क्या गलत कहा संघ ने ?

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर देश में भ्रम की स्थिति पैदा करना जैसे कुछ कथित मीडिया का शगल हो गया है। अब संघ द्वारा अपने स्वयंसेवकों को नवगठित योगी सरकार से दूर रहने की बात कहें जाने को लेकर तमामं भृमित कर देने वाली खबरों और विश्लेषणों का प्रसारण किया जा रहा है।

वास्तव में संघ ने ऐसा कहा भी है या नहीं यह भी अभी स्पष्ट नहीं है। कहा भी है तो किन परिस्थितियों में औऱ किस परिप्रेक्ष्य में यह कहा गया है इस पर भी कुछ नहीं बोला जा रहा।
बस अर्थ का अनर्थ करने की छुद्र मानसिकता एक बार पुनः परिलक्षित होती दिख रही है। जिसके पीछे एक मात्र उदेश्य समाज में राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित शक्तियों को बदनाम करना, यह झूठ फैलाना की इनमें समन्वय नहीं है और सही दिशा में कार्य कर रही सत्ता को बोलने पर मजबूर करना है।
संघ के जिस बयान को लेकर भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है,उस बयान को एकबारगी सच मान लिया जाए तो भी उसमें ऐसा कुछ भी नहीं कि बवाल मचाया जाए। बल्कि इसकी जितनी प्रशंशा की जाए उतनी कम है।

सर्वविदित है कि जब लम्बे समय से शोषण और गुंडागर्दी का शिकार रही राष्ट्रवादी विचारधारा वाली सरकार सत्ता में आई है तो इस तरह की वैचारिकता रखने वाले असंख्य लोगों जिसमे की तमामं कार्यकर्ता भी शामिल हैं में व्यावस्थासुधार को लेकर अतिउत्साह का वातावरण है। ऐसी स्थिति में सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप की सम्भावनाये भी बढ़ जाती हैं, आगरा लखनऊ , आदि शहरों में हुईं घटनाएं इसी का परिणाम कही जा सकती हैं।
सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप की इस तरह के घटनाओं को किसी भी स्थिति में सही नहीं ठहराया जा सकता है।
संघ हो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व हो किसी ने भी इसको जायज नहीं ठहराया है। हमारे देश के कुछ
विघ्नसंतोषियों की यही समस्या है। यदि सही ठहरा दिया जाता तो गलत गलत कह दिया तो परेशानी और अब इस बात को लेकर वातावरण खराब करने की कोशिश की सरकार से दूर रहने को क्यों कहा दिया।

सबसे बड़ी परेशानी तो यह है कि संघ को दूर रहकर समझने की कोशिश की जा रही है। संघ को यदि सच्चे अर्थों में समझना है तो उसके नजदीक आना ही होगा दूर रहकर उसके बारे में कुछ भी बोलना या लिखना स्वयं का मजाक बनाने, समाज में भ्रम पैदा करने के अलावा कुछ भी नहीं कहा जा सकता ।

जहां तक संघ का सवाल है उसके लिए राष्ट्रहित सदैव सर्वोपरि रहा है। संघ ने कभी इस बात की चिंता नहीं की कि उसका व्यक्तिगत लाभ हानि किसमें निहित है।

सर्वविदित है कि पिछले डेढ़ दो दशक से अधिक समय से उत्तरप्रदेश की हालत खराब है,हाल ही में वहां एक राष्ट्रवादी विचारों वाली सरकार सत्तासीन हुई है। योगी आदित्यनाथ उसका चेहरा हैं। उन्होने उत्तरप्रदेश में परिवर्तन के बाद 100 दिन का समय मांगा है। ऐसी स्थिति में क्या अपने औऱ पराये सभी का यह कर्तव्य नहीं बनता है कि योगी को काम करने दिया जाए और प्राथमिक समीक्षा के लिए 100 दिन धैर्य का परिचय दिया जाय। शायद संघ के सन्देश के पीछे यही राष्ट्रभाव निहित है। विघ्न सन्तोषी मीडिया और वामपंथीछाप छदम बुद्धजीवी इसपर भ्रम फैलाने की कोशिश न करें।

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प्रवीण दुबे
विगत 22 वर्षाे से पत्रकारिता में सर्किय हैं। आपके राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय विषयों पर 500 से अधिक आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। राष्ट्रवादी सोच और विचार से प्रेरित श्री प्रवीण दुबे की पत्रकारिता का शुभांरम दैनिक स्वदेश ग्वालियर से 1994 में हुआ। वर्तमान में आप स्वदेश ग्वालियर के कार्यकारी संपादक है, आपके द्वारा अमृत-अटल, श्रीकांत जोशी पर आधारित संग्रह - एक ध्येय निष्ठ जीवन, ग्वालियर की बलिदान गाथा, उत्तिष्ठ जाग्रत सहित एक दर्जन के लगभग पत्र- पत्रिकाओं का संपादन किया है।

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