गुरुकुल पौंधा-देहरादून में 21 नये ब्रह्मचारियों के उपनयन एवं वेदारम्भ संस्कार सोल्लास सम्पन्न”

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मनमोहन कुमार आर्य

आर्ष गुरुकुल पौंधा-देहरादून में आज दिनांक 25 अगस्त, 2018 को 21 नये प्रवेशार्थी ब्रह्मचारियों के उपनयन एवं वेदारम्भ संस्कार सोल्लास सम्पन्न हुए। आचार्य के प्रतिष्ठित पद पर आर्यजगत के वेदों के विख्यात विद्वान डॉ.  रघुवीर वेदालंकार उपस्थित थे। उन्होंने दोनों संस्कारों की उन सभी क्रियाओं को जो आचार्य और ब्रह्मचारियों के मध्य होती हैं, सम्पन्न कराया। यज्ञ में मन्त्र पाठ गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने किया। स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती एवं गुरुकुल के आचार्य डॉ. धनंजय जी ने संस्कार की सभी क्रियाओं का निर्देशन किया। यह भी बता दें कि डॉ. रघुवीर वेदालंकार जी को संस्कृत भाषा के राष्ट्रीय विद्वान के रूप में राष्ट्रपति जी की ओर से सम्मानित किये जाने की घोषणा की गई है। उपनयन एवं वेदारम्भ संस्कार प्रातः 8 बजे से चलकर लगभग 12.15 बजे सम्पन्न हुआ। इसके बाद सभी ब्रह्मचारियों एवं अतिथियों ने स्वादिष्ट भोजन ग्रहण किया। आज भोजन में सभी के लिये विशेष पकवान बनवाये गये थे।

 

वेदारम्भ संस्कार में आचार्य द्वारा ब्रह्मचारियों को गायत्री मंत्रोपदेश का भी विधान है। आचार्य डा. रघुवीर वेदालंकार जी ने गायत्री मन्त्रोपदेश किया। उन्होंने कहा कि गायत्री मन्त्र आगे बढ़ने की प्रेरणा करता है। उन्होंने कहा कि आप सबने मिलकर गायत्री मंत्र का पाठ किया है। आचार्य जी ने गायत्री मन्त्र की अनेक विशेषतायें बताईं। उन्होंने कहा कि ईश्वर भूः है अर्थात् वह प्राण स्वरूप तथा प्राणियों का रक्षक है। ओ३म् उसका सर्वश्रेष्ठ नाम है। हम सबको ईश्वर के ओ३म् नाम का जप करना चाहिये। ईश्वर ही हमारे प्राणों का आधार है। वह सबके दुःख व कष्ट सहित दुरितों को दूर करने वाला है। वह सदैव हमारे साथ रहता है। ईश्वर सुखस्वरूप है। ईश्वर हमें विद्या, बल, आयु व सुख देता है। ईश्वर के ओ३म् नाम का अर्थपूर्वक ही जप करना चाहिये। ईश्वर सदैव हमारे हृदयों में प्रेरणा करता है। जब हम गलत काम करते हैं तो हमारे मन में आवाज आती है कि गलत काम मत करो। वह आवाज हमें गलत काम करने से रोकती है। मन में जो यह आवाज आती है वह परमात्मा की आवाज होती है। आपको परमात्मा की आवाज को सुनना चाहिये। ईश्वर वरेण्य है। वह हमें देवत्व की प्राप्ति करायेगा। ईश्वर का तेज, विद्या व भर्ग हमारे दुरितों को जला डालता है। जो मनुष्य ईश्वर के तेज स्वरूप का ध्यान करता है, ईश्वर उसके सब दुरितों को दूर कर देता है। ईश्वर से हम प्रार्थना करते हैं कि आप हमारी बुद्धि को सदैव प्रेरित किया कीजिये। ईश्वर हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा करें। हमारा कर्तव्य है कि हम सदैव ईश्वर का ध्यान करते रहें। इसके बाद हृदय स्पर्श की क्रिया हुई। आचार्य धनंजय जी ने ब्रह्मचारियों के साथ मिलकर हृदय स्पर्श के मन्त्र का पाठ किया। आचार्य रघुवीर वेदालंकार जी ने भी मन्त्र बोला। उन्होंने कहा कि जो मेरा व्रत है वही ब्रह्मचारियों का व्रत भी होना चाहिये। व्रत के अर्थ पर प्रकाश डालते हुए आचार्य रघुवीर जी ने कहा कि विद्याध्ययन और ब्रह्मचर्य के पालन के संकल्प व उसके अनुरूप आचरण को व्रत कहते हैं। ब्रह्मचारियों को अपने आचार्य के सान्निध्य में रहकर इन व्रतों को पूर्ण करना है। आचार्य जी ने कहा कि मन व चित्त ही विचारों का आधार है। आचार्य का मन व चित्त अपने ब्रह्मचारियों की उन्नति के लिये होता है। ब्रह्मचारियों को भी अपने आचार्य के अनुरूप सोचना चाहिये। ब्रह्मचारियों को अपने आचार्यों की वाणी को एक मना व सावधान होकर सुनना चाहिये। परमेश्वर ने ब्रह्मचारियों को आचार्य के पास शिक्षा लेने के लिए भेजा है। इसके बाद ब्रह्मचारियों को मेखला बांधी गई। सभी ब्रह्मचारियों ने आचार्य जी से आशीर्वाद लिया। मेखला बांधने से पूर्व संस्कार विधि के आधार पर पितृपदेश हुआ जिसे मनमोहन कुमार आर्य ने पढ़कर प्रस्तुत किया। इसके बाद भिक्षा मांगने की परम्परा का निर्वहन किया गया। ब्रह्मचारियों को जो भिक्षा मिली वह सब उन्होंने अपने आचार्य को समर्पित कर दी। सभी ब्रह्मचारियों ने आचार्य रघुवीर जी को अपने अपने नाम व गोत्र बताये और उन्हें नमस्ते करके उनसे आशीर्वाद लिया।

 

संस्कार की सभी क्रियायें पूर्ण हो जाने के बाद प्रवचन की श्रृंखला आरम्भ हुई। डॉ. आचार्य देवव्रत जी ने व्याख्यान के आरम्भ में कहा कि दुर्गुणों को हटाकर गुणों की वृद्धि करने का नाम संस्कार है। उन्होंने कहा कि जन्म से सब शूद्र वा कम बुद्धि वाले होते हैं। विद्या व संस्कारों से मनुष्य अपने गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार द्विज बनते हैं। आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि उपनयन एवं वेदारम्भ विद्या प्राप्ति का संस्कार है। आचार्य जी ने यज्ञोपवीत की भी चर्चा की और उसके महत्व पर प्रकाश डाला। आचार्य जी ने कहा कि प्राचीन समय में माता-पिता अपने पुत्र व पुत्री को गुरुकुलों में ले जाते थे और आचार्य को कहते थे यह बच्चा कुमार वा कुमारी है। आचार्य जी ने कहा कि कुमार शब्द का अर्थ होता है कि इस बच्चे ने सभी दुर्गुणों को मारा हुआ है अर्थात् वह उनसे बचा हुआ है। इसमें कोई दुर्गुण नहीं है। आचार्य जी ने कहा कि आचार्य ब्रह्मचारियों को माता द्वारा अपने शिशु को गर्भ में धारण करने के समान अपने गुरुकुल रूपी गर्भ में धारण करता है। उन्होंने कहा कि माता-पिता की इच्छा होती है कि उनका बालक पुरुष या मनुष्य बन जाये। आचार्य जी ने यजुर्वेद के एक मन्त्र का संकेत भी किया। उन्होंने कहा कि जो मनुष्य बुराईयों को भस्म कर गुणों को धारण कर लेता है उसे पुरुष कहते हैं। पुरुष वह होता है जिसमें वीरता हो। इसके लिये बाल्यकाल से ही व्यायाम व प्राणायाम करना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि धनुर्वेद को इस गुरुकुल में केन्द्र स्थान पर रखें। आचार्य जी ने कहा गुरुकुलों में योग्य विद्यार्थी भी आते हैं। उन्होंने एशियन खेलों में गुरुकुल पौंधा के ब्रह्मचारी दीपक कुमार द्वारा 10 मीटर गन सूटिंग में रजत पदक प्राप्त करने की चर्चा भी की। ब्रह्मारियों को अच्छी बुद्धि वाला बनना है। पुरुष का अन्य गुण बताते हुए आचार्य जी ने कहा कि ब्रह्मचारी को अनेक विद्याओं में पारंगत विद्वान बनना चाहिये। गुरुकुल में ब्रह्मचारियों को अनेक प्रकार की विद्याओं का प्रशिक्षण मिलना चाहिये। विद्यार्थियों को पुरुषार्थ करना चाहिये। उन्होंने कहा कि गुरुकुल का ब्रह्मचारी जीवन की विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को अनुकूल बना लेता है। वह विपरीत परिस्थितियों से घबराता व भागता नहीं है।

 

आचार्य देवव्रत जी ने कहा कि ब्रह्मचारियों को आचार्य रघुवीर वेदालंकार जी ने शिक्षा, यज्ञोपवीत तथा मेखला से बांध लिया है अर्थात् आचार्य जी ने ब्रह्मचारियों को अपने अधीन कर लिया है। मेखला को उन्होंने ब्रह्मचारियों का भूषण बताया। ब्रह्मचारियों को मेखला को धारण करना चाहिये। इससे शरीर की इन्द्रिया वश में होती है। उन्होंने कहा कि ब्रह्मचारियों ने आज से वेद पढ़ने का संकल्प लिया है। वेद परमात्मा की वाणी है, इसलिये वेद पढ़ना चाहिये। उन्होंने आगे कहा कि ऋषि दयानन्द ने वेद के पढ़ने पढ़ाने और सुनने व सुनाने को परम धर्म कहा है। आचार्य जी ने मनुस्मृति के वचन ‘वेदऽखिलो धर्ममूलम्’ का भी उल्लेख कर कहा कि वेद ही धर्म का मूल व आधार है। आचार्य जी ने धर्म का अर्थ मनुष्य का कर्तव्य बताया। उन्होंने कहा कि वेदों में सभी के सभी कर्तव्यों का विधान है। आचार्य जी ने वेद पढ़कर द्विज बनने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि वेद के अध्ययन से सभी कुछ प्राप्त होगा। सभी प्रकार के सुख व आत्मिक आनन्द वेदाध्ययन से प्राप्त होते हैं। आचार्य जी ने कहा कि श्रेष्ठ गुण, कर्म व स्वभाव से मनुष्य ब्राह्मण आदि द्विज बनते हैं। उन्होंने कहा कि वर्ण किसी मनुष्य की जाति नहीं अपितु उपाधि है। मनुष्य का वर्ण आचार्य निर्धारित करता है। आचार्य जी ने कहा कि हम शूद्र न बने, इस लिये हमें वेद पढ़ना चाहिये। सृष्टि की आदि मे वेद मनुष्य जाति का संविधान था। आचार्य जी ने कहा वेद परमात्मा द्वारा दिया गया संविधान है। विद्वान आचार्य ने कहा कि जो माता-पिता अपने बच्चों को वेद नहीं पढ़ाते वह भेड़ियों के समान अपनी सन्तानों के घातक हैं। ऐसे माता-पिता कलियों को खिलने से पहले ही मसल कर नष्ट कर देते हैं। आचार्य जी ने दोहराया कि माता पिता का कर्तव्य है अपनी सन्तानों को वेदों का अध्ययन करवाना। ब्रह्मचारियों में जितनी क्षमता है, उनका पूर्ण व अधिक से अधिक विकास करना आचार्य का कर्तव्य है। सभी ब्रह्मचारी अपने आचार्य की सन्तान होते हैं। आचार्य जी ने गुरुकुल के शान्त व प्रदुषण मुक्त पवित्र वातावरण की प्रशंसा की और कहा कि यहां के वातावरण में ब्रह्मचारी का स्वतः निर्माण होता है। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए आचार्य जी ने गुरुकुल की उन्नति की कामना की।

 

डा. रघुवीर वेदालंकार ने अपने सम्बोधन के आरम्भ में कहा कि माता-पिता विशेष प्रयोजन से अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने इस गुरुकुल में लायें हैं। उन्होंने कहा कि यहां गुरुकुल जैसी शिक्षा व संस्कार हमारे स्कूलों व कालेजों में नहीं मिलते हैं। यहां रहकर शिक्षा के अतिरिक्त ब्रह्मचारियों को अपने जीवन का निर्माण करना है। अपने मन, आत्मा व शरीर की उन्नति करनी है। आपको शारीरिक, बौद्धिक और आत्मिक उन्नति करनी है। मनुष्य को अपने जीवन में आध्यात्मिक होना चाहिये। आज कल की स्कूली शिक्षा से आध्यात्म को निकाल दिया गया है। यहां रहकर ब्रह्मचारियों को अपनी शारीरिक वृद्धि करनी है। अपने मन को बुरे विचारों से दूर रखना है। आजकल की स्कूली शिक्षा में विद्यार्थियों में बुरे विचार भी आ जाते हैं। ब्रह्मचारी अग्नि की तरह से तेजस्वी बनना चाहिये। आपको विद्यावान, श्रीमान तथा बलवान भी बनना है। आचार्य जी ने कहा कि अग्नि यज्ञ की रक्षक है। आप मन में संकल्प करें कि मैं वेद का खजाना बन जाऊं। आपको व्याकरण पर अधिकार करना होगा। आचार्य रघुवीर जी ने कहा कि जब आप अपने मन, हृदय और जीवन को स्वामी प्रणवानन्द जी और आचार्य धनंजय जी से मिला लोगे तभी आप इनके जैसे बन सकोगे। आचार्य जी ने ब्रह्मचारियों को वेद विद्या की प्राप्ति को अपने जीवन का लक्ष्य बनाने और उसे प्राप्त करने की प्रेरणा की। विद्वान आचार्य जी ने कहा कि प्राचीन काल में राजा और निर्धन की सन्तानें भी गुरुकुल में पढ़ते थे और भिक्षा मांगते थे। उन्होंने कहा कि गुरुकुल में सब समान हैं। आपको अपने शरीर, बुद्धि, मन व आत्मा का ध्यान रखना है। आप अपना लक्ष्य रखिये कि मुझे ऐसा बनना है। मैं यहां जीवन निर्माण करने के लिये आया हूं। आचार्य जी ने पुराने ग्रन्थों के आधार पर बताया कि जब गुरुकुल का ब्रह्मचारी स्नातक बन कर नगर में जाता था तो नगर के प्रमुख व्यक्ति उसको देखने आते थे और उसका सम्मान करते थे। वह ब्रह्मचारी की विद्या, आचार, व्यवहार व स्वस्थ शरीर आदि के कारण उसका सम्मान करते थे। आचार्य जी ने कहा कि आपका सौभाग्य है कि आप यहां गुरुकुल में विद्या की प्राप्ति के लिये आये हैं। आप यहां अध्ययन कर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। आचार्य जी ने कहा कि मनुष्य जीवन का अन्तिम लक्ष्य अध्यात्म का पालन करते हुए ईश्वर की उपासना में प्रवृत्त होना ही है। अपने व्याख्यान को विराम देते हुए आचार्य जी ने कहा कि आपको गुरुकुल में पूर्ण विद्या को प्राप्त करना है। आपको अपना सर्वांगीण विकास करना है। ऐसा करके आपका जीवन सार्थक होगा। व्याख्यान की समाप्ति पर आचार्य धनंजय जी ने डॉ. रघुवीर वेदालंकार जी से निवेदन किया कि आप समय समय पर गुरुकुल आकर ब्रह्मचारियों का मार्गदर्शन करते रहें।

 

प्राकृतिक चिकित्सक एवं आर्य विद्वान डा. विनोद कुमार शर्मा ने अपने सम्बोधन में कहा कि आज गुरुकुल में उपनयन एवं वेदारम्भ संस्कार का होना हम सबके लिये सौभाग्य का दिन है। स्कूली शिक्षा हमें नौकरी दिला सकती है परन्तु इस शिक्षा से हमारे जीवन का आन्तरिक निर्माण नहीं हो पाता। उन्होंने कहा कि हमारे स्कूलों के बच्चे प्रातः 8.00 से 9.00 बजे तक सोते रहते हैं जबकि हमारे गुरुकुलों में दिनचर्या प्रातः 4.00 बजे से आरम्भ हो जाती है। आचार्य विनोद कुमार शर्मा ने कहा कि वह गुरुकुल एटा में पढ़े हैं और वहां उन्होंने 7 महीने तक भिक्षा मांगी है और इस कार्य का अनुभव प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि जो गुरुकुल में डटा रहता है वह गुरुकुल का आचार्य बन जाता है। मोबाइल को उन्होंने मुसीबल की जड़ बताया। सभी छोटे बड़े व्यक्ति मोबाइल के चक्रव्यूह में फंस गये हैं। आचार्य विनोद कुमार शर्मा ने शैशव काल में विद्या अर्जित कर युवावस्था में गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने को कहा। बिना विद्या के गृहस्थ जीवन ठीक से नहीं चलता। विद्या प्राप्त करने पर ही गृहस्थ जीवन में सफलता प्राप्त होती है। सबको 50 वर्ष से अधिक आयु होने पर मुनि वृत्ति धारण करनी चाहिये। भारत को उन्होंने पुण्य भूमि बताया। बच्चों को स्वाध्याय करने की प्रेरणा की। सब नये व पुराने ब्रह्मचारियों को उन्होंने अपनी ओर से शुभकामनायें दीं। आचार्य धनंजय जी ने वर्णाश्रम व्यवस्था के महत्व की चर्चा की और जन्मना जातिवाद से देश को हो रही हानि का उल्लेख किया। आचार्य धनंजय जी ने गुरुकुल के पुराने ब्रह्मचारी दीपक कुमार की एशियन खेलों में सफलता की भी चर्चा की और उन परिस्थितियों पर प्रकाश डाला जिसमें इस युवक ने शूटिंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। आचार्य जी ने श्री नारायण सिंह राणा जी द्वारा प्रदान की गई सुविधाओं के लिए उनका धन्यवाद किया और दीपक कुमार की सफलता को स्वामी प्रणवानन्द जी का आशीर्वाद बताया।

 

स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि सुशील, मितभाषी और सभ्य बनने से विद्या की प्राप्ति होगी। आचार्य जी ने व्यवहारभानु ग्रन्थ का उल्लेख कर विद्यार्थियों के 7 दुर्गुणों की चर्चा की। उन्होंने आलस्य, अभिमान, मद, मोह, चपलता और चंचलता आदि को विद्यार्थियों के लिए विद्या प्राप्ति में विघ्न बताया। स्वामी जी ने कहा कि विद्यार्थी में यदि एक भी कमजोरी हो तो उसे विद्या की आशा नहीं करनी चाहिये। स्वामी जी ने डा. रघुवीर विद्यालंकार जी को अपना ज्येष्ठ, श्रेष्ठ व पूजनीय विद्वान बताया। आचार्य जी ने कहा कि उपनयन संस्कार कराते हुए आचार्य जी ने ब्रह्मचारियों की अंजलि में जो जल छोड़ा था, वह संकेत रूप में उन्होंने अपना ज्ञान विद्यार्थियों की अंजलि में भरा है। स्वामी जी ने लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ के अध्यक्ष पं. मण्डन मिश्र जी से अपने मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि उन्होंने गुरुकुल के विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए मुझे कहा था कि वह उनके शास्त्री पास दो विद्यार्थियों को बी.ए. में प्रवेश करा दिया करेंगे जो कि उस समय असम्भव था। स्वामी जी ने कहा कि यदि किसी को अजीर्णता है तो उसे कम भोजन करना चाहिये। वानप्रस्थियों को भी कम भोजन करना चाहिये। संन्यासियों के विषय में स्वामी जी ने कहा कि उन्हें भी कम भोजन करना चाहिये। ब्रह्मचारियों को भिक्षा मांगनी चाहिये और वह जो भी प्राप्त करें उसे अपने आचार्य को समर्पित कर देना चाहिये। आचार्य को भी थोड़ी मात्रा में भिक्षा के पदार्थों को रखकर शेष सामग्री अपने ब्रह्मचारियों को दे देनी चाहिये। स्वामी जी ने विस्तार से भोजन के नियमों की चर्चा की। स्वामी जी ने कहा कि ब्रह्मचारियों को भोजन के विषय में मध्यम मार्गी बन कर चलना चाहिये। उन्होंने ब्रह्मचारियों को एक मनस्क होकर पढ़ाई करने की प्रेरणा की। विद्या व धर्म की उन्नति को उन्होंने ब्रह्मचारी का एकमात्र धर्म बताया। ब्रह्मचारियों को 6 घंटे की नींद लेनी चाहिये। स्वामी जी ने रात्रि देर तक पढ़ने व प्रातः देर से उठने वालों की आलोचना कर कहा कि प्रातः उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पुस्तकों का पाठ याद करने से वह शीघ्र स्मरण हो जाता है। अपने गुरु स्वामी ओमानन्द सरस्वती का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि स्वामी ओमानन्द जी का निजी संग्रहालय इतना विशाल है कि भारत सरकार का संग्रहालय उसका मात्र 10 वां भाग है। स्वामी प्रणवानन्द जी ने डा. रघुवीर वेदालंकार जी को भारत के राष्ट्रपति जी से सम्मानित किये जाने की जानकारी भी दी। उन्होंने गुरुकुल के ब्रह्मचारियों से कहा कि आप डा. रघुवीर वेदालंकार जी की तरह राष्ट्रपति जी से सम्मानित होने वाले विद्वान बनों। इन्हीं शब्दों के साथ स्वामी प्रणवानन्द जी ने अपने व्याख्यान को विराम दिया।

 

आयोजन में उत्तराखण्ड के पूर्व खेल मंत्री, निकटवर्ती प्रसिद्ध शूटिंग रेंज के स्वामी और गुरुकुल के सहयोगी श्री नारायण सिंह राणा जी भी उपस्थित थे। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि गुरुकुलों में पहले से शस्त्र व धनुर्विद्या सिखाई जाती थी। उन्होंने कहा कि जहां शस्त्र में प्रवीण योद्धा होते हैं वहां धर्म सुरक्षित रहता है। राणा जी ने एकलव्य एवं अर्जुन की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि गुरुकुल के विद्यार्थी शूटिंग रेंज में शूटिंग के प्रशिक्षण व अभ्यास के लिये पहले भी पैदल जाते थे और अब भी जाते हैं। उन्होंने कहा कि गुरुकुल के ब्रह्मचारी श्री दीपक कुमार को एशियन गेम्स में शूटिंग में जो रजत पदक मिला है वह हमारे लिये ओलम्पिक से भी बड़ा पदक है। उन्होंने कहा कि श्री दीपक कुमार ने शूटिंग के वर्ड नं. 1 प्रतिस्पर्धी को हराया है। उन्होंने यह भी कहा कि श्री दीपक कुमार को एक करोड़ रुपया मिलेगा और विभाग में पदोन्नति मिलेगी, इसका श्रेय स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी को है। राणा जी ने दीपक के धारा प्रवाह संस्कृत बोलने को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने गुरुकुल पौंधा के शूटिंग रेंज को वर्ल्ड क्लास बनाने की घोषणा की। विद्वान राजनैतिक नेता श्री नारायण सिंह राणा ने कहा कि हम देश के 9 राज्यों में अल्पसंख्यक बन गये हैं। अब हमें अपनी रक्षा के लिये बन्दूक का सहारा लेना होगां। उन्होंने गुरुकुल में तलवार व हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने को कहा। राणा जी ने आज के नये ब्रह्मचारियों को कुछ धनराशि भी दान में दी। राणा जी ने स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती के अतीत में रूग्ण होने की चर्चा की और कहा कि वह उन्हें दिल्ली देखने गये थे। उन्होंने कहा कि स्वामी जी का स्वस्थ होना उनका पुनर्जन्म होना है। आचार्य डा. धनंजय जी ने राणा जी की शूटिंग रेंज से जुड़े विद्यार्थियों के पुराने संस्मरण सुनाये। उन्होंने कहा कि राणा जी हमें लगभग निःशुल्क शूटिंग का प्रशिक्षण देते हैं और गुरुकुल की सहायता भी करते हैं। श्रोताओं को आचार्य धनंजय जी ने बताया कि दीपक कुमार का ओलम्पिक कोटे में चयन होना है। इसी के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ और सबने मिलकर शान्ति पाठ किया। शान्ति पाठ के बाद सबने मिलकर स्वादिष्ट भोजन का आनन्द लिया।

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