तुम आदमी हो या…

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-विजय कुमार-    politics1
शर्माजी को हम सबने मिलकर एक बार फिर ‘वरिष्ठ नागरिक संघ’ (वनास) का अध्यक्ष चुन लिया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच वर्मा जी ने उनकी झूठी-सच्ची प्रशंसा के पुल बांधे और बाबूलाल जी ने उन्हें माला पहनायी। शर्मा जी ने सबको धन्यवाद दिया और फिर परम्परा के अनुसार उनकी ओर से भव्य चाय-नाश्ता हुआ। हमारे मोहल्ले के बुजुर्गों की यह संस्था कई साल पुरानी है। आप जानते ही हैं कि बुजुर्गों को अपने अनुभव बिना मांगे दूसरों को देने की बीमारी होती है। भगोने में उबलते दूध की तरह उनके अनुभव यहां-वहां छलकते रहते हैं। इस संस्था में भी अधिकांश लोग ऐसे ही हैं। कुछ को तो दिन में कई बार इसका दौरा जैसा पड़ता है। इसलिए युवा वर्ग इस संस्था और इसके सदस्यों से दूर भागता है।
अब आप तो अपने घर के ही हैं, इसलिए आपसे क्या छिपाना। कई युवक इसे ‘वनास’ की बजाय ‘वनवास’ कहते हैं और इसके सदस्यों को सदा के लिए वनवास चले जाने की सलाह देते हैं। उनकी बात सुनकर हम मुस्कुरा देते हैं, क्योंकि उनमें से कई चार-छह साल बाद खुद इसके घेरे में आने वाले हैं। जहां तक मोहल्ले के छोटे बच्चों की बात है, उन्होंने इस संस्था का नाम ‘बाबा पंचायत’ (बाप) रख छोड़ा है। उनके खेलकूद और मौजमस्ती के समय यदि संस्था का कोई सदस्य आसपास भी आ निकले, तो वे आपस में खुसपुस करते हैं – बाप जी आ गये हैं, भागो..।
खैर, ये तो इधर-उधर की बात हुई। अब असली मुद्दे पर आते हैं। शर्मा जी ने ‘वनास’ की अगली बैठक में प्रस्ताव रखा कि सर्दी जा रही है। रजाई में घुसे बहुत दिन हो गये। अब कोट और मफलर को फिनाइल की गोलियों के साथ ट्रंक में रखकर सबको सपरिवार घूमने चलना चाहिए। उन्होंने इसके लिए अंदमान-निकोबार का सुझाव भी दिया। खाली बैठे पेंश्नधारी बुजुर्गों को इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी। गुप्ता जी के एक परिचित की ‘ट्रैवल एजेंसी’ है। अत: उन्हें इस बारे में विस्तृत जानकारी करने को कह दिया गया। अगली साप्ताहिक बैठक में गुप्ता जी आने-जाने के वाहन से लेकर आवास और भोजन जैसी व्यवस्थाओं का पूरा विवरण एक कागज पर लिख कर ले आये। इसमें प्रत्येक का कितना खर्च होगा, यह भी उन्होंने बताया; पर पिछले दिनों गणंतत्र दिवस वाले दिन अंदमान में हुई नौका दुर्घटना और उसमें २१ लोगों की मृत्यु से शर्मा जी का कोमल मन डांवाडोल हो गया। अत: उन्होंने अंदमान यात्रा का विचार स्थगित कर दिया। अब उनका मत था कि इन दिनों दक्षिण भारत का मौसम बहुत अच्छा रहता है। अत: रामेश्वर, कन्याकुमारी और तिरुपति बालाजी चलना चाहिए।
एक बार फिर गुप्ता जी को पूरा विवरण जुटाने को कहा गया; पर अगली बैठक में शर्मा जी की राय फिर बदल गयी। अब उनका तर्क था कि मार्च-अपै्रल में चुनावी माहौल चरम पर होगा। पता नहीं कब क्या गड़बड़ होने लगे। आजकल रेल की पटरियों पर धरना देने का भी फैशन चल पड़ा है। ऐसे में हम तो फंस जाएंगे। हम वहां की भाषा और बोली भी नहीं जानते। अत: अपने क्षेत्र से बहुत दूर जाना ठीक नहीं है। इसलिए मां वैष्णो देवी के दर्शन करना अच्छा रहेगा। इससे अगली बैठक में वे सोमनाथ और द्वारका के गुण गाने लगे।
शर्मा जी को बार-बार अपनी राय बदलते देख ‘वनास’ के सदस्य भड़क गये। कुछ लोगों ने तो यात्रा की तैयारी भी शुरू कर दी थी। बड़े लोग महीने भर के लिए बाहर जा रहे हैं, इस समाचार से घर वाले भी बहुत खुश थे। युवा बहुओं के लिए तो यह सास जी की धारावाहिक डांट-फटकार से ‘मुक्ति का पर्व’ जैसा ही था। कुछ का कहना था कि सास-ससुर जी के यात्रा पर जाने के बाद ही हम ठीक से १५ अगस्त और २६ जनवरी मनाएंगे। इसलिए ‘वनास’ की साप्ताहिक बैठक से घर लौटते ही उनके चेहरे पर बना प्रश्नचिह्न मानो पूछता था कि कब जा रहे हैं आप लोग ?
पर हर बैठक में शर्माजी अपना विचार बदल लेते थे। ‘वनास’ के उपाध्यक्ष वर्मा जी ने तो नाराज होकर बैठक का बहिष्कार ही कर दिया। बड़ी मुश्किल से समझा-बुझाकर लोग उन्हें वापस लाये। उनका कहना था कि शर्मा जी एक बार ठीक से तय कर लें कि यात्रा पर जाना भी है या नहीं ? इसके बाद वे तीन-चार लोगों की एक समिति बना दें, जो बाकी सब बातें तय कर लेगी; पर शर्मा जी इसे मानने को तैयार ही नहीं थे। इस पर दोनों में बहस होने लगी।
वर्मा – शर्मा जी, तुम आदमी हो या केजरीवाल ? किसी बात पर तो टिक कर रहो।
शर्मा – तुम ये कहने वाले कौन हो ? मैं ‘वनास’ का संस्थापक हूं। मैंने इसके लिए खून-पसीना एक किया है।
– ठीक है; पर हमने भी कम सहयोग नहीं दिया ?
– दिया होगा; पर इसमें वही होगा, जो मैं चाहूंगा।
– पर आप कुछ चाहें, तब तो..। आप तो हर बार अपनी ही बात पर ‘केजरी टर्न’ ले लेते हैं। बहुत हो गया। अब ऐसे नहीं चलेगा।
– आप लोग चाहे जो कहें; पर यहां तो ऐसे ही चलेगा। यदि आप मेरी बात नहीं मानेंगे, तो मैं ‘वनास’ के कार्यालय में धरना दे दूंगा।
– पर कार्यालय सिर्फ आपका नहीं, हमारा भी है।
– तो मैं बाहर सड़क पर बैठ जाऊंगा। वहीं सोऊंगा और वहीं नहाऊंगा। ‘वनास’ का काम भी मैं वहीं से निबटाऊंगा। ज्यादा जिद की, तो मैं भूख हड़ताल कर दूंगा।
सब जानते थे कि शर्मा जी को धरने और अनशन से बहुत प्रेम है। पिछले एक-डेढ़ साल से अन्ना हजारे और केजरीवाल की संगत के कारण वे बाहर ही नहीं, कई बार अपने घर में भी धरना और भूख हड़ताल कर चुके हैं। इस कारण उनसे बहस करना बेकार समझकर सब बैठक छोड़कर चल दिये।
शाम को मैं बाजार जाते समय उधर से निकला, तो वे वहां अकेले बैठे खांस रहे थे। वापसी पर फिर अंदर झांका, तो मैदान साफ मिला। चौकीदार ने बताया कि वे झक मारकर घर चले गये हैं। यदि आपके पास शर्मा जी की खांसी और मानसिक अस्थिरता का कोई इलाज हो, तो जरूर बताएं। शर्मा जी के घर का पता तो आपको मालूम ही होगा। ‘कौशाम्बी’ के पास ही है।

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