सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं

0
178

loveमनोज नौटियाल

 

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं

नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||

 

नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में

जूनून -ए – इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ?

 

मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के तराने सब

अमर अब भी मेरे दिल में तेरी रुबाइयां क्यूँ हैं ||

 

बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको

गिनाते लोग मुझको फिर तेरी अच्छाइयां क्यूँ हैं ||

 

सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन

हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है ||

 

सुबह से शाम तक मिलती नहीं फुर्सत जमाने से

लबों पर है हंसी दिल में बसी तन्हाईयाँ क्यूँ हैं ||

 

मुहोब्बत हूँ कोई तो एक दिन दिल में बसाएगा

तुम्हारे हुश्न पर पड़ने लगी ये झाइयां क्यूँ हैं ||

 

मिटा डाली सभी यादें कहीं दिल में दफ़न कर दी

बिना बदनामियों के मिल रही रुसवाइयां क्यूँ हैं ||

 

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं

नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here