“युग पुरुष थे किसान नेता चौधरी चरण सिंह”

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अनुज हनुमत

सत्तर और अस्सी के दशक का एक समय था जब उत्तर प्रदेश में अधिकारियों के बीच एक डर हुआ करता था कि कहीं मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह जाँच के दौरान न पकड़ लें । असल में किसान नेता चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री रहते हुए इतने सक्रिय थे कि रात हो या दिन वो कभी भी भेष बदलकर जाँच के लिए निकल जाया करते थे ।इस बात की जानकारी किसी को भी नही होती थी । मुख्यमंत्री के बाद चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री भी बने । किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले और क्रांतिकारी बदलाव किये । उन्होंने 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक [नाबार्ड] की स्थापना की । जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है ।  आज चौधरी चरण सिंह का जन्मदिवस है ।  चौ.चरण सिंह को भारत में किसानों की आवाज बुलन्द करने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है। इसी के चलते उनके जन्मदिवस को ‘किसान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। चरण सिंह ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने संसद का एक बार भी सामना किए बिना ही त्यागपत्र दे दिया।

चरण सिंह का जन्म एक जाट परिवार मे हुआ था। स्वाधीनता के समय उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। स्वतन्त्रता के पश्चात् वह राम मनोहर लोहिया के ग्रामीण सुधार आन्दोलन में लग गए। बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद, कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में 23 दिसम्बर,1902 को आपका जन्म हुआ। चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था। चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द गांव आकर बस गये थे। यहीं के परिवेश में चौधरी चरण सिंह के नन्हें ह्दय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ।  1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफतार हुए फिर अक्टूबर 1941 में मुक्त किये गये। सारे देश में इस समय असंतोष व्याप्त था। महात्मा गाँधी ने करो या मरो का आह्वान किया। अंग्रेजों भारत छोड़ों की आवाज सारे भारत में गूंजने लगी। 9 अगस्त 1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवक चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ,  मवाना, सरथना, बुलन्दशहर के गाँवों में गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी। मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था। एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी वहीं दूसरी तरफ युवक चरण सिंह जनता के बीच सभायें करके निकल जाता था। आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफतार कर ही लिया। राजबन्दी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई। जेल में ही चौधरी चरण सिंह की लिखित पुस्तक ‘‘शिष्टाचार‘‘, भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है।

वो किसानों के नेता माने जाते रहे हैं। उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। एक जुलाई 1952 को यूपी में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला। उन्होंने लेखापाल के पद का सृजन भी किया। किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। वो 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दुबारा 17 फ़रवरी 1970 के वे मुख्यमंत्री बने। उसके बाद वो केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक [नाबार्ड] की स्थापना की। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह हिन्दू महासभा तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बने। देश में अनेक सरकार संस्थान चौधरी चरण सिंह के नाम से हैं. लखनऊ का अमौसी एयरपोर्ट को भी चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट कहा जाता है. मेरठ में भी उनके नाम से चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय है ।

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