उम्मीदों के युवराज पर भारी सत्ता का जंजाल ,नौकरशाही बेलगाम और मुलायम

akhileshअरविन्द विद्रोही

उत्तर-प्रदेश की स्याह व संकीर्ण हो चुकी राजनीति में आशा व उम्मीद की जो किरण वर्ष 2012 के प्रारंभ में कौंधी थी ,मात्र एक वर्ष व्यतीत होते-होते आज मध्य मार्च 2013 में मध्यम हो चुकी है । उत्तर-प्रदेश में सरकार बदली , बसपा की सरकार को उत्तर-प्रदेश की जनता ने पराजय का स्वाद चखाते हुए समाजवादी पार्टी के युवा चेहरे अखिलेश यादव के संघर्षो-वक्तव्यों पर विश्वास जताते हुए प्रचंड बहुमत से सपा को विधानसभा 2012 के आम चुनाव में सत्ता सौंपी । भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखते हुए सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने स्वयं मुख्यमंत्री पद को ग्रहण न करके अपने युवा पुत्र अखिलेश यादव को उत्तर-प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया और स्वयं संगठन कार्य में पुरे मनोयोग से लगे रहे । सपा मुखिया का अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय तमाम वरिष्ठ सपा नेताओं को तब से लेकर अब तक कचोटता ही रहता है । सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के प्रति स्नेह-लगाव-आदर-समर्पण व अनुशासन के वशीभूत होकर ही समस्त वरिष्ठ सपा नेताओं ने अखिलेश यादव को बतौर मुख्यमंत्री स्वीकारा और उनके मंत्रिमंडल में शामिल हुए ।

सौम्य व्यक्तित्व ,मिलनसारिता युक्त व्यवहार व शिक्षित मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से उनके संघर्ष के साथियों – आम जनता ने तमाम उम्मीदें पाल ली थी । बसपा सरकार में निरंकुश नौकरशाही व भ्रष्टाचार के काकस से ऊबी जनता ने परिवर्तन हेतु सपा को सत्ता के सिंघासन पर आरूढ़ किया । उत्तर-प्रदेश के वर्तमान युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अतीत से सीखते हुए वर्तमान में कार्य करते हुए भविष्य के सामाजिक-राजनैतिक दृढ़ता के लिए सोचना चाहिए । बसपा नेत्री मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल में उनके द्वारा अपने एजेंडे को तानाशाही पूर्ण रवैया अख्तियार कर लागू करते देखा गया था , उसी रवैये की पुनरावृत्ति बसपा सरकार की तर्ज़ पे सपा सरकार भी करती नज़र आ रही है । तत्कालीन बसपा सरकार के जिम्मेदार बसपा की गलत निर्णयों को उजागर करने वाले पत्रकारों को भला-बुरा कहने में तनिक भी संकोच नहीं करते थे बिलकुल उसी परिपाटी पर अमल करते हुए सपा सरकार में भी पत्रकारों को नियंत्रित – निर्देशित करने का प्रयास किया जा रहा है । कलम की ताकत को जनहित के पक्ष में इस्तेमाल करने के स्थान पे सरकार की नजदीकियां ,कृपा दृष्टि व विज्ञापन हासिल करने के फेर में तमाम पत्रकारों ने अब सरकार व अखिलेश यादव का महिमा गान शुरू कर दिया है को । ध्यान होना जरुरी है कि — चिल्लरों की चिल्ल-पों ,चमचों की चमचई ,चापलूसों की चासनी युक्त चापलूसी,समर्थकों की अंध भक्ति किसी भी भलेमानुष का सत्यानाश कर सकती है और ऐसा ही हो रहा है ।

उत्तर-प्रदेश सरकार के गठन को एक वर्ष पुरे हो ही चुके हैं । मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी सरकार की वार्षिकी उपलब्धियों का ब्यौरा अपने सरकारी आवास पर आयोजित पत्रकार सम्मलेन में दिया था । घोषणा पत्र में किये गए जनता से वायदों को पूरा करने का दावा अखिलेश यादव ने पूरी गर्मजोशी से किया ,कानून व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाने की बात भी की । राहत व बख्शीश सम्बंधित तमाम वायदे पुरे होने की प्रक्रिया के बीच ही बेरोजगारी भत्ते के वितरण सम्बंधित जानकारी चौंकाने-हतप्रभ वाली है ।एक तरफ लैपटॉप में मुलायम सिंह यादव का चित्र होना विपक्षी दलों को अखर रहा है वही समाजवादी पुरोधा डॉ लोहिया का चित्र-जिक्र न होना समाजवादियों की चिंता का सबब बन चुका है । क्या आदर्शों को भुलाने-नकारने की राह पे चलने की सोच ली है सपा सरकार ने ? घोषणापत्र पर अमल करना निःसंदेह नेक कार्य है और राजनैतिक दृढ़ता हेतु जरुरी भी है परन्तु घोषणापत्र के अमल में समाजवादी विचारों और आदर्शों को विस्मृत करना अनुचित है – काश समाजवादी पुरोधा डॉ लोहिया का चित्र-जिक्र करना भी सपा सरकार की कार्यसूची में शामिल होता ।

एक वर्ष पूरा होने के पश्चात् उत्तर-प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी पीठ खुद बा खुद थपथपाते नज़र आये । एक बड़ी -महत्वपूर्ण भूमिका में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एक अगुवा , एक अभिभावक , एक मार्गदर्शक की भांति मुख्यमंत्री को , उनके मंत्रिमंडल सहयोगियों को , पार्टी विधायको ,पदाधिकारियों को डपटते व समझाते नज़र आये । डॉ लोहिया के विचारों पर आधारित पार्टी का गठन करने वाले मुलायम सिंह यादव ने अपने संघर्ष – संगठन कौशल के ही बलबूते तमाम राजनैतिक उतार-चढ़ाव को पार कर अपना वर्चस्व कायम रखा है । आज पुरे देश में डॉ लोहिया का सबसे बड़ा जनाधार वाला अनुयायी कोई है तो वो मुलायम सिंह यादव ही हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति में भी डॉ लोहिया के विचारों को आवाज़ दी और विचारों से आगे बढ़कर उनको कर्म में उतारा भी । मुलायम सिंह एक तपे-तपाये राजनेता हैं ,अपनी राहें उन्होंने खुद बनायीं हैं ,विरासत में उन्होंने डॉ लोहिया के विचारों को स्वतः हासिल किया । जोखिम भरी राजनीति करते हुए अपनी वैचारिक-मानसिक दृढ़ता के बलबूते ही मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया था और समाजवादियों को एक साथ जोड़ा था । उम्र के इस पड़ाव में भी कार्यकर्ताओं के मध्य अनवरत चौपाल लगा ,उनके साथ अक्सर घंटों बिताने और उनकी समस्या से स्वतः रूबरू होने वाले मुलायम सिंह यादव नौकरशाहों की फितरत को भली-भांति जानते-समझते हैं , वे बारम्बार वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को चेता भी रहे हैं , उन्हें निर्देश भी दे रहे हैं कि इन्हें सुधारों परन्तु नौकरशाही व कानून व्यवस्था मानों लाइलाज हो गयी है । नौकरशाहों की कौन कहे मुख्यमंत्री के निर्देशों का सरेआम उल्लंघन सपा के ही तमाम जिम्मेदार पदाधिकारी कर रहे हैं ,उन्हें न अखिलेश यादव के जारी निर्देशों की फिक्र है और न ही अपने खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही का भय । मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पकड़-हनक ना तो सरकार में कायम दिख रही है और ना ही संगठन में । और तो और सिर्फ युवा संगठनो का भंग रहना युवा मुख्यमंत्री और इन संगठनों के प्रभारी रहे अखिलेश यादव को पता नहीं खलता है कि नहीं ,बहरहाल यही युवा संगठन ही अखिलेश यादव के संघर्ष के दिनों में ताकत रहे हैं इस तथ्य को क्या कोई नकार सकता है ?

वार्षिकी बीतते बीतते ही सपा के परम्परागत आधार मतदाताओ(यादव -मुस्लिम ) भी असंतुष्ट दिखने लगा है और इस असंतोष को हवा देने का कार्य शुरू हो चुका है ।सिर्फ मुस्लिम बालिकाओं को तीस हजार की धनराशि दिए जाने की योजना से यादव वर्ग तक आक्रोशित हुआ है वहीँ दूसरी तरफ सपा सरकार के गठन के पश्चात् हुए दंगों -हिंसा में मुस्लिम वर्ग अपने को उत्पीडित मान कर नाराजगी प्रकट कर रहा है । शुरूआती दौर में काबिना मंत्री आज़म खान की नाराज़गी और उनके मान -मनौव्वल के पश्चात् अब तो इमाम बुखारी ने सपा के खिलाफ मुस्लिमों से वायदा खिलाफी का इल्जाम लगाते हुए सपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर अपने चिरपरिचित अंदाज़ में आग उगलना शुरू कर दिया है । तमाम शिया धर्म गुरु भी आहत है , जमात उलेमा हिन्द के नेता भी उत्तर-प्रदेश में मुस्लिमों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए सीधे सीधे सरकार व मुलायम सिंह यादव से सवाल कर रहे हैं । रिहाई मंच अपने मकसद के लिए अखिलेश यादव को घेरता रहता है । अपने गठन की ही बेला से मुस्लिमों की हितैषी होने का आरोप लगातार झेल रही समाजवादी पार्टी की उत्तर-प्रदेश की सरकार से आखिरकार मुस्लिम नेता व संगठन क्यूँ नाराज़ हैं ? क्या सपा के द्वारा मुस्लिमों के हितों को अत्याधिक तरजीह देने के कारण ही ये तमाम मुस्लिम नेता दबाव की राजनीति पे आमादा हैं ? सपा नेतृत्व को अपने परम्परागत आधार मतदाताओ के प्रश्नों का उत्तर अवश्य तलाशना चाहिए । तमाम विरोधाभाषों के बावजूद मुलायम सिंह यादव से मिलने ,उनकी चौपाल में मुसलमानों की भारी तादाद में तनिक कमी नहीं दिखती ,यह इस बात का प्रत्यक्ष सन्देश है कि उत्तर-प्रदेश का मुस्लिम मुलायम सिंह को अपना रहनुमा आज भी मानता है और किसी भी मुस्लिम नेता या संगठन के बयानों से उसपर कोई फर्क नहीं पड़ता है । मुस्लिम तबका बिना किसी मुस्लिम मध्यस्थ के सीधा मुलायम सिंह यादव से अपने हित की पूर्ति की अपेक्षा रखता है । इसके बावजूद तमाम जनाधार वाले मुस्लिम नेता -संगठन सपा सरकार व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से नाराज़ हैं और धीरे-धीरे यह नाराज़गी आन्दोलन का आकार ले रही है जिसका खामियाजा भी सपा को आगामी लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है और यही बात है जिसके चलते सपा इनके दबाव में आ भी सकती है । जिद्दी माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव इस परिस्थिति में कौन सी राजनैतिक गोटी फैंकते है ये ध्यान देने का और इंतजार करने का विषय है ।

सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी है ,प्रमाण पत्रों को बनाने में अवैध धन वसूली की शिकायत लगातार मिल रही है । जब किसानों के फसल की खरीद व उस फसल का वाजिब मूल्य दिए जाने की कार्य योजना बनाने -लागू करने के निर्देश सपा प्रमुख मुलायम सिंह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को देते हैं तो उनके चेहरे पर किसानों के प्रति चिंता साफ़ झलकती है। यही चिंता दस्तकारों -श्रमिको के प्रति भी उनके संबोधन के दौरान महसूस होती है । अभिभावक व समाजवादी परिवार के मुखिया के नाते मुलायम सिंह यादव कहते हैं ,- ” सरकार के मंत्रियों ,विधायकों को कार्यकर्ताओं की बात सुननी चाहिए । कार्यकर्ताओं को जनता की परेशानी नेताओं को बतानी चाहिए और उनको हल कराना चाहिए । कोई भी खास बात हो तो मुझसे मिलकर या मुझे पत्र लिख कर अवगत कराओ । ” वो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी मुखातिब होते हैं और कहते हैं ,– ” जनता को तुमसे बहुत उम्मीद है ,बहुत नहीं ,बहुत ज्यादा उम्मीद है । ध्यान रखिये -जब उम्मीद ज्यादा होती है तो नाराज़गी भी होती है ,इसलिए लोगों की नाराज़गी को समझना और उनका काम करना ,उनको समझाना । ” फिर वो सभी से मुखातिब होते हैं और कहते हैं ,— ” सत्ता में आने के बाद समाजवादियों को घमण्ड नहीं करना चाहिए । ” अपने सम्बोधन के दौरान कई मर्तबा डॉ लोहिया और उनकी नीतियों का जिक्र करने वाले मुलायम सिंह यादव का एक नया रूप दार्शनिक-विचारक के रूप में हालिया आयोजित हो रही चौपालों में सामने आया है ।

सरकार की वार्षिकी पूर्ण होने और उपलब्धियों को जारी करने के पश्चात् अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को नौकरशाही पे प्रभावी नियंत्रण स्थापित करने के गुरु मंत्र सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से लेने चाहिए और वर्ष भर की भूलों-कमियों का आकलन कर आगामी वर्ष में वो ना दोहराई जायें इसका प्रबंध करना चाहिए ।

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