जानिए 2018 में शिवरात्रि का त्यौहार कब और क्यों मनाएं–

 

महा शिवरात्रि भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है जिसे पुरे भारत में बड़े उत्साह और प्रसन्नता के साथ मनाया जाता है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाने वाला यह त्यौहार पुरे भारत में शिवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की यह पर्व देवों के देवों महादेव को समर्पित है। जिसके पीछे मुख्यतः दो मान्यताएं मानी जाती है। लोगों की मान्यता है की सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था। जबकि कुछ का मानना है की इस दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती से हुआ था।

वैसे तो वर्ष भर में 12 शिवरात्रियां आती है लेकिन इन सभी में फाल्गुन माह की शिवरात्रि को सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण माना जाता है। वैसे तो इस व्रत को कोई भी रख सकता है लेकिन महिलाएं और लड़कियां इस व्रत को बड़े शौक से रखती है। माना जाता है, इस व्रत के प्रभाव से कुंवारी लड़कियों को मनचाहा वर प्राप्त होता है और जिन महिलाओं का विवाह हो चुका है उनके पति का जीवन और स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है।

 

महाशिवरात्रि हिन्दुओं के सबसे बड़े पर्वों में से एक है। दक्षिण भारतीय पंचांग (अमावस्यान्त पंचांग) के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह पर्व मनाया जाता है। वहीं उत्तर भारतीय पंचांग (पूर्णिमान्त पंचांग) के मुताबिक़ फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का आयोजन होता है। पूर्णिमान्त व अमावस्यान्त दोनों ही पंचांगों के अनुसार महाशिवरात्रि एक ही दिन पड़ती है, इसलिए अंग्रेज़ी कैलेंडर के हिसाब से पर्व की तारीख़ वही रहती है। इस दिन शिव-भक्त मंदिरों में शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाकर पूजा, व्रत तथा रात्रि-जागरण करते हैं।

 

महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है। जिसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को देशभर में वृहद स्तर पर पूर्ण श्रद्घा के साथ मनाया जाता है। भोेलेबाबा की आराधना के लिए विशेष माने जाने वाले ये त्यौहार इस बार 13 फरवरी 2018, मंगलवार के दिन मनाया जायेगा । जिसके तहत भक्त पूजा-अर्चना, रूद्राभिषेक आैर रात्रि जागरण जैसे धार्मिक अनुष्ठानों से भगवान शिव को प्रसन्न कर उनके अाशीर्वाद मांगा जाता है। ज्योतिष के सिद्घांतों के अनुसार, शिवरात्रि की रात ब्रह्मांड दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण रहता है आैर श्रद्घालु इस ऊर्जा को पाने की प्रार्थना करते है।
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शिव का तात्पर्य—

 

भगवान शिव त्रिदेव का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिनको ब्रह्मा, विष्णु, महेश ”शिव” कहते हैं, जो क्रमशः निर्माता, पालक एवं विनाशक हैं। शिव का अर्थ कल्याण होता है। शिव केवल भगवान नहीं हैं, बल्कि उनको पंचदेव पूजन में प्रमुख देव के रूप में देखा जाता है। शिव महिमन स्तोत्र में उनके स्वरूप आैर महिमा का बखूबी बयान किया गया है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव हिमालय की गोद में स्थित कैलाश पर्बत पर निराकार, कालातीत रहते हैं। लिंग शिव की अप्रकट प्रकृति का प्रतीक है। हिन्दू समाज में शिव की मूर्ति एवं शिवलिंग दोनों की पूजा की जाती है,क्योंकि ये दोनों ही शिव जी के प्रतीक हैं। कहते हैं कि भगवान शिव को खुश करना बहुत आसान है एवं उनकी कृपा आपको असीम शक्ति प्रदान करती है। एक मत यह भी है कि शिव की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। भगवान शिव से ‘ओम’ की उत्पत्ति हुई है। इसलिए ओम का उच्चारण भगवान शिव की पूजा कहलाता है।

 

शिव जो कि सबके कष्ट हरते हैं। वो दुनिया को चलाते हैं और वो ही विनाश करते हैं। हिंदुओं में शिव भगवान का स्थान सबसे ऊपर है। शिव भगवान की पूजा से सबसे जल्दी फल मिलता है। शिव भगवान को तीनो लोकों में पूजा जाता है। राक्षस भी उनको पूजते हैं, धरती वासी भी और देवता भी। शिवरात्रि का मतलब होता है शिव की रात। ये हर साल माघ/फाल्गुन महीने के  कृष्ण पक्ष की 13वीं रात को आती है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। साथ ही शिव भगवान ने समुद्र मंथन से निकले विष को भी अपने कंठ यानि गले में संचित किया था
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जानिए कैसे मनाई जाती है शिवरात्रि?

 

सम्पूर्ण विश्व में  शिवरात्रि का पर्व बड़े ही धूम धाम और हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी महिलाएं प्रातः काल जागकर स्नान आदि करके भगवान शिव के मंदिर जाती है। वहां शिवलिंग का जलाभिषेक कर दुग्धाभिषेक करती है। इसके बाद वे शिव जी को फूल आदि अर्पित कर उन्हें टीका लगाती है। तत्पश्चात वे उन्हें बेलपत्र, भांग, धतूरा, आख आदि फल-फूल चढाती है। माना जाता है सामान्य फलों और मिठाइयों की तुलना में शिव जी ये जंगली फल अधिक पसंद आते है।

 

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस दिन शिवलिंग पर धतूरा और बेलपत्र चढ़ाने का खास महत्व होता है। इसके बाद वे उन्हें किसी मीठी चीज से भोग लगाती है। भोग लगाने के पश्चात् धुप दिप आदि जलाकर उनकी पूजा अर्चना करती है और शिव जी की आरती जाती है।इस दिन उपवास रखने का बेहद ख़ास महत्व होता है। माना जाता है जो कन्या पुरे श्रद्धा और विश्वास के साथ शिवरात्रि का उपवास रखती है उसे मनचाहा वर प्राप्त होता है।

 

इसीलिए लड़कियां और महिलाएं इस पुरे दिन उपवास रखती है और अगले दिन पारण समय में अपना उपवास खोलती है। इस उपवास में आप पुरे दिन भर पानी पी सकती है, फल खा सकती है व्रत में खाने वाली सभी चीजों का सेवन भी कर सकती है। कुछ लोग शिवरात्रि का व्रत रात्रि में ही सदा भोजन करके खोल लेते है।तो इस वर्ष आप भी भोले बाबा का व्रत करके उन्हें प्रसन्न करें और उनसे अच्छे जीवनसाथी का आशीर्वाद लें।
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वर्ष 2018 में महाशिवरात्रि का पर्व 13 फरवरी 2018, मंगलवार के दिन मनाई जाएगी।

 

जानिए महा शिवरात्रि 2018 मुहूर्त—

 

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस दिन शिवरात्रि निशिता काल पूजा का समय 24:09+ से 25:01+ तक होगा।
मुहूर्त की अवधि कुल 51 मिनट की है।

 

14th तारीख, को महा शिवरात्रि पारण का समय 07:04 से 15:20 तक होगा।

 

रात्रि पहले प्रहर पूजा का टाइम = 18:05 से 21:20
रात के दूसरा प्रहर में पूजा का टाइम = 21:20 से 24:35+
रात्रि तीसरा प्रहर पूजा का टाइम = 24:35+ से 27:49+
रात्रि चौथा प्रहर पूजा का टाइम = 27:49+ से 31:04+

 

चतुर्दशी तिथि 13 फरवरी 2018, मंगवलार 22:34 से प्रारंभ होगी जो 15 फरवरी 2018, 00:46 बजे खत्म होगी।
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शिवरात्रि का दिन—-
शिवरात्रि का दिन और रात शिव भक्तों के लिये बहुत अहम होती है। दिन भर व्रत रखा जाता है और रात को शिवालय में पूजा अर्चना की जाती है। व्रत में कुछ खास सामग्रियां ही होती हैं जो कि बनाई और खाई जाती हैं। शिव मंदिरों में सुबह से ही भीड़ लग जाती है। हर कोई भगवान पर पानी या दूध लस्सी चढ़ाता है। शिव भगवान को बिल पत्री और केले भी चढ़ाए जाते हैं।  भक्त शिवलिंग की तीन या सात बार परिक्रमा करते हैं और फिर चंदन का टीका पत्थर की शिला पर घिसकर शिवलिंग पर लगाकर अपने माथे पर लगाते हैं। पूरा दिन व्रत करने के बाद रात को सभी भक्तजन मंदिर या घर के मंदिर में इकट्ठा होते हैं। शिव भगवान के भजन गाए जाते हैं। पूरे विधि विधान के साथ पूजन किया जाता है। इस दिन प्रसिद्ध शिव स्थानों में जाकर पूजा करना और शिवलिंग के दर्शन करना भी काफी अहम माना गया है।
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महाशिवरात्रि से जुड़ी दंत कथाएं —-
महाशिवरात्रि के संदर्भ में बहुत दिलचस्प कथाएं पुराने हिन्दु ग्रंथों में दर्ज हैं, जो महाशिवरात्रि के महत्व को दर्शाती हैं। पुराणों के अनुसार सागर मंथन के दौरान निकलने वाले ज़हर के प्याला को पीने के लिए जब कोर्इ देवी-देवता तैयार नहीं थे। तब सभी भगवान शिव के द्वार पर पहुंचे एवं शिव भगवान को निवेदन किया, जिसके बाद शिव भगवान विष पीने के लिए तैयार हो गए। कहते हैं कि विष पीने के बाद शिव ने विष को अपने गले से नीचे नही उतारा एवं विष ने अपने प्रभाव से उनके गले को नीला कर दिया,जिसके बाद उनको नीलकंठ नाम से भी पुकारा जाने लगा। महाशिवरात्रि पर्व इसलिए भी मनाया जाता है कि शिव ने पूरा ज़हर पीकर पूरे विश्व की रक्षा की।

 

इस तरह एक दंत कथा ये भी है कि एक शिकारी शिकार के लिए जंगल में गया। शिकारी जंगल में बिलवा पत्र के पेड़ पर चढ़कर बैठ गया, एवं शिकार का इंतज़ार करने लगे। उसको ख़बर नहीं थी कि पेड़ के नीचे शिवलिंग स्थापित है, एवं न ही उसको महाशिवरात्रि का ध्यान था। शिकारी पत्ते तोड़ तोड़ शिवलिंग पर गिराता रहा। दिन की पहली तिमाही के दौरान शिकारी ने एक हिरण को पानी पीने के लिए आते देखा, उसने शिकार करने की कोशिश की, तो हिरण ने अपने बच्चों का वास्ता दिया, इस पर शिकारी को दया आर्इ, उसने हिरण को जाने दिया एवं उसके बाद हिरण का बच्चा आया, शिकारी ने शिकार करने का मन छोड़ दिया। पेड़ पर बैठा शिकारी खाली पेट शिवलिंग पर तोड़ तोड़ पत्ते गिराता रहा। जब पूरा दिन गुज़र गया तो भगवान शिव स्वयं उस के सामने प्रकट हुए एवं उसको मोक्ष की प्राप्ति हो गयी। इस तरह अगर आप अनजाने में भी महाशिवरात्रि के दिन उपवास रखते हैं तो इसके आप को बहुत लाभ मिलते हैं।
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महाशिवरात्रि व्रत का शास्त्रोक्त नियम–

 

माना जाता है कि इस व्रत करता करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है. व्रत के दिन “ऊं नम: शिवाय” का जाप हर वक्त करते ही रहना चाहिए। शास्त्र कहते हैं कि संसार में अनेकानेक प्रकार के व्रत, विविध तीर्थस्नान नाना प्रकारेण दान अनेक प्रकार के यज्ञ तरह-तरह के तप तथा जप आदि भी महाशिवरात्रि व्रत की समानता नहीं कर सकते। अतः अपने हित साधनार्थ सभी को इस व्रत का अवश्य पालन करना चाहिए।
महाशिवरात्रि व्रत परम मंगलमय और दिव्यतापूर्ण है। इससे सदा सर्वदा भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह शिव रात्रि व्रत व्रतराज के नाम से विख्यात है एवं चारों पुरूषार्थो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है। हो सके तो इस व्रत को जीवन पर्यंत करें नही तो चैदह वर्ष के बाद पूर्ण विधि विधान के साथ उद्यापन कर दें।

 

व्रतराज के सिद्धांत और पौराणिक शास्त्रों के अनुसार शिवरात्रि के व्रत के बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं, परन्तु सर्वसाधारण मान्यता के अनुसार जब प्रदोष काल रात्रि का आरंभ एवं निशीथ काल (अर्द्धरात्रि) के समय चतुर्दशी तिथि रहे उसी दिन शिवरात्रि का व्रत होता है।

 

समर्थजनों को यह व्रत प्रातः काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त तक करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस विधि से किए गए व्रत से जागरण पूजा उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा प्राप्त होती है।

 

इससे व्यक्ति जन्मांतर के पापों से मुक्त होता है। इस लोक में सुख भोगकर व्यक्ति अन्त में शिव सायुज्य को प्राप्त करता है। जीवन पर्यन्त इस विधि से श्रद्धा विश्वास पूर्वक व्रत का आचरण करने से भगवान शिव की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जो लोक इस विधि से व्रत करने में असमर्थ हों वे रात्रि के आरंभ में तथा अर्द्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं।

 

यदि इस विधि से भी व्रत करने में असमर्थ हों तो पूरे दिन व्रत करके सांयकाल में भगवान शंकर की यथाशक्ति पूजा अर्चना करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं। इस विधि से व्रत करने से भी भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शिवरात्रि में संपूर्ण रात्रि जागरण करने से महापुण्य फल की प्राप्ति होती है। गृहस्थ जनों के अलावा सन्यासी लोगों के लिए महारात्रि की साधना एवं गुरूमंत्र दीक्षा आदि के लिए विशेष सिद्धिदायक मुहूर्त होता है।

 

अपनी गुरू परम्परा के अनुसार सन्यासी जन महारात्रि में साधना करते हैं। महाशिवरात्रि की रात्रि महा सिद्धिदात्री होती है। इस समय में किए गए दान पुण्य शिवलिंग की पूजा स्थापना का विशेष फल प्राप्त होता है। इस सिद्ध मुहूर्त में पारद अथवा स्फटिक शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के बाद अपने घर में अथवा व्यवसाय स्थल या कार्यालय में स्थापित करने से घर परिवार व्यवसाय और नौकरी में भगवान शिव की कृपा से विशेष उन्नति एवं लाभ की प्राप्ति होती है। परमदयालु भगवान शंकर प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। अटके हुए मंगल कार्य सम्पन्न होते है….कन्याओं की विवाह बाधा दूर होती है।
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व्रत की सामग्री—-

 

व्रत पूजन के लिये जरूरी सामग्री में  पंचामृत (गंगाजल, दुध, दही, घी, शहद), फूल, बिल पत्री, धूप, दीप, नैवेध, चंदन का लेप और ऋतुफल होते हैं।

 

व्रत की विधि—

 

सुबह जल्दी उठ कर साफ पानी से स्नान करें। भस्म का तिलक लगाकर रुद्राक्ष की माला पहनें। ईशान कोण की ओर शिव का पूजन करें। चार पहर शिव भगवान की पूजा करें। हर पल मुख पर “ऊं नम: शिवाय” का जाप होना चाहिए। व्रत के दौरान रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।

 

महाशिवरात्रि व्रत कब मनाया जाए, इसके लिए शास्त्रों के अनुसार निम्न नियम तय किए गए हैं —

 

1.   चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं। रात्रि का आठवाँ मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है। सरल शब्दों में कहें तो जब चतुर्दशी तिथि शुरू हो और रात का आठवाँ मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही पड़ रहा हो, तो उसी दिन शिवरात्रि मनानी चाहिए।

 

2.   चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथकाल के पहले हिस्से को छुए और पहले दिन पूरे निशीथ को व्याप्त करे, तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि का आयोजन किया जाता है।

 

3.   उपर्युक्त दो स्थितियों को छोड़कर बाक़ी हर स्थिति में व्रत अगले दिन ही किया जाता है।
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महाशिवरात्रि पर कैसे करें भोलेबाबा का पूजनः
शिवरात्रि के व्रत से एक दिन पहले श्रद्घालु सिर्फ एक बार भोजन ग्रहण करते है। जबकि शिवरात्रि के दिन, सुबह की पूजा खत्म करने के बाद, श्रद्घालु पूरे दिन व्रत रखने का संकल्प लेते है आैर अगले दिन अपना व्रत तोड़ते है। श्रद्घालुआें को शाम को भी एक बार फिर से स्नान करनी चाहिए, ताकि शिवपूजा से पहले पवित्रता बनी रहें। एेसी माना जाता है महाशिवरात्रि की रात में भोलेबाबा का चार प्रहर में पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है।

 

आइए जानते है इन चार प्रहरों में भगवान शिव की उपासना के तरीकेः
पहले पहर :तिल, जैव, कमल, बिलवा पत्र
दूसरे पहर : विजोर फल, नींबू, खीर
तीसरे पहर :तिल, आटा, मालपौहा, अनार, कपूर
चौथे :उड़द, जैव, मूंग, शंखीपुष्प, बिलवा पत्र एवं उड़द के पकौड़े दिन के अंत में चढ़ाएं।
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जानिए महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा—
1.   मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए। अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए।

 

2.   शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप इस दिन करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।

 

3.   शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालाँकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।
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क्या हैं ज्योतिष के दृष्टिकोण से शिवरात्रि पर्व का महत्त्व —

 

चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं। इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है। गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु-परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है — अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मज़बूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।
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शिव भगवान की बारात—

 

शिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव का विवाह हुआ था। भगवान शिव की बारात में भूत प्रेत और गण नाचते गाते हुए गए थे। मां गौरा राजा की बेटी थीं और वहां पर भव्य इंतजाम था। इसी दृश्य को एक बार फिर से महाशिवरात्रि के दिन दिखाया जाता है। शहरों में शिव भक्त शिव भगवान की बारात निकालते हैं। आगे आगे शिव भगवान नंदी पर सवार होकर चलते हैं और पीछ पीछे सभी भूत प्रेतों की तरह मेकअप करके चलते हैं। चारों ओर “जय शिव शंकर” के जय जयकारे लगते हैं
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जानिए महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा के लाभ—

 

– भगवान शिव का अभिषेक करने से आत्मा की शुद्धि होती है।
– महाशिवरात्रि पर प्रसाद चढ़ाने से लंबा आैर संतोषजनक जीवन प्राप्त होता है।
–  ज्योत जगाने से जीवन में ज्ञान का प्रकाश होता है।
–  शिव भगवान को तंबुल चढ़ाने से सकारात्मक नतीजे मिलते हैं।
–  शिवलिंग को दूधाभिषेक करवाने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
–  शिवजी को दही से स्नान करवाने पर आप को वाहन सुख प्राप्त होता है।
–  भगवान शिव को पानी में मिलाकर दरबा चढ़ाने से रोगों से मुक्ति मिलती है।
–  अगर आप शहद, घी व गन्ना शिव को चढ़ाते हैं तो शिवजी आप को धन दौलत देंगे।
–  अगर आप भगवान शिव को गंगा जल से स्नान करवाते हैं तो आप को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

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