यशोदानंदन-५६

-विपिन किशोर सिन्हा-

krishna and balram

उद्धव ने प्रत्यक्ष देखा कि श्रीकृष्ण के स्नेहपाश में बंधे नन्द बाबा और मातु यशोदा अपने पुत्र के असामान्य कार्यों का वर्णन करते-करते अत्यन्त व्याकुल हो गए और कुछ न बोल सके। दोनों का एक-एक पल श्रीकृष्ण के चिन्तन को समर्पित था। उनके अगाध वात्सल्य, प्रेम और स्नेह से उद्धव भी अभिभूत हुए बिना नहीं रह सके। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर अपना सारा सम्मान माता-पिता की इस अद्भुत जोड़ी को समर्पित करते हुए निवेदन किया –

“मातु यशोदा और महाराज नन्द! आप दोनों मनुष्यों में सर्वाधिक आदरणीय हैं क्योंकि आपकी भांति दिव्य भाव में मग्न होकर आपके अतिरिक्त कोई और श्रीकृष्ण का ध्यान नहीं कर सकता। आपने निराकार ब्रह्म-स्रोत, दिव्य स्वरूप वाले श्रीभगवान नारायण पर अपने मन को पूर्णरूपेण केन्द्रित कर लिया है। ब्रह्म-ज्योति श्री नारायण के शरीर की अंगकान्ति मात्र है। आप सदैव श्रीकृष्ण एवं बलराम के परमानन्द स्वरूप के चिन्तन में मग्न रहते हैं, अतः आपके लिए कोई अन्य पुण्य-कार्य करना शेष नहीं रह जाता है। आप तो दिन-रात श्रीकृष्ण की उपस्थिति की प्रतीति कर रहे हैं। फिर भी वे शीघ्र ही आपसे भेंट करेंगे। श्रीकृष्ण सर्वत्र और सबके हृदय में उपस्थित हैं। वे स्वयं परमात्मा हैं। वे सब पर समभाव रखते हैं। उनका न कोई मित्र है, न शत्रु, न पिता, न माता, न भाई, न संबन्धी। उनका हमारी तरह कोई भौतिक शरीर नहीं है। वे साधारण जीवों की भांति जन्म नहीं लेते हैं, वरन्‌ प्रकट होते हैं। अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा वे केवल भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं। वे कभी भी भौतिक प्रकृति के गुणों से प्रभावित नहीं होते हैं, किन्तु जब वे इस भौतिक जगत में प्रकट होते हैं, तब भौतिक प्रकृति के सत, रज, तम जैसे गुणों के प्रभाव के अन्तर्गत रहने वाले साधारण मानव की भांति कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं। वस्तुतः वे इस सृष्टि के द्रष्टा हैं और प्रकृति के भौतिक गुणों से प्रभावित न होकर समस्त जगत का सृजन, पालन और संहार करते हैं। श्रीकृष्ण-बलराम को साधारण मानना हमारी भूल है। वस्तुतः वे किसी के पुत्र नहीं हैं। सत्य यह है कि वे सबके पिता, माता और ईश्वर हैं। जो कुछ भी अनुभव हो रहा है, या नहीं हो रहा है, जो कुछ भी है, जो कुछ भी नहीं है, या भविष्य में जो कुछ भी होनेवाला है, उन सबका श्रीविष्णु से अलग कोई अस्तित्व नहीं है। लघुतम या विशालतम, सबकुछ उन्हीं में अवस्थित है। इन सबके बावजूद सृष्टि में अभिव्यक्त कोई भी वस्तु उन्हें स्पर्श नहीं करती। आपलोग परम सौभाग्यशाली हैं कि आपको शिशु और बालक के रूप में उनके लालन-पालन का सुअवसर प्राप्त हुआ। मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप दोनों श्रीकृष्ण के वियोग के कारण दुःखी न हों।”

 

सारी गोपियां श्रीकृष्ण की उपस्थिति में सदैव नन्द बाबा के घर आती थीं। मातु यशोदा से मिलने का तो बहाना था, वास्तविक उद्देश्य तो किसी प्रकार कन्हैया के दर्शन का रहता। श्रीकृष्ण के मथुरा-गमन के पश्चात्‌ भी उनका माता यशोदा से नित्यप्रति प्रातःकाल मिलने का क्रम यथावत था, बल्कि बढ़ ही गया था। प्रत्येक दिन नन्द बाबा और यशोदा मैया के पास आकर प्रणाम करना सभी गोप-गोपियों ने अपना कर्त्तव्य बना लिया था। श्रीकृष्ण के सखाओं और सखियों को देखकर नन्द जी तथा यशोदा मैया, दोनों कन्हैया का स्मरण करते, प्रसन्न होते और संतुष्ट हो जाते थे। गोप-गोपियों को भी नन्द जी एवं यशोदा मैया के दर्शन करके अतीव आनन्द की अनुभूति होती थी।

उद्धव जी के आगमन के पश्चात्‌ दूसरे दिन प्रभात में नन्द जी के घर गोपियों ने उद्धव जी के दर्शन किए। उन्हें देखकर गोपियां सुख और आश्चर्य से भर गईं। श्रीकृष्ण और उद्धव जी की मुखाकृति में आश्चर्यजनक साम्य था। उनकी भुजायें लंबी और नेत्र कमल-दल के समान थे। उन्होंने पीत वस्त्र धारण कर रखा था और ग्रीवा में कमल-पुष्प की माला सुशोभित हो रही थी। उनका मुख अत्यन्त सुन्दर था। सारूप्य-मुक्ति प्राप्त कर लेने के कारण उद्धव जी की शारीरिक आकृति भगवान जैसी ही थी।

यशोदा मैया ने उद्धव जी का गोपियों से परिचय कराया। माता से ही उन्हें विदित हुआ कि वे श्रीकृष्ण का संदेश लेकर मथुरा से आए हैं। गोपियों ने विनय से झुककर सलज्ज-हास्य, चितवन और मधुर वाणी से उद्धव जी का सत्कार किया। उन्हें एकान्त में आसन पर बैठाकर चारों ओर खड़ी हो गईं। पश्चात्‌ नेत्रों से छलक आए अश्रु-कणों को किसी प्रकार रोककर अपनी व्यथा प्रकट की –

“हे उद्धव जी! हमें ज्ञात है कि आप यदुनाथ के पार्षद हैं और उन्हीं का संदेश लेकर यहां पधारे हैं। आपके स्वामी ने अपने माता-पिता के कष्ट को हरण करने और सुख प्रदान करने के लिए आपको यहां भेजा है। माता-पिता आदि सगे संबन्धियों का स्नेह बंधन तो बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी कठिनाई से तोड़ पाते हैं। आपके माध्यम से श्रीकृष्ण ने हमारे लिये संदेश भेजा है। इससे इतना तो स्पष्ट है कि अभी भी वे हम पर कृपालू हैं। वरना अब वे नगर में हैं। अब वृन्दावन ग्राम अथवा गायों की गोचर भूमि के विषय में जानकर उन्हें क्या करना है? इन सब बातों का श्रीकृष्ण के लिए अब क्या उपयोग? हे श्रीकृष्ण के अनन्य सखा! आपका हृदय से स्वागत है। कृपया हमें यह बताने का कष्ट करें कि मथुरा में श्रीकृष्ण कैसे हैं? क्या वे अब भी अपने पालक पिता नन्द जी, स्नेहमयी माता यशोदा, अपने ग्वाल-बाल सखाओं और अपनी दीन सखियों – हम गोपियों का कभी स्मरण करते हैं? क्या श्रीकृष्ण के यहां पुनः आने और अपना स्नेहयुक्त करयुग्म हमारे सिरों पर रखने की कोई संभावना है?”

उद्धव जी ने बड़े ध्यान से गोपियों को देखा। श्रीकृष्ण के प्रति उपालंभ में श्रीकृष्ण के प्रति उनका प्रेम ही छलक रहा था। उन्होंने अपना सर्वस्व कन्हैया को सौंप दिया था। उन्हें यह देखकर अत्यधिक आश्चर्य हुआ कि समस्त गोपियां कृष्ण-भक्ति के सर्वश्रेष्ठ स्तर, महाभाव में श्रीकृष्ण-चिन्तन करने की अभ्यस्त हो गई थीं। वे श्रीकृष्ण का एक लिखित संदेश लाए थे जिसे वे उनके सम्मुख प्रस्तुत करना चाह रहे थे। गोपियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा –

“आदरणीय गोपियो! आपके मानव-जीवन का उद्देश्य अब पूर्ण हो गया है। आप सभी श्रीकृष्ण की अद्भुत भक्त हैं, अतः आप पूरी मानव-जाति द्वारा उपासना के योग्य हैं। दान देना, व्रतों का दृढ़ता से पालन करना, घोर तपस्या करना तथा यज्ञ की अग्नि को प्रज्ज्वलित करना – इन सभी धार्मिक क्रियाओं एवं विधियों के पालन का लक्ष्य श्रीकृष्ण हैं। विभिन्न मंत्रों का उच्चारण, वेदों का अध्ययन, इन्द्रिय-दमन और ध्यान में मन को एकाग्र करने के पीछे एक ही प्रयोजन है और वह प्रयोजन हैं श्रीकृष्ण। आप सबके जीवन में ऐसी तपस्या की पूर्णता मुझे पूर्ण रूप से दिखाई दे रही है। हे परम आदरणीय गोपियां! श्रीकृष्ण के प्रति जो भाव आपने स्वयं में निर्मित कर लिया है, वह युगों-युगों से तपस्या में रत महर्षियों और सन्तों में भी दुर्लभ है। आपने जीवन की सर्वोच्च सिद्धि की स्थिति प्राप्त कर ली है। आपके लिए एक महान यह एक महान वरदान है। अब आपका मन पूर्ण रूप से परमात्मा श्रीकृष्ण में मग्न हो गया है। अतएव आपमें अपने आप ही सार्वभौम प्रेम विकसित हो गया है। श्रीकृष्ण मूलतः निराकार और सर्वव्यापी हैं। वे सदैव आपके साथ थे और सदैव आपके साथ रहेंगे। वे हर युग में धर्म स्थापनार्थ अवतार ग्रहण करते हैं जो साकार होता है। मैं इसे अपना परम सौभाग्य मानता हूँ कि आपकी कृपा से ही आपकी यह परम स्थिति देखने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ है।”

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