स्त्री और कृष्ण-चरित्र – सारदा बनर्जी

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क्या कारण है कि स्त्रियों में मिथकीय नायकों में राम की अपेक्षा कृष्ण ज़्यादा पॉप्यूलर हैं ? कृष्ण को लेकर स्त्रियों में जितनी फैंटेसी, प्रेम और उत्सुकता दिखाई देती है उतनी उत्सुकता राम को लेकर नहीं। कृष्ण को लेकर सुंदर कल्पनाएं करने, कथाएं रचने और चर्चा करने में स्त्रियां जितनी रुचि लेती हैं उतनी राम-कथा में नहीं। वजह यह है कि स्त्रियां लिबरल चरित्र को ज़्यादा पसंद करती हैं और उसे अपने निजी जीवन में अहमियत भी देती हैं।कृष्ण चरित्र में स्त्रियों को स्त्री-मुक्ति की भावना दिखाई देती है, इस चरित्र में उन्हें स्त्री-अस्मिता का बोध होता है। कृष्ण का चरित्र मुक्त विचार, मुक्त सोच, मुक्त क्रिया और मुक्त जीवन को प्रधानता देता है। यही कारण है कि कृष्ण और कृष्ण-कथा स्त्रियों को ज़्यादा अपील करता है।

आज स्त्रियां जीवन और समाज में अपनी आइडेंटिटी को लेकर काफ़ी सचेत हैं। साथ ही वे समाज से स्व-मर्यादा और स्व-सम्मान भी चाहती हैं और यह सम्मान का बोध उन्हें समाज रुपी कृष्ण-चरित्र में महसूस होता है।कृष्ण के चरित्र की ख़ासियत यह है कि वह स्त्री-मुक्ति का पक्षधर है। वह स्त्रियों के अस्तित्व को चलताऊ ढंग से नहीं देखता बल्कि उसे विशेष मर्यादा देता है, हर एक स्त्री की व्यक्तिगत इच्छाओं और मनोदशाओं को खास सम्मान करता है। यह चरित्र संपर्क में रहने वाली हर स्त्री की प्राय हर एक इच्छा को पूर्ण करता है। हर छोटी बात को अनुभूति के धरातल पर समझता है। स्त्रियां इस उदार चरित्र से स्वभावत: आकर्षित होती हैं और कृष्ण में अपने आदर्श पुरुष को देख पाती हैं। यही वजह है कि कृष्ण-राधा की कथाओं की विभिन्न कल्पनाओं में स्त्रियों को जितना आनंद मिलता है उतना राम-सीता की कहानियों में नहीं। फैंटेसिकल चिंतन में भी कृष्ण एक उदार चरित्र के रुप में स्त्री-हृदय में व्याप्त है।

कृष्ण के चरित्र की दूसरी विशेषता उसका हंसमुख स्वभाव है।चाहे सीरियल हो चाहे फिल्म हर जगह कृष्ण का चरित्र एक सुंदर हंसी के साथ सामने आता है। स्त्रियों को इस हंसमुख स्वभाव से बेहद प्यार है।सदियों से अपने हक के लिए लड़ रही स्त्रियां पुरुषों से केवल अच्छा व्यवहार और एक स्वस्थ हंसी ही चाहती हैं और वह भी उन्हें नहीं मिलता। कृष्ण का मनमोहक रुप और उससे झर-झर निसृत सुंदर हंसी कहीं न कहीं स्त्री-हदय को मुग्ध करता है।

देखा जाए तो राम का चरित्र भी स्त्री को पर्याप्त सम्मान करता है और वह एकपत्नी-व्रत चरित्र भी है फिर भी क्या वजह है कि स्त्री-हृदय में राम की अपेक्षा कृष्ण-चरित्र ही ज़्यादा छाया हुआ है। हो सकता है सीता की अग्निपरिक्षा जैसी मार्मिक घटनाओं से स्त्रियां कहीं न कहीं आहत होती हैं और राम के चरित्र को नापसंद करती हैं या राम के चरित्र से उन्हें घोर शिकायत है। ध्यानतलब है कि स्त्रियां उस चरित्र को ज़्यादा पसंद करती हैं जो समाज की परवाह न करें, जो केवल अपने हृदय की बात मानें, स्त्री-हृदय को पढ़ें, उसे सम्मान करें और ये सारे गुण प्रकटत: कृष्ण-चरित्र में है।

कृष्ण के चरित्र की तीसरी विशेषता है उसका सखा-भाव या कहें उसका फ्रेंडली एटीट्यूड। स्त्रियां आम तौर पर अपने संपर्क के हर एक पुरुष में फ्रेंडली एटीट्यूड को चाहती है, पुंसवादी रवैया और दमनात्मक व्यवहार बिल्कुल नहीं चाहती। कृष्ण–चरित्र में मेल शोवेनिस्टिक एटीट्यूड एक सिरे से गायब है। वहां स्त्री-पुरुष में मित्रता का संपर्क है चाहे उम्र में कितना भी फर्क हो। कृष्ण-कथा में कृष्ण जिन स्त्रियों के संपर्क में रहते हैं, बात करते हैं सबसे उनका फ्रेंडली रिलेशन दिखाई देता है। स्त्रियां भी अपनी व्यक्तिगत पीड़ाएं और आंतरिक अभिलाषाएं कृष्ण से शेयर करती हैं। वैसे देखा जाए तो स्त्रियों की व्यक्तिगत बातों और पीड़ाओं को राम के चरित्र ने भी सुना और समझा है लेकिन राम के चरित्र में फ्रेंडली एटीट्यूड का अभाव दिखाई देता है। यही वो जगह है जहां कृष्ण स्त्री-मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में पॉज़िटिव रुप में सामने आते हैं।

राम और कृष्ण दोनों ही चरित्रों में दुष्ट-दलन की शक्ति, शत्रु-निधन-क्षमता इत्यादि गुण देखे जाते हैं। लेकिन दिलचस्प है कि स्त्रियों को इन गुणों से कोई लगाव नहीं है। कारण यह है कि शक्ति, शौर्य आदि से स्त्री आकर्षित नहीं होती। स्त्री सर्वप्रथम विनम्र व्यवहार से मुग्ध होती है जो कृष्ण और राम दोनों चरित्रों में मौजूद है। साथ ही स्त्री सम्मान व मर्यादा की आकांक्षी होती है। वह पुंसवादी रवैया तो बिलकुल नापसंद करती है। पुंस-व्यवहार में वह हमेशा अपने लिए रेस्पेक्ट को खोजती है। सबसे अहम है वह अपने लिए स्पेस चाहती है और कृष्ण के चरित्र की यह खासियत है कि वह स्त्रियों को पर्याप्त स्पेस देता है। स्त्री-अनुभूति को महत्व देता है। फलत स्त्रियों के लिए कृष्ण का चरित्र जितना आत्मीय है उतना राम का नहीं है। कृष्ण के चरित्र से स्त्रियों की जितनी रागात्मकता है उतनी राम के चरित्र से नहीं। इसलिए स्त्रियों में कृष्ण जितने पॉप्यूलर हैं उतने राम नहीं।

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    शारदा बनर्जी ने राम और कृष्ण की तुलना सीधे साधे शब्दोंमे कर दी है वैसे आध्यात्मिक पक्ष कुछ और है पर दो महामानवों के रूप में उनका चित्रण जैसा महाकाव्यों में हुआ है यदि उसे ही केवल आधार माना जाय तो यही बातें दिखतीं हैं

    यह अच्छा हुआ की इस आधार पर कृष्ण के राधा के साथ सम्बन्ध को उन्मुक्तता की नज़र से नही परखा गया या उनके बहुविवाह को जिसके तह में जाने के लिए अन्य धर्मग्रंथों या कथानकों की आवश्यकता होती है(यथा वेद की १६००० ऋचाएं उनकी पत्नी रूप में आयी या राम अवतार के समय बनायी गयी सीता की मूर्तियाँ इस रूपमे आई)

    पर ऐसा नही है की स्त्रियों में मिथकीय नायकों में राम की अपेक्षा कृष्ण ज़्यादा ‘पॉप्यूलर’ हैं और पुरुषों में नही- वल्कि स्वेछाचारिता के समय कृष्ण का उदाहरण लेना उन्हें अच्छा लगता है

    स्त्रियों ने फैंटेसी’ ‘प्रेम और उत्सुकता’ यदि कृष्ण को लेकर है तो उसमें उन्मुक्तता का दर्शन लेखिका ने नही कराया है जिसका संकेत जरूर उन्होंने किया है

    यह उत्सुकता राम को लेकर नहीं है क्योंकि उतनी चारित्रिक दृढ़ता सीता को ही पसंद हो सकती थी आज की और किसी समय की आम नारी को नही.

    फ्रायड के मनोविज्ञान के अनुसार माँ को बेटे से और पिता से बेटी का लगाव भी विपरीत लिंगके बीच आकर्षण से होता है और देखा जाय तो शिवलिंग का पूजन पार्वती या उमा ही नहीं आजकी उमाएं भी अधिक करती हैं पुरुषों की अपेक्षा और यहाँ कृष्ण को लेकर सुंदर कल्पनाएं करने, कथाएं रचने और चर्चा करने में स्त्रियां अधिक रुचि लेती हैं तो क्या आश्चर्य

    राम-कथा में कथा तत्व नहीं है यह बात नही वह सहज कथा है जबकि महाभारत और कृष्ण काव्य की रचना बादके युग की कथा होने के कारण वह पहिले की(त्रेता) से आधुनिक है और द्वापर में यौन स्वतन्त्रता के कतिपय उदाहरण (कर्ण) या आधुनिक वीर्यदान की तरह अनेक के जन्मों की बात इस युग सी लगती है ।

    स्त्रियां ‘लिबरल चरित्र को ज़्यादा पसंद करती हैं, ‘ यह तो सत्य है पर ‘ उसे अपने निजी जीवन में अहमियत भी देती हैं,’ पर शंका है क्योंकि शायद ही किसी स्त्री को सौतिन से अच्छा सम्बन्ध देखा गया है अन्यथा उस पर लिखा भी गया होता जो केवल कैकेयी के पुत्र मोह से नही लक्षित होता है – पति पर सर्वाधिकार भी वे खोजती रही हैं सिवाय मैत्रेयी के मामले को छोड़ जो वैदिक युग की बात है .।

    कृष्ण चरित्र में स्त्रियों को स्त्री-मुक्ति की भावना दिखाई देती है,वैसे है नही. कहा जाय तो राम के चरित्र में ही स्त्री-अस्मिता का बोध अधिक है जो स्त्रीहरण के बाद जंगलों में बिलखते हैं – कृष्ण के साथ ऐसा होता तो क्या होता सोचनेवाली बात है – क्या छलिया कृष्ण राम की तरह करते? उनके स्वर्गवास के बाद उनकी स्त्रियों का क्या हुआ लिखने की जरूरत नही है

    कृष्ण का चरित्र मुक्त विचार, मुक्त सोच, मुक्त क्रिया और मुक्त जीवन को प्रधानता देता है- ऐसा भी कहना गलत है – युगानुरूप उन्होंने किया पर युग ‘पर्मिसिवेनेस ‘ का होते हुवे भी उनकी अनेक पत्नियों में किसी ने वैसा किया नही और अर्जुन और भीम ने चित्रांगदा और हिडिम्बा से जो विवाह किया वह शासकीय कारणों से ही नही वैयक्तिक आवश्यकताओं से भी था- द्रौपदी का बहुपतिवाद में रहना किसी पुरुष के लिए कठिन यदि वह स्वयम धर्मराज युद्धिष्ठिर न हो

    कृष्ण और कृष्ण-कथा स्त्रियों को ज़्यादा अपील करता है क्योंकि उन्होंने द्रौपदी को हर संकट से बचाया चाहे दुर्वासा का श्राप वा उसका चीरहरण (जबकि द्रौपदी के स्वछंदता और बडबोलापन भी उसके हस्र का कारण था- राजसूय के समय देवर दुर्योधन से मजाक तो ठीक पर ‘अंधे का बच्चा कह’ उसे अपने स्वसुर का उपहास नही उड़ाना था

    स्त्रियां जीवन और समाज में अपनी आइडेंटिटी को लेकर आज ही नही वैदिक काल से ही काफ़ी सचेत रही हैं।(गार्गी का कुंवारा रहना)

    वे समाज से स्व-मर्यादा और स्व-सम्मान भी चाहती हैं और यह सम्मान का बोध उन्हें समाजरुपी कृष्ण-चरित्र में महसूस होता है और राम में नही यह सरासर गलत है । कहिये की वह उन्मुक्तता चाहती हैं जो उन्हें कृष्ण के चरित्र में मिलता है- अपनी बहन को अर्जुन के साथ वे भगवाते हैं- सत्यभामा सी आधुनिका ,कार (रथ) चलानेवाली उन्हें पसंद है . राम की मर्यादा से वे डरती हैं – वे ‘द्विखंडिता’ होनी चाहती हों या नहीं पर इसका पर्याय स्त्री-मुक्ति का पक्षधर होना नही है। देखा जाय तो राम स्त्रियों को विशेष मर्यादा देता है, हर एक स्त्री की व्यक्तिगत इच्छाओं और मनोदशाओं को खास सम्मान करता है। षोडश कला से पूर्णावतार कृष्ण चरित्र संपर्क में रहनेवाली हर स्त्री की प्राय हरएक इच्छा को पूर्ण करता है। हर छोटी बात को अनुभूति के धरातल पर समझता है।आधुनिक स्त्रियां इस चरित्र से स्वभावत: आकर्षित होती हैं और कृष्ण में अपने आदर्श पुरुष नही मित्र को देख पाती हैं। यही वजह है कि कृष्ण-राधा की कथाओं की विभिन्न कल्पनाओं में स्त्रियों को जितना आनंद मिलता है उतना राम-सीता की कहानियों में नहीं क्योंकि ‘फैंटेसिकल चिंतन’ के लिए राम-सीता के चरित्र में शायद बहुत स्कोप नहीं है

    कृष्ण का उदार चरित्र स्त्री-हृदय में स्फुरण ला देता है क्योंकि उनकी असंतृप्त काम वासनाओं का शमन करता है जबकि राम का उदात्त चरित्र भक्ति का विषय हो जाता है जिसे आधुनिकाएं पसंद नही कर सकतीं ।

    स्त्रियों को हंसमुख स्वभाव से बेहद प्यार होता है एक नयी अवधारणा लगती है – अभी तक तो बात करने के लिए भले ही वह हो पर सच्ची बात है की जिसके जीवन में गंभीरता हो, शौर्य हो, बल हो, आज के समय में नौकरी हो, पैसा हो उसे लडकियां पसंद करती हैं चाहे कोई गौरवर्णा भी हो कृष्ण के समान श्यामवर्ण को वह पसंद करेगी भले ही वह राम की तरह अल्पभाषी क्यों न हो किसी हंसमुख सुन्दर पर गरीब सुदामा को नही -कृष्ण की पसंद में उनकी बुद्धि, उनका राज्य, उनका कौशल कई बातें आ जाती हैं ।

    सदियों से अपने हक के लिए लड़ रही स्त्रियां आज भी स्वेछाचारी पुरुष नही चाहती, भले वह कमानेवाली हो अपने से अधिक कमानेवाली चाहती है

    कृष्ण का मनमोहक रुप और उससे झर-झर निसृत सुंदर हंसी कहीं न कहीं स्त्री-हदय को मुग्ध करता है, मैं इससे सहमत नही हूँ – स्वामी विवेकानंद के चित्र को देख क्या वे पसंद करेंगी- नही उन्हें चरित्र का प्रतीक गैरिक वस्त्रसम विचार नही चाहिए , अपनी उन्मुक्तता के लिए न टोकनेवाला कृष्ण चाहिए, मर्यादा पुरुषोत्तम राम को कोई सीता ही वर सकती है वैसे उसने भी बलशाली धनुष तोड़नेवाले को ही वरा था पर अगले युग में बुद्धि का समय था तो द्रौपदी ने मछली की आँख में एकाग्र अर्जुन को चुना सुन्दर सहदेव को नही.

    एकपत्नी-व्रत राम का चरित्र आज भी हर स्त्री चाहती है भली ही वह स्वयम ‘लिबेरेट’ होना चाहती हो-

    स्त्री-हृदय में राम की अपेक्षा कृष्ण-चरित्र ही ज़्यादा छाया हुआ है क्योंकि व्यवहार में वह राधा बनाना चाहती है, सीता नही । सीता की अग्निपरिक्षा या वन गमन से स्त्रियां आहत होती हैं और उसके चलते राम के चरित्र को नापसंद करती तो अच्छा था क्योंकि राम के चरित्र से उन्हें शिकायत करनी होती तो पहले अपना चरित्र ठीक करना होता । आपने सही लिखा कि (आज की) ” स्त्रियां उस चरित्र को ज़्यादा पसंद करती हैं जो समाज की परवाह न करें, जो केवल अपने हृदय की बात मानें, स्त्री-हृदय को पढ़ें, उसे सम्मान करें “और ये सारे गुण प्रकटत: कृष्ण-चरित्र में लगते हैं भले ही वैसा उनका चरित्र न हो पर पति हो तो राम जैसा बोलेंगी और चाहेंगी – कौन महिला कृष्ण की तरह अपनी सौतिन के साथ जीना पसंद करेंगी ? एक बात जान लें की राम ने जो किया वैसे करना चाहिए और कृष्ण ने जो कहा (गीता) वैसे करना चाहिए- कृष्ण ने जैसा किया वैसे नक़ल करने की जरूरत नही है कृष्ण का सखा-भाव या फ्रेंडली एटीट्यूड अच्छा है पर फिर वह उन्मुक्तता के दायरे में नही । यह कहना गलत है कि केवल स्त्रियां अपने संपर्क के हर एक पुरुष में फ्रेंडली एटीट्यूड को चाहती है, पुरुष भी ऐसा ही चाहता है पुंसवादी रवैया जिसे कहा जाता है वह यदि उन्मुक्तता का विरोधी हो तो उसमे हर्ज़ क्या है, हाँ दमनात्मक व्यवहार बिल्कुल नहीं चाहिए । कृष्ण–चरित्र में मेल शोवेनिस्टिक एटीट्यूड एक सिरे से गायब है पर राम के चरित्र में यह है ही नही यह सत्य है की कृष्ण के चरित्र में स्त्री-पुरुष में मित्रता का संपर्क है चाहे उम्र में कितना भी फर्क हो और यह अभी के बॉलीवुड मॉडल से मिलता है वैसे इसमें हर्ज़ नही है यदि मानसिक स्तर पर संवाद हो सके । कृष्ण-कथा में कृष्ण जिन स्त्रियों के संपर्क में रहते हैं, बात करते हैं सबसे उनका फ्रेंडली रिलेशन दिखाई देता है। गोपियाँ भी अपनी व्यक्तिगत पीड़ाएं और आंतरिक अभिलाषाएं कृष्ण से शेयर करती हैं। वैसे देखा जाए तो स्त्रियों की व्यक्तिगत बातों और पीड़ाओं को राम के चरित्र ने भी सुना और समझा है लेकिन राम के चरित्र में आधुनिक फ्रेंडली एटीट्यूड का अभाव दिखाई देता है क्योंकि वह पर्मिस्सिव नही हैं वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं । भले ही कृष्ण स्त्री-मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में पॉज़िटिव रुप में सामने आते हैं आज की भी कोई नारी राम से ही विवाह चाहेगी कृष्ण से नही – टाइम पास के लिए भले ही उसे ‘ बॉय फ्रेंड’ कुछ दिन के लिए बना ले ।

    राम और कृष्ण दोनों ही चरित्रों में दुष्ट-दलन की शक्ति, शत्रु-निधन-क्षमता इत्यादि गुण देखे जाते हैं। लेकिन मैं इस बात से सहमत नही कि स्त्रियों को इन गुणों से कोई लगाव नहीं है या वे शक्ति, शौर्य आदि से आकर्षित नहीं होती। मेरी कालोनी का धौनी यदि क्रिकेटर नही होता तो क्या साक्षी उससे शादी करती? मेरे पास तो बंगलौर की एक डाक्टर लडकी बार-बार उससे शादी करा देने मेल भेजती थी यह सत्य है की स्त्री सर्वप्रथम विनम्र व्यवहार से मुग्ध होती है जो कृष्ण और राम दोनों चरित्रों में मौजूद है। साथ ही स्त्री सम्मान व मर्यादा की आकांक्षी होती है।यह दोनों ही राम आ और कृष्ण में हैं वल्कि राम में अधिक हैं राम के व्यवहार को पुंसवादी रवैया कहना सीता का भी अपमान है और लक्ष्मण का भी जिसें अपनी भाभी के वक्षस्थल को नहीं केवल चरणों को देखा था पुंस-व्यवहार में हमेशा नारी अपने लिए रेस्पेक्ट को खोजती है।
    सही है की वह अपने लिए स्पेस चाहती है और कृष्ण के चरित्र की यह खासियत है कि वह स्त्रियों को पर्याप्त स्पेस देता है। स्त्री-अनुभूति को महत्व देता है। फलत स्त्रियों के लिए कृष्ण का चरित्र आत्मीय है पर यह कहना की उतना राम का नहीं है गलत है ।
    कृष्ण के चरित्र से आधुनिकाओं की रागात्मकता झक्क सकती है पर पति के लिए आज भी चयन राम के चरित्र से ही होगा- कोई सर्वे कर देखना उचित होगा अन्यथा यह लेखिका का व्यक्तिगत मत होगा उनके स्वभाव के अनुसार । ऐसी स्त्रियों में कृष्ण अधिक ‘पॉप्यूलर’ हो सकते हैं पर सभी स्त्रियों में आज भी राम ही पति के लिए उपयुक्त होंगे कृष्ण नहीं। वैसे लेखिका ने लिखा अच्छा है- यदि उनका शोध प्रबंध इस विषय पर हो तो मुझे दिखा सकती हैं चर्चा के लिए- डॉ. धनाकर ठाकुर 09470193694

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