अक्ल बड़ी या भैंस….

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देश भर की भैंसो ने अपना संगठन मज़बूत किया है , उनका कहना है कि वो मनुष्य को गायों से कंहीं ज़्यादा दूध उपलब्ध कराती हैं इसलियें उन्हे भी गायों के बराबर दर्जा और सुविधायें चाहियें इसके लियें उन्होने अलग अलग शहरो मे आंदोलन शुरू कर दिया है। बेचारी भैंसे… आदमी की फितरत नहीं जानती गायों को गऊमाता कहने वाला आदमी ही बूढ़ी कमज़ोर दूध न दे सकने वाली गायों को सड़क पर छोड़ देता कूड़े के ढेर से भोजन ढूँढने के लियें।मैने भैसों को समझाया कि बेकार इस चक्कर मे मत पड़ो तुम जैसी हो ठीक हो पर पता नहीं किसने उन्हे भड़का दिया है वो आन्दोलन वापिस लेने को तैयार ही नहीं हैं, इसीलियें तो कहते हैं, कि अक्ल बड़ी या भैंस….

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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