“मैं अपने धर्म की शपथ लेता हूँ, मैं इसके लिए अपनी जान दे दूंगा. लेकिन यह मेरा व्यक्तिगत मामला है. राज्य का इससे कुछ लेना-देना नहीं. राज्य का काम धर्मनिरपेक्ष कल्याण, स्वास्थ्य , संचार, आदि मामलों का ख़याल रखना है, ना कि तुम्हारे और मेरे धर्म का.” – महात्मा गाँधी
आजकल सोशल मिडिया पर आयेदिन आजकल प्रतिदिन संदेश आ रहे हैं कि भगवान् महादेव को दूध की कुछ बूंदें चढाकर शेष निर्धन बच्चों को दे दिया जाए। सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन हर हिन्दू त्योहार पर ऐसे संदेश पढ़कर थोड़ा दुख होता है।
कभो लिखते हैं की दीवाली पर पटाखे ना चलाएं, तो कभी होली में रंग और गुलाल ना खरीदें, या फिर सावन में दूध ना चढ़ाएं, उस पैसे से गरीबों की मदद करें। लेकिन त्योहारों के पैसे से ही क्यों?
भारत माता, जो एक हिन्दू देवी दुर्गा का प्रतिरूप लगती है, को दक्षिणपंथी समूहों ने एक “राष्ट्रीय” प्रतीक के रूप में लगभग स्थापित कर लिया है. भारत माता गौरवर्णा है. भारत माता का रंग-रूप से लेकर उनका पहनावा तक एक हिन्दू देवी की तरह है, जो आधे से अधिक भारतीय महिलाओं के रंग-रूप और पहनावे से मेल नहीं खाता. वह दुर्गा की तरह शेर पर सवार है. दिलचस्प बात यह है कि देश का एक प्रमुख दक्षिणपंथी संगठन भारत माता की इस छवि को अपने प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करता आया है. भारत माता की जय के नारे हिन्दू संगठनों के कार्यक्रमों से लेकर भारतीय सेना में समान रूप से गूँजते है.
मीडिया का जितना कवरेज हिन्दू धर्म के पर्व-त्योहारों को मिलता है, उतना कवरेज दूसरे धर्मों के पर्व-त्योहारों को शायद ही नसीब होता है. हिन्दू पर्व-त्योहारों के समय प्रमुख हिंदी अखबार अपने ‘मास्टहेड’ को उन पर्व-त्योहारों के रंग से रंग देते हैं. त्योहार विशेष पृष्ठों और खबरों से अखबारों को भर दिया जाता है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी बहुसंख्यक धर्म के त्योहारों में पूरी तरह डूब जाती है. वैसे भारतीय मीडिया सालभर हिन्दू धर्मग्रंथों के पात्रों और मिथकों को उद्धृत करती रहती है. भीम जैसे धार्मिक पात्रों को लेकर कार्टून-शो बनाए जाते हैं. हिंदी फिल्मों के नायक भी अधिकतर हिन्दू पात्र ही होते हैं, भले ही उस पात्र को निभाने वाले अभिनेता किसी दूसरे धर्म के हो. हाल ही में इतिहास से छेड़छाड़ का एक और उदाहरण देखने को मिला. टीवी पर शुरू हुए एक नए “ऐतिहासिक” कार्यक्रम में जानबूझकर अकबर को एक मुस्लिम आक्रान्ता और खलनायक के रूप में दिखाने की कोशिश की गयी है. यह अकबर जैसे उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष शासक का गलत चित्रण कर नयी पीढ़ी को भ्रमित करने की कोशिश है.
क्या ये एक साजिश है हमें अपने रीति-रिवाजों से विमुख करने की ??
हम सब प्रतिदिन दूध पीते हैं तब तो हमें कभी ये ख्याल नहीं आया कि लाखों गरीब बच्चे दूध के बिना जी रहे हैं। अगर दान करना ही है तो अपने हिस्से के दूध का दान करिए और वर्ष भर करिए। कौन मना कर रहा है। शंकर जी के हिस्से का दूध ही क्यों दान करना?
आप अपने व्यसन का दान कीजिये दिन भर में जो आप सिगरेट, पान-मसाला, शराब, मांस अथवा किसी और क्रिया में जो पैसे खर्च करते हैं उसको बंद कर के गरीब को दान कीजिये | इससे आपको दान के लाभ के साथ साथ स्वास्थ्य का भी लाभ होगा|
महादेव ने जगत कल्याण हेतु विषपान किया था इसलिए उनका अभिषेक दूध से किया जाता है। जिन महानुभावों के मन में अतिशय दया उत्पन्न हो रही है उनसे मेरा अनुरोध है कि एक महीना ही क्यों, वर्ष भर गरीब बच्चों को दूध का दान दें। घर में जितना भी दूध आता हो उसमें से ज्यादा नहीं सिर्फ आधा लीटर ही किसी निर्धन परिवार को दें। महादेव को जो 50 ग्राम दूध चढ़ाते हैं वो उन्हें ही चढ़ाएं।
शिवलिंग की वैज्ञानिकता ….
शिवलिंग का अर्थ है शिव का प्रतिक, जैसे पूरूष लिंग यानि पुरुष का प्रतिक , स्त्रीलिंग स्त्री का प्रतीक,नपुसकलिंग नपुशक का प्रतीक . उसी तरह योनि शब्द मतलब जन्म से भी है. मनुष्ययोनि मनुष्य का जन्म (स्त्री या पुरूष) . कीट योनि यानि कीडो का जन्म, कुत्ते की योनि यानी कुत्ते का जन्म (कुत्ता या कुत्ती). हिंदू धर्म मे 84 लाख प्रकार की योनिया है यानि 84 लाख प्रकार के जन्म. हम जैसा कर्म करेगे वैसा हमे जन्म मिलेगा. वैज्ञानीक भी मानते है की 84 लाख के आसपास धरती मे जीव है. ……………………………………………
वैज्ञानीक की भाषा मे शिवलिंग एक Radioactive Source Container है। जाग्रत शिवलिंग, Live source का Container है, बाकी सब प्रतीक हैं। चूंकि Source गर्म हो जाता है, इसलिये इस पर लगातार जल की बूंदे डाली जाती हैं। शिवालय में शिवलिंग नीचे तल पर होता है, ताकि इसका पानी बाहर न छलके, शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है तभी जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता। पहले के जमाने में शिवालय हमेशा बस्ती से बाहर वीराने में होते थे, जैसे कि परमाणु बिजलीघर विरान मे. ……
Mahakaleshwar Temple Ujjain मे शिवलिग मे भगवान का चेहरा क्यो बना है ?
भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप उठा लें, तब हैरान हो जायेगें ! भारत सरकार के नुक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।
शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लियर रिएक्टर्स ही हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे.
महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे किए बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले है।
क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।
भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।
शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है।
तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी।
हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है।
जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है।विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।..