खेल से खिलवाड़ !

ioaकहते हैं कोई भी खिलाड़ी खेल से बड़ा नहीं होता…कोई भी खिलाड़ी मैदान पर आदर्श खेलभावना का प्रदर्शन करके भले ही मैच हार जाए..लेकिन उससे वह करोड़ों प्रशंसकों के दिल में खास जगह बना लेता है…लेकिन पैसों की चमक और जीत की हनक के आगे खिलाड़ी ये सारी मर्यादाएं भूलते जा रहे हैं…वे ये भूल रहे हैं कि वे जो कुछ भी हैं खेल की बदौलत हैं

यहां कुछ घटनाओं का जिक्र करना चाहूंगा……पहली घटना भारत से कोसों दूर इंग्लैंड में घटी… लगातार विवादों में रही एशेज सीरीज का अंत भी विवादों भरा रहा…लेकिन ओवल के मैदान पर जश्न के दौरान जो वाकया सामने आया उसने जेंटलमैन गेम पर कलंक लग गया… पूरी दुनिया को भद्रजनों का खेल सिखाने वाले अंग्रेज खुद सारी मर्यादाएं भूल गए…ओवल टेस्ट ड्रॉ कराने और सीरीज 3-0 से जीतने के जश्न में पहले तो खिलाड़ी कई घंटो तक मैदान पर नाचते रहे और फिर पिच पर बैठ कर बीयर पीने लगे…  पीटरसन, स्टुअर्ट ब्रॉड और जेम्स एंडरसन नो तो सारी हदें लांघते हुए पिच पर पेशाब कर क्रिकेट जगत को शर्मसार कर दिया…वैसे  क्रिकेटरों की बदतमीजी की पहला वाकया नहीं है…पहले भी कई बार ऐसा शर्मनाक हरकतों से क्रिकेट कलंकित हो चुका है…

दूसरा वाकया अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी (आईओसी)  और भारतीय ओलंपिक संघ आईओए के बीच मची खींचतान का है… आईओसी ने आईओए के चुनाव मे पार्दर्शिता और भ्रष्टाचार को खत्म करने की कवायद की तो आईओए की त्यौरियां चढ़ गई… ओलंपिक से निलंबन के बाद आईओ ने चुनाव प्रक्रिया पार्दर्सी बनाने के लिए आम बैठक बुलाई जिसमें आईओसी को ठेंगा दिखाते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया..जिसमें आईओए ने कहा की वो उन लोगों को संघ में सदस्य या पदाधिकारी नहीं बनने देंगे जिन्हें दो साल की सज़ा हो चुकी हो…मतलब कि दागियों के चुनाव लड़ने का रास्ता साफ रहेगा… आईओसी ने 15 अगस्त को आईओए को संशोधित मसौदा संविधान भेजा था जिसके अनुसार भ्रष्टाचार में दागी व्यक्ति आईओए चुनाव नहीं लड़ सकते… इस कदम से भारत के ओलंपिक मे हिस्सा लेने पर भी तलवार लटक रही है… क्योंकि बैठक मे शामिल हुए आईओसी प्रतिनिधि मंडल के सदस्य फ्रांसिस्को ने साफ किया है ओलंपिक से भारत का निलंबन वापस लेने की गारंटी नहीं दी जा सकती…  मतलब साफ है कि सालों से खेलसंघों के मठाधीश बने राजनेता खेल और खिलाड़ियों की भावना से खिलवाड़ करने से जरा भी नहीं हिचकेंगे…भले ही भारत का ओलंपिक से टिकट कट जाए…खेल के प्रशासको को क्रिकेटर राहुल द्रविड़ की उस टिप्पणी से सीख लेनी चाहिए जिसमें उन्होंने बीसीसीआई के अधिकारियो को नसीहत दी थी कि वो खेल से खिलवाड़ न करें…क्योंकि किसी भी खिलाड़ी या खेल अधिकारी का वजूद उस खेल के प्रशंसकों की बदौलत है…औऱ अगर खेल की विश्वसनीयता बरकरार नबहीं रख पाते तो क्रिकेटर अपने फैंस का सम्मान खो देंगे

एक और प्रसंग इन दिनों चर्चा में है…. 29 अगस्त को देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कारों का वितरण किया जाना है…लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह खेल रत्न समेत तमाम पुरस्कारों पर किचकिच मची है…उससे इनकी प्रतिष्ठा पर भी सवाल उठे हैं.. इस बार निशानेबाज रोंजन सोढी को राजीव गांधी खेल रत्न मिलने पर विवाद बढ़ा…कॉमनवेल्थ खेलों की गोल्ड मेडलिस्ट डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पूनिया ने सोढी को खेल रत्न दिए जाने का विरोध किया…पूनिया ने तो सम्मान न मिलने पर खेल छोड़ने की धमकी तक दे दी … इससे पहले 2009 में बॉक्सर मैरीकॉम का नाम खेल रत्न के लिए चुना गया था…लेकिन इस पर पहलवान सुशील कुमार और बॉक्सर विजेंद्र ने विरोध जताया तो …मंत्रालय ने तीनों ही खिलाड़ियो को खेल रत्न देकर विवाद शांत किया…2010 में भी गगन नारंग ने खेल रत्न न दिए जाने पर शूटिंग छोड़ने की धमकी दी…तो अगले साल यानि 2011 में उन्हें उस पुरस्कार से नवाजा गया…दरअसल एथलीटों को लगता है कि उनका व्यक्तिगत प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ है..लिहाज खेल रत्न पर उका हक तो बनता ही है…इसी के चलते कई बार वे बच्चों जैसी जिद करने लगते हैं…लेकिन एथलीट ये भूल जाते हैं कि वे जो कुछ भी हैं…देश के करोड़ों खेलप्रेमियों के प्यार और समर्थन की वजह से हैं….अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रहे किसी एथलीट के लिए सवा सौ करोड़ देशवासियों का समर्थन होने से बड़ा सम्मान भला क्या हो सकता है…उस एथलीट के लिए तिरंगे के नीचे भाग लेना ही बड़े गौरव की बात होती है….अगर वह बेहतर प्रदर्शन से पदक जीतता है तो इससे बड़ा सुकून क्या होगा कि पूरी दुनिया के सामने उसके देश का राष्ट्रगान गाया जा रहा है…और पूरा देश उसे सिर आंखों पर बिठाकर देख रहा है… कम से कम हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन के मौके पर दिए जाने वाले पुरस्कार पर तो सियासत न कीजिए..

जाते जाते एक और वाकये का जिक्र करता हूं….  विश्व चैंपियनशिप में चैंपियन रहे कोरिया को पछाड़कर गोल्ड मैडल जीतने वाली भारतीय रिकर्व तीरंदाजी टीम की स्वदेश लौटने पर उपेक्षा की गई…एयरपोर्ट पर नए चैंपियनों के स्वागत के लिए न मंत्रालय से और न ही तीरंदाजी संघ से कोई अधिकारी वहां पहुंचा… इसके बजाए अगर क्रिकेट टीम कोई टूर्नामेंट जीतकर स्वदेश लौटती तो उनके स्वागत के लिए तमाम दिखावे किए जाते

बहरहाल कहने का मतलब है कि किसी भी खेल के साथ न सिर्फ खिलाड़ियों की बल्कि करोड़ों प्रशंसकों की और उस देश के लोगों की भावनाएं जुड़ी होती हैं… इसलिए खेल हमेशा खिलाडी से ऊपर होता है… लेकिन कभी खिलाड़ियों के आचरण, महत्वाकांक्षाओं और लालच के चलते तो कभी खेल प्रशासकों के तानाशाही रवैये के चलते बार बार खेल से खिलवाड़ होता रहा है…सही मायने में कोई भी खेल प्रेमी ऐसा होते नहीं देखना चाहता

पंकज कुमार नैथानी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here