महापुरुषों को बांटने की राजनीति क्यों?

imagesgreat people
पहले सरदार पटेल, फिर महात्मा गांधी और अब पं. जवाहरलाल नेहरू की विरासत को लेकर भाजपा व कांग्रेस की राजनीतिक लड़ाई सार्वजनिक हो चुकी है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की 125वीं जयंती पर कांग्रेस द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा और उसके घटक दलों को आमंत्रित न करना बताता है कि कांग्रेस किस तरह की राजनीति पर उतर आई है। देश के महा -पुरुषों को प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल करने की इस राजनीति ने ओछेपन की सभी सीमाओं को पार कर लिया है। पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, बाबा साहब अंबेडकर, लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसी विभूतियों पर राजनीतिक दलों द्वारा अधिकार जमाने की कोशिश करने का यह कोई पहला मामला भी नहीं है। आजाद भारत के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जो बताते हैं कि राजनीतिक दलों ने अपने निहित स्वार्थो की पूर्ति तथा अपनी राजनीति को चमकाने के मकसद से किसी न किसी महापुरुष पर अपना ही अधिकार जताने की कोशिश की व उन्हें दूसरों के लिए बेगाना बना दिया।
जैसे- शिवसेना शिवाजी को केवल और केवल अपना ही मानती है, तो बाबा साहब अंबेडकर को मायावती व उनकी पार्टी।मगर, कांग्रेस यदि पं. जवाहरलाल नेहरू या महात्मा गांधी या सरदार पटेल को केवल अपना बनाने पर तुली है, तो इससे यही साबित होता है कि अब वह बेहद कमजोर हो गई है। वह डरने लगी है कि उसके प्रतीकों को कोई छीन न ले। चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गांधी जयंती पर स्वच्छता अभियान की शुरुआत कर देश को एक सार्थक संदेश देने में सफल रहे और सरदार पटेल की जयंती पर उन्होंने सशक्त भारत का जो खाका पेश किया था, उससे कांग्रेस की बेचैनी बढ़ गई है कि नेहरू जी को भी मोदी कहीं उससे छीन न लें। यहीं पर कांग्रेस का दोहरापन भी साफ हो जाता है। एक तरफ तो कांग्रेस ने यह शिकायत की थी कि मोदी इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर उनके समाधिस्थल पर क्यों नहीं गए। कांग्रेस ने कहा था कि मोदी को वहां जाकर इंदिरा गांधी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना चाहिए था। दूसरी ओर नेहरू जी के कार्यक्रम में मोदी या भाजपा-एनडीए को बुलाया तक नहीं। यह महापुरुषों के राजनीतिक इस्तेमाल का ही उदाहरण है।
मजे की बात यह भी है कि जिस महापुरुष को भुनाया नहीं जा सकता, कांग्रेस उसे याद भी नहीं करती। इस पर तो वैचारिक रूप से मतभेद हो सकता है कि मोरारजी देसाई, वीपी सिंह, पीवी नरसिम्हाराव को महापुरुष माना जाए अथवा नहीं। कुछ लोग इन नेताओं को महापुरुष मानेंगे, तो कुछ कहेंगे कि नहीं, ये साधारण नेता थे। मगर, इसमें कोई दोराय नहीं है कि मोरारजी देसाई, वीपी सिंह, पीवी नरसिम्हाराव भारत के प्रधानमंत्री थे। चौ. चरण सिंह भी देश के प्रधानमंत्री रहे थे। इन चारों नेताओं की जड़ें कांग्रेस पार्टी में ही थीं। मगर, उसने इन्हें कभी याद नहीं किया, क्योंकि उसे पता है कि इन दिवंगत नेताओं के नाम पर वोट नहीं बटोरे जा सकते। अत: कांग्रेस छोड़कर राजनीति करने वाले मोरारजी देसाई, वीपी सिंह और चौ. चरण सिंह को तो उसने भुलाया ही, उन नरसिम्हाराव को भी भुला दिया, जिन्होंने कांग्रेस और देश, दोनों की धारा को बदला था। यानी, कांग्रेस केवल उन्हें ही याद रखती है, जिसके नाम पर वोट मिलते हैं व सबसे ज्यादा चलने वाले सिक्के तो गांधी जी और नेहरू जी हैं ही।
आजादी के बाद से लेकर अब तक कांग्रेस ने अपने बुरे दौर में इन महान नेताओं के प्रति जनता की सहानुभूति को ही भुनाया। नेहरू जी के नाम पर अब तो कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष दलों की अगुआ बनने की फिराक में भी है, ताकि वह भाजपा का मुकाबला कर सके, मगर दिक्कत यह है कि कोई भी धर्मनिरपेक्ष नेता छोटे भाई की भूमिका निभाने के लिए तैयार नहीं है। हाल ही में जनता परिवार को जिंदा करने के प्रयास के दौरान भी कांग्रेस को इससे दूर ही रखा गया था। इन परिस्थितियों में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की सोच यह है कि नेहरू जी की विरासत को भुनाकर खुद की खोई जमीन तलाशी जाए। वरना, और क्या कारण है कि जो कार्यक्रम नेहरू जी का स्मरण करने के लिए आयोजित हुआ था, उसमें राजनीतिक बातें होती रहीं। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा गया। यह निशाना राहुल गांधी ने भी साधा और सोनिया ने भी।कांग्रेस को राजनीति करने का भी अधिकार है। मगर, किसी भी दल को किसी महापुरुष पर एकाधिकार जताने का कोई हक नहीं है। गांधी, नेहरू, पटेल पूरे देश के हैं, अकेले कांग्रेस के नहीं हैं। न लोहिया मुलायम के हैं और न ही दीनदयाल उपाध्याय पर भाजपा का एकाधिकार है। जयप्रकाश नारायण जितने नीतीश एवं लालू के हैं, उतने ही राष्ट्र के। बाबा साहब अंबेडकर भी केवल मायावती के नहीं हैं, बल्कि पूरे देश के हैं। यही बात हमारे सभी महापुरुषों पर लागू होती है। छोटे-छोटे दल अगर किसी महापुरुष विशेष पर अपना अधिकार जताएं, तो चलता है, मगर कांग्रेस यह गलती कैसे कर सकती है। उससे तो देश जवाब मांगेगा।
Previous articleमनुस्मृति का सर्वग्राह्य शुद्ध स्वरूप
Next articleमहाराजा हरि सिंह की जीत को नेहरु ने पराजय में बदल दिया
सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here