21 वीं सदी का मुस्लिम युवा

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स्ंजय सक्सेनाmuslim

उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बिरादरी में बीते कुछ समय से एक नया बदलाव देखने को मिल रहा है।पढ़ा लिखा मुस्लिम युवा रूढि़वादी बंधनों को तोड़कर आगे बढ़ने को बेताब दिख रहा हैं।जहां उसको पूरी आजादी हो। अपनी अलग पहचान बन सके।जीवन स्तर ऊंचा हो।वह उन विचारो से भी इतिफाक नहीं रखता हैं जो उनके ऊपर धर्म की आड़ में जर्बदस्ती थोप दिये जाते हैं।तेजी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे इस समाज के लिये धर्म आस्था का विषय है तो है लेकिन तरक्की के मार्ग पर वह इसको स्पीड बे्रकर की नहीं देखना चाहता हैं।इस वर्ग को आतंकवाद से घृणा है।धर्म के नाम पर राजनीति उसे कतई बर्दाश्त नहीं होती है।वह लड़कियों की शिक्षा की वकालत करता है और उन नेताओं और दलो से दूरी बनाकर चलता है जो मुसलमानों को मस्जिद और मदरसों से आगे नहीं देखना चाहता है।अन्ना हजारे के आंदोलन को वह खुलकर समर्थन देता है।उनके साथ मंच शेयर करता है।सड़क पर तिरंगा लेकर आंदोलन करता है।जरूरत पड़ने पर बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने से भी नहीं हिचकता है।जातिवाद की दीवारे उसे रास नहीं आती है।सोशल नेटवंिर्कंग साइड से लेकर विभिन्न मौकों पर मुस्लिम युवा अपनी सोच खुलकर जाहिर करता है।युवाओं की आधुनिक सोच का ही नतीजा है कि कई प्रसिद्ध, बड़े मुस्लिम धर्मगुरू तथा मुस्लिम संगठनों के पैरोकार भी पुरानी रवायतों को छोड़कर बेबाक राय देने लगे हैं।कुछ समय पहले अन्ना के आंदोलन को व्यापक समर्थन देकर युवा मुस्लिम यह जता चुका था कि उनके लिये देशहित सर्वोपरि है।मंहगाई,भ्रष्टाचार,शिक्षा में लालफीताशाही, दंगों -फसाद, राजनीति के अपराधी करण का उसे भी उतना ही नुकसान हो रहा है जितना की समाज के अन्य वर्गो को होता है।वह सच्चे अर्थो में इस्लाम का अर्थ दुनिया को बताना  चाहता है।उसकी इस मुहिम को धर्म के ठेकेदार अक्सर हासिये पर डालने की कोशिश करते हैं,लेकिन वह इससे बेपरवाह दिखता है।

युवा मुसलमान किस तरह से बदल रहा है इसकी ताजा बानगी अन्ना हजारे को समर्थन देने के बाद,आईएएस दुर्गा शक्ति के निलंबन मुद्दे पर देखने को मिली।एक तरफ समाजवादी पार्टी दुर्गा के निलंबन को मस्जिद की दीवार तोड़ने की घटना से जोड़कर अल्पसंख्यक वोट बैंक मजबूत करने में लगी है।दूसरी तरफ दुर्गाशक्ति के निलंबन के खिलाफ कई मुस्लिम युवा, देवबंदी उलेमा और मुस्लिम संगठन हिन्दू-मुस्लिम के पैरामीटर से ऊपर उठकर आईएएस का साथ दे रहे हैं।वह इस आधार पर दीवार गिराने जाने को गलत मानने के लिये तैयार नहीं है क्योंकि दीवार गिराने वाली अधिकारी हिन्दू थी।बाकायदा तर्क देकर साबित भी किया जा रहा है कि मस्जिद का निर्माण इस्लाम के आदेशों के खिलाफ किया जा रहा था।

बात ग्रेटर नोयडा से ही शुरू की जाये तो वहां की सय्यद शाह कमेटी ने सीएम अखिलेश यादव या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर दुर्गा का निलंबन वापस करने की मांग की है।कमेटी का साफ कहना था कि स्थानीय नेता क्षेत्र का माहौल बिगाड़ना चाहते हैं,जबकि हकीकत यही है कि दुर्गा शक्ति ने अपनी जिम्मेदारी को पूरा करते करते हुए अवैध निर्माण को न केवल गिराया था।बल्कि वक्फ बोर्ड की सम्पति को भी दबंगों से छुड़ाया था। इसी तरह से इस्लामिक शिक्षण संस्था दारूल उलूम वक्फ के मुफ्ती अरिफ ने समाजवादी सरकार के दुगाशक्ति को मुअत्तल किये जाने के मामले में मस्जिद की दीवार  गिराये जाने की आड़ लेेने की कड़े शब्दों में निंदा की।मुफ्ती का साफ कहना था कि मुसलमान इस तरह के बहकावे में आने वाला नहीं है।इससे पूर्व जमाते इस्लामें हिन्द के राष्ट्रीय सचिव इंजीनियर सलीम भी मुख्यमंत्री अखिलेश को अपने निशाने पर ले चुके थे।सलीम ने आईएएस दुर्गाा नागपाल के निलंबन का हवाला देते हुए पूछा था कि अगर सपा मुसलमानों की हमदर्द है तो यह बताने का काम करे कि सूबे में पिछले डेढ़ साल में हुए दंगों के मामले में उसने कितने अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की।मदरसा जामिया इमाम मोहम्मद फारूखी तल्ख लहजे में कहते हैं कि यह अफसोस की बात है कि समाजवादी पार्टी हमेशा ही मस्जिदोुं और मुसलमानों को अपने सियासी हितों की पूर्ति करने मंे इस्तेमाल करती रहती है।मजलिस उत्त प्रदेश के राष्ट्रीय अध्यक्ष युसूफ हबीब तो बिल्कुल साफ शब्दों में कहते हैं कि सरकार ने दुर्गा शक्ति को इस लिये निलंबित किया क्योंकि वह खनन माफियाओं के लिये मुसीबत बन रहीं थीं।हबीब तो यहां तक कहते हैं कि दुर्गा का निलंबन वापस होना चाहिए और खनन माफियाओं के पैरोकार बने नरेन्द्र भाटी को सपा से बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए।

भाजपा के संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की बात किया जाना भी यहां जरूरी है।नरेन्द्र मोदी पर  2002 के दंगों का आरोप है,जिसमें कई मुस्लिम भाईयों को जान से हाथ छोना पड़ा था। ठीक वैसे ही जैसा की 1984 में इंदिरा की हत्या के बाद बड़ी संख्या में सिख नरसंहार में कांगे्रस की भूमिका थी।1984 में बड़ी संख्या में सिक्खों का कत्लेआम हुआ था।समाजवादी पार्टी का भी इतिहास भी मुसलमानों को लेकर ज्यादा अच्छा नहीं है।मुलायम ने कभी नहीं चाह की मुसलमान मस्जिद और मदरसों से आगे सोचें।मुलायम राज में दंगे आम बात होती है।इन दंगों में अक्सर मुसलमानों का ही नुकसान होता है।कहने को तो मुआवजा बांटा जाता है,जांच होती है,लेकिन कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की जाती है।पहले मुलायम और अब अखिलेश यादव मुसलमानों को गुमराह करने की राजनीति कर रहे हैं,लेकिन इससे इत्तर जो मुसलमानों का एक धड़ा ऐसा भी है जो 2002 से आगे बढ़कर देखना चाहता है।उसे नरेन्द्र मोदी में काफी संभावनाएं नजर आती है।यही वजह थी जब पूरे देश में कांगे्रस-सपा-बसपा-जदयू आदि दल मोदी को मुस्लिम विरोधी करार देने में लगे थे तभी उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी  वाराणसी में मुस्लिम महिलाओं का एक संगठन मोदी के लिये दुआ मांग रहा था।मुल्क की तरक्की और अमन-चैन के लिये उनका समर्थन करता है।मुस्लिम महिला फांउडेशन की अध्यक्ष नाजनीन अंसारी ने हाल में ही वाराणसी के सिगरा थाना अंतर्गत काजीपुरा खुर्द इलाके में नरेन्द्र मोदी के समर्थन में मार्च निकाला।इन महिलाओं ने मोदी की लम्बी उम्र की दुआ की।मोदी को रक्षा सूत्र इन लोगों ने अपनी भावनाओं का इजहार किया।उसने वाराणसी से चुनाव लड़ने तक की मांग की गई।यह महिलाएं इस बात से दुखी हैं कि बुनकरों की समस्याएं,मुसलमानों की तरक्की के रास्ते खोलने की बजाये सपा सरकार उन्हें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल कर रही है।आज युवा मुसलमान किसी के बहकावे में आकर न तो किसी को साम्प्रदायिक मानने को तैयार है, न ही किसी को धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण-पत्र देना चाहता है।खासकर राजनीति के हमाम में वह सबको नंगा पाता है।उसे इस बात का दुख है कि अपराधियों को संरक्षण देने के लिये सांसद सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलने के लिये एकजुट हो जाते हैं।राजनैतिक दलों को आरटीआई के दायरे से बाहर रखने के लिये हथकंडे अपनाये जाते हैं।उत्तर प्रदेश में जिस तरह का परिवर्तन देखने को मिल रहा है उससे यह कहा जा सकता है कि आज का युवा मुसलमान जरा हट के है।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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