अधर्म है दूसरों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना

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पृथ्वी पर बसने वाली मानवजाति सहस्त्राब्दियों से हज़ारों धर्मों तथा लाखों आस्थाओं एवं विश्वासों के साथ अपना जीवन गुज़ारती आ रही है। प्रत्येक इंसान के पूर्वजों ने उसे विरासत में जो भी धर्म या विश्वास हस्तंातरित किया है वह प्राय: उसी धर्म,विश्वास,विचारधारा,रीतिरिवाज तथा परंपरा का अनुसरण करता आ रहा है। कहने को तो सभी धर्म, प्रेम,सद्भाव,शांति तथा जीने का बेहतर सली$का सिखाने का काम करते हैं। परंतु यह बात भी अपनी जगह पर बिल्कुल सत्य है कि विश्व में सबसे अधिक हत्याएं, विध्वंस, नफरत, विभाजन तथा वैमनस्य की जड़ों में भी कहीं न कहीं यही धर्म तथा धार्मिक उन्माद रहा है। लिहाज़ा सवाल यह है कि जब सभी धर्म हमें प्रेम का संदेश देते हैं फिर इसमें युद्ध, न$फरत या बांटने की बात कहां से आ जाती है। और यदि इस विषय पर हम और गहन अध्ययन करें तो हम यही पाएंगे कि वास्तविक धर्म तथा वास्तविक धर्म की वास्तविक शिक्षा या समझ तो हमें निश्चित रूप से प्रेम,सद्भाव तथा मानवजाति को जोडऩे का ही संदेश देती है। परंतु जब-जब इसी धर्म की बागडोर $गलत हाथों में गई है या कुछ कटटरपंथी,स्वार्थी तथा पूर्वाग्रही व रूढ़ीवादी लोगों ने धर्म को अपने ढंग से परिभाषित करने तथा इसकी अपने तरीक़े से व्या या करने की कोशिश की है या धर्म को तर्क के आधार पर समझने या अन्य धर्मों व विश्वासों के साथ उसकी तुलना करने की कोशिश की है तब-तब पृथ्वी पर भारी नरसंहार हुआ है और मानवजाति बार-बार किसी न किसी स्तर पर विभाजित होती गई है।

 

जहां तक भारतवर्ष का सवाल है तो यह देश हज़ारों वर्ष से विभिन्न आस्थाओं विश्वासों,विचारधाराओं तथा विभिन्न समुदायों के लोगों का देश रहा है। यहां की बहुरंगी संस्कृति तथा विभिन्न आस्थाओं एवं विश्वासों ने हमेशा ही पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इस देश में बसने वाले लोगों ने बाहर से आने वाले सभी धर्मों के अनुयाईयों का खुले दिल से स मान किया तथा अपने देश में ही नही बल्कि अपने दिलों में भी उन्हें बसाया। रहन-सहन की इसी संयुक्त एवं सामूहिक संस्कृ ति ने भारत की पहचान अनेकता में एकता रखने वाले विश्व के एक मात्र देश के रूप में स्थापित की। इसीलिए भारत वर्ष में आज जहां लाखों की तादाद में हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर पाए जाएंगे वहीं इस देश में हज़ारों की तादाद में पीरों-$फ$कीरों,औलियाओं व सू$फी-संतों की दरगाहें,म$कबरे व ख़ानक़ाहें भी हैं। हमारा देश जहां सिख समुदाय से संबद्ध तमाम ऐतिहासिक गुरुद्वारों का देश है वहीें बौद्ध धर्म के प्राचीन मठ-मंदिर भी इसी देश में हैं। देश में मौजूद बड़े से बड़े चर्च आज भी इस बात की गवाही देते हैं कि गैऱ ईसाई देश होने के बावजूद किस प्रकार ईसाई समुदाय के लोगों क ो भी भारत में रहकर पूरी आज़ादी के साथ अपनी गतिविधियां संचालित करने की पूरी छूट थी। इसी प्रकार जैन,पारसी आदि कई समुदायों के प्राचीन धर्मस्थल हमारे देश में पाए जाते हैं। ज़ाहिर है यह सब हमारे देश में इसीलिए देखने को मिलता है क्योंकि हमारे देश की बहुसं य आबादी उदारवादी विचारों की है तथा प्राय:सभी लोग एक-दूसरे के धर्मों,उनके धर्मस्थलों तथा उनके धार्मिक रीति-रिवाजों का स मान करते हैं।

 

परंतु इसी समाज में आज तमाम विध्वंसात्मक तथा परस्पर सामाजिक वैमनस्य फैलाने वाली वह शक्तियां भी सक्रिय देखी जा सकती हैं जो हमारी इसी सांझी तहज़ीब पर अपनी दकियानूसी व रूढ़ीवादी विचारधारा थोप कर केवल अपनी ही बात को मनवाने व उसे सर्वोच्च रखने का प्रयास करती हैं। ऐसी ता$कतें अपनी बातों को मनवाने के लिए किसी दूसरे धर्म व विश्वास के लोगों को अथवा उनके विचारों को अपमानित भी करती रहती हैं। विभिन्न धर्मों व संप्रदायों में ऐसे समाज विभाजक तत्व सक्रिय देखे जा सकते हैं जोकि अपने भाषणों,आलेखों, पुस्तकों तथा साक्षात्कार आदि के माध्यम से समाज को धर्म एवं विश्वास के आधार पर तोडऩे का काम करते हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति का नाम है ज़ाकिर नाईक। मूलरूप से महाराष्ट्र के रहने वाले ज़ाकिर नाईक एक अजीबो-$गरीब एवं विवादस्पद व्यक्ति का नाम है। देवबंद से शिक्षा प्राप्त ज़ाकिर नाईक वैसे तो पश्चिमी देशों, पश्चिमी स यता विशेषकर अमेरिका के घोर विरोधी हैं। परंतु उनका पहनावा पूर्णतया पश्चिमी अर्थात् पैंट-कोट और टाई है। वे पश्चिमी देशों को कोसते भी हैं तो अंग्रेज़ी में। वह एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें अंग्रेज़ी व अरबी भाषा का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त है। उन्हें कुरान शरीफ की आयतें भी ज़ुबानी याद हैं। वह बड़ी तेज़ी के साथ कुरान शरीफ, इस्लाम तथा हदीस आदि के विषय पर अरबी व अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से अपनी बात कहते हैं। उनकी यही कला उन्हें विवादपूर्ण शोहरत की बुलंदी पर ले जाने में तथा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में उनका साथ दे रही है।

 

उपरोक्त विशेषताओं के साथ उनका जो सबसे बड़ा नकारात्मक पहलू है जो उन्हें अक्सर विवादों में रखता है वह यही है कि उन्हें अपनी वहाबी विचारधारा की सोच से आगे और उससे बढक़र कुछ नज़र नहीं आता और अपनी यह वैचारिक भड़ास वह अक्सर किसी न किसी सार्वजनिक मंच से अपने भाषणों के दौरान निकालते रहते हैं। परिणामस्वरूप समाज के उस वर्ग में हलचल मच जाती है जो यह महसूस करता है कि ज़ाकिर नाईक की अमुक बयानबाज़ी से उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत किया गया है। मिसाल के तौर पर पिछले दिनों उन्होंने भगवान शंकर की यह कह कर आलोचना की कि जब उन्होंने अपने पुत्र श्री गणेश को नहीं पहचाना और उनकी गर्दन काट दी फिर आखिर वह भोले शंकर अपने भक्तों को कैसे पहचानेंगे? वे मंदिर का प्रसाद ग्रहण करने से भी लोगों को रोकते हैं और ऐसी अपील भी जारी करते हैं। ज़ाकिर नाईक का इस प्रकार का तर्कपूर्ण या आलोचनत्मक वक्तव्य केवल हिंदू धर्म के ही नहीं है बल्कि सूफी, फकीरी,दरवेशी व $खानक़ाही परंपरा के भी बिल्कुल खिलाफ है। उनका मानना है कि मरने के बाद कोई भी व्यक्ति किसी को कुछ भी नहीं दे सकता। यहां तक कि मोह मद साहब भी किसी को कुछ नहीं दे सकते तो फिर अन्य पीरों-फकीरों व बाबाओं की बात ही क्या करनी। उनके विचार हैं कि समस्त कब्रों व समाधियों को मिट्टी में मिला दिया जाना चाहिए।

 

ज़ाकिर नाईक का उपरोक्त कथन आस्था, विश्वास व धार्मिक समर्पण की कसौटी पर कतई खरा नहीं उतरता। क्योंकि धर्म विश्वास का विषय है। आज स्वयं ज़ाकिर नाईक भी जो कुछ बोलते,कहते या तर्क देते हैं वह उसी विश्वास एवं शिक्षा के आधार पर जोकि उन्होंने विरासत में अपने बुज़ुर्गों,अपने गुरुओं या अपनी विचारधारा के उलेमाओं से ग्रहण की हैं। यह उनकी विचारधारा व उनकी सोच ही है जो उनसे यह कहलवाती है कि-‘इस्लाम के दुश्मन अमेरिका का दुश्मन ओसामा बिन लाडेन यदि आतंकवादी है तो मैं भी आतंकवादी हूं और सभी मुसलमानों को आतंकवादी होना चाहिए’। अब ओसामा बिन लाडेन जैसे दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी, हत्यारे व बेगुनाह लोगों का $खून बहाने वाले व्यक्ति के प्रशंसक ज़ाकिर नाईक की वैचारिक सोच के विषय में स्वयं यह समझा जा सकता है कि ऐसी बातें कर नाईक इस्लाम का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं या इस्लाम को बदनाम करने का, उसे कलंकित करने का वही अधूरा काम पूरा कर रहे जो ओसामा बिन लाडेन छोडक़र गया है? ज़ाकिर नाईक सिर्फ ओसामा बिन लाडेन के ही प्रशंसक नहीं हैं बल्कि वे इस्लामी इतिहास के सबसे पहले आतंकवादी यानी सीरियाई शासक यज़ीद के भी प्रशंसक हैं जिसने कि हज़रत मोह मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन व उनके परिवार के लोगों को करबला के मैदान में $कत्ल कर दिया था। यज़ीद को बुरा-भला कहना, उसपर लानत-मलामत भेजना या उसकी निंदा करना नाईक की नज़रों में $गैर इस्लामी है मगर यज़ीद की प्रशंसा करना व उसपर सलाम भेजने को वह इस्लाम करार देते हैं।

 

उनकी इसी प्रकार की गैरजि़ मेदारना बयानबाज़ी तथा अन्य धर्मों, समुदायों व विश्वासों के लोगों को आहत करने की उनकी प्रवृति के चलते न केवल मुस्लिम समुदायों के लोगों ने उनके विरुद्ध फतवा जारी कर दिया है बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार ने तो उनके भाषणों को राज्य में प्रतिबंधित ही कर दिया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इस प्रकार की भाषणबाज़ी करने वालों के विरुद्ध सत कदम उठाए जाने चाहिए। दुनिया के 80 प्रतिशत मुस्लिम जगत के लोग इमाम,सूफी व फकीरी परंपरा के मानने वाले हैं। और इन्हीं उदारवादी परंपराओं की बदौलत इस्लाम आज पूरे विश्व में अपनी जगह बना सका है न कि यज़ीद,लाडेन या आज के ज़ाकिर नाईक की इस्लाम के प्रति नफरत पैदा करने वाली इस्लाम विरोधी बातों की बदौलत। लिहाज़ा देश के लोगों को चाहिए कि वे ज़ाकिर नाईक जैसे बेलगाम वक्ताओं के भाषणों व उनके विचारों का डटकर विरोध करें तथा इन्हें नियंत्रित रखने की कोशिश करें। इसके अतिरिक्त सरकार को भी ज़ाकिर नाईक को राष्ट्रीय स्तर पर न केवल प्रतिबंधित कर देना चाहिए बल्कि इनके विरुद्ध दूसरे धर्मों व समुदायों के लोगों की भावनाओं को आहत करने के आरोप में इन पर सत कार्रवाई भी की जानी चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि किसी भी धर्म एवं समुदाय का कोई भी व्यक्ति जो हमारी एकता व धार्मिक स्वतंत्रता का दुश्मन है वह हमारे देश का भी दुश्मन है।

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