धर्म व अध्यात्म की आड़ में चलता सेक्स रैकेट

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asharamतनवीर जाफ़री

देश में भक्तों की सबसे अधिक संख्या रखने वाला आसाराम देर से ही सही पंरतु कानून के शिकंजे में आ चुका है। यदि यह दो दशक पूर्व गिरफ्तार कर लिया जाता तो सैकड़ों कन्याओं व नाबालिग लड़कियों की इज़्ज़त लुटने से बच जाती। आसाराम पर कसे गए कानूनी शिकंजे के विरोध में भले ही राजनीति की रोटियां सेकने वाले इस प्रकरण को राजनैतिक रूप देने की कोशिश क्यों न कर रहे हों। उसके अंधभक्त अनुयायी उसपर कसे जा रहे शिकंजे को भले ही कोई साजि़श क्यों न बता रहे हों। परंतु आसाराम एक संत के रूप में कितना बड़ा व्याभिचारी,अय्याश तथा वासना का भूखा भेडिय़ा था यह सब केवल वही लोग बता सकते हैं जिनके साथ या तो उसने डरा-धमका कर, बहला-फुसला कर अथवा प्रलोभन देकर शारीरिक संबंध स्थापित किए हों। या फिर उसका वह करीबी नेटवर्क उसके बारे में बेहतर जानता है जो उसके इर्द-गिर्द के पहले घेरे के रूप में उसके साथ रहता था तथा उसके लिए उसकी मनचाही कन्या उपलब्ध कराने की व्यवस्था करता था। ऐसे ही कई नाम अब आसाराम के जोधपुर कांड के बाद उजागर होने शुरु हो चुके हैं। कई लड़कियां जोकि कुछ वर्ष पूर्व तक उस पापी-पाखंडी संत की अनुयायी व अंधभक्त थीं अब अपनी आपबीती बताते हुए धीर-धीरे अपना मुंह खोलने लगी हैं। इन बातों से साफ पता चलता है कि जोधपुर में उसने अपने शिष्य की नाबालिग पुत्री के साथ जो कुछ भी किया अथवा करना चाहा वह उसके लिए कोई नया काम या नई बात नहीं थी। बल्कि वह उसका आदी हो चुका था। कम से कम उसके सबसे करीबी व्यक्ति शिवा की बातों से तथा उसकी गिरफ्तारी के बाद पुलिस को दर्ज कराए गए शिवा के बयानों से तो यही ज़ाहिर होता है।

आसाराम भले ही आज अपनी काली करतूतों की वजह से पुलिस,थाना,अदालत व जेल के चक्कर लगाता दिखाई दे रहा हो परंतु वास्तव में मुझे यह शख्स गत् दो दशकों से ही एक पाखंडी संत के रूप में नज़र आ रहा था। मैं भी अक्सर कई ऐसे संतों के प्रवचन सुनता रहता हूं जोकि सामाजिक सरोकारों से जुड़े तथा समाज को दिशा दिखाने वाले प्रवचन देते हैं। इनमें मुरारी बापू तथा कई जैन संतों के प्रवचन मुझे प्रभावित करते हैं। पंरतु यदि आप गौर से आसाराम के प्रवचन देने की कला,उनकी वाणी तथा उनके अंदाज़ को देखें तो क्षणभर में यह पता चल जाएगा कि यह व्यक्ति वास्तविकता से दूर केवल और केवल ढोंग की दुनिया में जी रहा है। आसाराम प्रवचन देने के समय केवल अभिनय व ढोंग का सहारा लेता था। उसके मुंह से निकलने वाले बोल तथा उनकी अदायगी पूरी तरह से एक अभिनय मात्र प्रतीत होती थी। आज यौन शोषण के जिस मामले में यह पाखंडी संत गिरफ्तार किया गया है ऐसा ही आरोप उसपर लगभग एक दशक पूर्व भी उस समय लगा था जबकि इसने अंबाला के अपने ही एक शिष्य की बेटी पर हाथ साफ किया था। यह खबर उस सम न तो टीवी पर चली थी न ही इस घटना ने ज़्यादा शोहरत पाई थी। पंरतु चूंकि यह घटना अंबाला से जुड़ी थी इसलिए मेरे कानों में इस खबर की थोड़ी-बहुत गंूज पहुंची। मैं टीवी चैनल के अपने कुछ पत्रकार मित्रों के कहने पर उस लडक़ी के पिता से जाकर मिला। उस व्यक्ति ने मुझे पूरा प्रकरण विस्तार से बताया। परंतु मुझसे अपनी बेटी की बात कराने से मना कर दिया। ज़ाहिर है एक साधारण पिता की तरह वह भी अपनी बेटी को सार्वजनिक रूप से अपमानित या रुसवा होते नहीं देखना चाहता था। परंतु इसके बावजूद उसने घटना का पूरा वृतांत सुना डाला।

जोधपुर का घटनाक्रम सुनने के बाद मुझे आश्चर्य हुआ कि लगभग इसी तरह का मिलता-जुलता घटनाक्रम एक दशक पूर्व उस लडक़ी के पिता ने भी मुझसे बयान किया था जिसे आसाराम ने अपनी वासना का शिकार बनाया था। अंतर केवल इतना है कि जोधपुर कांड का सताया हुआ इस व्याभिचारी संत का शिष्य अपनी व अपनी बेटी की बदनामी की परवाह किए बिना अपने दुष्कर्मी गुरु को उसकी इंतेहा तक पहुंचाने के लिए कमर कसकर तैयार हो गया जबकि अंबाला का पीडि़त परिवार अपनी व अपनी बेटी की इज़्ज़त-आबरू को बचाने की खातिर अपना पुश्तैनी मकान छोडक़र कहीं दूसरी जगह रहने के लिए चला गया। एक दशक पूर्व मुझे उस पीडि़त लडक़ी के पिता ने यह सारी बातें बताई थीं जो आज जोधपुर कांड के बाद सुनाई दे रही हैं। इससे यह ज़ाहिर होता है कि उसके इर्द-गिर्द के खास लोग आसाराम की वासना की भूख मिटाने के लिए एक सधे-सधाए पैटर्न का उपयोग करते हैं जिसमें लडक़ी को प्रलोभन देना, राधा-कृष्ण की उपमा देकर लडक़ी को राधा व स्वयं को कृष्ण बताकर रासलीला का ढोंग रचाना, दुष्कर्म करने जैसे कुकर्म को स्वर्ग दिखाने की संज्ञा देना, बाद में उसे चुप रहने के लिए कहना और यदि पोल-पट्टी खुल जाए तो पहले प्यार-मोहब्बत से बहला-फुसला कर पीडि़त परिवार को खामेश रहने की हिदायत देना और यदि इससे भी काम न चले तो धन-संपत्ति का प्रलोभन देना और यदि यह उपाय भी सफल न हो तो अंत में उसे डरा-धमका कर खामोश रखने जैसे हथकंडे अपनाना शामिल हैं।

मुझे आसाराम के उन बेचारे भक्तों को देखकर बड़ी ही हैरानगी व आश्चर्य होता है जोकि धर्म व अध्यात्म की दुनिया को कलंकित करने वाले उस पापी-पाखंडी संत की हकीकत उजागर होने के बाद भी उसके समर्थन में खड़े हैं तथा उसके साथ हो रही कानूनी कार्रवाई पर अपने आंसू बहा रहे हैं। मेरे संपर्क में भी ऐसे दर्जनों लेाग हैं जोकि कुछ वर्ष पूर्व तक इस दुराचारी कथित संत के अंध भक्त थे परंतु अब अपने इस कलयुगी गुरु से उनका मोह भंग हो चुका है। आज वे इसकी जो हरकतें बयान करते हैं उसे सुनकर किसी भी इंसान के रोंगटे खड़े हो जाएंगे। जोधपुर कांड के बाद अब धीरे-धीरे यह बात सामने आ रही है कि वह मध्यप्रदेश की छिंदवाड़ा गुरुकुल की अपनी हॉस्टल वार्डन शिल्पी के साथ नियमित रूप से शारीरिक संबंध रखता था। उसके सेवादार शिवा के खुलासे से ही यह भी पता चल रहा है कि यह पाखंडी अपने आश्रम में बाकायदा अशलीलता का पूरा रैकेट चलाता था और इस रैकेट में उसकी एक टीम उसके साथ लगी हुई थी। खबरों के मुताबिक अपने शिष्यों की बच्चियों को यह पापी संत अपने नेटवर्क के माध्यम से अशलील सीडी दिखाता था और उसके द्वारा उनकी वासना जगाकर उन्हें सम्मोहित किया करता था। इन बातों से साफ ज़ाहिर होता है कि इस पापी की हवस का शिकार दो-चार या दस लड़कियां व महिलाएं नहीं बल्कि उनकी संख्या सैकड़ों व हज़ारों में हो सकती है। क्योंकि इस दुष्कर्मी को सेक्स का चस्का कोई बुढ़ापे में नहीं लगा बल्कि यह एक गृहस्थ व ढोंगी संत है तथा अपने प्रवचनों में कई बार अपने भक्तों को मर्दानगी के फार्मूले बताता सुना गया है। और 70 से ऊपर की आयु होने के बावजूद उसकी चाल-ढाल,आवाज़ तथा उसकी करतूत सब कुछ इस बात के गवाह हैं कि वे खुद अपने पौरुष की रक्षा के लिए यह सबकुछ ज़रूर करता रहा होगा। स्वर्ण भस्म को दूध में मिलाकर पीने की उसकी सलाह को उसी के शब्दों में सभी सुन ही चुके हैं।

दरअसल हमारे देश की भोली-भाली जनता इन पापियों के रंग-रूप,वेशभूषा तथा पाखंडी स्वरूप के बहकावे में जल्दी आ जाती है। रही-सही कसर वह नेतागण दूर कर देते हैं जो उनके भीड़ भरे समागम में स्टेज पर पहुंचकर इनके भाव और बढ़ा देते हैं। यहां आसाराम के प्रसंग में यह बताना ज़रूरी है कि प्रधानमंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी जैसा सौम्य,योग्य व शरीफ इंसान भी स्वयं को इनकी स्टेज तक जाने से नहीं रोक सका। यहां तक कि वाजपेयी जी को आसाराम के साथ नृत्य करते हुए भी देखा गया। नेताओं का संतों के प्रति आकर्षण का कारण उनके समागम में मौजूद भीड़ तथा भीड़ से जुड़ी वोट की राजनीति हो सकती है। परंतु इस सिक्के का दूसरा पहलू निश्चित रूप से यही है कि बड़े नेताओं द्वारा ऐसे लोगों के साथ मंच सांझा करने से इन पाखंडियों के हौसले और भी बढ़ जाते हैं। और यह अपने भक्तों को यह जताने से नहीं हटते कि ‘देखो अमुक नेता भी मेरे दरबार में हाज़री लगाता है। अत: सत्ता में मेरी कितनी घुसपैठ है यह बखूबी समझा जा सकता है।’ और अपनी इसी सत्ताशक्ति की बदौलत वे न केवल अपने साम्राज्य, अपने अनुयाईयों की संख्या, अपनी धन-संपदा आदि सबकुछ बढ़ाते जाते हैं बल्कि इसी की आड़ में अपनी वासना की पूर्ति तथा व्याभिचार का रैकेट भी संचालित करते रहते हैं। और जब तक जोधपुर कांड की तरह इनका कोई शिष्य इन्हें इनकी औकात तक नहीं पहुंचा देता जब तक यह या इन जैसे दूसरे सभी धर्मों के अय्याश व ढोंगी प्रवृति के धर्मगुरु धर्म व अध्यात्म की आड़ में अपना सेक्स रैकेट चलाते रहते हैं।

2 COMMENTS

  1. लाखों संत में एकाध ऐसे होने को नियम न मान लिया जाय -वैसे इस प्रकार के किस्से हर सम्प्रदायमे होतेभैन और आशाराम कथावाचक जरूर हैं कोई शंकराचार्य नहीं की कोई भूचाल आ जाये ? आप में कितनों ने चर्च में होनेवाले अनाचार पर लिखा है ? जब बूढ़े मुस्लिम ने गजगामिनी बनाई उसे कला कह दिया? मानक एक ही रहें तो अच्छा .

  2. इस दुनिया में हर मज़्हब किसी न किसी सूरत में नफ़रत जरूर सिखाता है, क्योंकि हर मज़्हब ख़ौफ और ख़ुदग़रज़ी की बुनियादों पर क़ायम है और जहाँ ख़ौफ़ होगा, वहाँ तास्सुब जरूर होगा,जहाँ ख़ुदग़रज़ी होगी, वहाँ नफ़रत जरूर होगी। — आमिर हुसैन (आज-70 कराची)

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