जब्त होगी भ्रष्टाचार से कमाई बेनामी संमित्त

प्रमोद भार्गव

यह एक अच्छी खबर है कि सरकार भ्रष्टाचार से अर्जित काली कमाई को जब्त करने का कानून इसी मानसून सत्र में लाने जा रही है। इसके लिए बेनामी लेनदेन अधिनियम 1988 में संशोधन करना तो जरूरी होगा ही नौकरशाही के लिए

ढाल बने संविधान के अनुच्छेद 310 एवं 311 में भी बदलाव करना होगा। इस मकसद पूर्ति के लिए एक विशेष प्राधिकरण बनाया जाएगा, जिसके पास बेनामी संपित्त को जब्त करने की पर्याप्त कानूनी शक्तियां होंगी। यदि संज्ञान में आई बेनामी संपित्त को मालिक एक साल के भीतर संपित्त अर्जन के स्त्रोत से प्राधिकरण को संतुष्ट नहीं कर पाता है तो संपित्त जब्त कर सरकार की मिल्कियत घोषित कर दी जाएगी। फिलहाल लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया के कारण बेनामी संपित्त के ज्यादातर मामलों में दोषियों को सजा नहीं मिल पाती है। हालांकि इस विधेयक को लाने की संप्रग2 सरकार की मंशा कालेधन की वापिसी और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने के लिए लोकपाल विधेयक लाने का ब़ढ रहा दवाब भी हो सकता है। जिससे न केवल अण्णा हजारे और बाबा रामदेव को जवाब दिया जा सके, बल्कि विपक्ष के भ्रष्टाचार संबंधी मुद्दे की भी हवा निकाल दी जाए। इस सब के बावजूद सरकार की इस पहल की प्रशंसा करनी होगी।

अण्णा और बाबा रामदेव को इस बात के लिए तो दाद देनी होगी कि वे अपनी मूल मांगों को पूरा करवाने की लड़ाई प्रत्यक्ष तौर से भले ही न जीत पाएं, लेकिन इन विभूतियों ने जनता का जनमानस जरूर ऐसा बना दिया है कि सरकार को मजबूरन ही सही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के नजरिए से कानून बनाना पड़ रहा है। यह कानून यदि वाकई सख्त प्रारूप में पेश आता है तो भ्रष्टाचारियों की नकेल कसना तय है। क्योंकि भ्रष्टाचार से सख्ती से निपटने के चलते ही चीन की न केवल विकास दर ने जापान को पछाड़ दिया है, बल्कि वह एक महाशक्ति के रूप में अमेरिका की बराबरी पर आ खड़ा हुआ है। चीन में उन्नति की इस गति के सरोकार केवल औद्योगिकप्रौद्योगिक विकास पर आधारित नहीं हैं। कानूनन सख्त और त्वरित दण्डात्मक कार्रवाई भी चीन को समृद्धशाली व ताकतवर बनाने में सहायक हुई है।

कुछ समय पहले वहां भ्रष्टाचार के आरोप सत्य साबित होने पर दो अधिकारियों को मृत्युदण्ड तो दिया ही गया, उनकी चलअचल संपित्त भी जब्त की गई। यही नहीं एक अधिकारी की पत्नी को भी आठ साल की सजा सुनाई गई। कानूनी प्रावधानों के ईमानदार क्रियान्वयन व सख्ती से अमल के भय के चलते ही चीन संतुलित आर्थिक विकास के बूते 60 करोड़ लोगों को गरीबी से छुटकारा दिलाने में सफल रहा है। जबकि भारत में भ्रष्टाचार इस हद तक लोकव्यापी बना हुआ है कि देश के भ्रष्ट लोगों ने 462 अरब डालर की राशि, मसलन 20 लाख करोड़ रूपए स्विस व अन्य विदेशी बैंकों में काला धन के रूप में जमा कर रखें हैं। एक अमेरिकी अर्थशास्त्री ने देश की आजादी के बाद से 2008 तक जमा कालाधन का यह आंकड़ा दिया है।

उत्तरप्रदेश की मुख्य सचिव रहीं अकेली नीरा यादव ने राज्य को लगभग 5 हजार करोड़ का नुकसान पहुंचाया हुआ है। दरअसल अब हमारे देश में भ्रष्टाचार ने एक कारोबार की तरह मांग और आपूर्ति का आकार ग्रहण कर लिया है। जिसके चलते रिश्वत का लेनदेन किसी सामग्री की खरीदारी के वक्त मोलभाव की तरह होने लगा है। 2 जी स्पेक्ट्रम, आदर्श सोसायटी, राष्ट्रमण्डल खेल और उत्तरप्रदेश में 35 हजार करोड़ का अनाज घोटालों में बरता गया भ्रष्टाचार इसी कारोबारी चरित्र का पर्याय है। संविधान के अनुच्छेद 310 और 311 भ्रष्टाचार के ऐसे इस्पाती कवच हैं, जो देश के लोकसेवकों के कदाचरण से अर्जित संपित्त को सुरक्षित करते हैं। अभी तक भ्रष्टाचार निवारक कानून में इस संपित्त को जब्त करने का प्रावधान नहीं है। इन अनुच्छेदों में निर्धारित प्रावधानों के चलते ही ताकतवर नेता और प्रशासक जांच एजेंसियों को प्रभावित तो करते ही हैं, तथ्यों व साक्ष्यों को भी कमजोर बनाते हैं। इसीलिए कानून मंत्री वीरप्पा मोइली और सीबीआई भी नौकरशाही के लिए ाल बने इन अनुच्छेदों में बदलाव की पैरवी कर चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति केजी बालकृष्णन ने भी भ्रष्टाचार को विधि के शासन और लोकतंत्र के लिए खतरनाक माना था।

लेकिन जिस तरह से लोकपाल विधेयक को कमजोर बनाने की कवायद राजनीतिक नौकरशाही व औद्योगिक घराने कर रहे हैं, वही हालात इस बेनामी लेनदेन निवारण अधिनियम को संसद में पेश किए जाने के वक्त आ सकती है। क्योंकि नेता नौकरशाही और उद्योपतियों का त्रिकोण ऐसा कानून क्यों चाहेगा जिसका फंदा उन्हीं के गले का शिकंजा बन जाए। वैसे इस समय संसद में सांसदों का जो समूह है, उनमें 90 सांसदों के खिलाफ भ्रष्टाचार के प्रकरण पंजीबद्ध हैं। 180 से ज्यादा सांसदों के विरद्ध आपराधिक मामले दर्ज हैं। सर्वश्रेष्ठ योग्यता का दंभ भरने वाले देश के करीब 375 आईएएस के खिलाफ विभिन्न आदलतों में भ्रष्टाचार के मामले विचाराधीन हैं। 425 से ज्यादा आईपीएस के खिलाफ भ्रष्टाचार और गंभीर अपराध के मामले संयुक्त रूप से चल रहे हैं। एक दर्जन से ज्यादा न्यायाधीश भी ऐसे हैं, जो भ्रष्टाचार के आरोपों में जकड़े हैं।

दरअसल हमारे यहां दुर्भाग्य से कानून अपराध की प्राकृति व प्रवृत्ति की बजाय व्यक्ति की हैसियत और उसके राजनीतिक व प्रशासनिक दबदबे का आंकलन करके काम करता है। इस वजह से रसूखदार लोगों से जुड़े ज्यादातर मामले लोकायुक्त की जांचों और ट्रिब्यूनल व अदालतों की टालू प्रकृति के चलते लंबे खिंचते जाते हैं और आखिर में आरोपी को दोष मुक्त करार दे दिया जाता है। मनुस्मृति में कहा गया है कि दण्ड की व्यवस्था में सरकारी तंत्र में जो जितने ऊंचे पद पर पदासीन है, उसे उसी क्रम में कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए। कानून का पालन करने वाले जानबूझकर निजी स्वार्थपूर्ति के लिए अपराध करते हैं जबकि सामान्य आदमी कानून की अनभिज्ञता में भी अपराध करता है। यही कारण है कि भ्रष्ट लोक सेवक व व्यवसायी अपनी अनुपातहीन संपित्त इतनी चतुराई से रखते हैं कि उन्हें पकड़ पाना लगभग असंभव हो जाता है। उनके अंतर्मन में यह धारणा इतनी पक्की हो चुकी है कि उनकी अनैतिक गतिविधियों को पकड़ा नहीं जाएगा और चतुराई से जनता की कड़ी महनत से कमाई पूंजी को वे हड़पते रहेंग। लिहाजा ऐसा दण्ड का प्रावधान इस कानून में किया जाना जरूरी है, जिससे लोकसेवकों के मन में भय पैदा हो कि जिस दिन वे पकड़े जाएंगे, उस दिन भ्रष्ट साधनों से अर्जित संपित्त, दण्डित किये जाने की तारीख से मूल सहित उनके पास से वापस चली जाएगी। सरकार ऐसे कानूनों को टालने अथवा उन्हें कमजोर बनाने की कोशिश भले ही करे, लेकिन अब जनताजर्नादन की ऐसी मानसिकता बन रही है कि वह अब आक्षेप व आरोप की राजनीति से छुटकारा पाकर विकास आधारित राजनीति को साकार देखना चाहती है। समुदाय के बुनियादी हित साधने वाली इस राजनीति का उदय भ्रष्टाचार को निर्मूल किए बिना संभव नहीं है। लिहाजा, भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करने वाले सख्त कानूनी प्रावधान लाजिमी हैं। इस मकसद पूर्ति की पृष्ठभूमि भी अण्णा हजारे, बाबा रामदेव और सर्वोच्च न्यायालय ने तैयार कर दी है।

 

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