-सोनू झा-
युवाओं को सच्ची वास्तविकता साफ सुथरा राजनीति करना पड़ेगा। बिहार के जनता को आगर विकाश जाहिए तो उसे अब जातिवाद , बंसवाद से थोड़ा हट कर राजनीति करना पड़ेगा जो बिहार में कते सम्भब नहीं है।
भारतीय संविधान कहता है कि हम जातिवाद से परे हैं लेकिन बिहार की राजनीति को देखते हुए लगता है कि यहां बिना जाति के राजनीति हो ही नहीं सकती l जातिवाद रहित राजनीत की कल्पना भी शायद “कोरी–कल्पना“ मात्र साबित होl क्षेत्रवाद और जातिवाद में फंसी राजनीति को युवा पीढ़़ी ही बदल सकता है कोई और नहीं। प्रदेश में वास्तविक विकास की गाड़़ी प्लेटफॉर्म पे खड़ी ही नजर आ रही है।
बिहार का प्राचीन इतिहास कहता है कि प्राचीन काल में मगध का साम्राज्य देश के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। यहां से मौर्य वंश, गुप्त वंश तथा अन्य कई राजवंशों ने देश के अधिकतर हिस्सों पर राज किया। बिहार पूरे देश के राजनीति की गढ़ मानी जाती है, ये मैं नहीं बिहार का प्राचीन इतिहास कहता है, मगर आज बिहार आपने ही घर की लड़़ाई नहीं लड़ पाती, क्योंकि यहाँ वंशवाद ‘जाति के जाल में फंसी’ है। बिहार की राजनीति जो कैंसर की तरह अन्दर से खोखल किये जा रहा है। स्वतंत्रता के कुछ सालों बाद से ही राजनीति में जाति की दूषित अवधारणा को प्रश्रय देकर बिहार के राजनीतिज्ञों ने ये साबित कर दिया है कि वो स्वहित के लिए जनहित की बलि देने में तनिक भी परहेज नहीं करते हैं l आज बिहार की स्थिति ऐसी है कि जाति आधारित विचारधारा की जड़ें इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि इसे उखाड़ पाना वर्तमान परिवेश में नामुमकिन प्रतीत होता है l जनहित, सामाजिक उत्थान, समग्र विकास व समभावी समाज जैसी अवधारणाएं भी जाति की दूषित और संकुचित राजनीति से संक्रमित नजर आती हैं l इन परिस्थितियों में एक आम बिहारी जिन्दगी की जिन जद्दोजहदों से नित्य जूझ रहा है उस से निजात पाना “दिवा-स्वप्न” के समान है।
बहुत ही सुंदर विचार है। इसे लागू करने से पहले जाति को ही खत्म करना पड़ेगा। क्योंना बिहार में एक जाति में शादी करना प्रतिबंधित कर दिया जाए। तब शायद स्थिति में कुछ सुधार आए।
फिलहाल तो यहां इतने जातिवादी लोग हैं कि बच्चे के जन्म के साथ ही जातिवाद का जहर डालना शुरु कर देते हैं…