आबादी के अनुपात में संतुलन की जरूरत

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प्रमोद भार्गव

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राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सह सरकार्यवाहक दत्तात्रेय होसबले ने हिंदुओं की घटती आबादी पर चिंता जतार्इ है। साथ ही हिंदुओं को ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह दी है। उनकी इस बात को हिंदु पक्षधरता के दायरे में समेटने की संर्कीण मानसिकता से बचने की जरूरत है। क्योंकि खासतौर से कश्मीर समेत अन्य सीमांत प्रदेशो में बिगड़ते जनसंख्यात्मक अनुपात के दुष्परिणाम कुछ समय से प्रत्यक्ष देखने में आ रहें हैं। कश्मीर में पुश्तैनी धरती से 5 लाख हिंदुओं का विस्थापन,बांग्लादेशी धुसपैठीयों के चलते पेश आए असम दंगे,जबरिया धर्मांतरण के चलते पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ता र्इसार्इ वर्चस्व ऐसी बड़ी वजह बन रही है जो देश के मौजूदा नक्शे की शक्ल बदल सकती है। लिहाजा परिवार नियोजन के एकांगी उपायों को खारिज करते हुए आबादी नियंत्रण के उपायों पर नए सिरे से सोचने की जरूरत है।

हालांकि भारत में समग्र आबादी की बढ़ती दर बेलगाम है। 15 वीं जनगणना के हासिलों से साबित हुआ है कि आबादी का घनत्व दक्षिण भारत की बजाए,उत्तर भारत में ज्यादा है। लैंगिक अनुपात भी लगातार बिगड़ रहा है। देश में 62 करोड़ 37 लाख पुरूष और 58 करोड़ 65 लाख महिलाएं है। शिशु लिगांनुपात की दृष्टि से प्रति हजार बालकों की तुलना में महज 912 बलिकाएं हैं। हालांकि 15 वीं जनगणना के सुखद परिणाम यह रहे है कि जनगणना की वृद्धि दर में 3.96 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गर्इ है। लेकिन इसकी विसंगति यह है कि पारसियों, र्इसार्इयों और हिंदुओं में तो जन्मदर घटी है,लेकिन मुसिलमों में बढ़ी है। क्योंकि मुसिलमों में यह भ्रम है कि इस्लाम उन्हें परिवार नियोजन की इजाजत नहीं देता। जन्मदर को रेखांकित करते हुए दत्तात्रेय होसबले ने कहा भी है कि हिंदू परिवारों में 0-6 साल के बच्चों की उन्नति दर 1.5 फीसदी है,जबकि मुसिलमों में 18 फीसदी है। उच्च शिक्षित व उच्च आय वर्ग के एक संतान पैदा करने तक सिमट गए हैं,जबकि वे तीन बच्चों के भरण-पोषण व उन्हें उच्च शिक्षा दिलाने में सक्षम है। भविष्य में वे ऐसा करें तो समुदाय आधारित आबादियों के बीच संतुलन की उम्मीद की जा सकती है।            आबादी नियंत्रण के परिप्रेक्ष्य में हम केरल राज्य द्धारा बनाए गए ‘कानून वूमेन कोड बिल-2011’ को एक आदर्श उदाहरण मान सकते हैं। इस कानून का प्रारूप न्यायाधीश वीआर कृष्णा अययर की अघ्यक्षता 12 सदस्ीय समिति ने तैयार किया था। इस कानून में प्रावधान है कि देश के किसी भी नागरिक को धर्म,जाति,क्षेत्र और भाषा के आधार पर परिवार नियोजन से बचने की सुविधा नहीं है। हालांकि दक्षिण भारत के राज्यों की जनसंख्या वुद्धि दर संतुलित रही  है,क्योंकि इन राज्यों ने परिवार नियोजन को सुखी जीवन का आधार मान लिया है। बावजूद आबादी पर  नियंत्रण के उपाय तभी सफल हो सकते है,जब सभी धर्माबंलबियों,समाजों,जातियों और वर्गो की उसमें सहभागीता हो। हमारे यहां परिवार नियोजन अपनाने में सबसे पीछे मुसलमान हैं। मुसिलमों की बहुसंख्यक आबादी में आज भी यह भ्रम फैला हुआ है कि परिवार नियोजन इस्लाम के विरूद्ध है। कुरान इसकी अनुमति नहीं देता। ज्यादातर रूढि़वादी और दकियानूसी धर्मगुरू बड़ी मुस्लिम आबादी को कुरान की आयातों का हवाला देकर गुमराह करते रहते हैं।

इस बाबत यहां असम के डा इलियास अली के जागरूकता अभियान का जिक्र करना जरूरी है। डा अली गावं-गावं जाकर मुसलमानों में अलख जगा रहे हैं कि इस्लाम एक ऐसा अनूठा धर्म है,जिसमें आबादी पर काबू पाने के तौर-तरीकों का ब्यौरा है। इसे ‘अजाल’ कहा जाता है। इसी बिना पर मुस्लिम देश र्इरान में परिवार नियोजन अपनाया जा रहा है। यही नहीं इसकी जबावदेही धर्म गुरूओं को सौंपी गर्इ है। ये र्इरानी दंपतियों के बीच कुरान की आयातों की सही व्याख्या कर लोगों को परिवार नियोजन के लिए प्रेरित कर रहें हैं। डा इलियास चिकित्सा महाविधालय गोहाटी में प्राघ्यापक हैं। वे प्रकृति से धार्मिक है। उनसे प्रभावित होकर असम सरकार ने उन्हें खासतौर से मुस्लिम बहुल इलाको में परिवार नियोजन के क्षेत्र में जागरूकता लाने की कमान सौंपी है। डा इलियास के इन संदेशो को पूरे देश में फैलाने की जरूरत है। जिससे भिन्न धर्मावलंबियों के बीच जनसंखयात्मक घनत्व औसत अनुपात में रहे।

देश में पकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और बांगलादेशी मुसिलमों की अवैध धुसपैठ,अलगावादी हिंसा के साथ जनसंख्यात्मक घनत्व बिगाड़ने का काम कर रही है। कश्मीर क्षेत्र से 1988 में आतंकी दहशत के चलते मूल कश्मीरियों के विस्थापन का सिलसिला जारी हुआ था,जो आज भी जारी है। विस्थापितों में हिंदू,डोग्रे,,बौद्ध और सिख हैं। उनके साथ धर्म व संप्रदाय के आधार पर ज्यादती हुर्इ और निदान आज तक नहीं हुआ। न्याय दिलाने की बात तो दूर,इनके वापिसी में जम्मू कश्मीर सरकार की कोर्इ रूचि नहीं है। बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी ने कश्मीर स्थित इनकी जयदाद पर मौजदूगी को मजबूत कर लिया है। इन्हें सीमा पर से आया आतंकवाद संरक्षण दे रहा है। कश्मीर में यह स्थिति जनसंख्यात्मक घनत्व बिगड़ने के कारण ही उत्पन्न हुर्इ,जिसका दुष्परिणान लोग अपने ही देश के एक हिस्से से खदेड़े गए शरणार्थी के रूप में भोग रहे हैं।

इधर असम क्षेत्र में 4 करोड़ से भी ज्यादा बांगलादेशियों ने नाजायज धुसपैठ कर यहां का जनसंख्यात्मक घनत्व बिगड़ दिया है। नतीजतन यहां नागा,बोडो और असमिया उपराष्ट्रवाद विकसित हुआ। इसकी हिंसक अभिव्यकित अलगाववादी अंदोलनों और विद्र्रोही तेवरों के रूप में पिछले साल देखने में आर्इ। 1991 की जनगणना के अनुसार कोकराझार जिले में 39.5 फीसदी बोडो आदिवासी थे और 10.5 फीसदी मुसलमान। किंतु 2011 की जनगणना के मुताबिक आज इस जिले में 30 फीसदी बोडो रह गए है,जबकि मुसलमानों की संख्या बढ़कर 25 फीसदी हो गर्इ। कोकराझार से ही सटा है,धुबरी शहर। धुबरी को बांगलादेश से सिर्फ ब्रहम्पुत्र नदी अलग करती है। जाहिर है, यहां धुसपैठ आसान है। आजादी के वक्त धुबरी जिले में 12 फीसदी मुसलमान थे,लेकिन 2011 में इनकी संख्या बढ़कर 98.25 हो गर्इ है। धुबरी अब भारत का सबसे घनी मुस्लिम आबादी वाला जिला बन गया है। 2001 की जनगण्ना के मुताबिक असम के नौगांव,बरपेटा,धुबरी,बोंगर्इगांव और करीमनगर जैसे नौ जिले में मुस्लिम आबादी की संख्या हिंदु आबादी से ज्यादा है। तय है घुसपैठ ने आबादी का घनत्व बिगाड़ने का काम किया है और केंद्र सरकार इन घुसपैठियों को खदेड़ने की कोर्इ इच्छा शक्ति नहीं जता पार्इ?

असम में घुसपैठ की समस्या नर्इ नहीं है। प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल के दौरान इस समस्या को समझ लिया था कि स्थानीय स्तर पर जातीय,नस्लीय अथवा सांप्रदायिक संघर्ष नहीं है,बलिक घुसपैठियों की वजह से उपजा संकट है। यह संकट इसलिए भयावह है,क्योंकि घुसपैठियों के पास रोजी रोटी व आवास के संसाधन जुटाने का जरिया एक ही था कि वे स्थानीय मूलनिवासियों के परंपरागत संसाधनों को कब्जा लें। समस्या की इसी वजह को 1985 में तात्कालीन मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार मंहत ने भी समझ लिया था। लिहाजा समाधान की दिशा में राज्य और केंद्र सरकार के बीच एक अनुबंध हुआ,जिसके तहत घुसपैठियों को सीमा पर रोकना और असम की सीमा में आ चुके घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बांगलादेश की सीमा पर खदेड़ना था। इस अनुबंध पर कठोरता से अमल की शुरूआत हुर्इ तो वामपंथियों और मानवाधिकारवादियों ने हो-हल्ला शुरू कर दिया। यहां इन्हें समझने की जरूरत थी कि जो घुसपैठीये मूल निवासियों के अधिकारों का हनन कर रहे है,उनकी पक्षधरता किसलिए?

यहां गोरतलब है कि असम समेत समूचा पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत से केवल 20 किलोमीटर चौड़े एक भूखण्ड से जुड़ा है। इन सात राज्यों को सात बहनें कहा जाता है। यह भूखण्ड भूटान,तिब्बत,म्यांमा और बांगलादेश से धिरा है। इस पूरे क्षेत्र में र्इसार्इ मिशनरियां सक्रीय हैं,जो शिक्षा और स्वास्थ सेवाओं के बहाने धर्मांतरण का काम भी कर रही हैं। इसी वजह से इस क्षेत्र का नागालैंड ऐसा राज्य है,जहां र्इसार्इ आबादी बढ़कर 98 प्रतिशत के आंकड़े को छू गर्इ है। बावजूद भारतीय र्इसार्इ धर्मगुरू कह रहें हैं कि र्इसार्इयों की आबादी बीते ड़ेढ़ दशक में घटी है। इसे बढ़ाने की जरूरत है। चर्चों में होने वाली प्रार्थना सभाओं में इस संदेश को प्रचारित किया जा रहा है। ऐसे विरोधाभासी हालात में यदि संघ से जुड़े दत्तात्रेय होसबले हिंदुओं को आबादी बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहें है ,तो इसे संकीर्ण दृष्टिकोण से देखने की बजाए इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है,क्योंकि किसी भी देश की राष्ट्रीयता उसकी मूल जाति ही कायम रखने में सक्षम होती है।

3 COMMENTS

  1. कश्मीर से जब हिंदुओं का पलायन हो रहा था ,तो हमारी सरकार क्या कर रही थी? वहीं सवाल आसाम के बारे में भी पूछा जा सकता है. इसमें बच्चों की संख्या बढ़ा कर आबादी संतुलन की बात कहाँ आती है? हिंदुओं की संख्या वृद्धि से इस तरह की समस्याओं का समाधान नहीं होगा,यह मेरी मान्यता है.

  2. मेरे एक सम्बन्धी ,जो आर.एस.एस. से ताल्लुक रखते थे,हैम सब लोगों को यही शिक्षा देते थे. उम्र में कुछ हे वर्ष बड़े थे,अतः उनकी बात पर हमलोग अधिक ध्यान नहीं देते थे.हमलोगों के दो या तीन बच्चे थे.वे पांच बच्चों के पिता बने.मृत्यु भी थोडा जल्दी हो गयी.अब तो वे बच्चे किसी तरह बड़े हो ही गए,पर अपने माता पिता को कोसते जरूर होंगे. ऐसे मेरे दो मुस्लिम साथी भी थे.एक तो भारत में ही है,पर दूसरा बाद में विदेश चला गया.उनके भी दो दो बच्चे हैं. मेरे कहने का तात्पर्य यही है कि इस तरह की शिक्षाओं का प्रभाव उनपर अधिक पड़ता है,जिनकीं संकीर्ण मानसिकता है,चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान.

    • आदरणीय सिंह साहब, दो चार मुसलमानों का उदहारण देकर आप ९९.९९% मुसलमानों का बचाव कर रहे हैं. काश आप एक कश्मीरी हिन्दू होते, जिनकी तमाम चल-अचल संपत्ति लूट ली गयी और वे अपने ही वतन हिंदुस्तान में फुटपाथ पर रह रहे हैं. या आप एक असमी होते, जिनके संसाधनों पर बंगलादेशी मुसलमानों का कब्ज़ा और दबदबा है. आश्चर्य नहीं कि कुछ दिन में मूल असमी मुस्लमान या ईसाई बन जाएँ. बिलकुल नागालैंड के जैसे. अपने जड़ों से कटे हुए ये जन फिर अपने ही देश और समाज के दुश्मन बनेंगे और आपके जैसा उनका हितैषी भी उनके निशाने पर होगा.

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