डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी : एक दूरदर्शी राजनीतिक चिंतक

रविशंकर त्रिपाठी

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी एक दूरदर्शी राजनीतिक चिंतक थे। उन्होंने मुस्लिम लीग तथा मियां जिन्ना की अलगाववादी गतिविधियां देखकर वर्षों पूर्व यह भविष्यवाणी कर दी थी कि यदि कांग्रेसी नेता मुस्लिम लीग को तुष्ट करने के लिए उसकी हर मांग को स्वीकार करते रहे तो देर सवेर लीग के नेता भारत विभाजन की मांग उठाकर भारत को खंडित कर कट्टरपंथी इस्लामी राज्य बसाने की अपनी कुत्सित योजना में अवश्य सफल हो जाएंगे।

वर्ष 1940 में डॉ. मुखर्जी को हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष मनोनीत किया गया। विनायक दमोदर सावरकर डॉ. मुखर्जी की दूरदर्शिता और निर्भीकता से बहुत प्रभावित थे। उन्हीं दिनों ढाका में मुस्लिम लीग की योजनानुसार हिन्दुओं की हत्या कराकर उन्हें आतंकित कर ढाका से भगाने को विवश होने अन्यथा धर्मपरिवर्तन कर मुसलमान बनाने की घटनाएं शुरू हुई। डॉ. मुखर्जी ने ब्रिटिश चीफ सेक्रेटरी को पत्र लिखकर उन्हें हिन्दुओं के नरसंहार की जानकारी दी तथा इच्छा व्यक्त की कि वे स्वयं ढाका जाकर स्थिति का अध्ययन करना चाहते हैं। सेक्रेटरी ने मुस्लिम लीग के मंत्रियों को तो ढाका भेज दिया किन्तु मुखर्जी के जाने की व्यवस्था नहीं की। डॉ. मुखर्जी एक मिनी वायुयान से ढाका जा पहुंचे। उन्होंने पीड़ित हिन्दुओं के क्षेत्र में पहुंचकर मुस्लिम लीग के गुंडों द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न व हत्याओं की जानकारी प्राप्त की।

बंगाल मुस्लिम लीग का अध्यक्ष ढाका का नवाब था। वे नवाब के महल में जा पहुंचे तथा नवाब से निर्भीकतापूर्वक कहा, ‘मैं अपनी आंखों से सब कुछ देख व सुन चुका हूं। हिन्दुओं के इस नरसंहार की जानकारी से देश को अवगत कराऊंगा। यदि इन हत्याओं की प्रतिक्रिया देश के किसी कोने में हुई तो उसकी जिम्मेदारी मुस्लिम लीग की होगी।’ नवाब डॉ. मुखर्जी के रौद्र रूप को देखकर कांप उठा। उन्होंने बंगाल विधानसभा में ढाका की घटनाओं का पर्दाफाश किया।

वर्ष 1943 में बंगाल दुर्भिक्ष के चपेट में आ गया। वे दुर्भिक्ष पीड़ितों की सहायता में जुट गए। उन्हें पता चला कि मुस्लिम लीग तथा खाकसार संगठन दुर्भिक्ष पीड़ित हिन्दुओं को अनाज आदि का प्रलोभन देकर उनका धर्मांतरण कराने का प्रयास करा रहा हैं। मुखर्जी ने बंगाल विधानसभा में कहा, ‘इस प्राकृतिक आपदा में भी मजहबी कट्टरपंथियों द्वारा धर्मांतरण कराए जाने की घटनाएं मानवता विरोधी हैं। ऐसे दुष्प्रयासों को रोका जाना चाहिए।’

दिसंबर 1943 में अमृतसर में डॉ. मुखर्जी के अध्यक्षता में हिन्दू महासभा का अधिवेशन हुआ। अपने अध्यक्षीण भाषण में डॉ. मुखर्जी ने चेतावनी देते हुए कहा ‘यदि कांग्रेस मुस्लिम लीग को प्रसन्न करने के लिए उसकी हर मांग मानते हुए घुटने टेकती रही तो इसके दुष्परिणाम देश की एकता और अखंडता के भंग होने के रूप में सामने आएंगे। पाकिस्तान की मांग को यदि स्वीकार कर लिया गया तो इसके अत्यंत दुखद परिणाम होंगे।’

एक दिन गांधी जी ने घोषणा की कि वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के सपने को पूरा करने के लिए मियां जिन्ना से भेंट करने उनके निवास स्थान पर जाएंगे। डॉ. मुखर्जी को लगा कि इससे मियां जिन्ना का अहंकार चरम सीमा पर पहुंचेगा। उन्होंने 19 जुलाई 1944 को गांधी जी को पत्र लिखा; गांधी जी ने उत्तर नहीं दिया। वीर सावरकर ने मुखर्जी को परामर्श दिया कि वे पुणे से कोलकाता लौटते समय वर्धा में रूककर गांधी जी से भेंट कर भारत विभाजन की स्वीकृति कदापि न देने का अनुरोध करें। मुखर्जी वर्धा पहुंचे तथा गांधी जी से भेट कर कहा, ‘यदि आप जैसा महान नेता जिन्ना से मिलने लगा तो उसका दुस्साहस बढ़ जाएगा। अत: आप जिन्ना से मिलने जाकर उसका महत्व न बढ़ाएं।’ किंतु गांधी जी अपने दुराग्रह पर अटल रहे।

दिसंबर 1944 में बिलासपुर में हिन्दू महासभा के 26वें राष्ट्रीय अधिवेशन में मुखर्जी ने अध्यक्षीय भाषण में कहा, ‘ऐसी परिस्थिति बनने लगी थी कि मुसलमानों का एक बड़ा समुदाय भी भारत विभाजन का विरोधी होने लगा था। अचानक गांधी जी ने राजगोपालचारी के फार्मूले का समर्थन करके अदूरदर्शिता का परिचय दे डाला। इससे मुस्लिम लीग का उत्साह बढ़ गया है तथा वह नई-नई मांगे लेकर सामने आ रही है।’

डॉ. मुखर्जी ने भारत विभाजन को साम्प्रदायिकता की समस्या का हल बताने वालों को चुनौती देते हुए कहा ‘भारत का विभाजन कर पाकिस्तान बनाए जाने से पूरा देश मजहबी उन्माद के चपेट में आ जाएगा। हमेशा-हमेशा के लिए साम्प्रदायिक सौहार्द नष्ट हो जाएगा। इससे गृह युद्ध की सभांवना पैदा होगी।’

उन्होंने कहा, “यह जान लेना आवश्यक है कि पाकिस्तान बनाए जाने की मांग के पीछे ‘इस्लामीकरण’ की अन्तरराष्ट्रीय योजना काम कर रही है। इससे निकृष्टतम मजहबी उन्माद तथा मतांधता घोर अनर्थ के रूप में सामने आएगी।”

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी दूरदर्शी राजनेता थे। वे यह समझ चुके थे कि अनेक प्रयासों के बावजूद अब भारत का विभाजन रोका नहीं जा सकेगा। अत: उन्होंने बंगाल, पंजाब और असम के हिन्दू बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान में न मिलने देने के लिए जनजागरण शुरू कर दिया। मार्च 1947 में उनके प्रयास से बंगाल में हिन्दू प्रतिनिधियों के सम्मेलन में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया गया कि बंगाल के हिन्दू बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान में कदापि न जाने दिया जाए। मुस्लिम लीग के नेता मियां सुहारावर्दी ने डॉ. मुखर्जी के बगांल के हिन्दू बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान में न मिलाए जाने की मांग को लेकर चलाए जा रहे अभियान से घबराकर ‘संयुक्त स्वतंत्र बंगाल राज्य’ बनाए जाने का प्रस्ताव रखा। सुहारवर्दी की कुटिल योजना थी कि सभी बंगालियों को स्वतंत्र बंगाल का झासा देकर, उन्हें प्रांतीयता के भावना में फंसा लिया जाए। डॉ. मुखर्जी ने 13 मई को गांधी जी से भेंट कर उन्हें चेताया कि कांग्रेस को सुहरावर्ती के संयुक्त स्वतंत्र बंगाल के धूर्ततापूर्ण झांसे में नहीं आना चाहिए।

डॉ. मुखर्जी तथा अन्य जागरूक हिन्दू नेताओं के सतत प्रयास का यह सुफल निकला कि बंगाल और पंजाब के हिन्दू बहूल क्षेत्रों को पाकिस्तान का अंग नहीं बनाया जा सका। और आगे चलकर डॉ. मुखर्जी ने कश्मीर को भारत से अलग किए जाने के भीषण षणयंत्र को 23 जून 1953 को श्रीनगर में नजरबंदी के दौरान अपना बलिदान देकर असफल कर दिखाया।

काश जवाहर लाल नेहरू ने उस समय डा. मुखर्जी की बात को समझा होता…

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