विश्व जंनसख्या दिवश पर- बढ्ती आबादी-बढ्ती मुसीबतें

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१९८९ में संयुक्त राष्ट विकास कार्यक्रम के अंतर्गत विश्व की बढ्ती आबादी की पड्ताल करने के लिये विश्व ज़नसंख्या दिवस मनाने की शुरुआत हुई।इसका मुख्य उद्देश्य विश्व भर के देशों को ज़नमत द्वारा यह स्पष्ट करना था कि कौन-कौन से देश आबादी को बढाने में सबसे ज्यादा आगे हैं और इससे विश्व भर को भारी मुश्किलों का सामना करना पड सकता है।

संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि एशिया और अफ्रिका में जन्मदर के तेज़ी से निरन्तर बढ्ते रहने के कारण विश्व की जनसंख्या भी तेज़ी से बढ्ती रहेगी। रिपोर्ट के अनुसार २०५० के आसपास दुनिया की आबादी ९.३अरब तक पहुंच चुकी होगी और २०१० तक यह संख्या-१०.१ अरब तक जा सकती है।

भारत की जनसंख्या भी खतरनाक स्थिति में बढ्ती जा रही है।जल्द ही जनसंख्या बढाने वाले देशों की पहली पादान पर होगा यानि विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला देश हिन्दुस्तान होगा।चीन जनसंख्या के मामले काफी सजग हो गया है,समस्या पूरी तरह कन्ट्रोल में तो नहीं है,परन्तु पहले के वर्षो के मुकाबले जनम दर काफी धीमी रफ्तार से बढ रही है।कारण है-कडे सरकारी प्रयास।भारत में इस गम्भीर समस्या पर सरकारी प्रयास बहुत ही कछुआ चाल से चल रहें है।सरकार के पास बढ्ती जनसंख्या को रोकने के लिये कोई ठोस और सार्थक कार्य योजना है ही नहीं।परिवार नियोजन के कार्यक्रम भी कोई बेहतर परिणाम नहीं दे पा रहे हैं।परिवार नियोजन के सरकारी कार्यक्रम ऊँट के मुंह मे जीरा के समान है।ऊपर वाले की कृपा के नाम पर आज़ भी हमारे देश में लम्बे परिवारों को देखा जा सकता है।कहीं बेटे की आस में पांच या छः बच्चे पैदा किये जा रहे है तो कहीं फैमिली प्लानिंग करना या आने वाली संतान को दुनिया में आने से रोकना धर्म के नाम पर पाप है जैसे अन्धविश्वासों में लोग अभी तक जकडे हुये है।इन्हीं सब कारणों से देश की स्थिति धीरे-धीरे जनसंख्या बिस्फोट की ओर बढ्ती जा रही है।अनपढ,पुरानपन्थी-अंधविश्वासी,गरीब-देहाती लोगों को छोड दें तो भी शहरों-महानगरों में ऎसे शिक्षित और धार्मिक लोग मिल जायेगे जिनके परिवार में चार या पांच बच्चे है जिसका सबसे बडा कारण रहा है कुलदीपक की तमन्ना-जो मरने के बाद उन्हें स्वर्ग तक पहुँचायेगा।आज की भंयकर समस्या को जीते-जी झेलने वाले मरने के बाद के विषय में सोच लेते हैं पर ये नहीं समझ पाते कि- वो अपनी आने वाली पीढी के लिये समस्याओं का तोहफा देकर जायेगें।उनके नौनिहालों के लिये आने वाले समय में पीने के लिये साफ पानी,बिज़ली,रोटी,रोज़ी,आवास,कपडे जैसी बुनियादी जरुरतों के लिये भी मुहताज़ होना होगा। इसी तरह की मानसिकता, खोखली-सडी-गली रुढियों से देश में कितनी ही समस्यायें बढ्ती जा रहीं हैं।लिंगानुपात यानि लड्के और लडकियों के बीच एक बडा असंतुलन हम देख ही रहे हैं।इसके घातक दुष्परिणाम आने वाले समय में देखने को ज़रुर मिलेगे जब कुलदीपक के लिये बधू ढूंढ्ना मुश्किल होगा।

पानी,बिज़ली रोज़गार,स्वास्थ्य,आवास की समस्या दिनोदिन बढ्ती ही जा रही है।स्कूल,कालेज़ और शिक्षण सस्थानों में भीड बड्ती ही जा रही है।महानगरों में आये दिन जाम की समस्या बनी रहती है।सरकारी अस्पताल हों या प्राइबेट अब सभी में मरीज़ों की मारामारी रहती है।हर जगह हमारा सामना लम्बी लाइनों से होता है।संसाधनो को देखते हुये लोगो की भीड बहुत तेज़ी से बढ रही है।लोग आये दिन सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन तो करते है,पर अपने प्रयासों से कुछ करना नहीं चाहते।जिन लोगों के परिवार सीमित है उन्हें भी सभी समस्याओं से जूझना पड्ता है।यदि समस्या का समाधान तुरन्त नहीं निकाला गया तो निश्चित रुप से हम जनसंख्या बिस्फोट के शिकार हो जायेगें और सभी को भारी मुसीबतों का सामना करना पडेगा।

जागरुकता और शिक्षा से ही जनसंख्या पर नियन्त्रण सम्भव हो सकता है।जब लोग सही मायनों में शिक्षित होगें तो उन्हें बढ्ती जनसंख्या के नुकसान समझाने आसान होंगें।जब देश में शिक्षा का स्तर बढेगा तो गरीबी और लोगों की आय के श्रोत भी बढेगें।गरीब तबका जितने हाथ उतनी उन्नति की मानसिकता से बाहर आयेगा।सरकार को भी अब और इन्तज़ार नहीं करना चाहिये।कोई सख्त कानून और नितियां बना ठोस-सार्थक पहल की शुरुआत करनी चाहिये।

वरना कुछ ही सालों में आबादी की बढ्ते सैलाब में हम सभी के सपने डूब जायेगें।

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