छत्तीसगढ़ में अब आयाराम गयाराम की संस्कृति विकसित होगी

0
243

ajitछत्तीसगढ़ में तेजी से बढ़ते राजनीतिक घटनाक्रम में एक नया मोड़ तब आ गया जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजीत जोगी ने कांग्रेस से नाता तोड़कर नई पार्टी बनाने का एलान कर दिया । असम व केरल की सत्ता गंवाने के गम में डूबी कांग्रेस के लिए जोगी का पार्टी छोड़ना किसी चक्रवात से कम नहीं है । वैसे भी देश में कांग्रेस की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है । लोकसभा तथा विभिन्न राज्यों में लगातार पस्त होने के बाद कांग्रेस के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा चल रही है । यह अलग बात है कि नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी कांग्रेस संगठन की कमान गांधी परिवार के हाथ में ही होगी । बहरहाल नेतृत्व परिवर्तन के सुगबुगाहट के बीच अजीत जोगी का कांग्रेस से नाता तोड़ने का निर्णय पार्टी की मुसीबज ही बढ़ायेगा ।

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में संगठन एवं जोगी घड़े के बीच पिछले 1 वर्ष से जो अन्तर्द्वंद चल रहा है उससे यह महसूस होने लगा था कि अजीत जोगी किसी ना किसी दिन स्व. विद्याचरण शुक्ल की राहों में चलकर कांग्रेस को चुनौती देंगें । आखिरकार हुआ भी वही जब राज्यसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी की घोषणा से आहत पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कांग्रेस छोड़ने की सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी । उनकी यह घोषणा नई पार्टी के गठन की ओर बढ़ते संकेत का परिचायक है । नौकरशाह से राजनीति में आये अजीत जोगी ने कांग्रेस में शामिल होकर कांग्रेस के एक बहुत बड़े व्होट बैंक पर अपना प्रभाव जमा लिया है । अलग पार्टी बनाने से इस व्होट बैंक का कितना हिस्सा उनके साथ जायेगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगी, क्योंकि विधानसभा चुनाव में अभी काफी वक्त है । लंबे समय तक लोगों को अपने साथ बांधे रखना आसान काम नहीं है । छत्तीसगढ़ के मतदाता सामान्यतः द्विदलीय पद्धति को स्वीकार करते हैं । छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस दो बड़ी राजनैतिक शक्तियां है । दोनों की अपने अपने प्रतिबद्ध मतदाता है तथा दोनों के नीचले स्तर तक ईकाई है । ऐसी स्थिति में राजनीति की तीसरी शक्ति को मतदाता कितना स्वीकार करेंगें यह तो वक्त ही बतायेगा । भूतकाल में तीसरी शक्ति बनाने की कई बार कोशिश हुई है लेकिन जनता ने उसे कतई स्वीकार नहीं किया । स्व. विद्याचरण शुक्ला की एन.सी.पी. को उस समय एकाध सीट ही मिल पाई थी लेकिन 7 प्रतिशत मत प्राप्त करके उनकी पार्टी ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया ही था । श्री जोगी भी यदि नई पार्टी बनाते हैं तो उसका नुकसान कांग्रेस को ही होना है । छत्तीसगढ़ के कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां कांग्रेस कभी हारी ही नहीं, ऐसी सीटों में हो सकता है जोगी की नई पार्टी या तो अपना वर्चस्व जमा लेगी अथवा कांग्रेस को इतना नुकसान कर देगी कि उसका प्रत्यक्ष लाभ भाजपा को मिल जाय ।

छत्तीसगढ़ में पिछले 12 वर्षो में डा. रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने विकास के दम पर अपना गहरा पैठ बना लिया है । लोंगों को वो सुविधायें भी मिल रही है जो उन्हें कभी कांग्रेस सरकार में संभव भी नहीं थी । इस स्थिति में कांग्रेस के अन्तर्द्वंद ने डा. रमन सरकार की चौथी पारी का मार्ग प्रशस्त कर दिया है । मगर इस घटनाक्रम को महज दलगत राजनैतिक नफा नुकसान के दृष्टिकोण से देखना उचित नहीं होगा क्योंकि अन्य राज्यों की तरह यदि तीसरी शक्ति का उदय होगा तो छत्तीसगढ़ की राजनैतिक संस्कृति पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा । किसी नेता को अपने दल में अपेक्षाकृत महत्व नहीं मिलेगा तो अन्य दल में जाने का रास्ता तलाश करेगा, उसके पास विकल्प भी रहेगा। आयाराम गयाराम की संस्कृति विकसित होगी तथा विभिन्न दलों में कार्य करने वाले निष्ठावान व मर्यादित कार्यकर्ताओं के बजाय अवसरवादी व मौकापरस्त कार्यकर्ताओं का वजन बढ़ जायेगा । देश के अधिकांश राज्यों में यह देखने को भी मिल रहा है । कहने का तात्पर्य यह है कि राजनैतिक मूल्यों का पतन हो जायेगा । यह स्थिति लोकतंत्र व विकास दोनों के लिए खतरनाक है ।
अशोक बजाज

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here