आम आदमी के हस्तक्षेप का साल

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-प्रमोद भार्गव- price rise corruption upa 2 year political news ekhabar

पुरातन और नूतन के संधि-समय में आम आदमी के हस्ताक्षेप से जो राजनीतिक उपलब्धि दिल्ली में सरकार के रूप में फलीभूत हुई है, वह 2014 में समाज, राजनीति और अर्थ क्षेत्रों में बदलाव का बड़ा आधार बनती दिखाई दे रही है। इस लिहाज से नया साल आम आदमी के लिए उम्मीदों से भरा साल होगा। 2013 राजनीतिक उथल-पुथल, घोटालों और स्थापित दल व अनेक नेताओं के प्रति अविश्वास का साल जरूर रहा है, लेकिन यही वह साल रहा जिसने जीवन और राजनीति में सकारात्मक पहल करके भ्रष्ट राजनीति को न केवल रूढ़िवादी जड़ता से तोड़ा, बल्कि मूल्यपरक ईमानदार राजनीति की गहरी लकीर भी खींच दी। सच्चाई और कर्तव्यनिष्ठा के सरोकरों से जुड़ी यही राजनीति होगी जो मानव जीवन को बेहतर बनाने की दृष्टि से कानूनी व तकनीकी जटिलताओं को दूर करेगी। आम और खास आदमी के बीच विषमता की जो खाई चौड़ी होती जा रही है, उसे पाटने का सिलसिला शुरू होगा। खासकर युवाओं के लिए यह साल मानसिकता में बदलाव लाने का साल हैं। युवाओं को अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों से सीख लेने की जरूरत है कि उनका भविष्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों में केवल नौकरी करके खुद के जीवन को भौतिक रूप से सुखी बनाने के लिए नहीं है, बल्कि समाज और राजनीति में सीधे उतरकर उसे स्वच्छ व सुरूचिपूर्ण बनाने का दायित्व उनके कंधों पर है। इसलिए युवाओं के लिए जोखिम उठाने का भी यह साल है।
भ्रष्टाचार, महंगाई और कमजोर होती अर्थव्यवस्था की प्रतिच्छया में गुजरा वह साल है जिसमें समाजिक कार्यकर्ता और आंदोलनकारी अब केवल वर्तमान व्यव्स्था को नकारने की बात नहीं कर रहे हैं,बल्कि राजनीति में आकर नीतिगत बदलाव की पैरवी कर रहे हैं। दामिनी दुष्कर्म के परिणामस्वरूप उपजे आंदोलन ने माहिला सुरक्षा कानून वजूद में लाने की पहल की। भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए अन्ना हजारे के नेतृत्व में सामने आए आंदोलन के फलस्वरूप लोकपाल विधेयक ने कानूनी रूप लिया, जबकि ज्यादातर राजनीतिक दल इस कानून के विरोध में थे। लेकिन अन्ना के रालेगन सिद्धी में आमरण अनशन पर बैठने के कारण, समाजवादी पार्टी छोड़ सभी दलों ने सहमति जताई और लोकपाल संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया। गैरराजनीतिक, मसलन सामाजिक आंदोलन की इस साल सबसे बड़ी और आश्चर्यजनक उपलब्धि रही- दिल्ली में आम आदमी पार्टी की अप्रत्याशित जीत। इस जीत ने राजनीतिक दलों के उन सब परंपरागत मिथकों को तोड़ दिया जिन्हें कमोवेश राजनीतिक वजूद के सिद्धांत मान लिया गया था। इन सिद्धांतों में पिछले ढाई दशक से धनबल, बाहुबल, वंशवाद और भूमि व शराब माफिया जैसे लोग एक अनिवार्य तत्व हो गए थे। अरविंद केजरीवाल और उनकी आप ने बेहद सादगी, कम खर्च और संपूर्ण पारदर्शिता को लक्ष्य बनाकर चुनाव लड़ा और विजयश्री हासिल की। जाहिर है, 2013 ने जाते-जाते तय कर दिया कि देश का मिजाज बदल रहा है और ईमानदार आदमी भी यदि मजबूत संकल्प का अनुयायी हो जाए तो न केवल चुनाव लड़ व जीत सकता है,बल्कि बिना किसी राजनीतिक अनुभव के नई पार्टी भी खड़ी कर सकता है। आप ने दिल्ली में सरकार बनाकर उम्मीद व आशा जताई है कि आम अवाम के बीच राजनीति के प्रति फिर से विषवास का महौल पैदा होगा।
दरअसल जनता-जर्नादन का राजनीति में भरोसा इसलिए जरूरी है, क्योंकि बदलाव के सभी रास्ते संसद और विधानसभाओं के दरवाजों से ही निकलते हैं। भ्रश्टाचार मुक्त षासन राजनीति के एजेंडे में जो सबसे उपर होना चाहिए था, अब तक राजनेता उसी पर कुंडली मारकर बैठे हुए थे। जाहिर है,सामाजिक आंदोलनों ने बदलाव का अब ऐसा माहौल बना दिया है कि जनता अब इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। यही वजह रही कि आदर्श आवास सोसाइटी घोटाले पर महाराष्ट्र सरकार ने जिस तरह से पर्दा डालने की कोशिश की है, उस फैसले पर राहुल गांधी और सोनिया गांधि ने अपनी ही सरकार के विरूद्ध आपत्ति जताई है। लेकिन भ्रष्टाचार को लेकर अब कांग्रेस की छवि इतनी घूमिल हो चुकी है कि वह फौरी उपायों से इसे आम चुनाव तक झाड़ नहीं पाएगी।
2013 से सबसे ज्यादा प्रेरित होने की जरूरत उन युवाओं को है,जिन्होंने भौतिक व वैभवशाली जिदंगी को ही अपने जीने का उद्देश्य बना लिया है। उच्च व तकनीकि शिक्षा हासिल करने का यह मतलब कतई नहीं है कि आपको कंपनियों का बंधुआ ही बनना जरूरी है? वह भी देश की प्राकृतिक संपदा के अंधाधुंध दोहन की शर्त पर। अब हमें केवल श्रेश्ठ शिक्षा संस्थानों से केवल बेहतर तकनीकि शिक्षा की जरूरत नहीं रह गई है, बल्कि ऐसी शिक्षा की जरूरत है, जो समाज के तमाम पहलुओं से परीचित कराकर उन्हें मजबूत बनाने में सक्षम हो। सामाजिक सरोकरों से जुड़ा ज्ञान ही संपूर्ण माना जा सकता है। तकनीकि शिक्षा से मोहभंग होना इसलिए भी जरूरी है,क्योंकि अब बड़ी संख्या में इंजीनियर कंपनियों की बैंकिग सेवाओं में काम कर रहे हैं। यह एक बड़ा विरोधाभास है कि बैंकिंग और इंजीनियरिंग में अंततः कैसे तालमेल संभव है ? गुणतापूर्ण शिक्षा वही कहलानी चाहिए जो समाज के विविध आयामों से जुड़ने के लिए प्रेरित करे। इस नजरिए से अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों ने राजनीति में हस्तक्षेप करके एक आदर्श मानदण्ड स्थापित किया है। अरविंद खुद न केवल आआईटियन हैं, बल्कि उन्होंने भारतीय राजस्व सेवा की परीक्षा भी पास की है। सरकारी विभाग में संयुक्त राजस्व आयुक्त होते हुए भी उन्होंने सम्मानजनक व आर्थिक सुरक्षा देने वाली नौकरी न केवल छोड़ी, बल्कि सादगी की बानगी प्रस्तुत करते हुए राजनीति में आए और मुख्यमंत्री बने।
अरविंद एक ऐसे आदर्श स्तंभ बनकर सामाजिक आंदोलनों से उभरे हैं,जो जोखिम उठाकर समाजिक बदलाव की पैरवी करते हैं। योजना आयोग की रिपोर्ट की माने तो देश के ज्यादातर विश्वविद्यालयों व शिक्षण संस्थानों की डिग्रियां महज कागज का टुकड़ा हैं। देश के 60 फीसदी विवि और 80 प्रतिशत महाविधालयों से उत्तीर्ण विद्यार्थी रोजगार के लायक नहीं हैं, क्योंकि उनके पास न तकनीकि कौषल है और न ही खुद को बेहतर ढ़ंग से अभिव्यक्त करने की भाशा दक्षता है? इसलिए हमारे देष का कोई भी उच्च शिक्षा संस्थान दुनिया के 200 श्रेष्ठ संस्थानों में शामिल नहीं है। इसलिए युवाओं को जरूरत हैं कि देश की वह हर उस व्यवस्था से जुड़ें जिसमें क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत हैं। राजनीति, खेती और उद्योग ऐसे क्षेत्र हैं,जहां बदलाव के लिए सक्षम उद्यमियों व उत्पादकों की जरूरत है, क्योंकि युवाओं का विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी दखल ही विधायिका में नीतिगत बदलाव का वाहक बनकर, कानूनी जटिलताओं को दूर कर, आम आदमी के जीवन को सरल बनाएगा।

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