गरम होता प्याज का मिजाज

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प्याज के गरम होते मिजाज ने सरकार और जनता को एक बार फिर से प्याज के आंसू रुलाना शुरू कर दिया है। देश के कई प्रांतों में दो सप्ताह पहले तक 20 रूपए किलो के ईद-गिर्द रहीं प्याज की कीमतें एकाएक उछाल कर 70-80 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई हैं। इन बढ़ते मूल्यों को लेकर अवाम ने केंद्र सरकार को कोसना शुरू कर दिया है। फिलहाल कीमतें कम होने की उम्मीद भी नहीं है। नासिक की ‘राष्ट्रिय उद्यानिकी शोध एवं विकास संस्थान‘ ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि प्याज की कीमत में सितंबर के अंत तक कमी आने के कोई आसार नहीं हैं। दूसरी तरफ मौसम विभाग द्वारा मानसून की दी जा रही सटीक जानकारियां भी फसल व सब्जियों के भाव बढ़ाने का सबब बन रही हैं। मौसम विभाग ने औसत से कम बारिश होने का आकलन किया था,इसके चलते प्याज कारोबारियों ने बड़ी मात्रा में प्याज का भंडारण गोदामों में कर लिया। अब वे दाम बढ़ाकर मोटा मुनाफा कमाने में लग गए हैं। इन जमाखोरों के गोदामों में हाथ डालने की केंद्र व राज्य सरकारें वोट की राजनीति के चलते हिम्मत नहीं जुटा पाती। गोया,कीमतों पर लगाम लगना मुश्किल ही है।

नासिक के उद्यानिकी संस्थान ने कहा है कि इस साल जुलाई में 40 लाख टन प्याज का भंडारण हुआ था,जिसमें 50 फीसदी खत्म भी हो चुका है। करीब 20 लाख टन प्याज ही शेष बची है। दिल्ली में प्याज 70 रुपए किलो बिक रही है, जबकि एक माह पहले 20 रूपए किलो थी। चंड़ीगढ़ और शिमला के इलाकों में यही प्याज 70 से 80 रुपए किलो तक है। कई ढ़ाबों में ग्राहकों को मुफ्त में मिलने वाली सलाद में प्याज परोसी जाना बंद कर दी गई है या प्याज वाली सलाद की अतिरिक्त कीमत 30 रुपए वसूली जाने लगी है। अब आशंकाएं भी जताई जा रही हैं कि आने वाले दो माहonion सितंबर-अक्टूबर, बड़े पर्वों के माह हैं,सो प्याज के भाव में उछाल 100 रूपए प्रति किलो तक पहुंच सकता है। यही वजह है कि महाराष्ट्र के लासालगांव में देश की जो सबसे बड़ी प्याज मंडी है,वहां प्याज की थोक कीमत में पिछले महीने की तुलना में 65 प्रतिषत तक की बढ़ोत्तरी हुई है। दिल्ली में ये कीमतें 52 फीसदी बढ़ी हैं।

जाहिर है,केंद्र व राज्य सरकारों के समक्ष प्याज का मिजाज गंभीर खतरा बनकर उभर रहा है। केंद्र सरकार के लिए यह खतरा इसलिए भी ज्यादा है कि जिन सितंबर-अक्टूबर माह में प्याज की कीमतें उछलकार 100 रूपए प्रति किलो तक पहुंचने की आशंका जताई जा रही है,उन्हीं दिनों में बिहार विधानसभा निर्वाचन का मतदान संभावित है। गोया,नीतीश,लालू और राहुल का महागठबंधन यदि मंहगी होती प्याज को चुनावी मुद्दा बनाने में कामयाब जाते हैं तो मोदी सरकार को प्याज के आंसू रोना भी पड़ सकता है। वैसे भी प्याज किसान और मजदूर की रोटी में सब्जी का काम करती है और बिहार में इसी वर्ग के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। पहले भी मंहगी होती प्याज सरकारों को गिराने और हराने का काम असरकार ढंग से कर चुकी है,सो बिहार में इसका असर देखने को मिल सकता है ? अब यह अलग बात है कि प्याज के आंसू रोने किस राजनीतिक गठबंधन को पड़ेंगे ?

हालांकि हमारे देश में प्याज का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है,लेकिन इसका बड़ी मात्रा में निर्यात और देश में जमाखोरी संकट बढ़ाने की पृश्ठभूमि रच देते हैं। बीते साल देश में 1 करोड़ 87 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ था। महाराष्ट्र और कर्नाटक देश के बड़े प्याज उत्पादक प्रदेश हैं। तीसरे स्थान पर मध्य-प्रदेश है। प्याज की फसल साल में तीन बार बोई और काटी जाती है। इस कारण इसकी आमद,सदाबहार बनी रहती है। पिछले साल महाराष्ट्र और कर्नाटक में कम बारिष के कारण प्याज का उत्पादन कम रहा। वहीं दूसरी तरफ मध्य व उत्तर भारत में अति-वृश्टि व ओला-वृश्टि के कारण प्याज की फसल प्रभावित हुई। इस कारण प्याज का उत्पादन थोड़ा कम हो पाया। अब महाराष्ट्र व कर्नाटक में इस साल फिर से कम बारिष हुई है,सो ज्यादा प्याज पैदा होने की उम्मीद क्षीण हो गई है। इसी वजह से प्याज के भाव उतरने की उम्मीद पर बे्रक लग गया है। दरअसल हम प्याज खाने में अव्वल हैं,इसलिए प्याज की खपत भी सबसे ज्यादा हमारे देश में होती है। लिहाजा प्याज के उत्पादन और निर्यात का गणित जो भी हो,जनता को सस्ती प्याज नहीं मिलती है तो वह परोक्ष रूप से इसका दण्ड सत्तारूढ़ दल को ही देती है। इसलिए वर्तमान में दिल्ली की अरविंद केजरीवाल नेतृत्व वाली सरकार ने सब्सिडी देकर प्याज का मूल्य नियंत्रित बनाए रखने का लोक-लुभावन उपाय किया है।

भारत कृषि प्रधान देश है और देश की 70 प्रतिषत आबादी आज भी कृषि और कृषि संबंधी कार्यों से आजीविका जुटाती है। बावजूद हमारे ज्यादातर सरकारी उपाय व नीतियां, जिन्हें कृषि और किसान के लिए कल्याणकारी जताकर जमीन पर उतारा जाता है,अंततः वे औद्योगिक और उद्योगपतियों के ही हित साधने वाले साबित होते हैं। इसीलिए 40 फीसदी किसान वैकल्पिक रोजगार मिल जाए जो खेती-किसानी छोड़ने को तैयार बैठे हैं। मौसम विभाग ने जैसे ही मानसून के सामान्य रहने की भविश्यवाणी की वैसे ही जामखोरों के कान खड़े हो गए और उन्होंने बड़े पैमाने पर गोदामों में प्याज की जमाखोरी कर ली। ये वही गोदाम हैं,जिनके निर्माण में 50 प्रतिषत सब्सिडी देकर फसल सुरक्षा का दावा किया जाता है। यह जुदा बात है कि इनमें फसलें सड़ने से बचाने की बजाय कीमतें बढ़ाने के लिए जमा कि जा रही हैं। यदि वाकई फसल की सुरक्षा का लक्ष्य गोदाम मालिकों और राज्य सरकारों का रहा होता तो देश के किसानों को आलू-मुफ्त में न बांटने पड़ते और टमाटर सड़कों पर फेंकने नहीं पड़ते ? इन दोनों फसलों के दाम जब उत्पादन की लागत से नीचे चले जाते हैं,तो लाचार किसान यही करता है। अब ऐसे में सरकार के पास संकट यह है कि वह मूल्य नियंत्रण के लिए प्याज आयात करे या गोदामों पर छापे डालकर जमा प्याज बाहर निकलवाए ? आयात की लंबी प्रक्रिया है। उसकी शुरूआत होती भी है तो प्याज के देश में आने में समय लगेगा। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में जमाखोरों के खिलाफ मुहिम चलाकर वस्तुओं पर मूल्य नियंत्रण करके निम्न व मध्यवर्गीय आय से जुड़े लोगों के हित साधे जाते थे,लेकिन अब केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें व्यापारियों के हित प्रभावित करने से कतराती हैं। लिहाजा जामाखोरी और कीमतें बढ़ती रहने का चलन बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ रहा है। प्याज के बढ़ते मूल्य इसी जमाखोरी के पर्याय हैं।

 

 

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  1. यह प्याज एक बार भाजपा को दिल्ली के प्रांतीय तखत से नीचे उतार चूका है. दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा के आने के कारण दिल्ली वालों को यातायात और दफ्तर आने जाने में जो ट्रैफिक असुविधा हुई तो भाजपा के ३ ही विधायक जीत कर आये.अतः मोदीजी को चाहिए की तत्काल प्याज के उन व्यापारियों के गोदामो पर छापेमारी के आदेश दें जो सरकारी सब्सिडी का लाभ लेकर गोदाम निर्माण कर सीमा से अधिक भंडारण करते हैं.

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