाश करने के बाद वीपी सिंह सरकार और लोकपाल पास नहीं कर सकी 49 दिन की केजरीवाल सरकार की तरह उसको सफाई देने का जनता मौका नहीं देगी और वह केंद्र से साफ भी हो सकती है क्योंकि सत्ता तो बदल गयी है लेकिन व्यवस्था बदलती नज़र नहीं आ रही है जो भाजपा का दावा रहा है।

सोचा था जाकर अब उससे फ़रियाद करेंगे]

कमबख़्त वो भी उसका चाहने वाला निकला।।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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