कार्य- संस्कृति की सुरीली तान …!!

officeतारकेश कुमार ओझा
अपने देश में एक चीज कामन है। नई सरकार हो या नया अधिकारी , चार्ज लेते ही वह कार्य संस्कृति की सुरीली तान छेड़ते हुए मातहतों को खूब हड़काता है। … मेरे समय में यह सब नहीं चलेगा… मुझे सब काम समय से चाहिए… बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करूंगा… वगैरह – वगैहर। एेसी घुड़कियों पर मातहत जरूर मन ही मन हंसते होंगे। क्योंकि सच्चाई उन्हें पता होती है। समय के साथ जब कुछ नहीं बदलता तो साहब लोग खुद ही बदल जाते हैं, और बिल्कुल यू टर्न लेते हुए … अब क्या बच्चे की जान लेगा … की तर्ज पर उन्हीं का पक्ष लेने लगते हैं, जिन्हें पहले हड़काया था। पश्चिम बंगाल में रिकार्ड 34 साल तक राज करने वाली कम्युनिस्ट सरकार  सरकारी कर्मचारियों की प्रबल पक्षधर मानी जाती थी। उस काल खंड में ममता बनर्जी जब विपक्ष में थी, तब वे प्रदेश की कार्य संस्कृति बदलने की खूब बातें किया करती थी। परिवर्तन के बाद सत्ता मिलने पर भी  कुछ दिनों तक वे अपने रुख पर कायम रही। लेकिन बाबुओं की छुट्टी और एरियर – बोनस के मामले में अब वे कम्युनिस्टों से ज्यादा दरियादिल साबित हो रही है। अब राज्य में उन मौकों पर भी छुट्टी रहती है, जो कम्युनिस्ट राज में नहीं हुआ करती थी।  क्या संयोग है कि इस साल अपने देश में बड़े त्योहारों जैसे दुर्गापूजा व दशहरा की शुरूआत अक्टूबर महीने की पहली तारीख से  हुई। हर तरफ कायम त्योहारी खुमारी को देखते हुए लगता है कि यह पूरा महीना ही हम त्योहारों को समर्पित करने जा रहे हैं। दुर्गापूजा की सर्वाधिक धूम पश्चिम बंगाल में रहती है। यहां राज्य सरकार ने 30 सितंबर से ही छुट्टी घोषित कर दी है, जो लगातार 8 अक्टूबर तक चलेगी। इस दौरान राज्य सरकार के तमाम दफ्तर पूरी तरह से बंद रहेंगे। अदालतों व कुछ अन्य अर्द्धसरकारी दफ्तरों में घोषित छुट्टियों की अवधि और लंबी है। गिने – चुने उन विभागों में जो इस अवधि में खुले भी तो उनमें उपस्थिति नाममात्र की देखी जा रही है। ज्यादातर बाबुओं ने कैजुअल लीव व अन्य तरीकों से अपनी छुट्टियों को और लंबा करने का इंतजाम पहले ही कर लिया है।  कहने को तो राज्य सरकार के तमाम दफ्तर 9 अक्टूबर से खुल जाएंगे, लेकिन त्योहार की खुमारी को  देखते हुए नहीं लगता कि इसके बाद भी सामान्य परिस्थितयों में काम – काज हो पाएगा। क्योंकि इस दौरान भी कार्यालयों में उपस्थिति कम रहेगी, और जो बाबू मौजूद भी रहेंगे, उनकी बतकही का केंद्र त्योहार के दौरान मिली छुट्टियों के उपभोग व सैर – सपाटा रहेगा न कि लंबित फाइलों की बोझिल जिम्मेदारी। यह सब करके कोई भी अपना मूड खराब करना नहीं चाहेगा। हर तरफ त्योहारी माहौल को और खुशनुमा करने की ही आपाधापी नजर आएगी। वैसे भी  दफ्तर खुलने के बाद दीपावली और छठपूजा को दिन ही कितने बचेंगे। पर्व – त्योहार की खुमारी सिर्फ सरकारी महकमों में पसरी है, एेसी बात नहीं। निजी क्षेत्र भी इसकी चपेट में है। कुछ दिन पहले मेरे एक मित्र ने कुछ पुस्तकें मेरे पते पर कूरियर से भेजी। डाक विभाग की चिर – परिचित कार्य शैली को देखते हुए उन्होंने यह जिम्मा एक नामी कंपनी को सौंपा। जो चंद घंटों में कुछ भी कहीं भी पहुंचा देने का दावा करते नहीं थकती। लेकिन घंटों की कौन कहे, एक  हफ्ते बाद तक वह पुस्तक मुझ तक नहीं पहुंच पाई। महकमे के अधिकारियों से संपर्क करने पर कि भैया , तुम लोग तो पहली उड़ान , बस चंद घंटों की बात जैसे दावे करते नहीं थकते।  लेकिन एक  पार्सल बुक किए सप्ताह बीत गया, लेकिन उसका अब तक कोई पता नहीं , आखिर माजरा क्या है। जवाब मिला … जानते तो हैं ना सर, त्योहार का मौसम है। मैने कहा … अरे भाई , यह तो सरकारी दफ्तरों का जुमला है, तुम कारपोरेट वाले भी अब यह फंडा आजमाने लगे। वैसे तो तुम लोग स्मार्टनेस की बड़ी – बड़ी हांकते हो। इस पर उसने अधिकांश  स्टाफ  के छुट्टी पर जाने की दलील देते हुए कहा कि क्या करें  साहब , जिन्हें काम करना है वे छुट्टी पर है तो  किया भी क्या जा सकता है। साथ ही उसने यह भी स्पष्ट कर दिया कि दीपावली तक हर तरफ यही स्थिति रहनी है। इस हालात से पुलिसवाले बड़े खार खाए हुए हैं। एक जवान ने शिकायती लहजे में कहा कि त्योहारी मौसम में एक हमीं है, जो रात – दिन खट रहे हैं। इसके बावजूद हमें लोगोॆं की गालियां सुननी पड़ती है। नकारेपन और घूसखोरी का इल्जाम तो हम पर हमेशा चस्पा रहता है। जबकि हम भी आखिर है सरकारी कर्मचारी ही…। एेसे में हम अगर कहीं से दस – बीस ले लेते हैं, तो लोगों की छाती पर सांप क्यों लोटने लगता है।  उस जवान की इस दलील पर मैं सोच में पड़ गया।
Previous articleव्यंग्य बाण : स्वच्छता अभियान
Next articleअंत्योदय बनाम सहकारिता
तारकेश कुमार ओझा
पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ हिंदी पत्रकारों में तारकेश कुमार ओझा का जन्म 25.09.1968 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था। हालांकि पहले नाना और बाद में पिता की रेलवे की नौकरी के सिलसिले में शुरू से वे पश्चिम बंगाल के खड़गपुर शहर मे स्थायी रूप से बसे रहे। साप्ताहिक संडे मेल समेत अन्य समाचार पत्रों में शौकिया लेखन के बाद 1995 में उन्होंने दैनिक विश्वमित्र से पेशेवर पत्रकारिता की शुरूआत की। कोलकाता से प्रकाशित सांध्य हिंदी दैनिक महानगर तथा जमशदेपुर से प्रकाशित चमकता अाईना व प्रभात खबर को अपनी सेवाएं देने के बाद ओझा पिछले 9 सालों से दैनिक जागरण में उप संपादक के तौर पर कार्य कर रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here