एक मुद्दत से न की तिरे हुस्न की तस्कीन महबूब

पूछिए मत क्या बवाल मचा रखा है

जाने उसने ज़बाँ पे क्या छुपा रखा है

इस माहौल में ख़ामोश रहना अच्छा

बहस को जाने क्या मुद्दआ उठा रखा है

तमाम उम्र जिस मुल्क से प्यार किया

फ़िक्र है मुझे अजनबियों ने डरा रखा है

आसार नहीं कोई दिखता सुधरने का

इन हालातों की चिंता ने सता रखा है                       

नहीं पता किस मोड़ पे नज़ारे अच्छे हों

हम ने देखा चोरों ने पेट भर खा रखा है

कहाँ तक पहुँचे निगाह होश भी न रहा

हम चुप और मुद्दई ने घर सजा रखा है

कब तक रहेगा ये मौसम इस सफ़र में

‘राहत’ हम जैसों ने वतन बचा रखा है

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’

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