कुश्ती का नया सौंदर्यशास्त्र

यह 1996 का वाकया है। जब स्कॉट हॉल उछलकर रिंग के अंदर दाखिल हुआ तो किसी ने नहीं सोचा था कि अमेरिकी कुश्ती की दुनिया बदल जाएगी। स्कॉट के रिंग में लौटने का असर इतना जबर्दस्त हुआ कि हॉलीवुड हिल गया। स्कॉट के आने के दो सप्ताह बाद केविन नास रिंग में गया।इन दोनों को रिंग में देखकर हॉलीवुड का कुश्ती सम्राट हुल्क होगन भी अपने मन पर काबू नहीं रख सका और रिंग में कूद पड़ा। होगन के कुश्ती की रिंग में कूदने के बाद अमेरिकी कुश्ती ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। होगन जिस प्रतीक के साथ पहचाना जाता था। उसमें पीले और लाल रंग का प्रयोग होता था। किंतु रिंग में लौटने के बाद उसने अपना रंग बदल दिया। अब वह काला और सफेद रंग लेकर आ गया। नई अमेरिकी कुश्ती जिसे सारी दुनिया डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट के नाम से जानती है उसका भविष्य यहीं से शुरू होता है। अमेरिकी समाज में मनोरंजन के साधनों की बहुतायत और तकनीकी उछाल ने कुश्ती को हाशिए पर पहुँचा दिया था। लगातार कुश्ती प्रतियोगिताएं असफल हो रही थीं। कुश्ती के लिए दर्शक नहीं मिल रहे थे। ऐसे में विंश मेकमहोन ने अमेरिकी कुश्ती में नई जान फूंकी। उसने हुल्क होगन,केविन नास और स्कॉट हॉल को लेकर कुश्ती टीम बनायी। हुल्क होगन और स्कॉट हॉल के बीच मुकाबला होता था। और केविन नास बीच में खड़ा होकर दोनों पहलवानों को उत्तेजित करता रहता था। दर्शकों को मजा आने लगा और अमेरिकी कुश्ती की रौनक फिर से लौट आई।

असल में हुल्क होगन अमेरिकी जनता में बेहद जनप्रिय पहलवान था। उसका 260 पॉण्ड से ज्यादा वजन था। देखने में बेहद सुंदर और बलिष्ठ था। किंतु उसके चेहरे पर बच्चों जैसा भोलापन था। उसके बच्चों जैसे भोले चेहरे को बच्चे और तरूण खूब पसंद करते थे। विशाल शरीर और भोला चेहरा विलक्षण सौम्यता उसके चेहरे से झलकती थी। वह बच्चों का आदर्श मॉडल था। हुल्क होगन जब रिंग में उतरा तो उसने कहा कि ‘कुश्ती की नई दुनिया का भविष्य अब यहां से शुरू हो रहा है।’ इसे उसने ‘कुश्ती की नई विश्व व्यवस्था की शुरूआत माना। सन् 1996 का साल अमेरिकी कुश्ती के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।इसके बाद से अमेरिकी कुश्ती पारिवारिक मनोरंजन का हिस्सा बन गयी। इस प्रतियोगिता में नए- पुराने कई दर्जन पहलवान शामिल हुए। कुश्ती की जनप्रियता देखकर इसमें औरतों ने भी हिस्सा लेना शुरू किया। आज कुश्ती के मुकाबलों में एक दर्जन से ज्यादा औरतें भी सामने आ चुकी हैं। कुश्ती ने लिंगभेद की दीवारें गिरानी शुरू कर दी हैं। परंपरागत कुश्ती का जो रूप ओलम्पिक में दिखाई देता है उसमें खेल और शारीरिक व्यायाम पर जोर था। आधुनिक ओलम्पिक आन्दोलन के जनक पियरे दे कोर्वितिन ने लिखा कि यह औद्योगिक सभ्यता,जिसे हम नापसंद करते हैं,डरते हैं,उसके खिलाफ परेड है। नई आधुनिकता का यह भय था कि हमारा शारीरिक और मानसिक तौर पर पतन हो रहा है। अत: इसकी प्रतिक्रिया में आधुनिक स्पोर्ट्स और शारीरिक संस्कृति पैदा हुई।19वीं शताब्दी के खत्म होते होते पुरूषों में मर्दानगी का आग्रह बढ़ गया। पुंसत्व की नई व्याख्या की तलाश शुरू हुई। आधुनिक खेलों का आदर्श है क्षमता,अनुशासन,और मर्दानगी का प्रदर्शन। कुश्ती दुनिया का सबसे पुराना खेल है। इसे मिस्र और बेबीलोन में कलारूपों में गिना जाता था। पुरानी चीनी और जापानी सभ्यता में भी इसका महिमामंडन मिलता है। ग्रीक लोग प्राचीन ओलम्पिक में कुश्ती को नई ऊचाईयों तक ले गए। किंतु आधुनिक कुश्ती की शुरूआत 18वीं शताब्दी में होती है।उस समय दो तरह की कुश्तियां प्रचलन में थीं। ग्रीको रोमन और फ्री स्टाइल। ग्रीको रोमन फ्रांस में और फ्री स्टायल अमेरिका और ब्रिटेन में जनप्रिय थी। यूजिन सेण्डोव पहला विश्व विख्यात पहलवान था। उसने कुश्ती के व्यवसायीकरण से खूब लाभ कमाया। साथ ही मर्द का नया कल्ट पैदा किया। पायने ने लिखा कि उसने आधुनिक समाज की निष्क्रिय और इकसार प्रवृत्ति के खिलाफ आत्मसजग पुंसत्व पर जोर दिया। बॉडी बिल्डिंग असल में शारीरिक संस्कृति का कृत्रिम मूल्य है। इसमें गठे हुए शरीर के आत्मसजग रूप पर जोर रहता है।

लंबे समय से कुश्ती और राष्ट्रवाद का अतस्संबंध भी चला आ रहा है। खासकर अमेरिका में कुश्ती का अमेरिकी राष्ट्रवाद से गहरा सबंध है। सन् 40 और पचास के दशक में जब अमेरिकी घरों में टीवी आ गया तो कुश्ती के कार्यक्रम सबसे जनप्रिय कार्यक्रम दर्ज किए गए। अमेरिकी राष्ट्रवाद और युद्ध के साथ डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट का किस तरह का संबंध रहा है।इस संदर्भ में एक -दो घटनाओं का जिक्र करना समीचीन होगा।युद्ध के दौर में डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट के आयोजक किसी भी किस्म की नैतिकता और नियमों का पालन नहीं करते। अफगानिस्तान और आसपास के इलाकों में जिस समय अमेरिकी सेना विन लादेन को खोज रही थी। उसी समय एक दिन अमेरिका मे चल रहे कुश्ती मुकाबले में टाइगर अली सिंह नामक पहलवान रिंग में कूद पड़ा। देखते ही देखते उसकी जमकर पिटाई कर दी गई। वह घायल हो गया। उसके घायल होते ही थोड़ी देर में ही दर्शकों में से तालिबान नामक एक ग्रुप उठा और उसने डब्ल्यू डब्ल्यू एफ पर ही हमले की घोषणा कर दी। इस घटना पर अमेरिकी मीडिया में जमकर बवाल मचा और इसके बारे में यहां तक कहा गया कि कुश्ती के आयोजकों को टाइगर अली सिंह नाम के पहलवान को रिंग में नहीं भेजना चाहिए था। इसी तरह जब सन् 1991 में इराक में युद्ध चल रहा था। अचानक डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट के आयोजक विंश मैकमहोन ने तय किया कि अब कुश्ती में हुल्क होगन जैसा भोला-मासूम चेहरा मदद नहीं करेगा। अत: मुकाबले के लिए ब्रूनो सम्मार्तिनो को मुकाबले के लिए तैयार किया गया। ब्रूनो ने सत्तर के दशक में बड़ा नाम कमाया था। वह देखने में विशालकाय और भयानक था। इसका मुकाबला लेरी जेविस्जको के साथ रखा गया। यह मैच इतना भयानक हुआ कि लेरी ने ब्रूनो पर पीछे से कुर्सी उठाकर मार दी। इससे उसे गहरी चोट आई।इसी तरह 2002 में जब अमेरिकी सैनिकों के शव अमेरिका लौट रहे थे। उस समय मैकमहोन ने कुश्ती के मुकाबले में एक पहलवान का नाम रखा ‘कर्नल मुस्तफा’ असल में यह सार्जेण्ट सिलॉटर था। इसका मुकाबला अदनान अल कैशी के साथ रखा गया। यह व्यक्ति कुश्ती से सन्यास ले चुका था।सार्जेण्ट सिलोटर का अस्सी के दशक में नाम था। उसे रिंग में देखकर दर्शक चौंक गए। क्योंकि वह चर्चित राष्ट्रभक्त था। उसे ‘मुस्तफा’ नाम देकर रिंग में पेश किया गया। दर्शक इससे मर्माहत हुए। वह उन लोगों में से एक था जिन्होंने लिबर्टीर् मूत्ति की स्थापना के लिए धन संग्रह के काम में अग्रणी भूमिका अदा की थी। उसने ही अमेरिकी कुश्ती की विदेशी पहलवानों से हमेशा रक्षा की। उन्हें हराया। सिलोटर के व्यक्तित्व के कारण विदेशी पहलवान अमेरिका का सम्मान करते थे। अमेरिकी पहलवानों का लोहा मानते थे। सिलोटर ने ‘ जी.इ. जोइ.’ कार्टून सीरीज में अच्छे आदमी की भूमिका निभायी।ऐसे व्यक्ति के मुँह से रिंग के अंदर अमेरिकी विरोधी बयान दिलवाए गए।उसके मुँह से राष्ट्र विरोधी बयान सुनकर दर्शक बेहद दुखी हुए। उल्लेखनीय है कि सिलोटर शरीर से बलिष्ठ था। मैक महोन को उसका बलिष्ठ रूप समीचीन लगा। दूसरा कारण यह था कि सिलोटर आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। आयोजकों ने उसकी बदहाल आर्थिक अवस्था का दुरूपयोग किया और उसे ‘मुस्तफा’ के रूप में अमेरिकी राष्ट्रवाद विरोधी बनने के लिए मजबूर कर दिया। आयोजक जानते थे कि सिलोटर अगर रिंग में उतरेगा तो भीड़ होगी। उससे लाभ मिलेगा और सिलोटर का अपमान होगा। वह राष्ट्रभक्त की साख खो देगा।

25 सितम्बर 2004 का दिन डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट के इतिहास में मील के पत्थर के रूप में याद किया जाएगा।इस दिन 3 अप्रैल 2005 को होने ‘रेशलिंग मेनिया 21’ के मुकाबलों की घोषणा की गई। इसी दिन इंटरनेट पर इस मुकाबले की टिकटों की बिक्री शुरू हुई। इंटरनेट पर मात्र एक मिनट में सभी पन्द्रह हजार टिकट बिक गए। कुश्ती मुकाबले के छह महीना पहले सभी टिकटों का बिक जाना इस बात का संकेत है कि डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट मुकाबला जनता में बेहद जनप्रिय हो उठा है। यह इस बात का भी संकेत है कि हॉलीवुड के देश में कुश्ती का जुनून सिनेमा या अन्य खेलों के जुनून को काफी पीछे छोड़ चुका है। डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट के मार्केटिंग उपाध्यक्ष कुर्त श्येनीडियर ने कहा कि ”जिस गति से टिकट बिके हैं।उससे यही सिद्ध होता है कि कुश्ती का जुनून बाकी है।यह पॉप कल्चर का जनप्रिय प्रतीक है। अभी इस मुकाबले को होने में छह महीने बाकी हैं। हमारे सेन्टर पर टिकट खरीदने वालों की लम्बी कतार लगी है किंतु हमारे पास टिकटें नहीं हैं। विगत पांच वर्षों में कुश्ती के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। स्टेपिल सेंटर की अतिथि सेवा के उपाध्यक्ष ब्रेण्डा टिन्निन ने कहा कि ‘इसमें कोई संदेह नही है कि स्टेपल्स सेण्टर अमेरिका का निरंतर नेतृत्व करता रहा है। ‘रेशंलिंग मेनिया 21′ उसका सिर्फ एक उदाहरण है।’ उल्लेखनीय है कि वर्ल्ड रेशलिंग इंटरटेनमेंट एक मनोरंजन और मीडिया कंपनी है। इसके पास अपने कुश्ती मुकाबलों में भाग लेने वाले पहलवानों के नाम,शौक, अभिरूचि, वस्त्र, प्रतीक चिह्न, कुश्ती के दांव-पेंच, नारे, आदि सभी के संपदा अधिकार हैं।इसकी अनुमति के बिना इस कुश्ती से जुड़े किसी भी पहलु को बाजार में कोई भी कंपनी बेच नहीं सकती। इन दिनों डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट की जनप्रियता अपने सर्वोच्च शिखर पर है। बाजार में इसके खिलौने सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं।सारी दुनिया में इनकी करोड़ों डालर की प्रतिदिन बिकी होती है। डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट ने अन्य खेलों खासकर फुटबाल,बास्केटवाल,वेसवॉल को भी पीछे छोड़ दिया है। आज इन खेलों के आयोजक उससे सीख रहे हैं। अपनी नई रणनीतियां बनाने में लगे हैं। यहां तक कि क्रिकेट में भी इसका असर साफ तौर पर हिन्दी के ‘हंगामा’ चैनल में देखा जा सकता है। इसमें बच्चों के साथ किसी न किसी चर्चित भारतीय खिलाड़ी द्वारा खेले जा रही क्रिकेट में देख सकते हैं। इस कार्यक्रम की समूची परिकल्पना डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट से ली गई है।

डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट सिर्फ कुश्ती या मनोरंजन नहीं है। बल्कि इस खेल में राजनीति भी है। प्रसिद्ध चिह्नशास्त्री रोलां बार्थ ने इसे तमाशा, प्रदर्शन और नाटक कहा है। जिसमें जनता हिस्सा लेती है। भुगतान करती है। यह मर्दानगी और अमेरिकी राष्ट्रवाद का महाख्यान है। परिवार और खासकर बच्चे इसके निशाने पर हैं। यह उत्तर शीतयुद्धीय मनोरंजन है। टेलीविजन के विभिन्न चैनलों से प्रसारित ‘डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट ‘कार्यक्रम बच्चों में सबसे ज्यादा जनप्रिय है। शायद ही कोई बच्चा हो जो इस कार्यक्रम को देखता न हो। ‘डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट’ की कुश्तियों को देखते समय दर्शक के मन में किसी तरह के आग्रह नहीं होते। वह तो सिर्फ नजारा देखता है। मुकाबले का अंत क्या होगा ?कौन जीतेगा और कौन हारेगा? इसमें दर्शक की कोई रूचि नहीं होती। असल में ज्यों ही दर्शक इन सवालों पर सोचने लगेगा उसकी रूचि नष्ट हो जाएगी। बार्थ ने लिखा है कि असल में नजारा देखने की मंशा सभी मंशा और परिणामों की कल्पना को नष्ट कर देती है। इसमें सोचने का नहीं देखने का महत्व है। ‘डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट’ की कुश्ती परर् शत्त नहीं लगायी जा सकती। क्योंकि इसके प्रत्येक दांवपेच में बुध्दि लगती है।जहां बुध्दि लगायी जाती हो वहांर् शत्त लगाना मूर्खता है। दर्शक की रूचि पहलवान के गिरने, उठने, पटकने, उछलकर एक- दूसरे पर गिरने में नहीं होती।दर्शक उसके दांवपेंच में भी रूचि नहीं लेता।उसकी रूचि पहलवान की भाव-भंगिमा और शारीरिक गठन ,खास किस्म की इमेजों के रूपान्तरण और तमाशे में होती है। इस तरह की कुश्ती का प्रत्येक क्षण दर्शक के भावों को उभारता है, विस्तार देता है,उसे परिणाम तक ले जाता है। पहलवान कुश्ती के बहाने दर्शकों के भावों से खेलता है। अपने भावों को अतिरंजित रूप में पेश करता है।जो पहलवान पिट रहा होता है वह शक्तिहीन नजर आता है।उसकी शक्तिहीनता असहनीय लगती है।यह परपीडक नजारा नहीं है। बल्कि बुद्धिमत्तापूर्ण नजारा है। पहलवानों के संवाद भाव- भंगिमा और एक-दूसरे पर हमले रोमांच पैदा करते हैं। यहां हार-जीत का नहीं रोमांच का महत्व है। नजारे का महत्व है। यहां स्टायल का महत्व है। इस तरह के मुकाबले में पराजय को दर्शाना प्रमुख लक्ष्य नहीं है बल्कि पराजय तक पहुँचने तक की समयावधि मनोरंजन की सृष्टि करती है। इस समायावधि में पहलवान एक-दूसरे पर हमले करते रहते हैं। इस अवस्था में दर्शक जो आनंद लेते हैं अथवा जिन भावों को रूपान्तरित करते हैं वे पीड़ा और अपमान के भाव हैं। पीड़ा और अपमान का दर्शक के मन में विरेचन होता है।बच्चों को यह इसीलिए ज्यादा अपील करता है।क्योंकि वे दैनन्दिन जीवन में पीड़ा और अपमान को सबसे ज्यादा महसूस करते हैं।

डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट के कार्यक्रम भारत में बच्चों में जनप्रिय हैं। यह मूलत: मनोरंजन उद्योग के फलने-फूलने का लक्षण है। यह विलक्षण सांस्कृतिक फिनोमिना है।टेलीविजन पर इसका प्रदर्शन दरशाता है कि विरोधी को मारने के लिए किसी भी किस्म का हिंसक व्यवहार वैध है। रोलां बार्थ के शब्दों में यह ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ व्यक्ति के बीच का मुकाबला नहीं है। बल्कि यह प्रतीकात्मक सांस्कृतिक और संस्थानगत अस्मिताओं की टकराहट है। इसमें दो विरोधियों का संघर्ष ‘बुरे’ पर अच्छे की विजय में खत्म होता है। डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट कार्यक्रम की टेलीविजन सीरीज का धारावाहिक के तौर पर विभिन्न चैनलों से निरंतर प्रसारण होता रहता है। इसका बच्चों पर गहरा असर पड़ रहा है।बच्चे पहलवानों को जिस तरह मारते हुए देखते हैं अपने साथियों के साथ वैसे ही मारपीट का अभ्यास करते रहते हैं। बच्चों पर इस कार्यक्रम के पड़ने वाले प्रभाव के बारे में इजराइल में किए गए एक अनुसंधान से पता चला है कि बच्चों में सप्ताह में कम से कम एकबार इसकी प्रतिक्रिया जरूर देखने को मिल जाती है। इसके कारण स्कूल में बच्चों को आए दिन चोट लगती रहती है। इन मुठभेडों में अधिकांश लड़के ही शामिल होते हैं। मात्र 10 फीसदी लड़कियों ने माना कि वे डब्ल्यू डब्ल्यू की घर में नकल करती रहती हैं। आपस में लड़ती रहती हैं। स्कूल में वे ऐसा नहीं करतीं। क्योंकि घर के माहौल में ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं। पहलवानों के प्रतीकात्मक विवरणों के बारे में लड़कियां ज्यादा नहीं जानती। जबकि लड़कों को प्रतीकात्मक विवरणों का व्यापक ज्ञान होता है। लड़कियां एकांत में एक-दूसरे को पहलवानों के शारीरिक गठन और विराट छवि के बारे में चुटकुले सुनाया करती हैं।लड़कियों की राय है कि डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट मर्दाना, हिंसक और असामाजिक कार्यक्रम है। लड़कियां इसके नाटक,सस्पेंस और प्रतिस्पर्धा में मजा लेती हैं। लड़कों के लिए यह कार्यक्रम उपकरण है ।वे इससे आत्मरक्षा के गुर सीखते हैं। जबकि लड़कियों को इससे कुछ भी सीखने को नहीं मिलता। वे इसे गैर-स्त्री खेल मानती हैं।लड़कों के मन में इसके माध्यम से युद्ध, अपराध, शक्ति,ऑथरिटी का युद्ध चलता रहता है।लड़कियां किंतु ऐसा नहीं सोचतीं। वे अपने को इन समस्याओं के समाधान करने वाली शक्ति ही नहीं मानतीं। लड़कों के लिए यह मजा,रोमांच और शक्ति की अनुभूति पैदा करता है। लड़कियां इसे घटिया,बदतमीजीभरा और परेशानी करने वाला मानती हैं। लड़कियों को इससे घृणा है। लड़कों को प्यार है। चौथी कक्षा की एक छात्रा ने कहा कि ”मैं समझ नहीं पाती कि इस तरह की लड़ाई के कार्यक्रम प्रसारित क्यों किए जाते हैं। यह शैक्षणिक कार्यक्रम नहीं है।यह रोचक भी नहीं है। तुम देखोगे कि एक व्यक्ति अन्य आदमी को पीट रहा है। ”कुछ लड़कियों ने कहा कि इस कार्यक्रम की मूर्खता से अपने को जोड़ नहीं सकतीं।30 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोग इस तरह का मूर्खतापूर्ण खेल खेलते रहते हैं।यह तर्क से परे है।अधिकांश लड़कियों का मानना है कि इस तरह के कार्यक्रमों का प्रसारण बंद कर देना चाहिए। अथवा देर रात गए दिखाना चाहिए।जिससे बच्चे इसे देख न पाएं। डब्ल्यू डब्ल्यू पहलवानों की अस्मिता की जंग मेंर् ईष्या, पैसा और औरत ये तीन बुनियादी कारण रहे हैं। प्रत्येक पहलवान के साथ कोई न कोई विचार जुड़ा है। यही विचार उसके दर्शकों पर जादू बिखेरता है। मजेदार बात यह है कि रिंग के अंदर चलने वाले वाक् युद्ध में पहलवानों के पास एक- दूसरे से कहने के लिए कुछ भी नहीं होता। वे एक भी सारवान बात नहीं कहते।

डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट का आधार है पश्चिमी सभ्यता।पश्चिमी सभ्यता के तीन प्रमुख तत्व हैं तेज, ऊँचा और मजबूत।ये ही तत्व इस कुश्ती के भी आधार है।ये ही पश्चिमी खेल के दार्शनिक तत्व हैं। यह क्षमता, हिंसा अमेरिकी राष्ट्रवाद और मर्दानगी का संयुक्त मोर्चा है। यह अमेरिका और यूरोप की सांस्कृतिक बेचैनी और तनाव को व्यक्त करता है।यह तकनीकी और सामाजिक परिवर्तनों के कारण पैदा हो रही बेचैनी की भी अभिव्यक्ति है। इसने कुश्ती में नए कल्ट को जन्म दिया है। नये कल्ट का मंत्र है ‘आत्मसजग पुंसत्व। ‘यह अमेरिकी राष्ट्रवाद का मनोरंजक वैचारिक रूप है। यह सिर्फ कुश्ती नहीं है बल्कि दर्शकों के भावों का अमेरिकी राष्ट्रवाद में रूपान्तरण है।

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

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