आतंक के विरुद्ध सोशल मीडिया

राजधानी दिल्ली के मोती नगर के बसई दारापुर गांव में युवा बेटी पर अभद्र टिप्पणी करने का विरोध करने पर 51 साल के ध्रुव राज त्यागी की मोहम्मद आलम व उसके पिता जहांगीर खान आदि ने मिलकर निर्मम हत्या कर दी तथा पिता को बचाने आये 19 वर्षीय पुत्र अनमोल त्यागी को भी चाकुओं से बुरी तरह घायल किया जो चिकित्सालय में मौत से लड़ रहा है। यह दर्दनाक जिहादी घटना दिल्ली में मतदान की पूर्व देर रात्रि 11 मई की है।
निःसंदेह मुसलमानों का दुःसाहस बढ़ता जा रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में ही गैर मुस्लिम बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं। नित्य प्रति दिन कहीं न कहीं हिन्दू व सिख आदि अबलाओं पर मुस्लिम समुदाय के लड़के अत्याचार करते रहते हैं और बचाव में आने वाले परिजनों की हत्या से भी नहीं चूकते। “बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओ” के लिए समर्पित सरकार कब तक ऐसे जिहादी कृत्यों पर मौन रहेगी ?
इस्लामिक आतंकवाद के इस रूप को न समझना आत्मघाती हो रहा है। अधिकांश टीवी चैनल वाले जिहादियों की पोल खोलने से बचते हैं और उनके ऐसे घिनौने अपराधों पर कोई डिबेट नहीं करते। प्रिंट मीडिया के बड़े समाचार पत्रों ने तो ऐसे हिन्दू विरोधी अपराधों को प्रकाशित तो किया है परंतु उनको मुस्लिम अपराधियों के नाम देने में असहिष्णु व सांप्रदायिक होने का डर लगता है। जबकि अपराधियों का परिचय देना भी वास्तविक पत्रकारिता का धर्म होना चाहिये।सम्प्रदाय विशेष के दोषी का नाम न देकर पत्रकारिता सत्य उजागर नही करना चाहती,क्यों? आतंकवादियों को बचाने के लिए ढाल बन कर खड़े होने वाले सेक्युलरों व मानवाधिकारवादियों की दूर दूर तक कोई आवाज नही उठी। क्या ऐसे लोगों का कार्य केवल अल्पसंख्यक आयोग व मंत्रालय के समान बहुसंख्यकों की समस्याओं से अपने को अलग रखना है। ऐसी परिस्थितियों में देश में एक बहुसंख्यक आयोग व मंत्रालय का गठन किये जाने की आवश्यकता है।
विचार करना होगा कि अगर ऐसे में पीड़ित किसी सम्प्रदाय विशेष का (मुसलमान) होता तो उसे अवश्य ब्रेकिंग न्यूज़ बना कर मीडिया में फैलाया जाता और हिन्दुओं को असहिष्णु कह कर बदनाम करने में सारे सेक्युलर सक्रिय हो जाते। हिन्दू अपराधी होते तो टीवी वाले भी बड़ी-बड़ी बहस करने में अपनी टीआरपी बढ़ाने में लग जाते। आपको स्मरण होगा कि मुख्यतः बिसाहड़ा (दादरी- नोएडा ) व आसिफा (कठुआ-जम्मू ) के कांडों के समाचारों ने भारत को वैश्विक स्तर पर अपमानित करने का दुःसाहस किया था। कई दिनों तक टीवी चैनलों पर बड़ी-बड़ी बहसें होती रहीं थी। सारे ढोंगी सेक्युलर व मानवाधिकारवादी एक साथ खड़े हो गए थे,क्योंकि उसमें पीड़ित मुसलमान था और दोषी हिन्दुओं को बनाया गया था। ?
क्या ऐसे में देश और समाज की सुरक्षा के दायित्व को निष्पक्ष रूप से निभाया जा सकता है? यह दुःखद है कि मीडिया जगत ऐसा भेदभाव पूर्ण व्यवहार करके अपराधियों की वास्तविकता को क्यों छिपाता आ रहा है। क्या इससे साम्प्रदायिक सौहार्द बचेगा और एकतरफा पीड़ित वर्ग के मौन रहने से समस्या का समाधान सम्भव होगा ? लेकिन राष्ट्रवादी समाज अब ऐसे अत्याचारों पर मौन नही रहना चाहता ? पीड़ित परिवार के समर्थन में सोशल मीडिया में आ रही सूचनाओं के कारण सैकड़ो-हज़ारों लोग आंदोलित हो गए है। उन्हें समझ में आ रहा हैं कि ऐसे आतताईयों से सभ्य समाज को सुरक्षित करने के लिए एकजुट होना पड़ेगा। क्योंकि बहन-बेटियों पर हो रहें अत्याचारों की ऐसी हज़ारों घटनाएं समाचार पत्रों में वर्षों से आ रही है। लेकिन अपराधियों के नाम स्पष्ट न होने से अत्याचारियों का दुःसाहस बढ़ता ही रहा और पीड़ित समाज का उत्पीडन होता रहा।
अब डिजिटल युग में सोशल मीडिया के बढ़ते दबाव के कारण अपराधियों पर अंकुश लगना व शासन द्वारा भी इन अपराधियों के प्रति यथासंभव संज्ञान लेना आवश्यक होता जा रहा है। इसी दबाव के कारण केंद्रीय गृह मंत्री ने भी इस दुखद घटना का व्यक्तिगत संज्ञान लिया। लेकिन यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी दर्दनाक घटना में भी कुछ असंवेदनशील तत्व अपने मोबाइल फोन से वीडियो बनाने में जुटे रहें जबकि वे आगे बढ़ कर उस पिटते हुए व्यक्ति के जीवन की सुरक्षा कर सकते थे। अतः कहीं भी कोई भी आपराधिक व संदेहजनक स्थिति हो उसमें सामान्यतः देशवासियों को सतर्क रह कर उसका विरोध अवश्य करना चाहिये। तभी हम सब एकजुट होकर अपराधियों व आतंकवादियों से अपने परिवार, समाज, नगर, प्रदेश व देश को सुरक्षित रखने में सफल हो सकते है।

विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक)
गाज़ियाबाद

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