कि,
आज हवा भी मुझसे नाराज है,
पेरशान हूँ
कि,
जमीन मेरे भावनओं पर टिकी है,
बसंत के मौसम में,
मुरझाया हुआ सा हूँ,
कला साहित्य से प्रेम होने पर भी,
सिर्फ ,
चंद किताबों को टटोलता रहा,
सोचने के तरीकों में,
अनायास परिवर्तन आ गया,
रास्ते में खड़े होकर,
बार बार,
वक़्त की प्रतीक्षा करता,
बादलों की गर्जना से,
विचलित हो उठता,
इस भोर में,
रात की चुप्पी को तोड़ने की कोशिश करता,
सुबह की सादगी में,
दोपहर की हैवानियत को छिपाने की इच्छा करता,
बिन मतलब लोगों से बातें करने में,
संकोच करता,
लिखने की तम्मना तो है,
लेकिन,
टिप्पणी करना आदत नही रही,
पास होकर भी,
दूसरों से खुद को दूर पाता,
हाँ नाँ की,
फ़िराक में ,
हालत अधर में लटक गए,
मगर,
अगले ही पल,
फिर सोचता हूँ
आज हवा मुझसे नाराज क्यों है ,
रवि कुमार छवि